बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 मनोविज्ञान बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 मनोविज्ञानसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 मनोविज्ञान - सरल प्रश्नोत्तर
प्रश्न- मानव विकास के सम्बन्ध में प्रतिनिध्यात्मक उपागम का विस्तार से वर्णन कीजिए।
सम्बन्धित लघु उत्तरीय प्रश्न
1. प्रतिनिध्यात्मक उपागम से आप क्या समझते हैं।
2. प्रतिनिध्यात्मक विधि से आप क्या समझते है?
3. प्रतिनिध्यात्मकं उपागम की उपयोगिता का वर्णन कीजिए।
4.प्रतिनिध्यात्मक उपागम की सीमाओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर -
(Cross-Sectional Approach
of Human Development)
प्रतिनिध्यात्मक उपागम (cross-sectional approach) के अन्तर्गत विभिन्न अवस्थाओं के बालकों के बड़े-बड़े समूहों का प्रायः एक ही समय निरीक्षण किया जाता है और प्राप्त परिणामों के औसत मान की उस अवस्था का प्रतिमान या नॉर्म (Norm) समझा जाता है। उदाहरणार्थ, यदि हमें जानना हो कि विभिन्न अवस्थाओं के बालकों को कितने शब्दों की जानकारी होती है तो इसके लिए हम चार, छः, आठ, दस एवं बारह वर्ष के बालकों के अलग-अलग समूह लेकर प्रत्येक अवस्था के बालकों में पाये जाने वाले शब्द भण्डार का पता लगाते हैं। प्रत्येक समूह के बालकों द्वारा प्राप्त अंकों का औसत उस आयु वर्ग के बालकों के लिए मानक (Norm) माना जाता है।
प्रतिनिध्यात्मक उपागम को समकालीन उपागम के नाम से भी जाना जाता है। इस उपागम द्वारा विकास की प्रक्रिया का अध्ययन करने के लिए विभिन्न आयु या स्तरों के बालकों का चयन किया जाता है तथा उनमें हुए विकासों का तुलनात्मक अध्ययन किया जाता है। इस उपागम को परिभाषित करते हुए-
जुबेक एवं सालबर्ग (Zubek and Solberg, 1954) ने लिखा है - "सर्वेक्षण के समय विभिन्न आयु समूहों का प्रतिनिधित्व करने वाले व्यक्तियों के समूह से प्रदत्त प्राप्त करना प्रतिनिधित्यात्मक उपागम कहा जाता है।'
"Cross Sectional studies gather from group of individuals who represent the different age group at the time of each survey in made." -Jubek and Solberg (1954)
हरलॉक (Hurlock, 1975) के अनुसार - "विकासात्मक प्रक्रिया पर जितने अध्ययन हुए हैं उनमें अधिकांश प्रतिनिध्यात्मक उपागम के आधार पर किये गये हैं। जब विकास की विभिन्न अवस्थाओं में किसी निश्चित योग्यता का मापन किया जाता है तो उसे प्रतिनिध्यात्मक अध्ययन कहते हैं ।'
केली (Kelley, 1955) ने - अपने अध्ययनों के आधार पर प्रतिनिध्यात्मक उपागम के विकास में लिखा है कि, "प्रतिनिध्यात्मक उपागम के द्वारा विभिन्न आयु समूहों (Age groups ) के लिए प्राप्त प्रदत्त अत्यधिक उत्साहवर्धक (Provocative) होते हैं। परन्तु दुर्भाग्य से इन प्रदत्तों द्वारा विकासात्मक विशेषताओं (Developmental trends ) या अन्तः वैयक्तिक विचरणशीलता. (Intra-individual variability) के बारे में ठोस निर्णय नहीं लिये जा सकते हैं ।'
इसके कारणों की व्याख्या करते हुए बाटविनिक (Botwinick, 1977) ने कहा है कि ऐसा इसलिए होता है, क्योंकि प्रतिनिध्यात्मक उपागम के द्वारा विकास के लिए निश्चित बिन्दु या अवस्था ( specific point of development ) के बारे में ही सूचना प्राप्त होती है, विकास की सम्पूर्ण प्रक्रिया की जानकारी नहीं प्राप्त होती है। इस उपागम की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इसमें थोड़े समय में ही विभिन्न बाल समूहों का अध्ययन किया जा सकता है इसलिए उसे अगली अवस्था की प्रतीक्षा करने की आवश्यकता नहीं होती है अतः कम समय, धन एवं श्रम का उपयोग करके अभीष्ट परिणाम प्राप्त किये जा सकते हैं। इसके अतिरिक्त इस उपागम के द्वारा बड़े-बड़े बाल समूहों का अध्ययन एक साथ करके अल्प समय में ही प्रत्येक अवस्था के लिए विकासात्मक प्रतिमानों (Developmental Norms) की स्थापना की जा सकती है।
(Utility of Cross-Sectional Approach)
प्रतिनिध्यात्मक उपागम की उपयोगितायें निम्नलिखित हैं-
1. इस उपागम के द्वारा कम समय में अधिक से अधिक व्यक्तियों का अध्ययन किया जा सकता है।
2. इस उपागम के द्वारा अध्ययन करने पर प्रदत्तों के संग्रह में कम धन खर्च होता है।
3. इस उपागम के द्वारा विकासात्मक प्रक्रिया का एक निश्चित समय में विभिन्न वर्गों को लेकर तुलनात्मक अध्ययन किया जा सकता है ।
4. इस उपागम के द्वारा प्रक्रिया (Growth Process) के बारे में महत्वपूर्ण सूचना प्राप्त होती है । -एण्डरसन (Anderson, 1954) ।
5. इस उपागम द्वारा प्राप्त प्रदत्तों के आधार पर मानक (Norms) निर्मित करके अन्य लोगों की क्षमताओं एवं कार्यो की तुलना की जा सकती है।
6. प्रतिनिध्यात्मक उपागम के द्वारा अध्ययन करने पर एक समरूपी प्रतिदर्श प्राप्त हो जाता है, जिसके कारण अध्ययन अवधि में सभी प्रयोज्य प्रारम्भ से अन्त तक अध्ययन के लिए उपलब्ध रहते हैं, उनमें कोई परिवर्तन नहीं होता है।
7. इस उपागम की सबसे बड़ी उपयोगिता यह है कि यदि क्रमिक आयु वर्गों (Successive ages) के प्रतिदर्शों पर प्रदत्त प्राप्त हो जाते हैं तो अन्य बालकों के विकासात्मक प्रतिमानों की तुलना के लिये मापनी (scale) तैयार की जा सकती है। इस प्रकार किसी भी बालक की क्षमता की तुलना उसके समान स्तर (Equal level), उच्च स्तर (Higher level) तथा निम्न स्तर (Lower level) बालकों से करके मात्रात्मक परिणाम प्राप्त किये जा सकते हैं।
8. इस उपागम के सम्बन्ध में टर्मन एवं मेरिल का विचार है कि उपयुक्त प्रतिदर्श (Adequate Sample) प्राप्त हो जाने से बालकों के विकास के मूल्यांकन एवं निर्देशन के लिए महत्वपूर्ण मापनियाँ बनायी जा सकती हैं।
(Limitations of Cross Sectional Approach)
प्रतिनिध्यात्मक उपागम की सीमायें निम्नलिखित हैं-
1. प्रतिनिध्यात्मक उपागम द्वारा विकास के एक निश्चित बिन्दु (Specific point of development ) के बारे में ही जानकारी मिलती है न कि सम्पूर्ण विकास के बारे में। -केली (Kelly 1955)
2. हरलॉक (Hurlock, 1975) के अनुसार - विकास की अन्तः वैयक्तिक विचरणशीलता ( Intra individual variability of development) तथा विकासात्मक प्रतिमानों या विशेषताओं ( Developmental trends ) के बारे में इस विधि से कोई ठोस निर्णय नहीं लिये जा सकते हैं।
3. विभिन्न आयु स्तरों के अध्ययन के लिए पूर्णतया समतुल्य प्रतिदर्शों का मिलना कठिन है। -होता ओवेन्स (Owens, 1953)
4. हरलॉक (Hurlock, 1974) तथा एण्डरसन (Auderson, 1956) का विचार हैं कि प्रतिदर्शों का सांस्कृतिक परिवेश (Cultural Context ) असमान होता है। इस असमानता का शारीरिक एवं मानसिक विकास पर प्रभाव पड़ता है। इस उपागम में सांस्कृतिक असमानता को नियंत्रित करना कठिन है और इसे नियंत्रित किये बिना विश्वसनीय परिणाम प्राप्त नहीं किये जा सकते हैं।
5. इस उपागम के द्वारा बालकों की क्षमताओं एवं उपलब्धियों के संचयी विवरण (Cumulative records) प्राप्त करना सम्भव नहीं है।
6. इस उपागम के द्वारा दो बालकों के मध्य समानता एवं भिन्नता का अध्ययन सम्भव नहीं है।
7. इस उपागम द्वारा न तो बालक के विकास की गति ( rate of development) की जानकारी मिलती है और न ही उसके विकास की पूरी तस्वीर ही उभर कर सामने आ पाती है।
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- प्रश्न- मानव विकास को परिभाषित करते हुए इसकी ऐतिहासिक पृष्ठभूमि पर प्रकाश डालिए।
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- प्रश्न- वृद्धावस्था में रचनात्मक समायोजन पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- अन्तर पीढी सम्बन्धों में तनाव के कारण बताओ।