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फास्टर नोट्स-2018 बी. ए. प्रथम वर्ष शिक्षाशास्त्र प्रथम प्रश्नपत्र

यूनिवर्सिटी फास्टर नोट्स

प्रकाशक : कानपुर पब्लिशिंग होम प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :136
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 307
आईएसबीएन :0

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बी. ए. प्रथम वर्ष (सेमेस्टर-1) शिक्षाशास्त्र के नवीनतम पाठ्यक्रमानुसार हिन्दी माध्यम में सहायक-प्रश्नोत्तर

प्रश्न- राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद (NCTE) के पाठ्यक्रम प्रारूप की व्यावहारिक उपादेयता का विस्तार से चर्चा कीजिए।

अथवा

एन. सी. टी. ई. के लक्ष्य लिखिए।

उत्तर-

राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद
(NCTE)

नई शिक्षा नीति के तहत राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद जोकि 1973 से ही कार्यरत रहा, उसे स्वायत्त और संविधानगत स्थान दिये जाने की आवश्यकता को स्पष्ट किया गया। इससे यह परिषद विभिन्न स्तरीय अध्यापक शिक्षा संस्थानों को उपयुक्तता/अनुपयुक्तता एवं मान्यता आदि प्रदान करने में सक्षम होगा। ऐसे संस्थानों के लिए अनुपातीय मानक और मानदण्डों को निर्धारित कर पाना सम्भव होगा तथा परिषद द्वारा अध्यापक शिक्षा हेतु पाठ्यक्रम एवं शिक्षण विधियों के लिए दिशा-निर्देशन या पथ-प्रदर्शन प्रणाली विकसित की जा सकेगी। सेवाकालीन कार्यक्रम के लिऐ क्रेडिट तय करना, पाठ्यक्रमावधि निर्धारित करना, साक्षरता कर्मियों के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रम पर बल देना, अध्यापक शिक्षा के क्षेत्र में दूरस्थ शिक्षा के स्थान और औचित्य को सुनिश्चित करना आदि अन्य प्रमुख कार्य परिषद् द्वारा करना सम्भव हो सकेगा। अधिगम सामग्री निर्माण, अध्यापक शिक्षकों के लिए दिशा-निर्देशन कार्यक्रम निर्मित करना आदि में परिषद सहायता प्रदान करते हुए राष्ट्रीय तथा राज्य शैक्षिक अनुसन्धान और प्रशिक्षण परिषदों को समन्वयाधारित सहयोग कर सकेगा। नई शिक्षा नीत में अध्यापक शिक्षा के पाठ्यक्रम के पुनर्नवीनीकरण पर बल दिया गया ताकि शिक्षा के साथ संस्कृति, कार्यानुभव, शारीरिक शिक्षा और खेलकूद, सामुदायिक कार्य, समायोजनयोगी उत्पादक कार्य, नियोजन और प्रबन्धन, शैक्षिक तकनीकी, भारतीय दार्शनिक तथा मनोवैज्ञानिक पृष्ठभूमि के बारे में विशेष जानकारी, भारतीय शिक्षाविद और शिक्षाशास्त्रियों के अनुभव और विचार आदि से भावी अध्यापक। अध्यापिकाओं को परिचित कराने के लिए प्रयास पर पाना सम्भव हो सके और वर्तमान पाश्चात्य शिक्षाधारित पाठ्यक्रम का उपयोग कम हो सके।
इस हेतु नवीन अधिगम सामग्री निर्माण (अभिक्रामिक अधिगम सामग्री पाठ्य-पुस्तक सन्दर्भ पुस्तक आदि) दृश्य-श्रव्य सामग्री निर्माण और व्यावहारिक कार्यानुभव की संरचना आदि को भी महत्वपूर्ण एवं अत्यावश्यक माना गया।
राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद का पाठयक्रम प्रारूप : व्यावहारिक उपादेयता - इन संस्तुतियों को ध्यान में रखते हुए ही परिषद द्वारा आगे चलकर अध्यापक शिक्षा के क्षेत्र में राष्ट्रीय पाठ्यक्रम प्रारूप को तैयार किया गया, जिसे व्यावहारिक दृष्टि से आज अधिक सार्थक माना जा रहा है।
(i) आजीविकागत कौशलों की प्राप्ति के लिये इस पाठयक्रम प्रारूप को उपयोगी माना जा सकता है, क्योंकि यदि शिक्षण को एक आजीविका के स्तर तक पहुँचाना उद्देश्य हो, तो अवश्य ही कौशलात्मक दक्षताओं की सम्प्राप्ति को सुनिश्चित करने वाले पाठ्यक्रमों की आवश्यकता होगी।
(ii) प्रतिबद्ध अध्यापकीय तैयारी - आज समाज में शिक्षण के सामान्य और विशिष्ट उद्देश्यों की प्राप्ति को सुनिश्चित करने वाले अध्यापकों के साथ ही प्रतिबद्ध और दक्ष व्यक्तियों की जरूरत है, जो न केवल अधिगमकर्त्ता, बल्कि साथ ही समाज और राष्ट्र के प्रति भी अपने दायित्व को अनुभव करने में सक्षम हों। इस हेतु परिषद निर्मित पाठ्यक्रम प्रारूप अधिक स्वीकार्य है।
(iii) निष्पादन सफल अध्यापकीय तैयारी के लिये - अध्यापक शिक्षा के पाठ्यक्रम में उन अपेक्षित क्षेत्रों को स्पष्ट रूप से निर्धारित किये जाने की आवश्यकता है जिनमें उच्च स्तरीय निष्पादन प्रदर्शन की अपेक्षा की जाती है। साथ ही उन्हें सम्प्राप्त करने के लिये उपयुक्त शिक्षण-अधिगम अनुभव प्रदान करने की भी आवश्यकता होगी, जिसका प्रायः सर्वथा अभाव वर्तमान प्रचलित अध्यापक शिक्षा पाठ्यक्रमों में है।
(iv) अध्यापकीय उत्तरदायित्व और कार्य - सन्तुष्टि को बढ़ाने के लिए परिषद द्वारा प्रस्तावित पाठ्यक्रम प्रारूप अधिक उपयोगी है और व्यावहारिक दृष्टि से उपादेय भी, क्योंकि आगामी दिनों में ऐसे ही अध्यापक/अध्यापिकाओं की आवश्यकता होगी। उत्तरदायित्व की भावनाविहीन और कार्य-असन्तुष्टि से ग्रसित शिक्षक छात्रों के मानसिक और भावात्मक विकास के लिए सर्वथा अनुपयुक्त साबित होंगे।
(v) शैक्षिक तकनीकी कुशल अध्यापकीय तैयारी के लिए - आधुनिक काल में सूचना और सम्प्रेषण तकनीकी के क्षेत्र में जो क्रान्ति होगी, उसमें तकनीकी कुशल अध्यापक ही अपने कार्यभार को सफलतापूर्वक वहन करने में सक्षम होंगे, इसमें कोई सन्देह नहीं है। संगणकीय शिक्षा, संगणक साहायित शिक्षण कार्यक्रम, स्वाध्याय केन्द्रित शिक्षण आदि के लिए शैक्षिक तकनीकीगत कुशलता की प्राप्ति अनिवार्य होगी और इस हेतु नवीन पाठ्यचर्या प्रारूप की आवश्यकता होगी।
इसी प्रकार, समाजिक मूल्य और नैतिकता के विकास के लिए भी उपयुक्त अध्यापक शिक्षा पाठ्यक्रम की आज आवश्यकता है, ताकि भावी शिक्षक समुदाय इस क्षमता से युक्त हो सके।
यही कारण है कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति और उसकी कार्य-योजना में अध्यापक शिक्षा को समुचित स्थान प्रदान किया गया।
नवीन पाठ्यक्रम प्रारूप के अनुसार जिन नवीन प्रकार के अध्यापक शिक्षा संस्थानों की आवश्यकता होगी, उनके बारे में चर्चा कर चुके हैं। शिक्षा में विकसित या उच्च अध्ययन केन्द्र, व्यापक अध्यापक शिक्षा महाविद्यालय या संस्थान, एकीकृत अध्यापक शिक्षा संस्थान आदि ऐसे ही नवीन संस्थान होंगे, जहाँ अध्यापक शिक्षा के विभिन्न उपागमों का व्यावहारिक उपयोग करना सम्भव हो सकेगा। प्रादेशिक शिक्षा संस्थानों की भूमिका भी महत्वपूर्ण होगी। प्रायः एकीकृत अध्यापक शिक्षा केन्द्रों की स्थापना समाकलित उपागम को वरीयता देने के लिए किया जाना आवश्यक माना गया, जबकि क्रमानुसार या क्रमबद्ध उपागम को प्राधान्य देने के लिए व्यापक अध्यापक शिक्षा संस्थानों की कल्पना की गई है।
(1) समाकलित उपागम इस उपागम के अनुसार, अध्यापक शिक्षा एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसके माध्यम से एक सम्पूर्ण अध्यापक या शिक्षक को तैयार करना सम्भव हो सकता है। यह उपागम समग्रतावादी मनोविज्ञान के सिद्धान्तों का अनुसरण करता है। आज सामान्य विशिष्ट, तकनीकी और व्यावसायिक क्षेत्रीय अध्यापकों को पृथकतः शिक्षित-प्रशिक्षित करने के स्थान पर उन्हें समग्र रूप से शिक्षित-प्रशिक्षित किये जाने की आवश्यकता का अनुभव किया जा रहा है, क्योंकि एक अध्यापक या अध्यापिकाओं को अपनी कक्षा में विभिन्न रुचि, योग्यता और आवश्यकता वाले अधिगमकर्त्ताओं को प्रबन्धित और शिक्षित करना होता है। केवल मात्र सामान्य अध्यापक शिक्षा कार्यक्रम के अधीन शिक्षित-प्रशिक्षित होने के बाद वे प्रतिभावान और पिछड़े हुए दोनों ही वर्गीय छात्रों की उपेक्षा कक्षा में करते हुए आगे बढ़ें,
यह सर्वथा सम्भव है। विशिष्ट आवश्यकता वाले छात्रों को सिखाने में वे प्रवीण नहीं होंगे और न ही विशेष तकनीकी या व्यावसायिक शिक्षा में रुचि रखने वाले छात्राओं के साथ वे न्याय करने में समर्थ होंगे।
इस उपागम में समाकलित पाठ्यक्रम के उपयोग पर बल दिया जाता है और प्रत्येक के छात्रों के साथ शिक्षण अभ्यास करना, भावी शिक्षकों के लिए जरूरी माना जाता है। अति विशिष्ट या अन्यथा सक्षम छात्रों के लिए विशिष्ट विद्यालयीय शिक्षा की आवश्यकता को स्वीकारते हुए यह स्पष्ट किया गया है कि आज समायोजन सक्षम छात्रों का मुख्य धारायोजना अति आवश्यक है। अतः समाकलित अध्यापक शिक्षा जरूरी है।
(2) क्रमबद्ध उपागम - यह उपागम क्रमानुसार विकास या व्यवस्था को महत्व देने के कारण समाकलन के स्थान पर प्रणाली व्यवस्था के उपयोग को आवश्यक स्थान प्रदान करता है। इसमें सम्पूर्ण अध्यापक शिक्षा कार्यक्रम को एक प्रणाली के रूप में देखते हुए प्रत्येक चरण को परस्पर सम्बन्धित ढंग से व्यवस्थित और क्रमबद्ध किया जाता है, ताकि एक के बाद दूसरे चरण का तात्पर्य पूर्ण और नियोजित ढंग से अनुप्रयोग करना सम्भव हो सके। अध्यापक शिक्षा के क्षेत्र में गुणवत्ता और स्तरोन्नयन के लिए यह उपामग अधिक उपयोगी और व्यावहारिक माना जा सकता है। अदा, प्रक्रिया, प्रदा और वातावरण को नियन्त्रित करते हुए प्रदा को स्वतः नियन्त्रित किया जा सकता है। अध्यापक शिक्षा के क्षेत्र में अवश्य ही यह प्रदा, कुशल और दक्षता प्राप्त अध्यापक/अध्यापिकाएँ ही होंगे। प्रणाली उपामग के सन्दर्भ में इसके बारे में हम चर्चा कर चुके हैं।
इस उपामग में अलग-अलग शिक्षण विधियों को महत्व दिया जाता है, जो परिणामोन्मुख और उद्देश्य केन्द्रित हों। यही कारण है कि मूल्यांकन उपामग की छाया इसमें दिखाई देती है। समस्त शिक्षण प्रतिमान उपामग के लिए व्यावहारिक और उपादेय माने जाते हैं।
इस उपागम के कई हितलाभ हैं, जैसे - उपयुक्त अध्यापन-अध्ययन परिस्थितियों और अधिगम अनुभवों की संरचना करने में यह सर्वाधिक उपयोगी उपागम है। विशिष्टीकरण की ओर यह उपागम ले जाती है न कि सामान्यीकरण की ओर। इस आधार पर इसे विषय केन्द्रित उपामग के रूप में भी देखा जाता है। दक्षता अधिगम की संकल्पना को साकार एवं सार्थक रूप प्रदान करने के लिए यह उपागम अधिक उपयोगी है।

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- वैदिक काल में गुरुओं के शिष्यों के प्रति उत्तरदायित्वों का वर्णन कीजिए।
  2. प्रश्न- वैदिककालीन शिक्षा में गुरु-शिष्य के परस्पर सम्बन्धों का विवेचनात्मक वर्णन कीजिए।
  3. प्रश्न- वैदिक शिक्षा व्यवस्था की प्रमुख विशेषताओं की विवेचना कीजिए। वर्तमान शिक्षा व्यवस्था में सुधार हेतु यह किस सीमा तक प्रासंगिक है?
  4. प्रश्न- वैदिक शिक्षा की मुख्य विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
  5. प्रश्न- प्राचीन भारतीय शिक्षा के कम से कम पाँच महत्त्वपूर्ण आदर्शों का उल्लेख कीजिए और आधुनिक भारतीय शिक्षा के लिए उनकी उपयोगिता बताइए।
  6. प्रश्न- वैदिककालीन शिक्षा के मुख्य उद्देश्य एवं आदर्श क्या थे? वैदिक काल में प्रचलित शिक्षा के मुख्य गुण एवं दोष बताइए।
  7. प्रश्न- वैदिककालीन शिक्षा के मुख्य उद्देश्य क्या थे?
  8. प्रश्न- वैदिककालीन शिक्षा के प्रमुख गुण बताइए।
  9. प्रश्न- प्राचीन काल में शिक्षा से क्या अभिप्राय था? शिक्षा के मुख्य उद्देश्य एवं आदर्श क्या थे?
  10. प्रश्न- वैदिककालीन उच्च शिक्षा का वर्णन कीजिए।
  11. प्रश्न- प्राचीन भारतीय शिक्षा में प्रचलित समावर्तन और उपनयन संस्कारों का अन्तर स्पष्ट कीजिए।
  12. प्रश्न- वैदिककालीन शिक्षा का मुख्य उद्देश्य ज्ञान का विकास तथा आध्यात्मिक उन्नति करना था। स्पष्ट कीजिए।
  13. प्रश्न- आधुनिक काल में प्राचीन वैदिककालीन शिक्षा के महत्त्व को स्पष्ट कीजिए।
  14. प्रश्न- वैदिक शिक्षा में कक्षा नायकीय प्रणाली के महत्व की विवेचना कीजिए।
  15. प्रश्न- वैदिक कालीन शिक्षा पर प्रकाश डालिए।
  16. प्रश्न- शिक्षा से आप क्या समझते हैं? शिक्षा के विभिन्न सम्प्रत्ययों का उल्लेख करते हुए उसके वास्तविक सम्प्रत्यय को स्पष्ट कीजिए।
  17. प्रश्न- शिक्षा का अर्थ लिखिए।
  18. प्रश्न- शिक्षा से आप क्या समझते हैं?
  19. प्रश्न- शिक्षा के दार्शनिक सम्प्रत्यय की विवेचना कीजिए।
  20. प्रश्न- शिक्षा के समाजशास्त्रीय सम्प्रत्यय की विवेचना कीजिए।
  21. प्रश्न- शिक्षा के राजनीतिक सम्प्रत्यय की विवेचना कीजिए।
  22. प्रश्न- शिक्षा के आर्थिक सम्प्रत्यय की विवेचना कीजिए।
  23. प्रश्न- शिक्षा के मनोवैज्ञानिक सम्प्रत्यय की विवेचना कीजिए।
  24. प्रश्न- शिक्षा के वास्तविक सम्प्रत्यय को स्पष्ट कीजिए।
  25. प्रश्न- क्या मापन एवं मूल्यांकन शिक्षा का अंग है?
  26. प्रश्न- शिक्षा को परिभाषित कीजिए। आपको जो अब तक ज्ञात परिभाषाएँ हैं उनमें से कौन-सी आपकी राय में सर्वाधिक स्वीकार्य है और क्यों?
  27. प्रश्न- शिक्षा से तुम क्या समझते हो? शिक्षा की परिभाषाएँ लिखिए तथा उसकी विशेषताएँ बताइए।
  28. प्रश्न- शिक्षा का संकीर्ण तथा विस्तृत अर्थ बताइए तथा स्पष्ट कीजिए कि शिक्षा क्या है?
  29. प्रश्न- शिक्षा का 'शाब्दिक अर्थ बताइए।
  30. प्रश्न- शिक्षा का अर्थ स्पष्ट करते हुए इसकी अपने शब्दों में परिभाषा दीजिए।
  31. प्रश्न- शिक्षा से आप क्या समझते हैं?
  32. प्रश्न- शिक्षा को परिभाषित कीजिए।
  33. प्रश्न- शिक्षा की दो परिभाषाएँ लिखिए।
  34. प्रश्न- शिक्षा की विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
  35. प्रश्न- आपके अनुसार शिक्षा की सर्वाधिक स्वीकार्य परिभाषा कौन-सी है और क्यों?
  36. प्रश्न- 'शिक्षा एक त्रिमुखी प्रक्रिया है।' जॉन डीवी के इस कथन से आप कहाँ तक सहमत हैं?
  37. प्रश्न- 'शिक्षा भावी जीवन की तैयारी मात्र नहीं है, वरन् जीवन-यापन की प्रक्रिया है। जॉन डीवी के इस कथन को उदाहरणों से स्पष्ट कीजिए।
  38. प्रश्न- शिक्षा के क्षेत्र का वर्णन कीजिए।
  39. प्रश्न- शिक्षा विज्ञान है या कला या दोनों? स्पष्ट कीजिए।
  40. प्रश्न- शिक्षा की प्रकृति की विवेचना कीजिए।
  41. प्रश्न- शिक्षा के व्यापक व संकुचित अर्थ को स्पष्ट कीजिए तथा शिक्षा के व्यापक व संकुचित अर्थ में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
  42. प्रश्न- शिक्षा और साक्षरता पर संक्षिप्त टिप्पणी दीजिए। इन दोनों में अन्तर व सम्बन्ध स्पष्ट कीजिए।
  43. प्रश्न- शिक्षण और प्रशिक्षण के बारे में प्रकाश डालिए।
  44. प्रश्न- विद्या, ज्ञान, शिक्षण प्रशिक्षण बनाम शिक्षा पर प्रकाश डालिए।
  45. प्रश्न- विद्या और ज्ञान में अन्तर समझाइए।
  46. प्रश्न- शिक्षा और प्रशिक्षण के अन्तर को स्पष्ट कीजिए।

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