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प्राचीन भारतीय और पुरातत्व इतिहास >> बीए सेमेस्टर-5 पेपर-2 प्राचीन भारतीय इतिहास

बीए सेमेस्टर-5 पेपर-2 प्राचीन भारतीय इतिहास

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :180
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2794
आईएसबीएन :0

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बीए सेमेस्टर-5 पेपर-2 प्राचीन भारतीय इतिहास - सरल प्रश्नोत्तर

प्रश्न- निम्न पुरापाषाण कालीन संस्कृति का विस्तृत विवेचन कीजिए।

उत्तर-

यह संस्कृति मानव विकास एवं अवशेषों के प्राचीनतम पक्ष को प्रदर्शित करती है एवं स्तरीकृत जमावों में सबसे निचले स्तर से प्राप्त होती है, अतः इसका नामकरण पुरापाषाण युगीन संस्कृति किया गया है। यह संस्कृति पर्वतीय क्षेत्रों में विभिन्न सोपानों से एवं नदियों के किनारे निम्न जमाव 'वोल्डर कांग्लोमिरेट' से सम्बन्धित है जोकि समय-समय पर जलवायु परिवर्तनों एवं इसके फलस्वरूप नदियों में आये उतार-चढ़ाव को सम्बोधित करती है। इस संस्कृति के अवशेषों में विविधता परिलक्षित होती है। ये अवशेष मुख्य रूप से दो भागों में विभक्त हैं-

(1) उत्तरी क्षेत्र एवं
(2) दक्षिणी क्षेत्र।

उत्तरी क्षेत्रीय संस्कृतियाँ हिमालय क्षेत्र से प्राप्त होती हैं। इस क्षेत्र में प्रथमतः एक विशेष प्रकार के उपकरण पाकिस्तान स्थित पंजाब के सोहन घाटी से उपलब्ध हुए। ये उपकरण चापर चापिंग ( Chopper-chopping ) हैं एवं सोहन घाटी के विभिन्न सोपानों से उपलब्ध होते हैं। अतः इस संस्कृति को सोहन संस्कृति या 'सोहानियन' के नाम से जाना गया। इस उपकरण समूह में पेबुल पर निर्मित एकपक्षीय एवं उभयपक्षीय चापर-चापिंग उपकरण हैं जो बड़े-बड़े फलक हैं। दक्षिणी क्षेत्र में ये उपकरण मुख्य रूप से विभिन्न नदियों के किनारे उपलब्ध होते हैं। अतः इसे 'मद्रासियन' के नाम से जाना जाता है। इस संस्कृति के उपकरणों में सोहन घाटी के उपकरणों से भिन्नता है। इनमें हैंडेक्स, क्लीवर, स्क्रेपर फलक एवं कोर आदि हैं। कालान्तर में अन्वेषणों एवं सर्वेक्षणों के परिणामस्वरूप सोहन घाटी के उपकरण दक्षिण भारत में, जैसे - उड़ीसा कर्नाटक आदि में एवं मंद्रासियन उपकरण उत्तरी क्षेत्रों एवं हिमालय की पहाड़ियों में भी प्राप्त हुए। कई क्षेत्रों में दोनों संस्कृतियों के उपकरण साथ-साथ भी उपलब्ध हुए हैं।

विश्व के परिप्रेक्ष्य में इन दोनों संस्कृतियों में पर्याप्त भिन्नता है। ओल्हुवाई गार्ज, तन्जानिया, अफ्रीका, चापर - चापिंग ( Bed II) से हैंडेक्स-क्लीवर संस्कृतिक का क्रमबद्ध विकास प्रदर्शित होता है। भारत में ऐसे प्रमाणों का आभाव है। अतः विद्वान इन दोनों संस्कृतियों का विकास साथ-साथ मानते हैं। तुलनात्मक आधार पर इन दोनों संस्कृतियों में पर्याप्त भिन्नता है। सोहन संस्कृति चीन वर्मा, जावा सुमात्रा आदि संस्कृतियों के समकक्ष है जबकि मद्रासियन संस्कृति यूरोप, अफ्रीका आदि संस्कृतियों से तुलनीय है। भारतीय महाद्वीप में एक क्षेत्र में दो भिन्न-भिन्न क्षेत्रों की संस्कृतियों की प्राप्ति महत्वपूर्ण है। ये संस्कृतियाँ साथ-साथ विकसित हुई हैं या अलग-अलग, इनका काल एक है या इनके विकास में अन्तर है? ये प्रश्न आज भी विवादास्पद हैं।

सोहन संस्कृति - सोहन एवं उसकी सहायक नदियों पर समय-समय पर भिन्न-भिन्न देशी एवं विदेशी विद्वानों द्वारा महत्वपूर्ण शोध कार्य किये जा रहे हैं। डी.एन. वाडिया ने 1928 एवं के. आर. यू टाड ने 1930 में इस क्षेत्र से उपकरणों की खोज की थी परन्तु जलवायु परिवर्तन के कारण विभिन्न जमावों एवं उनका उपकरणों से सम्बन्ध प्रथम बार डे टेरा एवं टी.टी. पैटरसन के नेतृत्व में येल कैम्ब्रिज अभियान (Yale Combridge Expedition) दल द्वारा स्थापित किया गया। इस अभियान दल ने उपकरणों की खोज एवं इनका सम्बन्ध जलवायु परिवर्तन द्वारा निर्मित सोपानों से की। उत्तरी-पश्चिमी भारत चार पर्वतमालाओं उत्तर में हिमालय, दक्षिण में साल्टरेंज नामक पहाड़िया, पश्चिम में पीरपंजाल पहाड़ियों एवं पूर्व में शिवालिक नामक पहाड़ियों से घिरा हुआ है एवं इनमें निर्मित सम्पूर्ण उन्नत क्षेत्र 'पोतवार प्लेटू' के नाम से प्रसिद्ध है। भूगर्भशास्त्री पोतवार जमाव को तीन भागों निम्न शिवालिक (Lower siwalik), मध्य शिवालिक (Middle siwalik) एवं उच्च शिवालिक (Upper siwalik) में बाँटते हैं। इन सभी शिवालिकों में पुनः दो-दो प्रकार के जमाव पहचाने गये हैं। इनमें अन्तिम उच्च शिवालिक पुरातात्विक दृष्टि से महत्वपूर्ण है एवं इसके दो निम्न जमाव पिंजोर टेट्रार एवं बोल्डर कॉग्लोरिट हैं। इन्हें क्रमशः प्रथम हिमयुग निम्न प्रतिनूतन काल एवं द्वितीय हिमयुग में जलवायु परिवर्तन के कारण सिन्धु एवं उसकी सहायक नदियाँ कटाव एवं जमाव हुए जिससे पाँच सोपानों का निर्माण हुआ। इन सोपानों के उत्कृष्ट उदाहरण शिवालिक क्षेत्र में सिन्धु एवं सहायक नदियों पर देखे जा सकते हैं। डे टेरा एवं पैटरसन ने I एवं III सोपान का सम्बन्ध अन्तर हिमयुग के जमाव काल से माना एवं II एवं IV हिमयुग के जमाव से सम्बन्धित किया।

बोल्डर कांग्लोमेरिट (Boulder Conglomerati ) - ऊपरी जमाव टी. डी. बोल्डर कांग्लोमेरिट के नाम से पहचाना गया। यह द्वितीय हिमयुग एवं अतिवृष्टि काल से सम्बन्धित है एवं 400 फीट ऊँचाई पर स्थित है। इस स्तर से मानव निर्मित उपकरण प्रथम बार प्राप्त होते हैं एंव प्राक् सोहन (Pre-sohan) के नाम से प्रसिद्ध है। ये बड़े-बड़े फलक के रूप में हैं। ये पैबुल से निकाले गए हैं। बड़े बल्ब एवं छोटे प्लेटफार्म युक्त हैं। इनमें किसी प्रकार के जीवांश नहीं प्राप्त होते परन्तु नर्मदा घाटी के इस जमाव से तुलनात्मक आधार पर मध्य प्रतिनूतन काल इसके जमाव का काल समझा जाता है। कुछ विद्वान जैसे वी.डी. कृष्णास्वामी, धरणी सेन एवं मेन धिन इन उपकरणों को मानव निर्मित होने में सन्देह व्यक्त करते हैं।

प्रथम सोपान (Terrace I) - यह सोपान द्वितीय अंतर्हिम काल से सम्बन्धित है एवं इसी काल में सिन्धु, सोहन नदियों का प्रादुर्भाव माना जाता है। सम्भवतः भूचाल आदि के कारण. समतल धरातल ऊपर-नीचे होने के कारण इन नदियों का प्रादुर्भाव हुआ। पूर्व सतह पर नदियों के प्रवाहित होने के कारण इस सोपान का निर्माण हुआ। यह सोपान वर्तमान नदियों की सतह से 400° एवं 220° की ऊँचाई पर स्थित है। इस सोपान से प्राप्त उपकरणों को आदि सोहन (Early Sohan) के नाम से पुकारा जाता है। इस सोपान से जीवांश नहीं प्राप्त होते। इन उपकरणों पर पैटनेशन एवं इनकी दशा के आधार पर इन्हें निम्नलिखित तीन भागों अ, ब, स में विभक्त किया गया है-

(अ) अधिक पैटिनेटेड एवं घिसे हुए उपकरण
(ब) कम पैटिनेटेड एवं बिना घिसे हुए उपकरण, एवं
(स) नवीन से दिखने वाले उपकरण।

इन समूहों में बाद के समूह में अधिक विकसित उपकरण होते हैं परन्तु इनके विभाजन का कोई स्तरीकृत आधार नहीं है। उपकरण समूहों में पेबुल उपकरण स्क्रैपर, कोर, फलक एवं प्रोटो- हैंडेक्स हैं। आदि सोहन के पेबुल उपकरण अधिकांश समतल सतह वाले, नीचे से ऊपर की ओर फलक निकालने के उपरान्त निर्मित हैं।

द्वितीय सोपान (Terrace II) - यह सोपान तृतीय हिमयुग से सम्बन्धित है एवं उच्च प्रतिनूतन कालीन समझा जाता है। इस काल में काश्मीर एवं उत्तरी पंजाब के क्षेत्रों में प्रथमतः नदी द्वारा कटाव, एक पतले निम्न (Basal gravel) का जमाव, तदुपरान्त सम्पूर्ण पोतवार क्षेत्र में लोयस मिट्टी का जमाव होता है। यह सोपान 120 फुट ऊपर स्थित है। सांकलिया के मतानुसार यह क्षेत्र तेज हवाओं द्वारा प्रभावित था जिसके परिणामस्वरूप हवा के साथ मिट्टी ऊँचाई तक उड़ी एवं सम्पूर्ण क्षेत्र में जमा हुई। इस तथ्य की पुष्टि इस क्षेत्र में प्राप्त ऊँट की हड्डियों से भी होती है। इस सोपान से प्राप्त पाषाण उपकरणों को उत्तर सोहन (Late sohan) कहा जाता है। इस उपकरण समूह को स्तरीकरण के आधार पर दो भागों में विभक्त किया गया है - आदि सोहन (अ ) एवं उत्तर सोहन (ब) इस सोपान के निचले स्तर निम्न ग्रैवेल से प्राप्त उपकरणों को उत्तर सोहन ( अ ) एवं ऊपरी लोयस जमाव से प्राप्त उपकरणों को उत्तर सोहन ( ब ) कहा गया है। यहाँ दृष्टव्य है कि जहाँ आदि सोहन में उपकरणों का विभाजन ऊपर पैरिनेशन के आधार पर है वहीं पर इस सोपान से प्राप्त उपकरणों का विभाजन स्तरीकरण को ध्यान में रखकर किया गया है। आदि सोहन एवं उत्तर सोहन के उपकरणों में तो अधिक भिन्नता नहीं है परन्तु परवर्ती समूह के उपकरण पतले एवं छोटे होते जाते हैं। उत्तर सोहन (ब) के उपकरण नवनिर्मित से परिलक्षित होते है। इस समूह में फलकों की अधिकता है। ये फलक यूरोप की लावाल्वा संस्कृति के फलकों के समकक्ष हैं। अतः तुलनात्मक आधार पर इसे मध्य पुरापाषाण युगीन संस्कृति माना जाता है।
चौतरा उद्योग चौतरा से प्राप्त उपकरण अत्यन्त महत्वपूर्ण हैं। यहाँ से प्राप्त उपकरण विकास के चरणों को प्रदर्शित करते हैं। अतः उपकरणों के तकनीकी विकास को ध्यान में रखकर पूरे समूह को निम्नलिखित तीन भागों में विभक्त किया गया है.

( अ ) इस समूह में अत्यन्त घिसे प्राक् सोहन प्रकार के अवीवीलियन उपकरण प्राप्त होते है।

(ब) इसमें अपेक्षाकृत कम घिसे मध्य अश्यूलियन प्रकार के उपकरण हैं।

(स) इस समूह में विकसित अश्यूलियन उपकरण जिनमें हैंडेक्स, क्लीवर आदि हैं।

तृतीय सोपान (Terrace III) - तृतीय हिमयुग के पश्चात, अन्तर्हिम युग में पुनः परिवर्तन के प्रमाण कश्मीर क्षेत्र में प्राप्त होते हैं। जलवायु परिवर्तन के कारण अतिवृष्टि एवं नदियों द्वारा कटाव हुए। जिसके परिणामस्वरूप एक नये सोपान का निर्माण 80 फीट की ऊँचाई पर हुआ। कटाव के फलस्वरूप सोपान निर्माण के कारण, इस सोपान पर उपकरण नहीं प्राप्त होते।

चतुर्थ सोपान (Terrace IV) - यह सोपान चतुर्थ हिमयुग से सम्बन्धित है। यह सोपान गुलाबी मिट्टी बालू एवं ग्रैवेल से निर्मित है एवं सोहन एवं सिन्धु नदियों पर क्रमशः 40 एवं 90 फुट की ऊँचाई पर स्थित है। यह प्रतिनूतन कालीन हिमयुग का अन्तिम चरण माना जाता है। इस सोपान से प्राप्त उपकरणों को विकसित सोहन (Evolved Sohan) कहा जाता है। ये उपकरण पिंडी घेव एवं ढोक पठान आदि स्थानों से प्राप्त हुए हैं। तकनीक में ये उपकरण तृतीय सोपान के उपकरणों से अधिक विकसित हैं। उपकरण पतले एवं कम चौडे, एवं विकसित हैं। उनमें लावाल्वा तकनीक प्रदर्शित होती है। इन उपकरणों को उत्तर पुरापाषाण युगीन उपकरणों के अन्तर्गत रखा गया है। यहाँ से प्राप्त पेबुल पर निर्मित बोरर या ऑल विशेष उल्लेखनीय हैं

पंचम सोपान (Terrace V) - यह सोपान नदी से स्वाभाविक कटाव के कारण नूतन काल में निर्मित हुआ एवं वर्तमान सोहन, नदी के जल स्तर से 20 फुट ऊँचाई पर स्थित है। यह सोपान काली मिट्टी द्वारा निर्मित है। इस सोपान से किसी भी प्रकार के उपकरण नहीं प्राप्त होते हैं परन्तु कुछ मृद्भाण्डों के टुकड़े उपलब्ध हुए हैं जिनके विषय में अनिश्चितता है।

डेटेरा एवं पैटरसन के शोध के परिणामस्वरूप सोहन घाटी आकर्षण का केन्द्र बनी रही एवं विद्वानों ने भिन्न-भिन्न दृष्टिकोण से इस क्षेत्र में कार्य किया। ओलरूफ रुफर ने सन 1951 ई. में सतलज की सहायक नदी सिरसी के दाहिने सोपान से उपकरणों की खोज की। धरणीसेन ने अपने सर्वेक्षण के दौरान सिरसा नदी (होशियारपुर) पर तीन सोपानों की जो क्रमशः 21 मी., 12 मी., 3 मी., की ऊँचाई पर स्थित है पहचान की यहाँ प्रथम एवं द्वितीय सोपानों से पेबुल उपकरण एवं फलक प्राप्त होते हैं। वाइ. डी. शर्मा द्वारा सन् 1954 ई. में सोहन नदी के किनारे पैबुल उपकरणों की खोज की गई थी जिनमें दौलतपुर नामक स्थल प्रमुख है। इसके तुरन्त बाद सन् 1955 ई. में बी. बी. लाल द्वारा व्यास एवं वान गंगा (कांगड़ा जिला, हिमांचल प्रदेश) घाटियों से सोहन उपकरणों वाले कई स्थल जैसे गुलेर, देहरा, गहलियारा तथा कांगड़ा प्राप्त हुए हैं। इनमें गुलेर विशेष उल्लेखनीय है। यहाँ पर अलग-अलग ऊँचाई पर 5 सोपानों की प्राप्ति हुई है जो क्रमश: 196.5 मी., 112.5 मी., 45 मी., 27 मी., एवं 9 मी., की ऊँचाई पर स्थित हैं। इनमें से प्रथम सोपानों एवं विभिन्न उपकरणों जैसे चापर - चापिंग उपकरण, पेबुल हैंडेक्स कोर तथा फलकों की प्राप्ति होती है। तत्पश्चात् सन् 1957 ई. में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग, एम. एस. विश्वविद्यालय बड़ौदा एवं डेकन कालेज शोध संस्थान ने सम्मिलित रूप से इस क्षेत्र में कार्य किया। आर वी जोशी ने विदेशी भूतत्ववेत्ताओं के साथ पुनः कांगड़ा घाटी का अध्ययन किया। जोशी के मतानुसार इस क्षेत्र के सोपान निर्माण में अति एवं अल्प वृष्टि का योगदान है कि हिमपातों का। सन् 1969 ई. में एच.डी. सॉकलिया ने झेलम की सहायक नदी लिद्दर पर कार्य किया एवं उपकरणों की खोज की। जी. सी. महापत्रों, डी.पी. अग्रवाल, एस. एन. राजगुरु आदि के शोधकार्य सोहन घाटी में चल रहे हैं। सम्भवतः आदिमानव के विषय में कुछ विशेष जानकारी प्राप्त हो सके।

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- पुरातत्व क्या है? इसकी विषय-वस्तु का निरूपण कीजिए।
  2. प्रश्न- पुरातत्व का मानविकी तथा अन्य विज्ञानों से सम्बन्ध स्पष्ट कीजिए।
  3. प्रश्न- पुरातत्व विज्ञान के स्वरूप या प्रकृति पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  4. प्रश्न- 'पुरातत्व के अभाव में इतिहास अपंग है। इस कथन को समझाइए।
  5. प्रश्न- इतिहास का पुरातत्व शस्त्र के साथ सम्बन्धों की विवेचना कीजिए।
  6. प्रश्न- भारत में पुरातत्व पर विस्तृत टिप्पणी लिखिए।
  7. प्रश्न- पुरातत्व सामग्री के क्षेत्रों का विश्लेषण अध्ययन कीजिये।
  8. प्रश्न- भारत के पुरातत्व के ह्रास होने के क्या कारण हैं?
  9. प्रश्न- प्राचीन इतिहास की संरचना में पुरातात्विक स्रोतों के महत्व का मूल्यांकन कीजिए।
  10. प्रश्न- प्राचीन भारतीय इतिहास की संरचना में पुरातत्व का महत्व बताइए।
  11. प्रश्न- प्राचीन भारतीय इतिहास के अध्ययन में अभिलेखों का क्या महत्व है?
  12. प्रश्न- स्तम्भ लेख के विषय में आप क्या जानते हैं?
  13. प्रश्न- स्मारकों से प्राचीन भारतीय इतिहास की क्या जानकारी प्रात होती है?
  14. प्रश्न- पुरातत्व के उद्देश्यों से अवगत कराइये।
  15. प्रश्न- पुरातत्व के विकास के विषय में बताइये।
  16. प्रश्न- पुरातात्विक विज्ञान के विषय में बताइये।
  17. प्रश्न- ऑगस्टस पिट, विलियम फ्लिंडर्स पेट्री व सर मोर्टिमर व्हीलर के विषय में बताइये।
  18. प्रश्न- उत्खनन के विभिन्न सिद्धान्तों तथा प्रकारों का उल्लेख कीजिए।
  19. प्रश्न- पुरातत्व में ऊर्ध्वाधर और क्षैतिज उत्खननों के महत्व का मूल्यांकन कीजिए।
  20. प्रश्न- डेटिंग मुख्य रूप से उत्खनन के बाद की जाती है, क्यों। कारणों का उल्लेख कीजिए।
  21. प्रश्न- डेटिंग (Dating) क्या है? विस्तृत रूप से बताइये।
  22. प्रश्न- कार्बन-14 की सीमाओं को बताइये।
  23. प्रश्न- उत्खनन व विश्लेषण (पुरातत्व के अंग) के विषय में बताइये।
  24. प्रश्न- रिमोट सेंसिंग, Lidar लेजर अल्टीमीटर के विषय में बताइये।
  25. प्रश्न- लम्बवत् और क्षैतिज उत्खनन में पारस्परिक सम्बन्धों को निरूपित कीजिए।
  26. प्रश्न- क्षैतिज उत्खनन के लाभों एवं हानियों पर प्रकाश डालिए।
  27. प्रश्न- पुरापाषाण कालीन संस्कृति का विस्तृत वर्णन कीजिए।
  28. प्रश्न- निम्न पुरापाषाण कालीन संस्कृति का विस्तृत विवेचन कीजिए।
  29. प्रश्न- उत्तर पुरापाषाण कालीन संस्कृति के विकास का वर्णन कीजिए।
  30. प्रश्न- भारत की मध्यपाषाणिक संस्कृति पर एक वृहद लेख लिखिए।
  31. प्रश्न- मध्यपाषाण काल की संस्कृति का महत्व पूर्ववर्ती संस्कृतियों से अधिक है? विस्तृत विवेचन कीजिए।
  32. प्रश्न- भारत में नवपाषाण कालीन संस्कृति के विस्तार का वर्णन कीजिये।
  33. प्रश्न- भारतीय पाषाणिक संस्कृति को कितने कालों में विभाजित किया गया है?
  34. प्रश्न- पुरापाषाण काल पर एक लघु लेख लिखिए।
  35. प्रश्न- पुरापाषाण कालीन मृद्भाण्डों पर टिप्पणी लिखिए।
  36. प्रश्न- पूर्व पाषाण काल के विषय में एक लघु लेख लिखिये।
  37. प्रश्न- पुरापाषाण कालीन शवाशेष पद्धति पर टिप्पणी लिखिए।
  38. प्रश्न- मध्यपाषाण काल से आप क्या समझते हैं?
  39. प्रश्न- मध्यपाषाण कालीन संस्कृति की प्रमुख विशेषताएँ बताइए।।
  40. प्रश्न- मध्यपाषाणकालीन संस्कृति का विस्तार या प्रसार क्षेत्र स्पष्ट कीजिए।
  41. प्रश्न- विन्ध्य क्षेत्र के मध्यपाषाणिक उपकरणों पर प्रकाश डालिए।
  42. प्रश्न- गंगा घाटी की मध्यपाषाण कालीन संस्कृति पर प्रकाश डालिए।
  43. प्रश्न- नवपाषाणिक संस्कृति पर टिप्पणी लिखिये।
  44. प्रश्न- विन्ध्य क्षेत्र की नवपाषाण कालीन संस्कृति पर संक्षेप में प्रकाश डालिए।
  45. प्रश्न- दक्षिण भारत की नवपाषाण कालीन संस्कृति के विषय में बताइए।
  46. प्रश्न- मध्य गंगा घाटी की नवपाषाण कालीन संस्कृति पर टिप्पणी लिखिए।
  47. प्रश्न- ताम्रपाषाणिक संस्कृति से आप क्या समझते हैं? भारत में इसके विस्तार का उल्लेख कीजिए।
  48. प्रश्न- जोर्वे-ताम्रपाषाणिक संस्कृति की विशेषताओं की विवेचना कीजिए।
  49. प्रश्न- मालवा की ताम्रपाषाणिक संस्कृति का विस्तार से वर्णन कीजिए।
  50. प्रश्न- ताम्रपाषाणिक संस्कृति पर टिप्पणी लिखिए।
  51. प्रश्न- आहार संस्कृति का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
  52. प्रश्न- मालवा की ताम्रपाषाणिक संस्कृति पर प्रकाश डालिए।
  53. प्रश्न- जोर्वे संस्कृति की विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
  54. प्रश्न- ताम्रपाषाणिक संस्कृति के औजार क्या थे?
  55. प्रश्न- ताम्रपाषाणिक संस्कृति के महत्व पर प्रकाश डालिए।
  56. प्रश्न- सिन्धु सभ्यता / हड़प्पा सभ्यता के नामकरण और उसके भौगोलिक विस्तार की विवेचना कीजिए।
  57. प्रश्न- सिन्धु सभ्यता की नगर योजना का विस्तृत वर्णन कीजिए।
  58. प्रश्न- हड़प्पा सभ्यता के नगरों के नगर- विन्यास पर विस्तृत टिप्पणी लिखिए।
  59. प्रश्न- सिन्धु घाटी के लोगों की शारीरिक विशेषताओं का संक्षिप्त मूल्यांकन कीजिए।
  60. प्रश्न- पाषाण प्रौद्योगिकी पर टिप्पणी लिखिए।
  61. प्रश्न- सिन्धु सभ्यता के सामाजिक संगठन पर टिप्पणी कीजिए।
  62. प्रश्न- सिंधु सभ्यता के कला और धर्म पर टिप्पणी कीजिए।
  63. प्रश्न- सिंधु सभ्यता के व्यापार का संक्षेप में उल्लेख कीजिए।
  64. प्रश्न- सिंधु सभ्यता की लिपि पर संक्षेप में प्रकाश डालिए।
  65. प्रश्न- सिन्धु सभ्यता के पतन के कारणों पर प्रकाश डालिए।
  66. प्रश्न- लौह उत्पत्ति के सम्बन्ध में पुरैतिहासिक व ऐतिहासिक काल के विचारों से अवगत कराइये?
  67. प्रश्न- लोहे की उत्पत्ति (भारत में) के विषय में विभिन्न चर्चाओं से अवगत कराइये।
  68. प्रश्न- "ताम्र की अपेक्षा, लोहे की महत्ता उसकी कठोरता न होकर उसकी प्रचुरता में है" कथन को समझाइये।
  69. प्रश्न- महापाषाण संस्कृति के विषय में आप क्या जानते हैं? स्पष्ट कीजिए।
  70. प्रश्न- लौह युग की भारत में प्राचीनता से अवगत कराइये।
  71. प्रश्न- बलूचिस्तान में लौह की उत्पत्ति से सम्बन्धित मतों से अवगत कराइये?
  72. प्रश्न- भारत में लौह-प्रयोक्ता संस्कृति पर टिप्पणी लिखिए।
  73. प्रश्न- प्राचीन मृद्भाण्ड परम्परा से आप क्या समझते हैं? गैरिक मृद्भाण्ड (OCP) संस्कृति का विस्तृत विवेचन कीजिए।
  74. प्रश्न- चित्रित धूसर मृद्भाण्ड (PGW) के विषय में विस्तार से समझाइए।
  75. प्रश्न- उत्तरी काले चमकदार मृद्भाण्ड (NBPW) के विषय में संक्षेप में बताइए।
  76. प्रश्न- एन. बी. पी. मृद्भाण्ड संस्कृति का कालानुक्रम बताइए।
  77. प्रश्न- मालवा की मृद्भाण्ड परम्परा के विषय में बताइए।
  78. प्रश्न- पी. जी. डब्ल्यू. मृद्भाण्ड के विषय में एक लघु लेख लिखिये।
  79. प्रश्न- प्राचीन भारत में प्रयुक्त लिपियों के प्रकार तथा नाम बताइए।
  80. प्रश्न- मौर्यकालीन ब्राह्मी लिपि पर प्रकाश डालिए।
  81. प्रश्न- प्राचीन भारत की प्रमुख खरोष्ठी तथा ब्राह्मी लिपियों पर प्रकाश डालिए।
  82. प्रश्न- अक्षरों की पृष्ठभूमि पर प्रकाश डालिए।
  83. प्रश्न- अशोक के अभिलेख की लिपि बताइए।
  84. प्रश्न- प्राचीन भारतीय इतिहास की संरचना में अभिलेखों के महत्व का उल्लेख कीजिए।
  85. प्रश्न- अभिलेख किसे कहते हैं? और प्रालेख से किस प्रकार भिन्न हैं?
  86. प्रश्न- प्राचीन भारतीय अभिलेखों से सामाजिक जीवन पर क्या प्रकाश पड़ता है?
  87. प्रश्न- अशोक के स्तम्भ लेखों के विषय में बताइये।
  88. प्रश्न- अशोक के रूमेन्देई स्तम्भ लेख का सार बताइए।
  89. प्रश्न- अभिलेख के प्रकार बताइए।
  90. प्रश्न- समुद्रगुप्त की प्रयाग प्रशस्ति के विषय में बताइए।
  91. प्रश्न- जूनागढ़ अभिलेख से किस राजा के विषय में जानकारी मिलती है उसके विषय में आप सूक्ष्म में बताइए।
  92. प्रश्न- मुद्रा बनाने की रीतियों का उल्लेख करते हुए उनकी वैज्ञानिकता को सिद्ध कीजिए।
  93. प्रश्न- भारत में मुद्रा की प्राचीनता पर प्रकाश डालिए।
  94. प्रश्न- प्राचीन भारत में मुद्रा निर्माण की साँचा विधि का वर्णन कीजिए।
  95. प्रश्न- मुद्रा निर्माण की ठप्पा विधि का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
  96. प्रश्न- आहत मुद्राओं (पंचमार्क सिक्कों) की मुख्य विशेषताओं एवं तिथिक्रम का वर्णन कीजिए।
  97. प्रश्न- मौर्यकालीन सिक्कों की विस्तृत जानकारी प्रस्तुत कीजिए।
  98. प्रश्न- आहत मुद्राओं (पंचमार्क सिक्के) से आप क्या समझते हैं?
  99. प्रश्न- आहत सिक्कों के प्रकार बताइये।
  100. प्रश्न- पंचमार्क सिक्कों का महत्व बताइए।
  101. प्रश्न- कुषाणकालीन सिक्कों के इतिहास का विस्तृत विवेचन कीजिए।
  102. प्रश्न- भारतीय यूनानी सिक्कों की प्रमुख विशेषताएँ बताइए।
  103. प्रश्न- कुषाण कालीन सिक्कों के उद्भव एवं प्राचीनता को संक्षेप में बताइए।
  104. प्रश्न- गुप्तकालीन सिक्कों का परिचय दीजिए।
  105. प्रश्न- गुप्तकालीन ताम्र सिक्कों पर टिप्पणी लिखिए।
  106. प्रश्न- उत्तर गुप्तकालीन मुद्रा का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  107. प्रश्न- समुद्रगुप्त के स्वर्ण सिक्कों पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  108. प्रश्न- गुप्त सिक्कों की बनावट पर टिप्पणी लिखिए।
  109. प्रश्न- गुप्तकालीन सिक्कों का ऐतिहासिक महत्व बताइए।
  110. प्रश्न- इतिहास के अध्ययन हेतु अभिलेख अत्यधिक महत्वपूर्ण हैं। विवेचना कीजिए।
  111. प्रश्न- प्राचीन भारतीय इतिहास के अध्ययन में सिक्कों के महत्व की विवेचना कीजिए।
  112. प्रश्न- प्राचीन सिक्कों से शासकों की धार्मिक अभिरुचियों का ज्ञान किस प्रकार प्राप्त होता है?
  113. प्रश्न- हड़प्पा की मुद्राओं के महत्व का मूल्यांकन कीजिए।
  114. प्रश्न- प्राचीन भारतीय इतिहास के अध्ययन में अभिलेखों का क्या महत्व है?
  115. प्रश्न- प्राचीन भारतीय इतिहास के स्रोत के रूप में सिक्कों का महत्व बताइए।

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