लोगों की राय

प्राचीन भारतीय और पुरातत्व इतिहास >> बीए सेमेस्टर-5 पेपर-2 प्राचीन भारतीय इतिहास

बीए सेमेस्टर-5 पेपर-2 प्राचीन भारतीय इतिहास

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :180
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2794
आईएसबीएन :0

Like this Hindi book 0

5 पाठक हैं

बीए सेमेस्टर-5 पेपर-2 प्राचीन भारतीय इतिहास - सरल प्रश्नोत्तर

प्रश्न- मौर्यकालीन ब्राह्मी लिपि पर प्रकाश डालिए।

अथवा
अशोक कालीन ब्राह्मी लिपि की प्रमुख विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
अथवा
मौर्यकालीन ब्राह्मी लिपि के स्वरूप की विवेचना कीजिए।
अथवा
मौर्यकालीन ब्राह्मी लिपि की प्रमुख विशेषताओं का उल्लेख कीजिए

सम्बन्धित लघु उत्तरीय प्रश्न
1. मौर्यकालीन ब्राह्मी के स्वर अक्षर लिखिए।
2. मौर्यकालीन ब्राह्मी लिपि के पाँच अक्षर लिखिए।

उत्तर-

मौर्य, अशोक कालीन ब्राह्मी लिपि - ब्राह्मी लिपि एक प्राचीन लिपि है जिसका प्रचलन मौर्य सम्राट अशोक के शासन काल के दो सौ साल पहले हो चुका था। जिसका कालांतर में धीरे-धीरे विकास हुआ। इस विकास के साथ ही विभिन्न कालावधि में इसके अक्षरों के स्वरूप में भी परिवर्तन हुआ। अशोक के अभिलेखों में ब्राह्मी लिपि के विभिन्न अक्षरों का स्वरूप मिलता है। वस्तुतः विभिन्न कालों में ब्राह्मी लिपि के अक्षरों में कुछ न कुछ परिवर्तन हुआ। परन्तु ब्राह्मी का मौलिक रूप प्रायः अशोक कालीन लिपि में वर्णित अक्षरों को ही माना जाता है।

अशोक कालीन ब्राह्मी लिपि - अशोक कालीन ब्राह्मी लिपि, के विकास के इतिहास में बहुत महत्वपूर्ण है। सर्वप्रथम अशोक ने ही अपने आज्ञाओं एवं विचारों को लिपिबद्ध करवाया था। अशोक के इन अभिलेखों को सर्वप्रथम पढ़ने का श्रेय जेम्स प्रिंसेप महोदय ने को जाता है। अशोक के ये अभिलेख भारत, पाकिस्तान, अफगानिस्तान एवं नेपाल की तराई से प्राप्त हुए हैं। इनमें पाकिस्तान के शहबाजगढ़ी और मनसेहरा से प्राप्त अभिलेख खरोष्ठी लिपि में हैं, जबकि भारत से प्राप्त समस्त अभिलेख ब्राह्मी लिपि में हैं। इनके अतिरिक्त अफगानिस्तान से प्राप्त अभिलेख अरमेइक तथा कन्दहार अभिलेख अरमेइक और यूनानी दोनों लिपियों में लिखवाए गये थे। अशोक के अभिलेखों का उत्कीर्णन शिलाओं, स्तम्भों गुहाओं आदि पर करवाया गया था, जहाँ इनका अध्ययन करने पर इनके अक्षरों की बनावट में थोड़ी-थोड़ी भिन्नता दिखाई देती है। बूलर और डॉ. राजबली पाण्डेय इसे लिपि का स्थानीय परिवर्तन मानते हैं जबकि डॉ. ओझा इसे लेखक के हाथ का अन्तर मानते है, जो सर्वथा उचित लगता है। इसी प्रकार से अशोक के गुहालेखों और शिलालेखों की तुलना में उसके स्तम्भ लेखों की लिपि में सौन्दर्य और कलात्मकता दिखायी देती है। यह भी लेखक के ही वैयक्तिक विचार बोध और सौन्दर्य तथा कलाप्रियता का परिणाम प्रतीत होता है। अशोक कालीन ब्राह्मी लिपि निम्न रूप में लिखा जाता था-

(1) अशोक के अभिलेखों में कुछ अक्षरों का लेखन उल्टा हुआ है। इसके पीछे क्या कारण रहा होगा कहना कठिन है।

(2) अशोक के अभिलेखों में दीर्घमात्रा का प्रयोग नगण्य ही है।

(3) अशोक द्वारा लिखवाए गये लेखों में विसर्ग का प्रयोग नहीं दिखाई देता।

(4) इन अभिलेखों में विराम चिन्ह का प्रयोग अत्यत सीमित रूप में हुआ है। प्रायः शब्दों के बीच में रिक्त स्थान छोड़कर वाक्य परिवर्तन किया गया है। कभी-कभी पूर्ण विराम के रूप में खड़ी रेखा का प्रयोग प्राप्त होता है।

(5) अशोक कालीन ब्राह्मी लिपि की भाषा मगधी प्राकृत है। जैसाकि व्यवहार से स्पष्ट है प्राकृत में संस्कृत की अपेक्षा कम अक्षरों का प्रयोग किया जाता था। इसीलिये ब्राह्मी लिपि में भी 6 स्वर और 33 व्यंजन हैं जबकि संस्कृत वर्णमाला में अक्षरों की कुल संख्या 64 होती है। ब्राह्मी लिपि में प्रयुक्त स्वर हैं अ, आ, इ, उ, ए तथा ओ और व्यंजन हैं क वर्ग (क, ख, ग, घ, ङ), च वर्ग ( च, छ, ज, झ, ञ), ट वर्ग (ट, ठ, ड, ढ, ण), त वर्ग (त, थ, द, ध, न), प वर्ग ( प, फ, ब, भ, म), य, र, ल, व, श, ष, स औ ह। अर्थात् देवनागरी वर्णमाला के 'आ' के अतिरिक्त समस्त दीर्घ स्वर और क्ष, त्र, ज्ञ (संयुक्ताक्षर ) व्यंजन इनमें सम्मिलित नहीं हैं।

(6) अशोक के अभिलेखों से प्राप्त अक्षर सरल ढंग से लिखे गये हैं। अधिकांशतया उनकी रचना ज्यामितीय चिन्हों द्वारा की गई है जैसे आड़ी-तिरछी या लम्बवत् रेखाएँ, कोण, अर्द्धवृत्त, वृत्त, अर्द्धवृत्त, वर्ग आदि।

(7) अशोक के अभिलेखों में संयुक्ताक्षरों का प्रयोग बहुत कम दिखाई देता है। जहाँ इस तरह का प्रयोग हुआ है वहाँ प्रथम उच्चारित अक्षर ऊपर और बाद में उच्चारित अक्षर नीचे लिखा जाता था। कहीं-कहीं यह क्रम अशुद्ध भी दिखता है। परन्तु इसका कारण लेखक की अल्पज्ञता भी हो सकती है।

अशोक के पश्चात् ब्राह्मी लिपि में कुछ परिवर्तन हुआ। उसके पौत्र दशरथ के अभिलेखों में भी ब्राह्मी लिपि के स्वरूप में कुछ परिवर्तन दिखाई देता है। उसके अभिलेखों में अक्षरों की लम्बाई कुछ कम कर दी गई है। कम लम्बाई के अक्षर हिन्द-यवन शासक पैन्टालिऑन एवं अगाथोक्लीज के सिक्कों पर प्राप्त अभिलेख में भी दिखाई देते हैं।

मौर्यकालीन ब्राह्मी लिपि का स्वरूप - अशोक के अभिलेखों में ब्राह्मी लिपि के विभिन्न अक्षरों का स्वरूप मिलता है जिनका विवरण इस प्रकार है।

1. 'अ' अक्षर लिखने के लिए एक ऊर्ध्वगामी (सीधी ) रेखा खींचकर उसके बाईं ओर तिरछी रेखा खींची जाती थी। ऊपर की रेखा आगामी और दूसरी नीचे की ओर झुकी हुई दिखाई देती है। इन तिरछी रेखाओं की वक्रतां व ऊर्ध्वाधर रेखा से उनके सम्पर्क स्थल में भिन्नता दिखाई देती है इस कारण 'अ' के विभिन्न स्वरूप हो जाते हैं। इस आधार पर डॉ. अहमद हसन दानी ने 'अ' के 3 तथा बूलर ने 8 प्रकार बताए हैं।

2. 'आ' लिखने के लिये 'अ' में ही दाहिनी ओर एक आड़ी रेखा का खींच देते थे। 'ई' के लिये तीन बिन्दुओं से एक त्रिकोण बनाते थे। त्रिकोण का शीर्ष अधिकांशतया दाहिनी ओर होता था। कभी-कभी यह बायीं ओर या ऊपर अथवा नीचे भी प्राप्त होता है।

3. उ लिखने के लिये दाहिनी ओर खुला हुआ दो सरल रेखाओं का कोण प्रयुक्त होता था। 'इ' के तीनों बिन्दुओं को रेखाओं से जोड़कर 'ए' बनाया जाता था। 'इ' के समान इसका शीर्ष भी किसी भी दिशा में हो सकता था।

4. 'ओ' लिखने के लिये 'उ' के कोण की रेखा के बाई ओर एक पड़ी रेखा लगायी जाती थी, जो कोण के शिरोभाग पर ही लगती थी।

5. क वर्ग के चार अक्षरों का ही स्वतन्त्र प्रयोग दिखाई देता है। 'क' समकोण पर टकराती हुई रेखाओं से बनाया जाता था। यह गणित के योग या धन के चिन्ह के समान होता था। 'ख' उल्टी कंटिया के आकार का होता था, जिसका दाहिना हिस्सा अधिक लम्बा होता था। बायें हिस्से पर बिन्दु या छोटा वृत्त बनाया जाता था। 'ग' का आकार नीचे की ओर खुले हुए न्यूनकोण के समान होता था। कभी-कभी यह कोण गोलाई लिये हुये भी होता था। 'घ' खड़ी कंटिया के समान बनाया जाता था। जिसका बांयाँ हिस्सा दाहिने हिस्से की अपेक्षा लम्बा होता था। कंटिया की गोलाई में ऊर्ध्वमुखी छोटी-सी रेखा भी होती थी। कहीं-कहीं कंटिया का निचला भाग गोलाकार न होकर चपटा है।

6. अशोक के अभिलेखों में 'च' वर्ग के पाँचों अक्षरों का प्रयोग किया गया है। 'च' लिखने के लिये एक लम्बवत् रेखा में बाईं ओर अर्द्धवृत्त जोड़ा गया था। 'छ' लिखते समय च के दाहिनी ओर भी अर्द्धवृत्त बना दिया जाता था। 'ज' अंग्रेजी के अक्षर 'F' के समान दिखायी देता था अर्थात् एक सीधी रेखा में दाहिनी ओर समानान्तर दूरी पर तीन रेखाएँ खींचने से 'ज' की रचना होती थी। अनेक लेखों में ये रेखाएँ गोलाकार हो गयी हैं। दूसरे शब्दों में दो अर्द्धवृत्तों द्वारा 'ज' लिखा गया है, जो काफी सुविधाजनक भी है। एक खड़ी रेखा के दाहिनी ओर ऊपर से खुला समकोण लगाने से 'झ' लिखा जाता था। जब उपरोक्त समकोण नीचे की ओर खुलता था और लम्बी रेखा थोड़ी बड़ी और शिरोभाग पर बाई ओर एक आड़ी रेखा से जुड़ी होती थी, तब उसकी पहचान ञ के रूप में होती थी।

7. दाहिनी ओर खुला हुआ अर्द्धवृत्त 'ट' अक्षर होता था। पूर्णवृत्त 'ठ' था। यह कभी-कभी अण्डाकार भी बनाया जाता था। 'ड' लिखने के लिये एक पड़ी रेखा के बाईं ओर नीचे तथा दाहिनी ओर ऊपर की ओर एक रेखा खींच दी जाती थी। नीचे वाली रेखा के अन्त में एक बिन्दु बना देने से उसे 'ङ' पढ़ा जाता था। एक सीधी रेखा के नीचे अन्दर की ओर मुड़ा हुआ अर्द्धवृत्त 'ढ' की रचना करता था। ढ का यही स्वरूप आज भी प्रयुक्त होता है। 'ण' लिखने के लिये ऊपर व नीचे आड़ी रेखाओं के बीच एक सीधी रेखा खींची जाती थी।

8. 'त' वर्ग के भी पाँचों अक्षरों का प्रयोग दिखाई देता है। 'त' लिखने के लिये एक छोटी लम्बवत् रेखा के नीचे ब्राह्मी के 'ग' जैसा खुला कोण बना देते थे। लेखनी के प्रयोग द्वारा इसके अनेक रूप दिखाई देते हैं। कभी यह कोण गोलार्द्ध लिये हुये होता था, कभी छोटी लम्बवत् रेखा को ही लम्बा खींच कर उससे कोण के रूप में दूसरी रेखा खींच दी जाती थी। पूर्णवृत्त और उसके केन्द्र में बिन्दु लगा कर 'थ' लिखा जाता था। 'द' लिखने के लिये बायीं ओर खुले ठ के ऊपर व नीचे दोनों ओर एक-एक छोटी रेखा बनाई जाती थी। 'ध' अक्षर का लेखन अर्द्धवृत्त को सीधी रेखा से बन्द कर देने से होता था। बूलर तथा दानी के अनुसार 'द' के बाहर निकलने वाले सिरों को अन्दर घुमा देने से 'ध' बन जाता है। एक पड़ी रेखा के मध्य से ऊपर की ओर जाती हुई सीधी रेखा द्वारा 'न' लिखा जाता था। इसे अंग्रेजी के उल्टे टी (1) की तरह समझा जा सकता है।

9. 'प' वर्ग के पाँचों अक्षर प्राप्त होते हैं। 'प' भी कंटिया के समान दिखाई देता है। इसका दाहिनी हिस्सा छोटा होता है। 'प' के छोटे हिस्से को दोहरा कर देने पर 'फ' पढ़ा जाता है। 'भ' लिखने के लिये नीचे से खुले वर्ग के दाहिने ओर एक ऊर्ध्वमुखी रेखा खींची जाती थी। एक पूर्णवृत्त के ऊपर खुला वृत्त जोड़ने से 'म' का लेखन होता था। यह हिन्दी की संख्या 4 से मिलता-जुलता है।

अन्तःस्थ वर्ण - इस वर्ग के य, र, व ल, अक्षर रखे जाते हैं। 'य' लिखने के लिये बिन्दु रहित चन्द्राकार के बीच से ऊपर उड़ती हुई रेखा लिखी जाती थी। इसीलिये इसे 'चन्द्राकार य कहते हैं। यह चन्द्र जब नीचे से कोण की तरह हो जाता है, तब इसे 'शराकार य' कहते हैं। एक लम्बवत् रेखा 'र' का निर्माण करती है। यह कभी-कभी लहरदार भी होता था। 'प' का दर्पण प्रतिबिम्ब के बाई ओर बने लघु लम्ब पर एक पड़ी रेखा लगाकर 'ल' लिखा जाता था। एक सीधी रेखा के नीचे वृत्त बनाकर 'व' लिखा जाता था।

वर्ण अक्षर - ब्राह्मी लिपि में उष्म वर्ण श, ष, स, ह, को वर्ण अक्षर कहा जाता है। 'श' लिखने के लिये एक न्यूनकोण की बाईं भुजा से दाहिनी भुजा के समानान्तर एक रेखा खींची जाती है। कभी-कभी शीर्ष खुला होता है और वहाँ से एक रेखा ऊपर की ओर निकलती हुई दिखाई देती है। 'ष' अक्षर की रचना के लिये 'प' के समान एक कंटिया लिख कर बाईं ओर वक्र रेखा खींची जाती है। 'प' लिख कर बाईं तरफ नीचे की ओर कंटिया लगा कर 'स' लिखा जाता है। 'ल' का उल्टा रूप 'ह' है। अर्थात् इसमें छोटा लम्ब दाहिनी ओर होता है, जिसके शीर्ष पर एक आड़ी रेखा लगाई जाती है। कभी-कभी यह रेखा सिरे से नीचे की ओर भी लगी रहती है।

मात्राओं का प्रयोग मात्राओं का प्रयोग भी ब्राह्मी लिपि में सुनियोजित ढंग से किया गया है। यद्यपि 'आ' के अतिरिक्त दीर्घ स्वरों का अक्षर के रूप में प्रयोग नहीं दिखाई देता किन्तु दीर्घ मात्राओं का सुस्पष्ट प्रयोग हुआ है। लगभग उसी रूप में यह उपयोग आज भी किया जा रहा है अशोक के अभिलेखों में मात्राओं का प्रयोग निम्न रूप से दिखाई पड़ता है

'आ' की मात्रा अक्षर के दाहिनी ओर अधिकांशतया ऊपर और कभी-कभी बीच में एक आड़ी रेखा द्वारा बनायी जाती थी। अक्षर के ऊपर की ओर दाहिनी तरफ समकोण बना कर 'ई' की मात्रा लगाई जाती थी। ठ, थ, ब, आदि अक्षरों में इसका प्रयोग दाहिनी ओर नीचे के तरफ खड़ी या तिरछी रेखा के रूप में 'उ' की मात्रा लगाई जाती थी। यही मात्रा दुहरी कर देने से यह दीर्घ 'ऊ' की मात्रा हो जाती थी। अक्षर के बायें सिरे पर खड़ी रेखा के रूप में 'ए' की मात्रा लगती थी। 'ए' की मात्रा को दोहरा कर देने से दीर्घ 'ऐ' की मात्रा बन जाती थी। 'अ' और ए का संयुक्त रूपों की मात्रा थी। कभी-कभी अक्षर के ऊपर सीधी पड़ी रेखा के रूप में भी यह दिखाई देती है। ओ की मात्रा का दोहरा स्वरूप 'औ' की मात्रा था।

अनुस्वार का प्रयोग - अनुस्वार का किसी भी भाषा एवं लिपि में विशेष महत्व होता है। अनुस्वार का ब्राह्मी लिपि में यथास्थान प्रयोग किया गया है, जिसके लिये अक्षर के दाहिनी ओर बिन्दु लगाया जाता था। यह बिन्दु शीर्ष भाग के समीप बीच में अथवा नीचे की ओर भी लगा दिया जाता था। कुछ विद्वानों का विचार है कि 'ई' के तीन बिन्दुओं के निकट चौथा बिन्दु 'ई' के रूप में पढ़ा जाना चाहिए। परन्तु कुछ विद्वान इसे अनुस्वार 'इ' मानते हैं। 'र' का प्रयोग करने के के लिये एक सर्पिल रेख अक्षर के ऊपर लगाई जाती थी किन्तु यही मात्रा नीचे लगी हुई भी दिखाई देती है अतः यदि 'म' पर यह मात्रा ऊपर लगी हो तो 'मी' और नीचे लगने पर म्र पढा जाता था।

 

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

    अनुक्रम

  1. प्रश्न- पुरातत्व क्या है? इसकी विषय-वस्तु का निरूपण कीजिए।
  2. प्रश्न- पुरातत्व का मानविकी तथा अन्य विज्ञानों से सम्बन्ध स्पष्ट कीजिए।
  3. प्रश्न- पुरातत्व विज्ञान के स्वरूप या प्रकृति पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  4. प्रश्न- 'पुरातत्व के अभाव में इतिहास अपंग है। इस कथन को समझाइए।
  5. प्रश्न- इतिहास का पुरातत्व शस्त्र के साथ सम्बन्धों की विवेचना कीजिए।
  6. प्रश्न- भारत में पुरातत्व पर विस्तृत टिप्पणी लिखिए।
  7. प्रश्न- पुरातत्व सामग्री के क्षेत्रों का विश्लेषण अध्ययन कीजिये।
  8. प्रश्न- भारत के पुरातत्व के ह्रास होने के क्या कारण हैं?
  9. प्रश्न- प्राचीन इतिहास की संरचना में पुरातात्विक स्रोतों के महत्व का मूल्यांकन कीजिए।
  10. प्रश्न- प्राचीन भारतीय इतिहास की संरचना में पुरातत्व का महत्व बताइए।
  11. प्रश्न- प्राचीन भारतीय इतिहास के अध्ययन में अभिलेखों का क्या महत्व है?
  12. प्रश्न- स्तम्भ लेख के विषय में आप क्या जानते हैं?
  13. प्रश्न- स्मारकों से प्राचीन भारतीय इतिहास की क्या जानकारी प्रात होती है?
  14. प्रश्न- पुरातत्व के उद्देश्यों से अवगत कराइये।
  15. प्रश्न- पुरातत्व के विकास के विषय में बताइये।
  16. प्रश्न- पुरातात्विक विज्ञान के विषय में बताइये।
  17. प्रश्न- ऑगस्टस पिट, विलियम फ्लिंडर्स पेट्री व सर मोर्टिमर व्हीलर के विषय में बताइये।
  18. प्रश्न- उत्खनन के विभिन्न सिद्धान्तों तथा प्रकारों का उल्लेख कीजिए।
  19. प्रश्न- पुरातत्व में ऊर्ध्वाधर और क्षैतिज उत्खननों के महत्व का मूल्यांकन कीजिए।
  20. प्रश्न- डेटिंग मुख्य रूप से उत्खनन के बाद की जाती है, क्यों। कारणों का उल्लेख कीजिए।
  21. प्रश्न- डेटिंग (Dating) क्या है? विस्तृत रूप से बताइये।
  22. प्रश्न- कार्बन-14 की सीमाओं को बताइये।
  23. प्रश्न- उत्खनन व विश्लेषण (पुरातत्व के अंग) के विषय में बताइये।
  24. प्रश्न- रिमोट सेंसिंग, Lidar लेजर अल्टीमीटर के विषय में बताइये।
  25. प्रश्न- लम्बवत् और क्षैतिज उत्खनन में पारस्परिक सम्बन्धों को निरूपित कीजिए।
  26. प्रश्न- क्षैतिज उत्खनन के लाभों एवं हानियों पर प्रकाश डालिए।
  27. प्रश्न- पुरापाषाण कालीन संस्कृति का विस्तृत वर्णन कीजिए।
  28. प्रश्न- निम्न पुरापाषाण कालीन संस्कृति का विस्तृत विवेचन कीजिए।
  29. प्रश्न- उत्तर पुरापाषाण कालीन संस्कृति के विकास का वर्णन कीजिए।
  30. प्रश्न- भारत की मध्यपाषाणिक संस्कृति पर एक वृहद लेख लिखिए।
  31. प्रश्न- मध्यपाषाण काल की संस्कृति का महत्व पूर्ववर्ती संस्कृतियों से अधिक है? विस्तृत विवेचन कीजिए।
  32. प्रश्न- भारत में नवपाषाण कालीन संस्कृति के विस्तार का वर्णन कीजिये।
  33. प्रश्न- भारतीय पाषाणिक संस्कृति को कितने कालों में विभाजित किया गया है?
  34. प्रश्न- पुरापाषाण काल पर एक लघु लेख लिखिए।
  35. प्रश्न- पुरापाषाण कालीन मृद्भाण्डों पर टिप्पणी लिखिए।
  36. प्रश्न- पूर्व पाषाण काल के विषय में एक लघु लेख लिखिये।
  37. प्रश्न- पुरापाषाण कालीन शवाशेष पद्धति पर टिप्पणी लिखिए।
  38. प्रश्न- मध्यपाषाण काल से आप क्या समझते हैं?
  39. प्रश्न- मध्यपाषाण कालीन संस्कृति की प्रमुख विशेषताएँ बताइए।।
  40. प्रश्न- मध्यपाषाणकालीन संस्कृति का विस्तार या प्रसार क्षेत्र स्पष्ट कीजिए।
  41. प्रश्न- विन्ध्य क्षेत्र के मध्यपाषाणिक उपकरणों पर प्रकाश डालिए।
  42. प्रश्न- गंगा घाटी की मध्यपाषाण कालीन संस्कृति पर प्रकाश डालिए।
  43. प्रश्न- नवपाषाणिक संस्कृति पर टिप्पणी लिखिये।
  44. प्रश्न- विन्ध्य क्षेत्र की नवपाषाण कालीन संस्कृति पर संक्षेप में प्रकाश डालिए।
  45. प्रश्न- दक्षिण भारत की नवपाषाण कालीन संस्कृति के विषय में बताइए।
  46. प्रश्न- मध्य गंगा घाटी की नवपाषाण कालीन संस्कृति पर टिप्पणी लिखिए।
  47. प्रश्न- ताम्रपाषाणिक संस्कृति से आप क्या समझते हैं? भारत में इसके विस्तार का उल्लेख कीजिए।
  48. प्रश्न- जोर्वे-ताम्रपाषाणिक संस्कृति की विशेषताओं की विवेचना कीजिए।
  49. प्रश्न- मालवा की ताम्रपाषाणिक संस्कृति का विस्तार से वर्णन कीजिए।
  50. प्रश्न- ताम्रपाषाणिक संस्कृति पर टिप्पणी लिखिए।
  51. प्रश्न- आहार संस्कृति का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
  52. प्रश्न- मालवा की ताम्रपाषाणिक संस्कृति पर प्रकाश डालिए।
  53. प्रश्न- जोर्वे संस्कृति की विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
  54. प्रश्न- ताम्रपाषाणिक संस्कृति के औजार क्या थे?
  55. प्रश्न- ताम्रपाषाणिक संस्कृति के महत्व पर प्रकाश डालिए।
  56. प्रश्न- सिन्धु सभ्यता / हड़प्पा सभ्यता के नामकरण और उसके भौगोलिक विस्तार की विवेचना कीजिए।
  57. प्रश्न- सिन्धु सभ्यता की नगर योजना का विस्तृत वर्णन कीजिए।
  58. प्रश्न- हड़प्पा सभ्यता के नगरों के नगर- विन्यास पर विस्तृत टिप्पणी लिखिए।
  59. प्रश्न- सिन्धु घाटी के लोगों की शारीरिक विशेषताओं का संक्षिप्त मूल्यांकन कीजिए।
  60. प्रश्न- पाषाण प्रौद्योगिकी पर टिप्पणी लिखिए।
  61. प्रश्न- सिन्धु सभ्यता के सामाजिक संगठन पर टिप्पणी कीजिए।
  62. प्रश्न- सिंधु सभ्यता के कला और धर्म पर टिप्पणी कीजिए।
  63. प्रश्न- सिंधु सभ्यता के व्यापार का संक्षेप में उल्लेख कीजिए।
  64. प्रश्न- सिंधु सभ्यता की लिपि पर संक्षेप में प्रकाश डालिए।
  65. प्रश्न- सिन्धु सभ्यता के पतन के कारणों पर प्रकाश डालिए।
  66. प्रश्न- लौह उत्पत्ति के सम्बन्ध में पुरैतिहासिक व ऐतिहासिक काल के विचारों से अवगत कराइये?
  67. प्रश्न- लोहे की उत्पत्ति (भारत में) के विषय में विभिन्न चर्चाओं से अवगत कराइये।
  68. प्रश्न- "ताम्र की अपेक्षा, लोहे की महत्ता उसकी कठोरता न होकर उसकी प्रचुरता में है" कथन को समझाइये।
  69. प्रश्न- महापाषाण संस्कृति के विषय में आप क्या जानते हैं? स्पष्ट कीजिए।
  70. प्रश्न- लौह युग की भारत में प्राचीनता से अवगत कराइये।
  71. प्रश्न- बलूचिस्तान में लौह की उत्पत्ति से सम्बन्धित मतों से अवगत कराइये?
  72. प्रश्न- भारत में लौह-प्रयोक्ता संस्कृति पर टिप्पणी लिखिए।
  73. प्रश्न- प्राचीन मृद्भाण्ड परम्परा से आप क्या समझते हैं? गैरिक मृद्भाण्ड (OCP) संस्कृति का विस्तृत विवेचन कीजिए।
  74. प्रश्न- चित्रित धूसर मृद्भाण्ड (PGW) के विषय में विस्तार से समझाइए।
  75. प्रश्न- उत्तरी काले चमकदार मृद्भाण्ड (NBPW) के विषय में संक्षेप में बताइए।
  76. प्रश्न- एन. बी. पी. मृद्भाण्ड संस्कृति का कालानुक्रम बताइए।
  77. प्रश्न- मालवा की मृद्भाण्ड परम्परा के विषय में बताइए।
  78. प्रश्न- पी. जी. डब्ल्यू. मृद्भाण्ड के विषय में एक लघु लेख लिखिये।
  79. प्रश्न- प्राचीन भारत में प्रयुक्त लिपियों के प्रकार तथा नाम बताइए।
  80. प्रश्न- मौर्यकालीन ब्राह्मी लिपि पर प्रकाश डालिए।
  81. प्रश्न- प्राचीन भारत की प्रमुख खरोष्ठी तथा ब्राह्मी लिपियों पर प्रकाश डालिए।
  82. प्रश्न- अक्षरों की पृष्ठभूमि पर प्रकाश डालिए।
  83. प्रश्न- अशोक के अभिलेख की लिपि बताइए।
  84. प्रश्न- प्राचीन भारतीय इतिहास की संरचना में अभिलेखों के महत्व का उल्लेख कीजिए।
  85. प्रश्न- अभिलेख किसे कहते हैं? और प्रालेख से किस प्रकार भिन्न हैं?
  86. प्रश्न- प्राचीन भारतीय अभिलेखों से सामाजिक जीवन पर क्या प्रकाश पड़ता है?
  87. प्रश्न- अशोक के स्तम्भ लेखों के विषय में बताइये।
  88. प्रश्न- अशोक के रूमेन्देई स्तम्भ लेख का सार बताइए।
  89. प्रश्न- अभिलेख के प्रकार बताइए।
  90. प्रश्न- समुद्रगुप्त की प्रयाग प्रशस्ति के विषय में बताइए।
  91. प्रश्न- जूनागढ़ अभिलेख से किस राजा के विषय में जानकारी मिलती है उसके विषय में आप सूक्ष्म में बताइए।
  92. प्रश्न- मुद्रा बनाने की रीतियों का उल्लेख करते हुए उनकी वैज्ञानिकता को सिद्ध कीजिए।
  93. प्रश्न- भारत में मुद्रा की प्राचीनता पर प्रकाश डालिए।
  94. प्रश्न- प्राचीन भारत में मुद्रा निर्माण की साँचा विधि का वर्णन कीजिए।
  95. प्रश्न- मुद्रा निर्माण की ठप्पा विधि का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
  96. प्रश्न- आहत मुद्राओं (पंचमार्क सिक्कों) की मुख्य विशेषताओं एवं तिथिक्रम का वर्णन कीजिए।
  97. प्रश्न- मौर्यकालीन सिक्कों की विस्तृत जानकारी प्रस्तुत कीजिए।
  98. प्रश्न- आहत मुद्राओं (पंचमार्क सिक्के) से आप क्या समझते हैं?
  99. प्रश्न- आहत सिक्कों के प्रकार बताइये।
  100. प्रश्न- पंचमार्क सिक्कों का महत्व बताइए।
  101. प्रश्न- कुषाणकालीन सिक्कों के इतिहास का विस्तृत विवेचन कीजिए।
  102. प्रश्न- भारतीय यूनानी सिक्कों की प्रमुख विशेषताएँ बताइए।
  103. प्रश्न- कुषाण कालीन सिक्कों के उद्भव एवं प्राचीनता को संक्षेप में बताइए।
  104. प्रश्न- गुप्तकालीन सिक्कों का परिचय दीजिए।
  105. प्रश्न- गुप्तकालीन ताम्र सिक्कों पर टिप्पणी लिखिए।
  106. प्रश्न- उत्तर गुप्तकालीन मुद्रा का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  107. प्रश्न- समुद्रगुप्त के स्वर्ण सिक्कों पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  108. प्रश्न- गुप्त सिक्कों की बनावट पर टिप्पणी लिखिए।
  109. प्रश्न- गुप्तकालीन सिक्कों का ऐतिहासिक महत्व बताइए।
  110. प्रश्न- इतिहास के अध्ययन हेतु अभिलेख अत्यधिक महत्वपूर्ण हैं। विवेचना कीजिए।
  111. प्रश्न- प्राचीन भारतीय इतिहास के अध्ययन में सिक्कों के महत्व की विवेचना कीजिए।
  112. प्रश्न- प्राचीन सिक्कों से शासकों की धार्मिक अभिरुचियों का ज्ञान किस प्रकार प्राप्त होता है?
  113. प्रश्न- हड़प्पा की मुद्राओं के महत्व का मूल्यांकन कीजिए।
  114. प्रश्न- प्राचीन भारतीय इतिहास के अध्ययन में अभिलेखों का क्या महत्व है?
  115. प्रश्न- प्राचीन भारतीय इतिहास के स्रोत के रूप में सिक्कों का महत्व बताइए।

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book