बी एड - एम एड >> बीएड सेमेस्टर-2 सामाजिक विज्ञान शिक्षण बीएड सेमेस्टर-2 सामाजिक विज्ञान शिक्षणसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीएड सेमेस्टर-2 सामाजिक विज्ञान शिक्षण - सरल प्रश्नोत्तर
प्रश्न- मानचित्र किसे कहा जाता है? इसके प्रकार और उपयोग का वर्णन कीजिए।
उत्तर -
सम्पूर्ण पृथ्वी या उसके किसी भाग को समतल सतह पर प्रदर्शित रूप को ही मानचित्र कहा जाता है। भूगोल जैसे विषय में अन्य किसी भी सहायक, सामग्री की अपेक्षा मानचित्रों का विशेष महत्त्व है। स्कूल के बालकों के लिए तैयार की जाने वाली चित्रमूलक की, पाठ्य-पुस्तकों में आमत: अनेक चित्र तथा मानचित्र होते हैं।
परन्तु बड़े खेद से कहना पड़ता है कि भूगोल पढ़ते समय बालक उनका न तो उचित प्रयोग ही करते हैं और न ही इसका पूरा-पूरा मूल्य ही समझते हैं। अतः भूगोल शिक्षक का यह महान कर्त्तव्य हो जाता है कि भूगोल को पढ़ाते समय बालकों का ध्यान मानचित्रों की ओर करें और उन्हें उनका सदुपयोग सिखाएं।
मानचित्रों के प्रकार
1. भौतिक अथवा प्राकृतिक मानचित्र — इस प्रकार के मानचित्रों में भौतिक लक्षण जैसे : जलवायु, पर्वत, पठार, मैदान, मृदा, वनस्पति, जल आदि प्रदर्शित किए जाते हैं।
2. आर्थिक मानचित्र — इन मानचित्रों में फसलों, व्यापार, भूमि उपयोग, उद्योग-धंधों, रेलों, सड़कों आदि को प्रदर्शित करते हैं।
3. राजनीतिक मानचित्र — इस तरह के मानचित्रों में देशों, राज्यों, राजधानियों, प्रमुख नगरों आदि को प्रदर्शित करते हैं।
4. सामाजिक मानचित्र — वे मानचित्र जिसमें किसी देश या स्थान की जनसंख्या, लिंगानुपात, साक्षरता दर, भाषा आदि को प्रदर्शित करते हैं, सामाजिक मानचित्र कहलाते हैं।
5. ऐतिहासिक मानचित्र — इस प्रकार के मानचित्रों में प्राचीन काल के राज्यों की सीमाओं आदि को दर्शाया जाता है।
बालकों द्वारा मानचित्रों का कार्य
मानचित्रों के शिक्षण के महत्वपूर्ण साधन के रूप में प्रयोग करने के अतिरिक्त विद्यार्थियों के भी मानचित्र बनाने लिए प्रेरित किया जाना चाहिए। इस प्रकार के रचनात्मक कार्य से जहाँ बालकों को आनन्द की अनुभूति होती है, वहीं उनमें सौंदर्य बोध की दृष्टि भी होती है। क्योंकि मानचित्रों में रेखाओं, चित्रों, रंगों आदि का उपयोग बालकों को काफी प्रिय लगता है। किसी क्षेत्र विशेष के बारे में बालकों द्वारा किया गया अनुभव प्रयोग बड़ी सावधानी से किया जाना चाहिए। प्रारम्भ में बालक सरल मानचित्र तैयार करें फिर राज्य-श्रेणी में उनके विस्तार आदि विशेष मानचित्र बनाने की योग्यता प्राप्त कर जाते हैं। मानचित्रों में दिखाए गए विभिन्न स्थानों की दूरी, पैमाने के आधार पर दिखाई जा सकती है। नक्शे बनाते समय बालकों की अवस्था तथा उनके अनुभवों को ध्यान में रखना चाहिए। मानचित्रों में अनेक प्रकार का ज्ञान उपलब्ध होता है। इनमें स्थिति, भौतिक विशेषताएँ, प्राकृतिक संसाधन, आर्थिक उत्पादन, राजनीतिक आंकड़े तथा जलवायु संबंधी बातें आती हैं।
नक्शों में प्रयोग किए जाने वाले रंग
रंग — नक्शों में दिखाए गए धरातल की ऊँचाई
लाल — 10000 फुट से ऊँचा
गहरा भूरे — 5000 से 10000 फुट
हल्का भूरे — 2000 से 5000 फुट
पीला — 1000 से 2000 फुट
गहरा हरा — 500 से 1000 फुट
हल्का हरा — 0 से 500 फुट
नीला — समुद्र तल से नीचे
मानचित्रों का उपयोग
1. पाठ्य को रोचक बनाने में सहायता प्रदान करना – मानचित्र शिक्षण को रोचक बनाने में सहायता प्रदान करते हैं क्योंकि इससे पाठ दृश्यत एवं तथ्यात्मक की ओर अग्रसर होता है।
2. उपयुक्त जानकारी – मानचित्रों द्वारा पृथ्वी के धरातल से सम्बन्धित भागों को प्रदर्शित किया जा सकता है। कौन-सा स्थान किसी दूसरे स्थान से कितनी दूरी पर है? किसी विशेष फसल, खनिज सम्पदा आदि का वितरण देश या संसार की दृष्टि से कैसे होता है? इस प्रकार की बहुत-सी बातों की जानकारी प्रदान करने की दृष्टि से मानचित्रों की उपयोगी और कोई सामग्री नहीं।
3. कठिन ज्ञान सरल बनाना – मानचित्रों की सहायता से कठिन ज्ञान भी सरल बन जाता है, जैसे विभिन्न राज्यों की सीमाओं का ज्ञान, विभिन्न राजधानियों का ज्ञान आदि मानचित्रों द्वारा सरलता से कराया जा सकता है।
4. जलवायु तथा वनस्पति की जानकारी के लिए – किसी भी स्थान की जलवायु, वनस्पति आदि की जानकारी मानचित्र द्वारा सरलता से प्राप्त की जा सकती है।
5. परिवर्तन – मानचित्रों के द्वारा भौतिक, सामाजिक, आर्थिक तथा राजनीतिक परिवर्तनों को भी प्रदर्शित किया जाता है। किसी देश के विकास, औद्योगिक विकास आदि की दर्शाया जाता है।
6. विविध आँकड़े – इसमें आँकड़ों को भी दर्शाया जाता है, उदाहरण के लिए वर्ग, तापमान, जनसंख्या घनत्व, लिंगानुपात आदि।
मानचित्रों के चयन और प्रयोग से सम्बन्धित आवश्यक बातें—
1. स्पष्टता – मानचित्रों को ऐसे स्थान पर प्रदर्शित किया जाना चाहिए जिससे सभी छात्र बगैर झुक के देख सकें। इसके साथ-साथ उसमें दिखाई जाने वाली बातों का विवरण ऐसा होना चाहिए जिससे कक्षा के सभी विद्यार्थी उसके द्वारा प्रदर्शित सभी बातों को अच्छी प्रकार से देख सकें।
2. उपयुक्त चयन – राजनीतिक, भौगोलिक अथवा आर्थिक जिस प्रकार के मानचित्रों का उपयोग जिस स्थिति में किया जाता है, उसका चयन किया जाना चाहिए।
3. स्पष्ट सतह – मानचित्र अच्छे गुण वाले होने चाहिए। उनके सतह खुदरी होने चाहिए। यदि दीवार पर प्रदर्शित वाले मानचित्रों की सतह चमकिली हो तो कक्षा के कुछ भागों से स्पष्ट मानचित्र विद्यार्थियों को नहीं दिखाई देता है।
4. अत्यधिक विस्तार नहीं – एक मानचित्र द्वारा सीमित उद्देश्य की ही पूर्ति होनी चाहिए। बहुत-सी बातों को एक साथ अपने उद्देश्य को लेकर उपर मानचित्र इतना भीड़-भड़क वाला हो जाता है कि उद्देश्य समाप्त हो जाता है। उसकी स्पष्टता और निर्बधता समाप्त हो जाती है। इसके साथ-साथ मानचित्र अधिक विस्तार नहीं होना चाहिए। जो नाम और चित्र मानचित्रों पर प्रयोग किए जाते हैं, वे ऐसे हों कि छात्र उनको समझ लें। मानचित्र सरल हो, न कि कलात्मक और जटिल।
5. चयन – मानचित्र का चयन विद्यार्थियों की योग्यता, कक्षा विशेष के स्तर को ध्यान में रखकर किया जाना चाहिए।
6. घटनाओं को सही ढंग से प्रस्तुत किया जाना – मानचित्रों में ऐतिहासिक घटनाओं से संबंधित स्थल सही ढंग से प्रदर्शित किए जाते चाहिए।
7. सुलभता – मानचित्र सरल होना चाहिए तथा इसके साथ-साथ इसे अधिक खर्चीला नहीं होना चाहिए।
8. विषय-वस्तु की यथार्थता – मानचित्र पर दी गई विषय-वस्तु की यथार्थता, स्पष्टता और सूचनाओं की पर्याप्तता की कसौटी पर खरा उतरना चाहिए।
9. उपयुक्त पैमाना – मानचित्र का निर्माण करते समय पैमाना विश्वसनीय होना चाहिए। संकेतो की दृष्टि से भी इसका उपयोग होना आवश्यक है। तभी दूरी तथा संख्यात्मक एवं गुणात्मक आंकड़ों का सही विवरण हो सकेगा।
10. अधिक रंग नहीं – यथार्थ मानचित्रों में रंगों से बहुत-सी बातें स्पष्ट हो जाती हैं फिर भी मानचित्रों में आवश्यकता से अधिक रंगों का प्रयोग नहीं करना चाहिए।
11. रेखांकन उपयुक्त – रेखांकन तथा सूचना व्यक्त करने वाले शब्दों या संकेतो की दृष्टि से भी मानचित्रों का उपयुक्त होना चाहिए।
12. उपयुक्त संचलन – बार-बार प्रयोग में लाने तथा संचलन कर रखने की दृष्टि से इनका उपयुक्त होना भी बहुत आवश्यक है ताकि ये जल्दी खराब न हो जाएं। इसके लिए एक तो मानचित्र कठोर मजबूत ही बनाए जाने चाहिए ताकि बार-बार प्रयोग का भार सहन कर सकें। इसके साथ-साथ इन पर इनकी समस्या नहीं होनी चाहिए तथा इनको गर्द-मुक्त अलमारी में रखना चाहिए।
13. निर्माण – जहाँ भी सम्भव हो ऐसे मानचित्रों का निर्माण छात्रों द्वारा ही कराए जाने की योजना बनाई जानी चाहिए। बड़े एवं पूरे विद्यालयों तथा विद्यालयों की प्रदर्शनी तथा प्रदर्श पाठ में मानचित्रों को रखा जाना चाहिए ताकि विद्यार्थियों में ज्ञानार्जन और डिजाइन की प्रवृत्ति को बढ़ावा दिया जा सके और रचनें की प्रवृत्ति को विकसित किया जा सके।
14. दीवारों पर टाँगने सम्बन्धी सावधानी – मानचित्रों को दीवार पर उतने समय तक ही टाँगे रहना चाहिए जितनी देर उनकी आवश्यकता हो। आवश्यकता से अधिक समय के लिए इसे दीवार पर टाँगे नहीं रखना चाहिए। स्थान आने पर ही इसे दीवार पर लटकाना चाहिए।
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