बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-5 पेपर-2 गृह विज्ञान बीए सेमेस्टर-5 पेपर-2 गृह विज्ञानसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-5 पेपर-2 गृह विज्ञान - सरल प्रश्नोत्तर
प्रश्न- नेतृत्व के विभिन्न प्रारूपों (प्रकारों) की विस्तृत विवेचना कीजिए।
उत्तर -
विभिन्न विद्वानों ने नेताओं के आधार पर नेतृत्व को भिन्न-भिन्न वर्गों तथा श्रेणियों में विभक्त किया है। इन नेतृत्व को भिन्न-भिन्न वर्गों तथा श्रेणियों में विभक्त किया है। इन नेतृत्व प्रकारों के आधार पर नेतृत्व के विभिन्न प्रारूपों को निम्न प्रकार प्रस्तुत कर सकते हैं
1. औपचारिक नेतृत्व - औपचारिक नेतृत्व जनता द्वारा चुना हुआ नेता होता है नियमों और लिखित अथवा मौखिक संविदाओं के अनुसार कुछ व्यक्तियों को नेतृत्व सौंप दिया जाता है। अपने उत्तरदयित्वों को पूरा करने के लिये उन्हें कुछ निश्चित अधिकार दिये जाते हैं ये अधिकार तथा सत्ता अन्य लोगों को उनकी इच्छानुसार चलने के लिये प्रेरित करते हैं। इस प्रकार औपचारिक नेतृत्व में नेता की नियुक्ति औपचारिक प्रक्रिया एवं नियमों के अनुसार होती है।
2. अनौपचारिक नेतृत्व - इस प्रकार के नेतृत्व में नेता की नियुक्ति किसी नियम अथवा सरकारी प्रक्रिया द्वारा नहीं होती है। ग्रामीण समुदाय में ऐसे नेता का प्रभाव देखा जा सकता है। ये औपचारिक नेताओं को भी प्रभावित करते हैं। अनौपचारिक नेताओं को दो भागों में विभक्त किया जा सकता है। प्रथम स्वीकृत नेता तथा द्वितीय अस्वीकृत नेता। स्वीकृत नेता वे नेता हैं, जिन्हें ग्रामीण समुदाय के लोग अपना नेता स्वीकार करते हैं। गाँव में उनका दबदबा और प्रभुत्व होता है। स्वीकृत नेता निष्क्रिय भी हो सकता है और सक्रिय भी। निष्क्रिय नेता कुछ आदर्श उच्च जाति के, समाज में प्रतिष्ठा प्राप्त तथा बड़ी आयु वाले व्यक्ति होते हैं। सक्रिय नेता शक्तिशाली होते हैं और लोगों पर अपनी शक्ति का प्रयोग करते हैं। इनके पीछे बहुमत का बल होता है। इसी प्रकार अस्वीकृत नेता अपनी शक्ति के आधार पर ही नेतृत्व करते हैं ये व्यक्ति शारीरिक बल प्रयोग तथा लाठी के बाल पर अपना कार्य चलाते हैं। इनका लोगों पर आतंक व भय छाया रहता है। ग्रामीण समुदाय में दादागिरी प्रकार के नेता इस श्रेणी में आते हैं।
3. सत्तावादी नेतृत्व - सत्तावादी नेतृत्व में अनुसरणकर्त्ताओं की इच्छा - अनिच्छा की अवहेलना करते हुए स्वेच्छा के आधार पर मनमाने रूप में अपने अनुयायियों के व्यवहार को बलपूर्वक प्रभावित करना, सत्ताधारी नेतृत्व कहलाता है। इस प्रकार की व्यवस्था में समूह के व्यवहार सम्बंधी लक्ष्यों एवं नियमों का निर्धारण स्वयं नेता करता है। उसे समूह के अन्य सदस्यों की राय अथवा जनमत जानने की जरूरत नहीं पड़ती है वह निर्बाध सत्ता का स्वामी होता है।
नेता का स्वरूप सत्तावादी नेतृत्व में एकतंत्रीय शासक जैसा होता है। यह अपने अनुसरणकर्त्ताओं को आज्ञा देता है और शक्ति के बल पर अपनी आज्ञा का पालन करवाता है। इस प्रकार इस नेतृत्व में प्रभुत्व एवं सत्ता की चरम सीमा होती है। ऐसा नेतृत्व बहिर्मुखी एवं प्रभुत्वशाली होता है। किसी समस्या का हल निकालते समय ऐसे नेता अन्य लोगों से सलाह नहीं समूह को केवल उन बातों को बतलाते हैं जिनका कि उन्हें पालन करवाना होता हैं। इस प्रकार के नेतृत्व को निरंकुश नेतृत्व कहा जाता है।
डेविड क्रेच एवं रिचर्ड एस. क्रेच फील्ड ने लिखा है - कि सत्तावादी नेता प्रजातंत्रात्मक नेता की अपेक्षा अत्यधिक निरंकुश शक्ति रखता है और वह समूह की सारी नीतियों का निर्धारण करता है। वही सभी प्रमुख योजनाओं को बनाता है। वह अकेला ही सामूहिक क्रियाओं के अगले कदमों के क्रम के निर्धारण के सम्बंध में पूर्णतः सचेत रहता है। वह स्वयं ही सदस्यों की क्रियाओं और उनके पारस्परिक सम्बंधों के विषय में निर्देश देता है। वह खुद ही अंतिम या सर्वोच्च मध्यस्थ एवं न्यायाधीश के रूप में व्यक्तिगत सदस्यों को पुरस्कार या दंड देने का कार्य करता है और इसलिये समूह संरचना के अंतर्गत प्रत्येक व्यक्ति के भाग्य का निर्णय भी वही करता है। सप्ष्ट है कि इस प्रकार के नेता के हाथ में शासन सत्ता होती है और उसी के बल पर वह स्वेच्छापूर्वक कार्य करता है। वह मनमाने ढंग से शासन करता है। और जनता की इच्छा - अनिच्छा को कोई महत्व नहीं देता।
4. लोकतांत्रिक नेतृत्व - लोकतांत्रिक नेतृत्व सत्तावादी नेतृत्व से बिल्कुल भिन्न है। इसमें अनुकरण करने वाले लोग यह समझते हैं कि नेता जो कुछ कर रहा हैं वह उनकी भलाई के लिये है। इसमें लोग स्वेच्छा से नेता के आदेश का पालन करते हैं। जनता जनार्दन में नेता के प्रति सहयोग की भावना होती है। किसी भी निर्णय के लिये लोगों की राय ली जाती है और पारस्परिक विचारविमर्श को अत्यधिक महत्व दिया जाता है। इस प्रकार जो नेता अपने अनुयायियों के साथ सहयोग व प्रेम रखता है उसे प्रजातंत्रीय नेता कहते हैं। इस प्रकार का नेता समूह के प्रत्येक सदस्य का सहयोग प्राप्त करने में समर्थ होता है। उसके पास संपूर्ण उत्तरदायित्व नहीं रहता वरन् समूह के व्यक्तियों में विभाजित रहता है। ऐसे नेता प्रजातंत्र की देन हैं किंतु ये राजीतिक दल के बाहर भी क्रियाशील रहते हैं। इस प्रकार के नेता सहिष्णु, अनुकूलन करने वाले और समझौतावादी होते हैं। ये विधि और व्यवस्था में दृढ़ विश्चय रखते हैं। इस विधि में व्यक्तियों का व्यवहार रचनात्मक होता है। प्रजातंत्रात्मक नेता समूह के क्रियाकलापों व उद्देश्यों के निर्धारण में प्रत्येक व्यक्ति को अधिकाधिक भाग लेने या हिस्सेदार बनने को प्रोत्साहित करता है। वह उत्तरदायित्व को केन्द्रित करने की बजाय उसको विक्रेन्द्रित करने का प्रयत्न करता है। वह समूह के सदस्यों के बीच पारस्परिक सम्पर्कों तथा सम्बंधों को प्रोत्साहित करता है व उन्हें दृढ़ता प्रदान करता है जिससे कि संपूर्ण समूह शक्तिशाली बने।
5. अनियंत्रित नेतृत्व - ऐसे समूह में नेता समूह के ऊपर किसी प्रकार का प्रभाव व नियंत्रण नहीं डालता हैं। इसमें न तो नेता के कार्यों में हस्तक्षेप करता है और न किसी प्रकार का सहयोग देता है। अतः पारस्परिक सहयोग की भावना नहीं पाई जाती है। ग्रामीण समाज में इस प्रकार का नेतृत्व देखने को मिलता है।
6. परम्परागत नेतृत्व - परम्परागत नेतृत्व पैतृकता के आधार पर प्राप्त होता है। खानदान तथा सम्पत्ति पैतृक नेतृत्व के विकास में सहायक होती हैं। प्रजातांत्रिक प्रणाली की अपेक्षा परम्परागत नेता निरंकुश, स्वेच्छाचारी व तानाशाही ढंग से नेतृत्व करते हैं। उच्च सामाजिक व आर्थिक स्थिति परम्परागत नेतृत्व का आधार होती है। वर्तमान समय में प्रजातांत्रिक शासन प्रणाली आधुनिक शिक्षा के प्रसार, पुरातन सामाजिक मूल्यों के विघटन तथा नई वैचारिकी के प्रभाव के फलस्वरूप परंम्परागत नेतृत्व के प्रति जनआस्था घटने लगी है। इस प्रकार को नेतृत्व ग्रामीण समुदाय में कदाचित देखने को मिलता है।
7. स्वेच्छाचारी नेतृत्व - स्वेच्छाचारी नेतृत्व में कुछ लोग शारीरिक, सामाजिक, आर्थिक व राजनीतिक शक्ति के कारण नेतृत्व प्राप्त कर लेते हैं। इस प्रकार के नेतृत्व में नेता समुदाय की क्रियाओं को अपनी इच्छानुसार नियंत्रित व संचालित करते हैं। ये लोग गुण्डे, बदमाश व उपद्रवी होते हैं। ये अपना एक गुट बना लेते हैं जो अपने कुछ विशेष स्वार्थों की पूर्ति के लिये संवैधानिक व मानवीय अधिकारों का हनन करते हैं। इस प्रकार स्वेच्छाचारिता का एक नया नेतृत्व विकसित हो रहा है। यह नया नेतृत्व सत्ता पर अपनी गुटीय शक्ति के बल पर अधिकार जमाने का प्रयास करते हैं। नियमों का उल्लंघन कर दूसरों का हक छीनने में नहीं हिचकिचाते।
8. राजनीतिक नेतृत्व - राजनीतिक नेतृत्व के अंतर्गत व्यक्ति किसी न किसी राजनैतिक दल का सदस्य होता है। राजनीतिक क्षेत्र में सत्ता के लिये संघर्ष एवं तनाव बहुत बड़ी मात्रा में पाया जाता है जो इन परिस्थितियों का साहस, क्षमता एवं कुशलतापूर्वक सामना करने में सक्षम होते हैं। वही इस क्षेत्र में नेता बनते हैं। आधुनिक समय में ऐसा राजनीतिक नेतृत्व प्राप्त करने के लिये अधिकांश लोगों का झुकाव बढ़ा है। इसका प्रमुख कारण यह है कि ऐसे नेता के सम्बंध प्रभावशाली होते हैं तथा वे जनता के किसी भी काम को सरलतापूर्वक करवाने की क्षमता रखते हैं। वर्तमान समय में नेताओं की प्रतिष्ठा, प्रभाव तथा शक्ति बढ़ी है।
9. नौकरशाही नेतृत्व - नौकरशाही नेता वह व्यक्ति है जो सरकार एवं शासन को चलाता है। ऐसे नेता सरकारी तंत्र की देन हैं। इस प्रकार के नेता सैद्धांतिक, व्यावहारिक, बुद्धिमान तथा अपने उत्तरदायित्वों एवं भूमिकाओं के प्रति अनुशासित रहते हैं। ये विधियों के आधार पर ही निर्णय लेते हैं तथा एक निश्चित क्रिया प्रणाली को बनाए रखने का आग्रह करते हैं। वे नियमों एवं निर्धारित कानूनों का पालन करते हुए यंत्रवत् कार्य करते हैं। ये अपने विभागीय कार्यों की कुशलतापूर्वक करते हैं। वे राजनीतिक नेताओं तथा उच्चाधिकारियों की चापलूसी करने में संकोच नहीं करते हैं। ये शक्ति की आकांक्षा तो करते हैं किंतु कोई खतरा मोल नहीं लेना चाहते हैं।
10. कूटनीतिज्ञ - कूटनीतिज्ञ नेता के सम्बंध में कि बाल यंग ने कहा है कि कूटनीतिज्ञ सरकार का प्रतिनिधित्व करते हैं एवं अंतर्राष्ट्रीय क्षेत्र में क्रियाशील रहते हैं। इन्हें सत्ता का प्रतिनिधि भी कहा जाता है। यही कारण है कि कूटनीतिज्ञ जिस सरकार या संस्था का प्रतिनिधित्व करता है, उनकी निर्धारित नीतियों का वह पालन करता है। वह अपने उद्देश्यों की प्राप्ति के लिये दोहरी नीति भी अपना सकता है। वह अपने शब्दों का बड़ी कुशलता से प्रयोग करता है एवं अपना उद्देश्य शब्दों के पीछे छिपाकर रखता है।
11. सुधारक एवं आंदोलक - किम्बाल यग का मत है कि प्रजातंत्रिक समाज में सुधारक नेतृत्व देखने को मिलता है। सुधारक नेता हिंसक क्रांतिकारी नहीं होता है, बल्कि वह आदर्शवादी होता है। सामाजिक व्यवस्था में उत्पन्न दोषों को यह दूर करने का प्रयत्न करता है तथा नवीन समाज निर्माण का स्वप्न देखता है। सुधारक नेता अत्यधिक संवेदनशील होता है एवं व्यावहारिक नहीं होता है। उसमें संवेगों की अधिकता होती है।
आंदोलक नेता सिद्धांतवादी एवं कट्टरपंथी होता है। यह सिद्धान्तों के प्रसार में अवरोध आने पर उत्तेजित हो जाता है। वह समझौतावादी नहीं होता है। अपने लक्ष्यों की पूर्ति न होने पर हिंसा का प्रयोग करता है तथा क्रांति में विश्वास रखता है। अपने कट्टरवादी स्वभाव के कारण दूसरों के विचारों को हेय समझता है।
12. सिद्धान्तवादी नेतृत्व - सिद्धान्तवादी नेता वैज्ञानिक दृष्टिकोण रखने के कारण तार्किक होता है। उसके विचार भी वैज्ञानिक, तार्किक तथा अव्यावहारिक होते हैं। इसका मुख्य कारण यह है कि उसका सम्बंध सिद्धातों से होता है वह अपने सिद्धातों को संगठित तथा योजनाबद्ध रूप से प्रस्तुत करता है। यह इस बात पर ध्यान नहीं देता है कि उसके सिद्धांत व्यवहार में लाए जा सकते हैं या नहीं।
13. संस्थागत नेतृत्व - संस्थागत नेतृत्व के अंतर्गत नेता किसी संस्था का प्रशासक अथवा व्यवस्थापक होता है। इस प्रकार के नेता की सत्ता परम्परा, प्रथाओं, देवालयों, विद्यालयों अथवा आर्थिक व्यवस्था पर आधारित होती है।
14. प्रभुत्वशाली नेतृत्व - प्रभुत्वशाली नेतृत्व के सम्बंध में एफ. सी. बार्टले ने लिखा है कि इसके अंतर्गत नेता आक्रामक दबाव रखने वाला तथा कठोर कार्यवाही करने वाला होता है।
15. हृदयग्राही नेतृत्व - जिस नेता का सम्पर्क अपने अनुयायियों के साथ अत्यंत निकट का होता है उसे हृदयग्राही नेता कहते हैं। वास्तव में ऐसा नेता संकेतों एवं शब्दों के द्वारा अपना नियंत्रण कायम करता है। यह खुशामद, सुझाव व सलाह का प्रयोग भी करता है।
16. विशेषज्ञों का नेतृत्व - विशेषज्ञ किसी विशेष कला कौशल, विषय या कार्य में प्रवीण होता है और तत्संबंधी अनुभवों एवं ज्ञान के आधार पर दूसरों को प्रभावित करता है। वह अपने क्षेत्र में सर्वोच्च होता है। उसमें उच्च कोटि का विशेषीकरण होता है। वह अपने प्रतिस्पर्धियों से उस क्षेत्र में अधिक दक्ष होता है।
17. सामाजिक एवं अधिशासी नेतृत्व - सामाजिक एवं अधिशासी नेतृत्व के सम्बन्ध में ई. एस. बोगार्डस ने लिखा है कि सामाजिक नेता प्रभुत्वसम्पन्न नहीं होता है। इस प्रकार का नेता अपने सामाजिक क्रिया कलापों के द्वारा समूह में लोकप्रिय होता है। ऐसे नेता उत्साही एवं समर्पित जीवन व्यतीत करते हैं। ऐसे नेतृत्व में नेता का सामाजिक समस्याओं का समाधान करना और व्यक्तियों से प्रत्यक्ष सम्पर्क बनाए रखन आवश्यक होता है। अधिशासी नेता में सामाजिक, बौद्धिक एवं प्रबंधकीय गुणों का समावेश होता है। इस प्रकार के नेता को राज्य के द्वारा कुछ अधिकार मिले होते हैं, जिनका वे जनहित में उपयोग करते हैं।
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