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प्राचीन भारतीय और पुरातत्व इतिहास >> बीए सेमेस्टर-5 पेपर-2 प्राचीन भारतीय इतिहास

बीए सेमेस्टर-5 पेपर-2 प्राचीन भारतीय इतिहास

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :180
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2794
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बीए सेमेस्टर-5 पेपर-2 प्राचीन भारतीय इतिहास - सरल प्रश्नोत्तर

अध्याय - 4

पाषाण युग तथा भारत में इसका विस्तार :

पुरापाषाण युग, मध्यपाषाण युग तथा नवपाषाण युग

(Stone Age and Its Expansion in India :
Palaeolithic Age, Mesolithic Age and Neolithic Age)

प्रश्न- पुरापाषाण कालीन संस्कृति का विस्तृत वर्णन कीजिए।

अथवा
पुरापाषाण कालीन संस्कृति के उपकरणों पर प्रकाश डालिए।

सम्बन्धित लघु उत्तरीय प्रश्न
1. पुरापाषाण काल के क्या औजार थे? चित्र सहित दिखाइए।

उत्तर-

पुरापाषाण कालीन उपकरण

पुरापाषाण काल को तीन भागों में विभक्त किया गया है। इन कालों से संबंधित उपकरणों का विवरण भी इसी क्रम में वर्णित है। इन उपकरणों का नामकरण मुख्य रूप से यूरोप एवं अफ्रीका में प्रचलित उपकरण के नामाधार पर किया जाता है क्योंकि इन संस्कृतियों के विषय में अध्ययन का इतिहास भारत की तुलना में यूरोप एवं अफ्रीका में अधिक प्राचीन है। अतः इन क्षेत्रों में प्रचलित उपकरणों के नाम ही भारतीय संस्कृतियों में प्राप्त उपकरणों के लिए प्रयुक्त किया गया है।

(I) निम्न पुरापाषाण काल - इस काल के उपकरणों में मुख्य रूप से पैतृक उपकरण हैंडेक्स, क्लीवर आदि हैं। इन्हें कोर उपकरण समूह में सम्मिलित किया जा सकता है। इस समूह के अधिकतम उपकरण (क्लीवर को छोड़कर) किसी भी उपयुक्त पाषाण खण्ड को फलकीकरण के द्वारा उपकरण का रूप दिया जाता था। ये उपकरण कभी पेबुल और कभी प्रस्तर खण्ड पर बनाये जाते थे। इन उपकरणों के निर्माण हेतु क्वार्टजाइट (Quartzite), ट्रेप (Trap) जैसे कठोर पाषाणों का प्रयोग किया जाता था। निम्न पुरापाषाण कालीन उपकरणों का वर्णन निम्नलिखित है -

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पुरापाषाण कालीन पत्थर के औजार

1. पेबुल उपकरण - नदी के प्रवाह में दूर तक लुढ़कने के कारण अनगढ़ पाषाण खण्ड जो गोलाकार स्वरूप धारण कर लेते हैं, पेबुल कहलाते हैं। जैसाकि नाम से ही विदित होता है कि ये उपकरण नदियों के ग्रैवेल जमाव के फलस्वरूप निर्मित पेबुल पर बनाए गए हैं। अतः इन्हें पेबुल उपकरण की संज्ञा दी गई है। ये उपकरण अफ्रीका के ओल्डुवाई गार्ज (Bed I) नामक स्थल पर मानव के प्रथम उपकरण अवशेष के रूप में सबसे निचले भाग से प्राप्त हुए हैं। इसके अतिरिक्त इनके प्राप्ति स्थलों में केन्या में कानम, ट्रान्सवाल, केप में वॉल नदी की घाटी, इथिओपियो में ओमो नदी की घाटी तथा अल्जीरिया में आइनहेनेक मुख्य हैं। भारत में इन उपकरणों की उपलब्धि सोनघाटी से होती है।

इन पेबुल उपकरणों को दो भागों में विभाजित किया गया है - चॉपर एवं चापिंग। इन दोनों शब्दों का अर्थ एक होने के कारण विद्वानों को इन नामों में आपत्ति है। आर.वी. जोशी ने इन्हें एकपार्श्वीय (Unifacial) एवं द्विपार्श्वीय (Bifacial) की संज्ञा दी है।

(i) एकपक्षीय (Unifacial) - पेबुल उपकरण पेबुल के एक ओर फलकीकरण करने के उपरान्त जो धारयुक्त उपकरण तैयार होता है उसे एक पक्षीय पेबुल उपकरण कहते हैं पेबुल का शेष हिस्सा उसका प्राकृतिक भाग होता है जिसे कॉरटेक्स (cortex) कहा जाता हैं।

(ii) उभयपक्षीय (Bifacial) पेबुल उपकरण - पेबुल के एक ओर फलकीकरण करने के फलस्वरूप जो धारयुक्त उपकरण निर्मित होता है उसे द्विपक्षीय या उभयपक्षीय पेबुल उपकरण कहते हैं।

2. हैंडेक्स (Handaxe) - इन उपकरणों का विकास पेबुल उपकरणों से माना जाता है। ये उपकरण 'ओल्डुवाई गार्ज के तृतीय स्तर (Bed III) से उपलब्ध होते हैं। ये हैंडेक्स फ्रांस के शेल (Chelles) एवं सेष्ट एश्यूल (St. Acheul) नामक स्थलों से भी प्राप्त होते हैं। भारत में इनका प्राप्ति स्थल बेलन, सोन, नर्मदा, कृष्णा घाटियाँ हैं। उत्खनन में भीम बैठका (मध्य प्रदेश) स्थल के सबसे निचले स्तर से मिलते है। साँकलिया ने हैंडेक्स के आकारों एवं तकनीक के आधार पर इन्हें निम्नलिखित 6 भागों में विभाजित किया है -

(i) पीअर शेप्ड (Pear-shaped) - यह उपकरण नीचे से गोलाकार एवं ऊपर से मोटी नोक वाला धारयुक्त होता है। फलकीकरण के द्वारा धीरे-धीरे ऊपर की ओर नुकीला बनाया जाता है।

(ii) ट्रैगुलर हैंडेक्स (Triangular Handaxe) - इस उपकरण को दोनों ओर से फलकीकरण करने के उपरान्त दोनों ओर की धार किसी बिन्दु पर त्रिकोणीय आकार बनाते हुए मिलती है। ऐसे उपकरण त्रिकोणीय हैंडेक्स (Triangular Handaxe) कहलाते हैं। इनका निचला हिस्सा बहुधा सपाट रहता है।

(iii) लैन्सीओलेट या ऑलमन्ड (Lanceolate or Almond-shaped) - उपकरण बादाम (Almond) के आकार का ऊपर से नुकीला भालेनुमा उपकरण है। कम चौड़ाई और मोटाई वाला यह उपकरण फलकीकरण के द्वारा नीचे से ऊपर की ओर धीरे-धीरे नुकीला बनाया जाता है।

इस विभाजन विधि में प्रो. वी. एन. मिश्र द्वारा तैयार फार्म (Classification from) की सहायता ली गई है।

(iv) आवेटे हैंडेक्स (Ovate Handaxe) - इस अण्डाकार (Ovate) उपकरण का फलकीकरण के द्वारा ऊपर की ओर नुकीला निर्मित करते हैं।

(v) कॉरडेट या हार्ट शेप्ड (Cordate or Heart shaped ) - दिल (Heart ) के आकार का दिखने वाला यह उपकरण चौड़ा, सुडौल एवं नीचे से गोलाकार होता है। यह हैंडेक्स नुकीला नहीं होता है।

(vi) माइकोकियन हैंडेक्स (Micoquian Handaxe) - यह उपकरण छोटा, त्रिकोणीय, नुकीली एवं नीचे से मोटा (Butt) होता है। इसका निचला हिस्सा बहुधा फलकीकृत नहीं होता है। ऐसे उपकरण फ्रान्स के ला माइकोक (Lo Micoque) नामक स्थल से प्राप्त हुए हैं।

3. क्लीवर (Cleaver ) - यह उपकरण साइड फ्लेक (Side flake) एवं इन्डफ्लेक (end Flake) पर निर्मित रहते हैं। फलकीकरण के द्वारा दोनों ओर फ्लेक स्कार (Flake Scar) आपस में मिलकर धार बनाते हैं। इन तीक्ष्ण धार वाले उपकरणों का बट मोटा होता है। भारत में उपकरण निम्न पाषाण कालीन स्तरों से प्राप्त होते हैं। इनमें क्रास सेक्शन (Cross section ) महत्वपूर्ण होता है जो पेरालेलोग्रेमेटिक (Parallelogrammatic) एवं लेन्टीकुलर (Lenticular) आकार के होते हैं। इन्हें आकार के आधार पर दो भागों में विभक्त किया गया है. यू शेप्ड क्लीवर (U-shaped cleaver) एवं वी शेप्ड क्लीवर (V-shaped cleaver)।

(i) 'यू' शेप्ड क्लीवर ( U-shaped Cleaver) - ये उपकरण अंग्रेजी के 'U' अक्षर के आकार का होता है इसका निचला हिस्सा गोल होता है तथा दोनों भुजा सीधी होती है। इसका उच्च भाग धारयुक्त होता है जो कभी सीधा एवं कभी गोलार्द्ध (Convex ) लिए होता है।

(ii) 'वी' शेप्ड क्लीवर (V-shaped Cleaver) - अंग्रेजी के 'वी' (V) अक्षर की तरह दिखने वाला यह उपकरण नीचे से मोटा एवं नुकीला होता है। इसकी भुजाएँ ऊपर की ओर चौड़ी होती हैं। इसका ऊपरी भाग भार वाला तथा सीधा अथवा गोलाई लिए हुए होता है।

(II) मध्य पुरापाषाण काल - यह संस्कृति पुरापाषाण काल के द्वितीय चरण से सम्बन्धित है। स्तरीकरण में ये निम्न पुरापाषाण काल के ऊपरी स्तरों से प्राप्त होती है। निम्न पुरापाषाणीय उपकरण, किन्तु इनका आकार अपेक्षाकृत छोटा होता जाता है। ये उपकरण कोर से निकले फलक पर पुनः रिटचिंग (कार्य) कर बनाए गये हैं जिससे इन्हें फ्लेक समूह के उपकरणों के अन्तर्गत रखा जाता है। मध्य पुरापाषाण कालीन उपकरणों में स्क्रैपर एवं बोरर (Scraper and Borer) मुख्य हैं। इन्हें आकार तथा रिटचिंग के आधार पर कई भागों में विभक्त किया गया है। ये उपकरण नदियों पर निर्मित जमाव में सेण्डापेब्ली एवं पेब्लीग्रेवल से प्राप्त होते हैं। इनका वर्णन निम्नवत् है

1. स्क्रैपर (Scraper) - जैसाकि इनके नाम से विदित होता है कि ये छीलने (Scrap) के काम में आते होगें। सम्भवतः इनके द्वारा लकड़ी एवं चमड़े की छिलाई की जाती थी। रिटचिंग एवं आकार के आधार पर ये उपकरण निम्न भागों में विभक्त किए गए हैं-

(i) एकपार्श्वीय स्क्रैपर (Single Sided Scraper) - इस प्रकार के उपकरण एक ही तरह से रिटचिंग करके बनाये जाते हैं। रिटचिंग के आधार पर इन्हें पुनः निम्नलिखित भागों में विभक्त किया जाता है -

(अ) स्ट्रेट साइड स्क्रैपर (Straight side scraper)
(ब) कॉनकेव साइड स्क्रैपर (Concave side scraper)
(स) कॉनवेक्स साइड स्क्रेपर (Convex side scraper)
(द) नॉच्ड साइड स्क्रेपर (Notched side scraper)।

(ii) द्विपाश्र्वय स्क्रैपर (Double Sided Scraper) - नामानुसार ये उपकरण दोनों पार्श्वो पर रिटचिंग द्वारा निर्मित किए जाते हैं। रिटचिंग के आधार पर इन्हें भी कई भागों में विभक्त किया गया है जैसे-

(अ) कॉनकेव कानवेक्स (Concave convex)
(ब) कॉनकेव स्ट्रेट (Concave straight)
(स) कानवेक्स स्ट्रेट (Convex straight)
(द) बाई कानकेव (Biconcave)
(य) बाई कानवेक्स (Biconvex )

(iii) अन्त स्क्रैपर (End Scraper) - ये किसी फलक या नोडयुल के ऊपरी या निचले छोटे भाग पर रिटचिंग कर निर्मित किए जाते हैं। ये रिटचिंग बहुधा स्टीप होती है। कभी-कभी ऊपरी एवं निचले दोनों भाग पर रिटचिंग प्राप्त होती है।

(iv) गोल स्क्रैपर (Round Scraper) - ये गोल फ्लेक पर सभी ओर से रिटचिंग द्वारा बनाए जाते हैं।

2. बोरर (Borer)  - मध्यपाषाण कालीन यह उपकरण संभवतः छिद्र करने के लिए उपयोगी था। जैसाकि इसके नाम बोरर एवं आकार से प्रतीत होता है। फ्लेक के दो या एक पार्श्व पर नॉच बनाकर रिटाचिंग की जाती है जिससे बोरिंग टिप (Boring tip) तैयार होती है। इसे दो भागों में विभक्त किया गया है

(i) एक स्कंधीय बोरर (Single borer)
(ii) द्विस्कंधीय बोरर (Shouldered borer)।

(III) उत्तर पुरापाषण काल - उत्तर पुरापाषाण कालीन उपकरण मुख्यतः ब्लेड पर निर्मित हैं, अतः ये ब्लेड समूह के अन्तर्गत आते हैं। ब्लेड ब्यूरिन एवं प्वाइन्ट इस काल के प्रमुख उपकरणों में गिने जाते हैं। बहुधा ब्लेड एवं फ्लेक-बमैड को कोर से निकालने के उपरान्त उन पर रिटचिंग द्वारा धार बनाकर उपकरण का रूप दिया जाता था। उत्तर पुरापाषाण कालीन संस्कृति यूरोप के क्षेत्रों में पाई जाती है। अफ्रीका में इस संस्कृति के अवशेष उपलब्ध नहीं होते। भारत में यह संस्कृति उत्खननों के परिणामस्वरूप कई स्थलों से प्राप्त हुई है। इस संस्कृति के अवशेष मध्य पुरापाषाण काल एवं मध्यपाषाण काल सोनघाटी, महानदी घाटी, गोदावरी घाटी, भीम बैठका, पाटने, वेटमचेरला, मुच्छटला, चिन्ता-मनुगावी, कुरनूल आदि हैं। इस संस्कृति में पाषाण उपकरणों के साथ-साथ अस्थि उपकरण भी प्राप्त होते हैं। इस काल में प्रमुख उपकरणों में ब्लेड (Blade), ब्यूरिन ( Burin), पॉइन्ट (Point) आदि हैं।

1. ब्लेड (Blade ) - ये किसी कोर से निकलने के उपरान्त रिटचिंग द्वारा एक लम्बा उपकरण तैयार होता है। इसके दोनों पार्श्व समानान्तर होते हैं। ब्लेड के नियमानुसार इसकी लम्बाई चौड़ाई से दुगनी या अधिक होनी चाहिए। ब्लेड के ऊपरी सतह पर एक या दो मिडरिज होती है। ब्लेड का क्रास सेक्शन ट्रेंग्यूलर (Triangular) या ट्रपीज्वाइडल (Triapenzoidal ) होता है। ब्लेड पर पुनः रिटचिंग द्वारा इनको विभिन्न प्रकार के उपकरणों का रूप दिया जाता है। ब्लेड के मुख्य प्रकार निम्नलिखित हैं जिनके नाम रिटचिंग के आधार पर किए गये हैं-

(i) सिम्पल ब्लेड (Simple blade )
(ii) वन मार्जिन रिटच्ड ब्लेड (One margin retouched blade)
(iii) बोथ मार्जिन रिटच्ड ब्लेड (Both margin retouched blade)
(iv) ओब्लीकली ट्रेन्केटेड ब्लेड (Obliquely truncated blade)
(v) बैक्ड ब्लेड (Backed blade )।

2. ब्यूरिन ( Burin) - ये उपकरण खुरचकर (Engraving) चित्रण कार्य करने हेतु उपयोगी थे। अनुमानतः उत्तर पुरापाषाण काल में चित्रण ( चित्र बनाना) प्रारम्भ हुआ था। अतः इस दृष्टि से यह उपकरण अत्यन्त महत्वपूर्ण है। इसे ग्रेवर (Graver) भी कहते हैं। ब्यूरिन का निर्माण ओब्लिक या ऐंगिल्ड स्पॉल निकालने के उपरान्त होता था। इसके प्रमुख प्रकार निम्नलिखित हैं-

(i) एंग्युलर या ऐंगिल्ड ब्यूरिन (Angular or Angled burin)
(ii) ओब्लिक ब्यूरिन (Oblique burin)
(iii) पेरट बीक लाइक ब्यूरिन (Parrot beak like burin)

3. पॉइन्ट (Point) - इन उपकरणों की प्राप्ति मध्यपुरापाषाण काल से आरम्भ हो जाती है तथा उत्तर पुरापाषाण काल में ये एक मुख्य उपकरण माने गए। ये एक या दो पार्श्वो में रिटचिंग द्वारा निर्मित होते हैं। इनका निचला हिस्सा चौड़ा व ऊपरी भाग नुकीला होता है। कभी-कभी नीचे फँसाने के लिए टेंग (Tanged) के निशान दिखाई देते हैं। सम्भवतः इन्हें बाण आदि में लगाकर उपयोग किया जाता था। पॉइन्ट उपकरण एवं ब्लेड दोनों पर बनाए जाते हैं। इनमें निम्नलिखित प्रकार हैं-

(i) सिम्पल पॉइन्ट (Simple point )
(ii) वन मार्जिन रिटच्ड पॉइन्ट (One margin retouched point)
(iii) लीफ शेप्ड पॉइन्ट (Leaf-shaped point )।

(IV) मध्यपाषाण काल - यह काल पुरापाषाण काल एवं नवपाषाण काल के बीच प्रयोग की कड़ी समझी जाती है। इस काल में उपकरण अत्यन्त लघु हो जाते हैं, अतः इन्हें अकेले प्रयोग कर पाना संभव नहीं होता। इन्हें कम्पोजिट या साथ-साथ प्रयोग किया जाता है। वस्तुतः माइक्रो ब्लेड को रिटचिंग करने के पश्चात् उपकरण को अन्तिम रूप दिया जाता है। इस काल में उपकरणों में विविधता आ जाती है एवं उपकरण छोटे-छोटे फ्लेक, चिप (Chip) आदि पर बनने लगते हैं। बहुधा इस काल में उपकरण समूह वही हैं जो पूर्व संस्कृति में प्रचलित थे परन्तु कुछ नवीन उपकरणों का प्रादुर्भाव इस संस्कृति में हो जाता है, जैसे- थम्बनेल. स्क्रैपर (Thumbnail scraper) माइक्रो ब्यूरिन (Microburin)। .

1. थम्बनेल स्क्रेपर (Thumbnail Scraper ) - यह उपकरण बहुत छोटा अँगूठे के नाखून के आकार का होता है जो सम्भवतः खण्डित ब्लेड पर एक तरफ रिटचिंग करने के पश्चात् निर्मित किया जाता है।

2. माइक्रो ब्यूरिन (Micro burin) - यह उपकरण भी इसी काल में प्राप्त होता है इसलिए इसे लूनेट कहते हैं। इसके निर्माण की विधि भी विशेष है। यह उपकरण उत्कीर्णन में सहायक होता है। इस काल में ज्यामितीय उपकरण बनने प्रारम्भ हो जाते हैं। ये प्रमुख रूप से तीन प्रकार के ज्यामितीय उपकरण हैं, जैसे-

(i) लूनेट या चांद्रिक (Lunate or Cresent) - यह उपकरण छोटा व अर्द्ध चन्द्राकार होता है, इसलिए इसे लूनेट कहते हैं। इसमें माइक्रो ब्लेड को एक तरफ रिटच करके मोटा एवं ब्लंट बैक बनाया जाता है। इसका विपरीत हिस्सा सीधा होता है एवं कभी-कभी इस पर रिटचिंग भी प्राप्त होती है। लूनेट दो प्रकार के पाये जाते हैं - सिमीट्रिकल या एसिमीट्रिकल (Symmetrical or Asymmetrical)। जब लूनेट बीच की ऊँचाई से दोनों तरफ बराबर या समलम्ब हो तो सिमीट्रिकल और जब भुजायें बराबर न हों तो एसिमीट्रिकल कहे जाते हैं।

(ii) ट्रेंगिल (Triangle) - यह उपकरण अत्यन्त छोटा एवं त्रिकोणीय होता है। इसकी भुजाएँ ब्लन्टेड रहती हैं। ऊपरी कोण से बराबर भुजाओं वाले ट्रेंगिल का आइसोस्लीन (Isocelene) एवं छोटी-बड़ी भुजाओं वाले त्रिकोण को स्केलीन (Scalene) कहते हैं।

(iii) ट्रेपीज (Trapeze) - इसमें ऊपर या नीचे की भुजाएँ सामानान्तर होती हैं किन्तु निचली भुजा बड़ी एवं ऊपर की भुजा छोटी होती है। निचली बड़ी भुजा को छोड़कर अन्य सभी भुजाएँ ब्लन्टेड रहती हैं। यह उपकरण मध्यपाषाण कालीन विकसित संस्कृति का द्योतक है।

(V) नवपाषाण काल - यह काल सामाजिक उत्थान के क्षेत्र में क्रान्ति का काल समझा जाता है। इस काल में मानव समाज में अपना शिकारी एवं संग्राहक जीवन पर पूर्ण निर्भरता त्यागने लगा था एवं उसने एक निश्चित स्थान पर बसकर खेती, पशुपालन आदि कार्य आरम्भ कर दिया था। इसके उपकरणों में भी क्रांतिकारी परिवर्तन हुए। नवपाषाण काल में पूर्व प्रचलित उपकरणों के साथ ही अन्य नवीन उपकरण निर्माण की प्रक्रिया प्रारम्भ हुई। इन उपकरणों के निर्माण में भी हमें कई चरण देखने को मिलते हैं, जैसे फ्लेकिंग (Flaking), पेकिंग (Pecking), ग्राइंडिंग (Grinding ) एवं पॉलिशिंग (Polishing )। इन विधियों से उपकरण भली-भाँति चमकदार हो जाता था। इस काल के पाषाण उपकरणों में निम्नलिखित मुख्य हैं-

1. सेल्ट्स या एक्सेस (Celts or Axes) - यह उपकरण किसी लकड़ी अथवा डंडे में बाँधकर प्रयोग में लाया जाता था। इसके बट का हिस्सा संकरा एवं गोल तथा धार वाला, भारी एवं चौड़ा होता था। इसमें क्रॉस सेक्शन महत्वपूर्ण होता है।

2. चीजिल (Chisel) - ये आधुनिक रुखानी जैसा ही उपकरण है। ये पतला लम्बवत् या चौकोर व गोल उपकरण है जोकि आधे से दोनों सतह पर संकरा होते-होते धार का रूप धारण करता है।

3. एज (Adze) - यह आधुनिक रुख जैसा उपकरण है जो एक तरफ समतल एवं दूसरी सतह पर उभरा रहता है एवं एक तरफ मिलकर धार का निर्माण होता है। यह लुहार या बढ़ई से सम्बन्धित उपकरण है जिससे कि लकड़ी आदि को छिलकर चिकना बनाया जाता था। इसमें डंडे को इस प्रकार बाँधा या फंसाया जाता था कि धार का चौड़ा भाग डंडे के सामने रहे।

4. रिंग स्टोन ( Ring Stone) - यह एक पाषाण छिद्रित वृत है। इस वृत के मध्य में दोनों सतह से छिद्र किया जाता है जोकि आधा या एक इंच की परिधि होता है। यह वृत छिद्र की ओर पतला एवं बाहर की ओर मोटा होता है। इसे ग्राइंडिंग एवं पेंकिंग करके चिकना बनाया जाता है। कभी-कभी इन पर पॉलिश भी प्राप्त होती है।

5. सैंडल क्वेर्न (Sandle Quern) - यह आधुनिक सिल जैसा उपकरण है जो नीचे सपाट एवं ऊपर गोलाई लिए हुए रहता है। इसके अतिरिक्त Hammer stone एवं Fabricators भी इस संस्कृति के पाषाण उपकरणों के रूप में प्राप्त होते हैं।

6. अस्थि उपकरण - चिरांद से इस काल में अस्थि उपकरण भी प्राप्त हुए हैं। इन अस्थि उपकरणों में मुख्य सिंगल बार्ड (Single barbed ) एवं डबल बार्ड (Double barbed) arrow heads हैं। इसके अतिरिक्त इस काल में अस्थि सुई (needle) एवं मछली फंसाने का काँटा (Fish hook) भी प्राप्त हुये हैं।

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- पुरातत्व क्या है? इसकी विषय-वस्तु का निरूपण कीजिए।
  2. प्रश्न- पुरातत्व का मानविकी तथा अन्य विज्ञानों से सम्बन्ध स्पष्ट कीजिए।
  3. प्रश्न- पुरातत्व विज्ञान के स्वरूप या प्रकृति पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  4. प्रश्न- 'पुरातत्व के अभाव में इतिहास अपंग है। इस कथन को समझाइए।
  5. प्रश्न- इतिहास का पुरातत्व शस्त्र के साथ सम्बन्धों की विवेचना कीजिए।
  6. प्रश्न- भारत में पुरातत्व पर विस्तृत टिप्पणी लिखिए।
  7. प्रश्न- पुरातत्व सामग्री के क्षेत्रों का विश्लेषण अध्ययन कीजिये।
  8. प्रश्न- भारत के पुरातत्व के ह्रास होने के क्या कारण हैं?
  9. प्रश्न- प्राचीन इतिहास की संरचना में पुरातात्विक स्रोतों के महत्व का मूल्यांकन कीजिए।
  10. प्रश्न- प्राचीन भारतीय इतिहास की संरचना में पुरातत्व का महत्व बताइए।
  11. प्रश्न- प्राचीन भारतीय इतिहास के अध्ययन में अभिलेखों का क्या महत्व है?
  12. प्रश्न- स्तम्भ लेख के विषय में आप क्या जानते हैं?
  13. प्रश्न- स्मारकों से प्राचीन भारतीय इतिहास की क्या जानकारी प्रात होती है?
  14. प्रश्न- पुरातत्व के उद्देश्यों से अवगत कराइये।
  15. प्रश्न- पुरातत्व के विकास के विषय में बताइये।
  16. प्रश्न- पुरातात्विक विज्ञान के विषय में बताइये।
  17. प्रश्न- ऑगस्टस पिट, विलियम फ्लिंडर्स पेट्री व सर मोर्टिमर व्हीलर के विषय में बताइये।
  18. प्रश्न- उत्खनन के विभिन्न सिद्धान्तों तथा प्रकारों का उल्लेख कीजिए।
  19. प्रश्न- पुरातत्व में ऊर्ध्वाधर और क्षैतिज उत्खननों के महत्व का मूल्यांकन कीजिए।
  20. प्रश्न- डेटिंग मुख्य रूप से उत्खनन के बाद की जाती है, क्यों। कारणों का उल्लेख कीजिए।
  21. प्रश्न- डेटिंग (Dating) क्या है? विस्तृत रूप से बताइये।
  22. प्रश्न- कार्बन-14 की सीमाओं को बताइये।
  23. प्रश्न- उत्खनन व विश्लेषण (पुरातत्व के अंग) के विषय में बताइये।
  24. प्रश्न- रिमोट सेंसिंग, Lidar लेजर अल्टीमीटर के विषय में बताइये।
  25. प्रश्न- लम्बवत् और क्षैतिज उत्खनन में पारस्परिक सम्बन्धों को निरूपित कीजिए।
  26. प्रश्न- क्षैतिज उत्खनन के लाभों एवं हानियों पर प्रकाश डालिए।
  27. प्रश्न- पुरापाषाण कालीन संस्कृति का विस्तृत वर्णन कीजिए।
  28. प्रश्न- निम्न पुरापाषाण कालीन संस्कृति का विस्तृत विवेचन कीजिए।
  29. प्रश्न- उत्तर पुरापाषाण कालीन संस्कृति के विकास का वर्णन कीजिए।
  30. प्रश्न- भारत की मध्यपाषाणिक संस्कृति पर एक वृहद लेख लिखिए।
  31. प्रश्न- मध्यपाषाण काल की संस्कृति का महत्व पूर्ववर्ती संस्कृतियों से अधिक है? विस्तृत विवेचन कीजिए।
  32. प्रश्न- भारत में नवपाषाण कालीन संस्कृति के विस्तार का वर्णन कीजिये।
  33. प्रश्न- भारतीय पाषाणिक संस्कृति को कितने कालों में विभाजित किया गया है?
  34. प्रश्न- पुरापाषाण काल पर एक लघु लेख लिखिए।
  35. प्रश्न- पुरापाषाण कालीन मृद्भाण्डों पर टिप्पणी लिखिए।
  36. प्रश्न- पूर्व पाषाण काल के विषय में एक लघु लेख लिखिये।
  37. प्रश्न- पुरापाषाण कालीन शवाशेष पद्धति पर टिप्पणी लिखिए।
  38. प्रश्न- मध्यपाषाण काल से आप क्या समझते हैं?
  39. प्रश्न- मध्यपाषाण कालीन संस्कृति की प्रमुख विशेषताएँ बताइए।।
  40. प्रश्न- मध्यपाषाणकालीन संस्कृति का विस्तार या प्रसार क्षेत्र स्पष्ट कीजिए।
  41. प्रश्न- विन्ध्य क्षेत्र के मध्यपाषाणिक उपकरणों पर प्रकाश डालिए।
  42. प्रश्न- गंगा घाटी की मध्यपाषाण कालीन संस्कृति पर प्रकाश डालिए।
  43. प्रश्न- नवपाषाणिक संस्कृति पर टिप्पणी लिखिये।
  44. प्रश्न- विन्ध्य क्षेत्र की नवपाषाण कालीन संस्कृति पर संक्षेप में प्रकाश डालिए।
  45. प्रश्न- दक्षिण भारत की नवपाषाण कालीन संस्कृति के विषय में बताइए।
  46. प्रश्न- मध्य गंगा घाटी की नवपाषाण कालीन संस्कृति पर टिप्पणी लिखिए।
  47. प्रश्न- ताम्रपाषाणिक संस्कृति से आप क्या समझते हैं? भारत में इसके विस्तार का उल्लेख कीजिए।
  48. प्रश्न- जोर्वे-ताम्रपाषाणिक संस्कृति की विशेषताओं की विवेचना कीजिए।
  49. प्रश्न- मालवा की ताम्रपाषाणिक संस्कृति का विस्तार से वर्णन कीजिए।
  50. प्रश्न- ताम्रपाषाणिक संस्कृति पर टिप्पणी लिखिए।
  51. प्रश्न- आहार संस्कृति का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
  52. प्रश्न- मालवा की ताम्रपाषाणिक संस्कृति पर प्रकाश डालिए।
  53. प्रश्न- जोर्वे संस्कृति की विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
  54. प्रश्न- ताम्रपाषाणिक संस्कृति के औजार क्या थे?
  55. प्रश्न- ताम्रपाषाणिक संस्कृति के महत्व पर प्रकाश डालिए।
  56. प्रश्न- सिन्धु सभ्यता / हड़प्पा सभ्यता के नामकरण और उसके भौगोलिक विस्तार की विवेचना कीजिए।
  57. प्रश्न- सिन्धु सभ्यता की नगर योजना का विस्तृत वर्णन कीजिए।
  58. प्रश्न- हड़प्पा सभ्यता के नगरों के नगर- विन्यास पर विस्तृत टिप्पणी लिखिए।
  59. प्रश्न- सिन्धु घाटी के लोगों की शारीरिक विशेषताओं का संक्षिप्त मूल्यांकन कीजिए।
  60. प्रश्न- पाषाण प्रौद्योगिकी पर टिप्पणी लिखिए।
  61. प्रश्न- सिन्धु सभ्यता के सामाजिक संगठन पर टिप्पणी कीजिए।
  62. प्रश्न- सिंधु सभ्यता के कला और धर्म पर टिप्पणी कीजिए।
  63. प्रश्न- सिंधु सभ्यता के व्यापार का संक्षेप में उल्लेख कीजिए।
  64. प्रश्न- सिंधु सभ्यता की लिपि पर संक्षेप में प्रकाश डालिए।
  65. प्रश्न- सिन्धु सभ्यता के पतन के कारणों पर प्रकाश डालिए।
  66. प्रश्न- लौह उत्पत्ति के सम्बन्ध में पुरैतिहासिक व ऐतिहासिक काल के विचारों से अवगत कराइये?
  67. प्रश्न- लोहे की उत्पत्ति (भारत में) के विषय में विभिन्न चर्चाओं से अवगत कराइये।
  68. प्रश्न- "ताम्र की अपेक्षा, लोहे की महत्ता उसकी कठोरता न होकर उसकी प्रचुरता में है" कथन को समझाइये।
  69. प्रश्न- महापाषाण संस्कृति के विषय में आप क्या जानते हैं? स्पष्ट कीजिए।
  70. प्रश्न- लौह युग की भारत में प्राचीनता से अवगत कराइये।
  71. प्रश्न- बलूचिस्तान में लौह की उत्पत्ति से सम्बन्धित मतों से अवगत कराइये?
  72. प्रश्न- भारत में लौह-प्रयोक्ता संस्कृति पर टिप्पणी लिखिए।
  73. प्रश्न- प्राचीन मृद्भाण्ड परम्परा से आप क्या समझते हैं? गैरिक मृद्भाण्ड (OCP) संस्कृति का विस्तृत विवेचन कीजिए।
  74. प्रश्न- चित्रित धूसर मृद्भाण्ड (PGW) के विषय में विस्तार से समझाइए।
  75. प्रश्न- उत्तरी काले चमकदार मृद्भाण्ड (NBPW) के विषय में संक्षेप में बताइए।
  76. प्रश्न- एन. बी. पी. मृद्भाण्ड संस्कृति का कालानुक्रम बताइए।
  77. प्रश्न- मालवा की मृद्भाण्ड परम्परा के विषय में बताइए।
  78. प्रश्न- पी. जी. डब्ल्यू. मृद्भाण्ड के विषय में एक लघु लेख लिखिये।
  79. प्रश्न- प्राचीन भारत में प्रयुक्त लिपियों के प्रकार तथा नाम बताइए।
  80. प्रश्न- मौर्यकालीन ब्राह्मी लिपि पर प्रकाश डालिए।
  81. प्रश्न- प्राचीन भारत की प्रमुख खरोष्ठी तथा ब्राह्मी लिपियों पर प्रकाश डालिए।
  82. प्रश्न- अक्षरों की पृष्ठभूमि पर प्रकाश डालिए।
  83. प्रश्न- अशोक के अभिलेख की लिपि बताइए।
  84. प्रश्न- प्राचीन भारतीय इतिहास की संरचना में अभिलेखों के महत्व का उल्लेख कीजिए।
  85. प्रश्न- अभिलेख किसे कहते हैं? और प्रालेख से किस प्रकार भिन्न हैं?
  86. प्रश्न- प्राचीन भारतीय अभिलेखों से सामाजिक जीवन पर क्या प्रकाश पड़ता है?
  87. प्रश्न- अशोक के स्तम्भ लेखों के विषय में बताइये।
  88. प्रश्न- अशोक के रूमेन्देई स्तम्भ लेख का सार बताइए।
  89. प्रश्न- अभिलेख के प्रकार बताइए।
  90. प्रश्न- समुद्रगुप्त की प्रयाग प्रशस्ति के विषय में बताइए।
  91. प्रश्न- जूनागढ़ अभिलेख से किस राजा के विषय में जानकारी मिलती है उसके विषय में आप सूक्ष्म में बताइए।
  92. प्रश्न- मुद्रा बनाने की रीतियों का उल्लेख करते हुए उनकी वैज्ञानिकता को सिद्ध कीजिए।
  93. प्रश्न- भारत में मुद्रा की प्राचीनता पर प्रकाश डालिए।
  94. प्रश्न- प्राचीन भारत में मुद्रा निर्माण की साँचा विधि का वर्णन कीजिए।
  95. प्रश्न- मुद्रा निर्माण की ठप्पा विधि का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
  96. प्रश्न- आहत मुद्राओं (पंचमार्क सिक्कों) की मुख्य विशेषताओं एवं तिथिक्रम का वर्णन कीजिए।
  97. प्रश्न- मौर्यकालीन सिक्कों की विस्तृत जानकारी प्रस्तुत कीजिए।
  98. प्रश्न- आहत मुद्राओं (पंचमार्क सिक्के) से आप क्या समझते हैं?
  99. प्रश्न- आहत सिक्कों के प्रकार बताइये।
  100. प्रश्न- पंचमार्क सिक्कों का महत्व बताइए।
  101. प्रश्न- कुषाणकालीन सिक्कों के इतिहास का विस्तृत विवेचन कीजिए।
  102. प्रश्न- भारतीय यूनानी सिक्कों की प्रमुख विशेषताएँ बताइए।
  103. प्रश्न- कुषाण कालीन सिक्कों के उद्भव एवं प्राचीनता को संक्षेप में बताइए।
  104. प्रश्न- गुप्तकालीन सिक्कों का परिचय दीजिए।
  105. प्रश्न- गुप्तकालीन ताम्र सिक्कों पर टिप्पणी लिखिए।
  106. प्रश्न- उत्तर गुप्तकालीन मुद्रा का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  107. प्रश्न- समुद्रगुप्त के स्वर्ण सिक्कों पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  108. प्रश्न- गुप्त सिक्कों की बनावट पर टिप्पणी लिखिए।
  109. प्रश्न- गुप्तकालीन सिक्कों का ऐतिहासिक महत्व बताइए।
  110. प्रश्न- इतिहास के अध्ययन हेतु अभिलेख अत्यधिक महत्वपूर्ण हैं। विवेचना कीजिए।
  111. प्रश्न- प्राचीन भारतीय इतिहास के अध्ययन में सिक्कों के महत्व की विवेचना कीजिए।
  112. प्रश्न- प्राचीन सिक्कों से शासकों की धार्मिक अभिरुचियों का ज्ञान किस प्रकार प्राप्त होता है?
  113. प्रश्न- हड़प्पा की मुद्राओं के महत्व का मूल्यांकन कीजिए।
  114. प्रश्न- प्राचीन भारतीय इतिहास के अध्ययन में अभिलेखों का क्या महत्व है?
  115. प्रश्न- प्राचीन भारतीय इतिहास के स्रोत के रूप में सिक्कों का महत्व बताइए।

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