बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 मनोविज्ञान बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 मनोविज्ञानसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 मनोविज्ञान - सरल प्रश्नोत्तर
प्रश्न- मानव विकास के सम्बन्ध में अनुदैर्ध्य उपागम का वर्णन कीजिए तथा इसकी उपयोगिता व सीमायें बताइये।
अथवा
विकास के अध्ययन के अनुदैर्ध्य विधि से आप क्या समझते हैं ? उदाहरण सहित स्पष्ट कीजिए।
सम्बन्धित लघु उत्तरीय प्रश्न
1. दीर्घकालीन उपागम।
2. अनुदैर्ध्य उपागम की सीमाओं पर टिप्पणी लिखिये।
उत्तर -
(Longitudinal Approach of Human Development)
अनुदैर्ध्य उपागम के अन्तर्गत एक ही बालक का अलग-अलग आयु स्तरों पर कई बार अध्ययन किया जाता है। इस उपागम का मत है कि किसी बालक के विकास की गति एवं दिशा को जानने के लिए उसका दीर्घकाल तक निरीक्षण आवश्यक है। उदाहरण के लिए, यदि हमारा उद्देश्य किसी विशिष्ट बालक की ऊँचाई, भार, वृद्धि, शब्द भण्डार, सामाजिक परिपक्वता, संवेगात्मक नियंत्रण अथवा मनोवृत्तियों का विस्तारपूर्वक वर्णन करना हो तो हम उस बालक का क्रमशः दो, चार, छः आठ, दस एवं बारह वर्ष की अवस्थाओं में निरीक्षण करेंगे तथा यह देखेंगे कि उपर्युक्त क्षमताएँ उक्त विभिन्न आयु स्तरों पर कितनी घटती या बढ़ती हैं। इस प्रकार स्पष्ट है कि हम अनुदैर्ध्य उपागम में एक ही बालक को विकास की विभिन्न अवस्थाओं से गुजरता हुआ देखते हैं और उस बालक के सम्पूर्ण विकास की गतिविधि से परिचित हो जाते हैं। विकास अध्ययन के अनुदैर्ध्य उपागम का उपयोग बाल चरित्रलेख (baby biographies) के लिए किया जाता है। आधुनिक विद्यालयों में बालक के चरित्र एवं उपलब्धियों के जो संचयी अभिलेख (cumulative records) तैयार किये जाते हैं, उनमें इसी उपागम का प्रयोग किया जाता है।
इस विधि को वर्तमान स्वरूप देने का श्रेय फेल्स (Fels, 1929) को है । बेले (Bayley, 1966), कार्टसन (Cartsen, 1965), मक्सले (Meksely, 1959), सोनटैग एवं कागन (Sontag and Kagan, 1962) आदि मनोवैज्ञानिकों ने भी इस विधि को अत्यन्त उपयोगी एवं महत्वपूर्ण विधि माना है तथा अपने विभिन्न अध्ययनों में इसका प्रयोग किया है। इस उपागम में विभिन्न आयु स्तरों (Age level) को लेकर अध्ययन नहीं किया जाता है बल्कि व्यक्ति के विकास का अध्ययन क्रमिक वर्षों (Successive years) में किया जाता है। अनुदैर्ध्य उपागम को परिभाषित करते हुए जुबेक एवं सालबर्ग (1954) ने लिखा है कि "अनुदैर्ध्य उपागम में निश्चित प्रयोज्यों के विकासों (प्रगतियों) का अध्ययन, जिस तरह वे उत्पन्न होते हैं, वर्ष-दर-वर्ष किया जाता है। यही कारण है कि इससे विकास की पूरी तस्वीर प्राप्त होती है ।'
हरलॉक (Hurlock, 1975) ने इसे परिभाषित करते हुए लिखा है कि - "अनुदैर्ध्य उपागम में किसी निश्चित व्यक्ति या प्रतिदर्श का विकासात्मक अध्ययन निश्चित रूप से लम्बी अवधि तक किया जाता है जिसमें यह देखा जाता है कि व्यक्तित्व प्रतिमान किस प्रकार स्थिर हैं, कब और कैसे परिवर्तित होते हैं तथा परिवर्तनों के लिए क्या घटक उत्तरदायी हैं।'
"Under Longitudinal approach, the same individual or sample would be studied preferably birth to death, but certainly for a long enough period to see just how persistent the personality pattern is, when changes and what is responsible for the changes.
उपरोक्त विवेचनाओं के आधार पर यह है कि अनुदैर्ध्य उपागम द्वारा विकासात्मक प्रक्रियाओं के बारे में अधिक विस्तृत एवं विश्वसनीय सूचनायें प्राप्त होती हैं। इस उपागम की महत्वपूर्ण विशेषता यह है कि इसके द्वारा विकास की प्रत्येक अवस्था के प्रत्येक पहलू का अध्ययन किया जा सकता है। आधुनिक युग में लघुकालिक अध्ययनों के भी अनुदैर्ध्य अध्ययनों का प्रयोग किया जा रहा है।
(Utility of Longitudinal Approach)
अनुदैर्ध्य उपागम की उपयोगिता निम्नलिखित हैं-
1. अनुदैर्ध्य उपागम द्वारा विकास की वास्तविक तस्वीर प्राप्त होती हैं।
2. इस उपागम द्वारा प्रत्येक व्यक्ति के विकास एवं वृद्धि का सही विश्लेषण किया जा सकता
3. उसके द्वारा व्यक्ति एवं समूह दोनों की विकास की गति का अध्ययन किया जा सकता है ।
4. इस उपागम द्वारा यह पता लगाया जा सकता है कि विकासात्मक परिवर्तन कैसे और क्यों उत्पन्न हो रहे हैं अर्थात् विकास के निर्धारकों एवं विकास में सम्बन्ध स्थापित किया जा सकता है।
5. अनुदैर्ध्य उपागम द्वारा विकासात्मक प्रतिमानों, अन्तः वैयक्तिक विचरणशीलता तथा अन्तवैयक्तिक विचरणशीलता का भी अध्ययन किया जा सकता है।
6. अनुदैर्ध्य उपागम के द्वारा व्यक्तित्व के परिवर्तनशील प्रतिमानों के अतिरिक्त स्थिर प्रतिमानों की भी जानकारी मिलती है।
7. अनुदैर्ध्य उपागम द्वारा प्रत्येक बालक का व्यक्तिगत स्तर पर अध्ययन करना सम्भव है ।
8. अनुदैर्ध्य उपागम द्वारा किसी बालक के शारीरिक एवं मानसिक विकास का संचयी विवरण (cumulative period) ज्ञात किया जा सकता है।
9. अनुदैर्ध्य उपागम द्वारा किसी निश्चित अवधि में हुए विकास की मात्रा एक गुण की जानकारी प्राप्त की जा सकती है।
10. इस विधि के द्वारा बालक की स्नायुविक परिपक्वता (neural maturation ) तथा उसकी मानसिक क्षमताओं के बीच सम्बन्ध का पता चलता है।
11. इस उपागम की सहायता से इस बात का अध्ययन किया जा सकता है कि किसी सामाजिक-सांस्कृतिक परिवेश में घटित होने वाले परिवर्तनों का बालक के व्यवहार एवं व्यक्तित्व पर क्या प्रभाव पडता है।
(Limitations of Longitudinal Approach)
अनुदैर्ध्य उपागम की सीमायें निम्नलिखित हैं-
1. चूँकि अनुदैर्ध्य उपागम में अध्ययन दीर्घकाल तक किया जाता है अतः इसमें समय अधिक लगता है। -(जुबेक एवं सालबर्ग, Jubek & Solberg, 1954).
2. चूँकि इस विधि के द्वारा प्रत्येक व्यक्ति का अध्ययन अलग-अलग किया जाता है अतः यह खर्चीली विधि है
3. चूँकि इसमें जिस प्रयोज्य या प्रतिदर्श का चयन किया जाता है उसी पर दीर्घकाल तक अध्ययन चलता रहता है, ऐसी अवस्था में समूह में परिवर्तन हो सकता है। उदाहरणार्थ, कुछ सदस्य अन्य अवसरों पर अध्ययन के लिए उपलब्ध नहीं हो सकते हैं, इस कारण प्रतिदर्श का स्वरूप बदल जाता है। ऐसा होने पर परिणामों की विश्वसनीयता कम हो सकती है। -हेथरिंगटन एवं पार्क, (Hetherington and Parke, 1975)
4. एण्डरसन एवं कोहेन (Aderson and Cohen, 1933 ) का मत है कि यदि बाद के परीक्षणों के लिए प्रतिदर्श के कुछ सदस्य उपलब्ध नहीं हैं तो प्राप्त परिणाम दूषित (Distort) हो सकते हैं।
5. लम्बे समय तक एक ही बालक का बार-बार अध्ययन किये जाने के कारण प्रायः अधिकांश बालक अध्ययन में पूरा सहयोग नहीं दे पाते हैं और उन्हें अध्ययन के प्रति अरुचि हो जाती है।
6. बालक के माता-पिता के स्थानान्तरण होने या बालक के बीमार पड़ने पर अध्ययन सम्भव नहीं हो पाता जिसके परिणामस्वरूप परिणाम दूषित हो जाते हैं।
7. अनुदैर्ध्य उपागम के द्वारा केवल गुणात्मक प्रदत्त (qualitative data) ही प्राप्त होते हैं. जिसके परिणामस्वरूप इसके द्वारा बालक के विकास की गुणात्मक व्याख्या ही सम्भव है।
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- प्रश्न- मानव विकास को परिभाषित करते हुए इसकी ऐतिहासिक पृष्ठभूमि पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- विकास सम्प्रत्यय की व्याख्या कीजिए तथा इसके मुख्य नियमों को समझाइए।
- प्रश्न- मानव विकास के सम्बन्ध में अनुदैर्ध्य उपागम का वर्णन कीजिए तथा इसकी उपयोगिता व सीमायें बताइये।
- प्रश्न- मानव विकास के सम्बन्ध में प्रतिनिध्यात्मक उपागम का विस्तार से वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- मानव विकास के सम्बन्ध में निरीक्षण विधि का विस्तार से वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- व्यक्तित्व इतिहास विधि के गुण व सीमाओं को लिखिए।
- प्रश्न- मानव विकास में मनोविज्ञान की भूमिका की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- मानव विकास क्या है?
- प्रश्न- मानव विकास की विभिन्न अवस्थाएँ बताइये।
- प्रश्न- मानव विकास को प्रभावित करने वाले तत्वों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- मानव विकास के अध्ययन की व्यक्ति इतिहास विधि का वर्णन कीजिए
- प्रश्न- विकासात्मक अध्ययनों में वैयक्तिक अध्ययन विधि के महत्व पर प्रकाश डालिए?
- प्रश्न- चरित्र-लेखन विधि (Biographic method) पर प्रकाश डालिए ।
- प्रश्न- मानव विकास के सम्बन्ध में सीक्वेंशियल उपागम की व्याख्या कीजिए ।
- प्रश्न- प्रारम्भिक बाल्यावस्था के विकासात्मक संकृत्य पर टिप्पणी लिखिये।
- प्रश्न- गर्भकालीन विकास की विभिन्न अवस्थाएँ कौन-सी है ? समझाइए ।
- प्रश्न- गर्भकालीन विकास को प्रभावित करने वाले विभिन्न कारक कौन-से है। विस्तार में समझाइए।
- प्रश्न- नवजात शिशु अथवा 'नियोनेट' की संवेदनशीलता का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- क्रियात्मक विकास से आप क्या समझते है ? क्रियात्मक विकास का महत्व बताइये ।
- प्रश्न- क्रियात्मक विकास की विशेषताओं पर टिप्पणी कीजिए।
- प्रश्न- क्रियात्मक विकास का अर्थ एवं बालक के जीवन में इसका महत्व बताइये ।
- प्रश्न- संक्षेप में बताइये क्रियात्मक विकास का जीवन में क्या महत्व है ?
- प्रश्न- क्रियात्मक विकास को प्रभावित करने वाले तत्व कौन-कौन से है ?
- प्रश्न- क्रियात्मक विकास को परिभाषित कीजिए।
- प्रश्न- प्रसवपूर्व देखभाल के क्या उद्देश्य हैं ?
- प्रश्न- प्रसवपूर्व विकास क्यों महत्वपूर्ण है ?
- प्रश्न- प्रसवपूर्व विकास को प्रभावित करने वाले कारक कौन से हैं ?
- प्रश्न- प्रसवपूर्व देखभाल की कमी का क्या कारण हो सकता है ?
- प्रश्न- प्रसवपूर्ण देखभाल बच्चे के पूर्ण अवधि तक पहुँचने के परिणाम को कैसे प्रभावित करती है ?
- प्रश्न- प्रसवपूर्ण जाँच के क्या लाभ हैं ?
- प्रश्न- विकास को प्रभावित करने वाले कारक कौन-कौन हैं ?
- प्रश्न- नवजात शिशु की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन करो।
- प्रश्न- शैशवावस्था में (0 से 2 वर्ष तक) शारीरिक विकास एवं क्रियात्मक विकास के मध्य अन्तर्सम्बन्धों की चर्चा कीजिए।
- प्रश्न- नवजात शिशु की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- शैशवावस्था में बालक में सामाजिक विकास किस प्रकार होता है?
- प्रश्न- शिशु के भाषा विकास की विभिन्न अवस्थाओं की संक्षिप्त व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- शैशवावस्था क्या है?
- प्रश्न- शैशवावस्था में संवेगात्मक विकास क्या है?
- प्रश्न- शैशवावस्था की विशेषताएँ क्या हैं?
- प्रश्न- शिशुकाल में शारीरिक विकास किस प्रकार होता है?
- प्रश्न- शैशवावस्था में सामाजिक विकास पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखो।
- प्रश्न- सामाजिक विकास से आप क्या समझते है ?
- प्रश्न- सामाजिक विकास की अवस्थाएँ कौन-कौन सी हैं ?
- प्रश्न- संवेग क्या है? बालकों के संवेगों का महत्व बताइये ।
- प्रश्न- बालकों के संवेगों की विशेषताएँ बताइये।
- प्रश्न- बालकों के संवेगात्मक व्यवहार को प्रभावित करने वाले कारक कौन-से हैं? समझाइये |
- प्रश्न- संवेगात्मक विकास को समझाइए ।
- प्रश्न- बाल्यावस्था के कुछ प्रमुख संवेगों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- बालकों के जीवन में नैतिक विकास का महत्व क्या है? समझाइये |
- प्रश्न- नैतिक विकास को प्रभावित करने वाले विभिन्न कारक कौन-से हैं? विस्तार पूर्वक समझाइये?
- प्रश्न- संज्ञानात्मक विकास की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- संज्ञानात्मक विकास क्या है? बाल्यावस्था में संज्ञानात्मक विकास किस प्रकार होता है?
- प्रश्न- बाल्यावस्था क्या है?
- प्रश्न- बाल्यावस्था की विशेषताएं बताइयें ।
- प्रश्न- बाल्यकाल में शारीरिक विकास किस प्रकार होता है?
- प्रश्न- सामाजिक विकास की विशेषताएँ बताइये।
- प्रश्न- संवेगात्मक विकास क्या है?
- प्रश्न- संवेग की क्या विशेषताएँ होती है?
- प्रश्न- बाल्यावस्था में संवेगात्मक विकास की विशेषताएँ क्या है?
- प्रश्न- कोहलबर्ग के नैतिक सिद्धान्त की आलोचना कीजिये।
- प्रश्न- पूर्व बाल्यावस्था में बच्चे अपने क्रोध का प्रदर्शन किस प्रकार करते हैं?
- प्रश्न- बालक के संज्ञानात्मक विकास से आप क्या समझते हैं?
- प्रश्न- संज्ञानात्मक विकास की विशेषताएँ क्या हैं?
- प्रश्न- किशोरावस्था की परिभाषा देते हुये उसकी अवस्थाएँ लिखिए।
- प्रश्न- किशोरावस्था में यौन शिक्षा पर एक निबन्ध लिखिये।
- प्रश्न- किशोरावस्था की प्रमुख समस्याओं पर प्रकाश डालिये।
- प्रश्न- संज्ञानात्मक विकास से आप क्या समझते हैं? किशोरावस्था में संज्ञानात्मक विकास किस प्रकार होता है एवं किशोरावस्था में संज्ञानात्मक विकास को प्रभावित करने वाले विभिन्न कारकों का उल्लेख कीजिए?
- प्रश्न- किशोरावस्था में संवेगात्मक विकास का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- नैतिक विकास से आप क्या समझते हैं? किशोरावस्था के दौरान नैतिक विकास की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- किशोरवस्था में पहचान विकास से आप क्या समझते हैं?
- प्रश्न- किशोरावस्था को तनाव या तूफान की अवस्था क्यों कहा गया है?
- प्रश्न- अनुशासन युवाओं के लिए क्यों आवश्यक होता है?
- प्रश्न- किशोरावस्था से क्या आशय है?
- प्रश्न- किशोरावस्था में परिवर्तन से सम्बन्धित सिद्धान्त कौन-से हैं?
- प्रश्न- किशोरावस्था की प्रमुख सामाजिक समस्याएँ लिखिए।
- प्रश्न- आत्म विकास में भूमिका अर्जन की क्या भूमिका है?
- प्रश्न- स्व-विकास की कोई दो विधियाँ लिखिए।
- प्रश्न- किशोरावस्था में पहचान विकास क्या हैं?
- प्रश्न- किशोरावस्था पहचान विकास के लिए एक महत्वपूर्ण समय क्यों है ?
- प्रश्न- पहचान विकास इतना महत्वपूर्ण क्यों है?
- प्रश्न- एक किशोर के लिए संज्ञानात्मक विकास का क्या महत्व है?
- प्रश्न- प्रौढ़ावस्था से आप क्या समझते हैं? प्रौढ़ावस्था में विकासात्मक कार्यों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- वैवाहिक समायोजन से क्या तात्पर्य है ? विवाह के पश्चात् स्त्री एवं पुरुष को कौन-कौन से मुख्य समायोजन करने पड़ते हैं ?
- प्रश्न- एक वयस्क के कैरियर उपलब्धि की प्रक्रिया और इसमें शामिल विभिन्न समायोजन को किस प्रकार व्याख्यायित किया जा सकता है?
- प्रश्न- जीवन शैली क्या है? एक वयस्क की जीवन शैली की विविधताओं का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- 'अभिभावकत्व' से क्या आशय है?
- प्रश्न- अन्तरपीढ़ी सम्बन्ध क्या है?
- प्रश्न- विविधता क्या है ?
- प्रश्न- स्वास्थ्य मनोविज्ञान में जीवन शैली क्या है?
- प्रश्न- लाइफस्टाइल साइकोलॉजी क्या है ?
- प्रश्न- कैरियर नियोजन से आप क्या समझते हैं?
- प्रश्न- युवावस्था का मतलब क्या है?
- प्रश्न- कैरियर विकास से क्या ताप्पर्य है ?
- प्रश्न- मध्यावस्था से आपका क्या अभिप्राय है ? इसकी विभिन्न विशेषताएँ बताइए।
- प्रश्न- रजोनिवृत्ति क्या है ? इसका स्वास्थ्य पर प्रभाव एवं बीमारियों के संबंध में व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- मध्य वयस्कता के दौरान होने बाले संज्ञानात्मक विकास को किस प्रकार परिभाषित करेंगे?
- प्रश्न- मध्यावस्था से क्या तात्पर्य है ? मध्यावस्था में व्यवसायिक समायोजन को प्रभावित करने वाले कारकों पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- मिडलाइफ क्राइसिस क्या है ? इसके विभिन्न लक्षणों की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- उत्तर वयस्कावस्था में स्वास्थ्य पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- स्वास्थ्य के सामान्य नियम बताइये ।
- प्रश्न- मध्य वयस्कता के कारक क्या हैं ?
- प्रश्न- मध्य वयस्कता के दौरान कौन-सा संज्ञानात्मक विकास होता है ?
- प्रश्न- मध्य वयस्कता में किस भाव का सबसे अधिक ह्रास होता है ?
- प्रश्न- मध्यवयस्कता में व्यक्ति की बुद्धि का क्या होता है?
- प्रश्न- मध्य प्रौढ़ावस्था को आप किस प्रकार से परिभाषित करेंगे?
- प्रश्न- प्रौढ़ावस्था के मनोवैज्ञानिक परिप्रेक्ष के आधार पर दी गई अवस्थाओं का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- मध्यावस्था की विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- क्या मध्य वयस्कता के दौरान मानसिक क्षमता कम हो जाती है ?
- प्रश्न- उत्तर वयस्कावस्था (50-60) वर्ष में मनोवैज्ञानिक एवं सामाजिक समायोजन पर संक्षेप में प्रकाश डालिये।
- प्रश्न- उत्तर व्यस्कावस्था में कौन-कौन से परिवर्तन होते हैं तथा इन परिवर्तनों के परिणामस्वरूप कौन-कौन सी रुकावटें आती हैं?
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- प्रश्न- वृद्धावस्था में नाड़ी सम्बन्धी योग्यता, मानसिक योग्यता एवं रुचियों के विभिन्न परिवर्तनों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- सेवा निवृत्ति के लिए योजना बनाना क्यों आवश्यक है ? इसके परिणामों की चर्चा कीजिए।
- प्रश्न- वृद्धावस्था की विशेषताएँ लिखिए।
- प्रश्न- वृद्धावस्था से क्या आशय है ? संक्षेप में लिखिए।
- प्रश्न- उत्तर वयस्कावस्था (50-60 वर्ष) में हृदय रोग की समस्याओं का विवेचन कीजिए।
- प्रश्न- वृद्धावस्था में समायोजन को प्रभावित करने वाले कारकों को विस्तार से समझाइए ।
- प्रश्न- उत्तर वयस्कावस्था में स्वास्थ्य पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- स्वास्थ्य के सामान्य नियम बताइये ।
- प्रश्न- रक्तचाप' पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- आत्म अवधारणा की विशेषताएँ क्या हैं ?
- प्रश्न- उत्तर प्रौढ़ावस्था के कुशल-क्षेम पर अपने विचार व्यक्त कीजिए।
- प्रश्न- संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- जीवन प्रत्याशा से आप क्या समझते हैं ?
- प्रश्न- अन्तरपीढ़ी सम्बन्ध क्या है?
- प्रश्न- वृद्धावस्था में रचनात्मक समायोजन पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- अन्तर पीढी सम्बन्धों में तनाव के कारण बताओ।