बी ए - एम ए >> फास्टर नोट्स-2018 बी. ए. प्रथम वर्ष शिक्षाशास्त्र प्रथम प्रश्नपत्र फास्टर नोट्स-2018 बी. ए. प्रथम वर्ष शिक्षाशास्त्र प्रथम प्रश्नपत्रयूनिवर्सिटी फास्टर नोट्स
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बी. ए. प्रथम वर्ष (सेमेस्टर-1) शिक्षाशास्त्र के नवीनतम पाठ्यक्रमानुसार हिन्दी माध्यम में सहायक-प्रश्नोत्तर
प्रश्न- नैतिक एवं चारित्रिक विकास के उद्देश्य को समझाइए।
उत्तर-
नैतिक एवं चारित्रिक विकास का उद्देश्य
बच्चों का नैतिक एवं चारित्रिक विकास करना शिक्षा का प्रमुख उद्देश्य है। प्रत्येक समाज के अपने आचार-विचार सम्बन्धी कुछ सिद्धान्त और नियम होते हैं। सामान्यतः इन नियमों का पालन करना नैतिकता है और इन नियमों का पालन करने की आन्तरिक शक्ति चरित्र है और इस दृष्टि से नैतिकता एवं चरित्र अभिन्न है, एक के अभाव में दूसरे की बात नहीं सोची जा सकती। परन्तु भिन्न-भिन्न अनुशासनों में नैतिकता और चरित्र की भिन्न-भिन्न रूप से व्याख्या की गई है। मानवशास्त्री समाज समस्त आचरण को नैतिकता एवं चरित्र के रूप में लेते हैं। मनोवैज्ञानिक चरित्र को अच्छी आदतों के पुंज अथवा दृढ़ इच्छा शक्ति के रूप में स्वीकार करते हैं। अध्यात्मशास्त्री इन्द्रिय निग्रह और धर्म सम्मत आचरण को ही नैतिकता एवं चरित्र मानते हैं। साहित्य में समाज द्वारा नियमों के पालन को नैतिकता और मनुष्य के आचार-विचार को चरित्र के रूप में लिया जाता है, वहाँ नैतिकता का पालन न करने वाले का भी अपना चरित्र होता है। उसमें डाकू का भी अपना चरित्र होता है, यह बात दूसरी है कि उसका चरित्र अच्छा होता है अथवा बुरा।
शिक्षा के क्षेत्र में आज जब हम नैतिक एव चारित्रिक विकास की बात करते हैं तो हमारा आशय बच्चों को अपने समाज द्वारा निश्चित आचार-विचार सम्बन्धी नियमों का दृढ़ इच्छा शक्ति के साथ पालन करने की ओर प्रवृत्त करने से होता है और आचार-विचार तो समाज की अपनी भौगोलिक स्थिति, दार्शनिक विचारधारा, सामाजिक संरचना, राज्यतन्त्र, अर्थतन्त्र, वैज्ञानिक प्रगति और उसकी भौतिक एवं आध्यात्मिक उपलब्धियों पर निर्भर करते हैं। धर्मप्रधान समाजों में नैतिकता का आधार धर्म होता है और चूँकि संसार के अधिकतर लोग किसी न किसी धर्म को मानते हैं और उनके आचार-विचार उनके धर्म पर आधारित होते हैं। इसलिए प्रायः लोग धर्म और नैतिकता में भेद नहीं करते। हमारी दृष्टि से भी धर्म पर आधारित नैतिकता की सच्ची नैतिकता होती है। परन्तु अपने देश के सन्दर्भ में हमारी विवशता है। हमारे यहाँ अनेक धर्म और सम्प्रदाय है, हम किसी एक धर्म पर आधारित नैतिकता की शिक्षा नहीं दे सकते। फिर हमने धर्मनिरपेक्षता का चोला भी तो पहन रखा है। इस स्थिति में हम अपने देश में नैतिक एवं चारित्रिक विकास के नाम पर अपने बच्चों को केवल मानवतावादी सामाजिक नियमों के पालन एवं मानवतावादी गुणों को ग्रहण करने की ओर प्रवृत्त कर सकते हैं और यह हमें करना भी चाहिए। यदि हम अपने बच्चों में ईमानदारी, कर्त्तव्यपराणयता, परोपकार और दृढ़ इच्छा शक्ति आदि चारित्रिक गुणों का विकास कर सकें और उन्हें प्रेम, सहानुभूति और सहयोग के साथ रहना सिखा सकें तो समझिए हमने उनका नैतिक एवं चारित्रिक विकास कर दिया।
अब हम चाहें वैयष्टिक हित की दृष्टि से देखें, चाहे सामाजिक हित की दृष्टि से, व्यक्ति का नैतिक एवं चारित्रिक विकास होना आवश्यक है। नैतिक एवं चारित्रिक विकास के अभाव में न तो कोई व्यक्ति अपना भला कर सकता है और न समाज का। देश-विदेश के अधिकतर विद्वान इसे शिक्षा का मुख्य उद्देश्य मानते हैं। गाँधी जी के अनुसार शिक्षा का अन्तिम उद्देश्य मनुष्य का चारित्रिक विकास ही होना चाहिए, इसी के द्वारा वह इस लोक में शान्तिपूर्वक रह सकता है और इसी के द्वारा वह अपना आध्यात्मिक विकास कर सकता है। जर्मन शिक्षाशास्त्री हरबर्ट तो उच्च नैतिक चरित्र के निर्माण को ही शिक्षा मानते थे। अंग्रेज विद्वान बरट्रेन्ड रसेल ने भी चरित्र निर्माण के उद्देश्य को स्वीकार किया है। वे प्रत्येक मनुष्य में सदा काम आने वाले चार नैतिक एवं चारित्रिक गुणों पौरुष, साहस, संवेदनशीलता और बुद्धि का विकास करना आवश्यक समझते थे।
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- प्रश्न- वैदिक काल में गुरुओं के शिष्यों के प्रति उत्तरदायित्वों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- वैदिककालीन शिक्षा में गुरु-शिष्य के परस्पर सम्बन्धों का विवेचनात्मक वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- वैदिक शिक्षा व्यवस्था की प्रमुख विशेषताओं की विवेचना कीजिए। वर्तमान शिक्षा व्यवस्था में सुधार हेतु यह किस सीमा तक प्रासंगिक है?
- प्रश्न- वैदिक शिक्षा की मुख्य विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- प्राचीन भारतीय शिक्षा के कम से कम पाँच महत्त्वपूर्ण आदर्शों का उल्लेख कीजिए और आधुनिक भारतीय शिक्षा के लिए उनकी उपयोगिता बताइए।
- प्रश्न- वैदिककालीन शिक्षा के मुख्य उद्देश्य एवं आदर्श क्या थे? वैदिक काल में प्रचलित शिक्षा के मुख्य गुण एवं दोष बताइए।
- प्रश्न- वैदिककालीन शिक्षा के मुख्य उद्देश्य क्या थे?
- प्रश्न- वैदिककालीन शिक्षा के प्रमुख गुण बताइए।
- प्रश्न- प्राचीन काल में शिक्षा से क्या अभिप्राय था? शिक्षा के मुख्य उद्देश्य एवं आदर्श क्या थे?
- प्रश्न- वैदिककालीन उच्च शिक्षा का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- प्राचीन भारतीय शिक्षा में प्रचलित समावर्तन और उपनयन संस्कारों का अन्तर स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- वैदिककालीन शिक्षा का मुख्य उद्देश्य ज्ञान का विकास तथा आध्यात्मिक उन्नति करना था। स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- आधुनिक काल में प्राचीन वैदिककालीन शिक्षा के महत्त्व को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- वैदिक शिक्षा में कक्षा नायकीय प्रणाली के महत्व की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- वैदिक कालीन शिक्षा पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- शिक्षा से आप क्या समझते हैं? शिक्षा के विभिन्न सम्प्रत्ययों का उल्लेख करते हुए उसके वास्तविक सम्प्रत्यय को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- शिक्षा का अर्थ लिखिए।
- प्रश्न- शिक्षा से आप क्या समझते हैं?
- प्रश्न- शिक्षा के दार्शनिक सम्प्रत्यय की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- शिक्षा के समाजशास्त्रीय सम्प्रत्यय की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- शिक्षा के राजनीतिक सम्प्रत्यय की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- शिक्षा के आर्थिक सम्प्रत्यय की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- शिक्षा के मनोवैज्ञानिक सम्प्रत्यय की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- शिक्षा के वास्तविक सम्प्रत्यय को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- क्या मापन एवं मूल्यांकन शिक्षा का अंग है?
- प्रश्न- शिक्षा को परिभाषित कीजिए। आपको जो अब तक ज्ञात परिभाषाएँ हैं उनमें से कौन-सी आपकी राय में सर्वाधिक स्वीकार्य है और क्यों?
- प्रश्न- शिक्षा से तुम क्या समझते हो? शिक्षा की परिभाषाएँ लिखिए तथा उसकी विशेषताएँ बताइए।
- प्रश्न- शिक्षा का संकीर्ण तथा विस्तृत अर्थ बताइए तथा स्पष्ट कीजिए कि शिक्षा क्या है?
- प्रश्न- शिक्षा का 'शाब्दिक अर्थ बताइए।
- प्रश्न- शिक्षा का अर्थ स्पष्ट करते हुए इसकी अपने शब्दों में परिभाषा दीजिए।
- प्रश्न- शिक्षा से आप क्या समझते हैं?
- प्रश्न- शिक्षा को परिभाषित कीजिए।
- प्रश्न- शिक्षा की दो परिभाषाएँ लिखिए।
- प्रश्न- शिक्षा की विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- आपके अनुसार शिक्षा की सर्वाधिक स्वीकार्य परिभाषा कौन-सी है और क्यों?
- प्रश्न- 'शिक्षा एक त्रिमुखी प्रक्रिया है।' जॉन डीवी के इस कथन से आप कहाँ तक सहमत हैं?
- प्रश्न- 'शिक्षा भावी जीवन की तैयारी मात्र नहीं है, वरन् जीवन-यापन की प्रक्रिया है। जॉन डीवी के इस कथन को उदाहरणों से स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- शिक्षा के क्षेत्र का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- शिक्षा विज्ञान है या कला या दोनों? स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- शिक्षा की प्रकृति की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- शिक्षा के व्यापक व संकुचित अर्थ को स्पष्ट कीजिए तथा शिक्षा के व्यापक व संकुचित अर्थ में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- शिक्षा और साक्षरता पर संक्षिप्त टिप्पणी दीजिए। इन दोनों में अन्तर व सम्बन्ध स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- शिक्षण और प्रशिक्षण के बारे में प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- विद्या, ज्ञान, शिक्षण प्रशिक्षण बनाम शिक्षा पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- विद्या और ज्ञान में अन्तर समझाइए।
- प्रश्न- शिक्षा और प्रशिक्षण के अन्तर को स्पष्ट कीजिए।