बी एड - एम एड >> बीएड सेमेस्टर-2 सामाजिक विज्ञान शिक्षण बीएड सेमेस्टर-2 सामाजिक विज्ञान शिक्षणसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीएड सेमेस्टर-2 सामाजिक विज्ञान शिक्षण - सरल प्रश्नोत्तर
प्रश्न- एडगर डेल द्वारा श्रव्य-दृश्य (सामाजिक विज्ञान सहायक सामग्री) सहायक सामग्री का वर्गीकरण कीजिए।
उत्तर -
एडगर डेल ने अनुभूति-शृंखला का प्रयोग करते हुए श्रव्य-दृश्य शिक्षण की सामग्री का वर्गीकरण किया है। यह वर्गीकरण इस विचार पर आधारित है कि अनुबोधन सामग्री का प्रभावान अनुभव से अमूर्त (वस्तु से प्रतीक) के सिद्धान्त पर किया जाना चाहिए। इस तरह की सामग्री-व्यवस्था निम्नलिखित विभिन्न अवस्थाओं के प्रकार अनुभव को संकेत करती है।
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प्रत्यक्ष साक्षात् अनुभव - अनुभव कोण का आधार क्रियाएं, प्रयोग, प्रयोग तथा सन्दर्भ अनुभवों का प्रतिनिधित्व करता है। शाब्दिक अनुभव देखे जा सकते हैं, स्पर्श किए जा सकते हैं, उनका स्वाद लिया जा सकता है, उन्हें प्रत्यक्ष रूप से अनुभव किया जा सकता है, उन्हें सुंघा जा सकता है। प्रयोगशालाओं में, कार्यशालाओं में, किसी स्थल पर कार्य करते हुए, खेतों में कार्य करते हुए इसी तरह का अनुभव प्राप्त होता है। इस तरह के अनुभवों को प्राप्त विद्यार्थियों द्वारा होने वाले अनुभव स्वयं अधिगम की नींव बनते हैं।
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सायास अनुभव - सायास अनुभव साक्षात अनुभव नहीं होते हैं अपितु यह अनुभव अधिगम में तभी सहायक होते हैं जब इनमें से कोई वस्तु वास्तविक रूप में प्राप्त न हो अथवा वह वस्तु काफी बड़ी या काफी छोटी हो। या काफी जटिल हो तब इस तरह का अनुभव किया जा सकता है। जैसे अनुभव मॉडलों से हासिल होते हैं। जब विद्यार्थी अनुभव अनुभवों की तरफ बढ़ रहे होते हैं, तब उन्हें इसकी जरूरत होती है। उदाहरण के तौर पर कोई किलोमीटर तक फैली हुए बाँध अथवा इंसान के कार्बन का मॉडल इसी तरह का अनुभव प्रदान करता है।
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अभिनयी अनुभव - अभिनयी अनुभवों में भी वास्तविकता का बोध होता है। ये मूक रूप को उन वास्तविकताओं के निकट ले जाते हैं जो अपने असल रूप में प्राप्त नहीं होती।
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प्रदर्शन - प्रदर्शन किसी महत्वपूर्ण तथ्य, सिद्धांत अथवा प्रक्रिया को दृश्य-व्याख्यान प्रस्तुत करता है। विद्यार्थियों के समक्ष प्रदर्शन किया जाता है कि वस्तुएं एक किस रूप में कार्य करती हैं।
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क्षेत्रीय यात्राएँ - क्षेत्रीय यात्राएँ एवं भ्रमण उपयोगी तथा सजीव अनुभव का समृद्ध साधन हैं। ये विद्यार्थियों को उच्च स्तरीय कल्पनात्मक तत्वताओं की तरफ अग्रसर करती हैं तथा उन्हें प्रत्यक्ष अनुभव प्रदान करती हैं।
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प्रदर्शनी वस्तुएं - प्रदर्शनों अथवा प्रदर्शनी वस्तुओं में चार्ट, फोटोग्राफ, मॉडल, प्रदर्शन तथा यहाँ तक कि फिल्मों का समावेश होता है।
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शैक्षिक दूरदर्शन एवं चलचित्र - दूरदर्शन तथा चलचित्र भावुकत्मक प्रस्तुतिकरण इस तरह करते हैं कि ऐसे महसूस होता है जैसे हम वहाँ पहुँच गए हों। दूरदर्शन तो चलचित्र की अपेक्षा अधिक तालमेलात्मक का अनुभव कराते हैं।
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अन्य चित्र, रेडियो तथा रेखाचित्र - अन्य चित्र, रेडियो, रेखाचित्र विविध प्रकार के संदेशों का प्रसार करते हैं। ये संदेश उन व्यक्तियों के लिए भी समझने में आसान होते हैं, जिन्हें पढ़ना नहीं आता।
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दृश्यम प्रतीक - जब हम अनुभवकोंण के शिक्षक से एक सोपान नीचे हैं तो हमें वस्तुओं की वास्तविक प्रतीकृति प्राप्त नहीं होती। इसकी जगह पर अमूर्ति प्रतीकृति प्राप्त होती है। स्वयमंचन, फ्लैनेल पट्ट, चार्ट, ग्लोब, मानवचित्र, रेखाचित्र, काटून, छायाचित्र, दृश्य-वास्तव, श्रव्यव दृश्य आदि माध्यमों द्वारा यह प्रतीक प्रस्तुति किए जाते हैं।
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भाषिक प्रतीक - अनुभव-कोण का शिक्षक भाषिक प्रतीक प्रस्तुत करता है। भाषिक प्रतीक लिखित तथा मौखिक दोनों रूपों में हो सकता है। उदाहरण के तौर पर-भाषा का कोई तथ्य, कोई विचार, कोई वैज्ञानिक सिद्धान्त, कोई सूत्र, कोई लोकोक्ति या कोई अन्य अनुभव।
श्रव्य-दृश्य सहायक सामग्री क्या नहीं है?
श्रव्य-दृश्य सामग्री सीखने के महान अवसर प्रदान करती है, लेकिन इसकी भी अधिक गंभीर सीमाएँ हैं :1. सभी अनुशासन-विषयों की संजीवनी नहीं - श्रव्य-दृश्य सहायक सामग्री सभी अनुशासन दोषों का राम-बाण नहीं है। चलचित्र, टेलीविजन, दूरदर्शन इत्यादि शिक्षण की सुधारक व महत्वपूर्ण साधन निश्चित तौर पर हैं, लेकिन ये अध्यापक तथा पुस्तकों का स्थान नहीं ले सकते। पढ़ना, लिखना, सुनना तथा बोलना हमेशा अनुशासन के बुनियादी साधन माने जाएंगे रहेंगे।
2. शिक्षण में सहायक मात्र न होना - श्रव्य-दृश्य सहायक साधन शिक्षण में उत्तम सहायता प्रदान नहीं करते जितने सीखने में करते हैं। ये अध्यापक की तुलना में विद्यार्थियों के लिए उत्तम सहायक हैं। ये शिक्षक के सरल नहीं बनाते तथा न ही अध्यापक के दोष को हल्का करते हैं। इनका प्रयोग शिक्षक के दोषों को दूर करने की अपेक्षा शिक्षक को अधिक सजग, चौकस व अनुशासित बनाता है। इनका प्रयोग भी विशिष्टता व काफी मेहनत तथा समय की मांग करता है।
3. साधन नहीं, केवल माध्यम - श्रव्य-दृश्य साधन स्वयं में साधन नहीं अपितु विद्यार्थियों के लिए अच्छी तरह से सीखने का साधन हैं।
4. मनोरंजन के लिए नहीं - श्रव्य-दृश्य सामग्री का निर्माण विद्यार्थियों के मनोरंजन के लिए नहीं किया जाता अपितु पढ़ाई जा रहे पाठ के प्रति उनमें रुचि तथा प्रेरणा उत्पन्न करने के लिए किया जाता है। उनकी आँखों तथा कानों को ज्ञानवर्धन के विषय प्रयोग में उनके लिए अनुभव को रोचक बनाने हेतु प्रयत्न किया जाता है। इस तरह से वे विद्यार्थियों को अध्ययन की तरफ बढ़ने में सहायक होते हैं।
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