बी एड - एम एड >> बीएड सेमेस्टर-2 सामाजिक विज्ञान शिक्षण बीएड सेमेस्टर-2 सामाजिक विज्ञान शिक्षणसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीएड सेमेस्टर-2 सामाजिक विज्ञान शिक्षण - सरल प्रश्नोत्तर
प्रश्न- कक्षा शिक्षण में प्रयोग होने वाली विभिन्न प्रकार की श्रव्य-दृश्य-सामग्रियों का वर्णन कीजिए। इनके महत्त्व को भी बताइए।
अथवा
श्रव्य-दृश्य सामग्री का अर्थ स्पष्ट कीजिए। शिक्षण की विभिन्न श्रव्य-दृश्य सामग्रियों का वर्णन करते हुए इनके महत्त्व को भी स्पष्ट कीजिए।
अथवा
माध्यमिक स्तर के विद्यार्थियों को सामाजिक विज्ञान विषय पढ़ाने के लिए आप क्या सहायक सामग्री प्रयोग करेंगे। अपनी रुचि का कोई उदाहरण चुनकर समझाइए।
समन्वित लघु उत्तरीय प्रश्न
- शिक्षण श्रव्य-दृश्य सामग्री के विषय में आप क्या समझते हैं ?
- सामाजिक अध्ययन शिक्षण में आपने जिन विभिन्न दृश्य-श्रव्य सामग्रियों का प्रयोग किया है, उनकी सूची बताइए।
- श्रव्य-दृश्य सामग्री के महत्त्व (उपयोगिता) का उल्लेख कीजिए।
- सामाजिक विज्ञान शिक्षण में श्रव्य-दृश्य सामग्री के महत्त्व को रेखांकित कीजिए।
उत्तर -
श्रव्य-दृश्य सामग्री
(Audio-Visual Aids)
वर्तमान में सामाजिक अध्ययन शिक्षण को प्रभावपूर्ण एवं रोचक बनाने के लिए चार्ट, ग्राफ, चित्र, प्रोजेक्टर, ओवर हेड प्रोजेक्टर एवं अन्य आधुनिक उपकरणों का प्रयोग किया जाता है। इन्हें श्रव्य-दृश्य सामग्री भी कहा जाता है। शिक्षा-शास्त्र में श्रव्य-दृश्य उपकरणों के अर्थ को स्पष्ट करते हुए लिखा गया है कि “श्रव्य-दृश्य उपकरण कोई युक्ति है जिसके द्वारा अधिगम प्रक्रिया दृष्टि और/अथवा सुनने की इन्द्रियों के माध्यम से अप्रत्यक्ष अथवा प्रत्यक्षतः प्रेरित हो सकती है।”
क्रो एवं क्रो के अनुसार, “श्रव्य-दृश्य साधन सीखने वालों को व्यक्तियों, घटनाओं, वस्तुओं, कारण तथा प्रभाव सम्बन्धों के विविध अनुभवों को प्राप्त करने का अवसर देते हैं।”
विट्टिच एवं शुलर के अनुसार, “श्रव्य-दृश्य विधियाँ और वस्तुएँ प्रभावपूर्ण सीखने, प्रवृत्त छात्र रुचि, उत्साह तथा विद्यालय में सफलता के लिए अत्यन्त लाभदायक आधार हैं।”
श्रव्य-दृश्य सामग्री के प्रकार
(Types of Audio-Visual Aids)
श्रव्य-दृश्य उपकरणों/सामग्रियों को तीन वर्गों में रखा सकते हैं जो निम्नलिखित हैं -
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श्रव्य उपकरण (Audio Aids) - रेडियो, ग्रामोफोन, टेपरिकॉर्डर आदि।
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दृश्य उपकरण (Visual Aids) - वास्तविक पदार्थ एवं नमूने, मॉडल, चित्र, रेखाचित्र, चार्ट, मानचित्र तथा ग्लोब, श्यामपट्ट, बुलेटिन बोर्ड, फ्लैश बोर्ड, समाचार-पत्र एवं पत्रिकाएँ, संग्रहालय आदि।
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श्रव्य-दृश्य उपकरण (Audio-Visual Aids) - प्रोजेक्टर (जादुई लालटेन, अपारदर्शक, पारदर्शक, ओवर हेड प्रोजेक्टर), चलचित्र, टेलीविजन, वीडियो एवं कम्प्यूटर आदि।
प्रकरण-अध्ययन का भूलेख - उपर्युक्त प्रकारों होना, श्रव्य-दृश्य सामग्रियों का विस्तृत विवरण निम्न प्रकार से है -
1. श्रव्य उपकरण (Audio Aids) - श्रव्य उपकरणों को निम्न प्रकार से समझा जा सकता है -
(i) रेडियो (Radio) - शिक्षण जगत में रेडियो का प्रयोग 20वीं शताब्दी से हो रहा है। इसका श्रव्य उपकरणों में सर्वाधिक महत्व है। यह शिक्षण का एक ऐसा शक्तिशाली साधन है जिससे छात्रों के मानसिक विकास में वृद्धि की जा सकती है।
(ii) ग्रामोफोन (Gramophone) - कक्षा शिक्षण में रेडियो प्रत्येक कक्षा को समझने के लिये उपयोगी नहीं होता, अतः इस कमी की पूर्ति हेतु कुछ रिकार्ड तैयार किये जाते हैं जिनमें ग्रामोफोन अथवा प्लेयर पर बलाकर छात्रों को सुनाया जाता है और इस प्रकार महत्वपूर्ण विषय-वस्तु प्रस्तुत की जाती है।
(iii) टेपरिकॉर्डर (Tape Recorder) - टेपरिकॉर्डर अत्यन्त उपयोगी श्रव्य उपकरण है। इसके माध्यम से वैज्ञानिकों के जीवन-दृश्य, अनुसन्धन-कार्य, नियम, सिद्धान्त आदि को टेप करके शिक्षक उनका पाठ्यक्रम उपयोग कर सकता है और शिक्षण को रोचक एवं प्रभावपूर्ण बना सकता है।
2. दृश्य उपकरण (Visual Aids) - ये निम्नलिखित हैं -
(i) वास्तविक पदार्थ एवं नमूने (Real Objects and Specimens) - शिक्षण में वास्तविक पदार्थ एवं नमूनों का विशेष महत्व है। छात्र इन्हें स्वयं देखकर एवं छूकर व्यावसायिक ज्ञान प्राप्त करते हैं। इससे छात्रों की निरीक्षण शक्ति का विकास होता है।
(ii) मॉडल (Models) - बहुत-सी वस्तुएँ ऐसी होती हैं जिन्हें कक्षा में दिखाया जाना असम्भव होता है। इसके लिये उन वस्तुओं का निर्जीव अनुपात में बना हुआ मॉडल दिखाया जाता है जिसे देखकर छात्र यथार्थ ज्ञान प्राप्त कर लेते हैं। इस प्रकार मॉडल वास्तविक वस्तुओं के निर्जीव अनुपात में बने हुए लघु रूप होते हैं।
(iii) चित्र (Pictures) - सामाजिक विज्ञान शिक्षण में चित्रों का प्रयोग प्रमुख रूप से होता है। चित्र किसी भी प्रकार को अधिक स्पष्ट एवं रोचक बनाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं। वर्तमान समय में फोटोग्राफी अत्यन्त विकसित दशा में है। यथार्थ वस्तु के अभाव में चित्र शिक्षण कार्य में विशेष सहायता पहुँचाते हैं।
(iv) रेखाचित्र (Sketches) - रेखाचित्र का उपयोग किसी स्थान की स्थिति, जन्म-दर, मृत्यु-दर, जनसंख्या वृद्धि, विभिन्न बीमारियाँ एवं उपचार आदि को स्पष्ट करने के लिये किया जाता है। यह छात्र एवं विद्यार्थियों के लिये उपयोगी होते हैं क्योंकि इस माध्यम में चित्रों की आवश्यकता नहीं रह जाती है। शिक्षक द्वारा श्यामपट्ट पर रेखाचित्र बनता हुआ देखकर विद्यार्थी सरलता से इसे बनाना सीख जाते हैं।
(v) चार्ट (Chart) - सामाजिक अध्ययन शिक्षण में चार्ट का विशेष महत्व है। यह एक ऐसी शिक्षण सामग्री है जो वस्तुओं तथा विचारों को सन्दर्भों में व्याख्या करती है। सामाजिक अध्ययन के लगभग सभी प्रकारों को चार्ट के माध्यम से कुशलतापूर्वक पढ़ाया जा सकता है।
(vi) मानचित्र तथा ग्लोब (Map/Atlars and Glob) - मानचित्र तथा ग्लोब का प्रयोग विभिन्न स्थानों की स्थिति का ज्ञान प्रदान करने हेतु किया जाता है। भूगोल शिक्षण में ग्लोब की सहायता से पृथ्वी की संरचना, उसकी स्थिति, उसकी गति, विभिन्न देशों की सीमाएँ आदि बातों को बड़े सरल ढंग से बताया जा सकता है।
(vii) श्यामपट्ट (Black-Board) - यह शिक्षण का एक महत्वपूर्ण दृश्य उपकरण है। यह पाठ्य-वस्तु के प्रस्तुतिकरण तथा शिक्षण को रोचक एवं प्रभावपूर्ण बनाने में शिक्षक की सहायता करता है। शिक्षक द्वारा चित्र, रेखाचित्र, चार्ट आदि श्यामपट्ट पर बनाने से वे छात्रों को सरलता से समझ में आ जाते हैं।
(viii) बुलेटिन बोर्ड (Bulletin Board) - बुलेटिन बोर्ड एक प्रकार का ऐसा बोर्ड होता है, जिस पर छात्रों के अवलोकनार्थ अध्ययन-सामग्री लगाई जाती है। इस पर घटनाओं, तथ्यों एवं घटनाओं को सूचित करने वाले प्रश्न, समाचार-पत्रों की कटtings, चित्र आदि लगा दिये जाते हैं जिन्हें छात्र अवकाश के समय देखते हुए अध्ययन करते हैं। इस प्रकार छात्रों के समस्त रचनात्मक कार्यों को प्रदर्शित करने के लिए यह अत्यन्त उपयोगी साधन है।
(ix) फ्लेनेल बोर्ड (Flannel Board) - यह लकड़ी का एक ऐसा बोर्ड होता है जिस पर फ्लेनेल चढ़ा होता है। इस पर चित्र व रेखाचित्र को थोड़े दबाव द्वारा चिपका देते हैं जिनके नीचे रेशमलता लगा होता है। ये तथ्यों की तुलना एवं चित्रों को एक क्रम में प्रदर्शित करने में यह बहुत लाभदायक है।
(x) समाचार-पत्र एवं पत्रिकाएँ (News-papers and Journals) - समाचार-पत्र एवं पत्रिकाएँ शिक्षण को रोचक एवं प्रभावपूर्ण बनाने में विशेष सहायक होते हैं। इनमें छात्रों एवं शिक्षकों को महत्वपूर्ण एवं उपयोगी तथ्य और सूचनाएँ प्राप्त होती हैं। इनमें सामाजिक, सामाजिक विज्ञानीय तथा वैज्ञानिक तथ्यों एवं घटनाओं आदि का विवरण रहता है। इनके माध्यम से छात्र एवं शिक्षक देश-विदेश में घटित होने वाली घटनाओं से भी परिचित होते हैं जिससे परिणामस्वरूप उनमें अन्तर्दृष्टि उत्पन्न होती है एवं सहानुभूति विकसित होती है।
(xi) संग्रहालय (Museum) - संग्रहालय शिक्षण की दृश्य सामग्री का प्रमुख साधन है। इसमें विभिन्न घटनाओं एवं दृश्यों के चित्र, वैज्ञानिकों के चित्र, मॉडल आदि संकलित किये जाते हैं, जहाँ छात्र निरीक्षण करके अपना ज्ञान की वृद्धि करते हैं।
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श्रव्य-दृश्य उपकरण (Audio-Visual Aids) - श्रव्य-दृश्य उपकरण निम्नलिखित हैं -
(i) प्रोजेक्टर (Projector) - शिक्षण जगत में प्रोजेक्टर को विज्ञान की एक नवीन यन्त्र माना जाता है। वर्तमान में भारतीय विद्यालयों में प्रोजेक्टर का उपयोग तीव्र गति से बढ़ रहा है। इसमें फिल्म, फिल्म-फ्रेम एवं स्लाइड्स प्रयुक्त होती हैं। इन पर अंकित चित्रों, रेखाचित्रों, मानचित्रों, चार्ट आदि को प्रोजेक्टर द्वारा पर्दे पर प्रक्षिप्त किया जाता है। आवश्यकतानुसार चित्र रोककर उससे सम्बन्धित समस्त जानकारी शिक्षक छात्रों को बता सकता है।
(ii) जादुई लालटेन (Magic Lantern) - यह एक चित्र प्रदर्शक यन्त्र है। सामाजिक अध्ययन शिक्षण में इसका उपयोग विभिन्न स्लाइड्स को बनाकर दर्शक माध्यम से अमूर्त तथ्यों तथा जटिल समस्याओं को छात्रों को सरलतापूर्वक समझा सकता है।
(iii) अपारदर्शक (Episcope) - यह आधुनिक प्रोजेक्टर है। इसमें कागज पर छपी तस्वीरें, पुस्तकें के चित्र, ग्रंथ की कटtings तथा चट्टानों जैसी ठोस वस्तुओं में सरलता से प्रदर्शित की जा सकती हैं। चित्रों की वास्तविकता को प्रदर्शित करने का एक व्यवस्थित साधन है।
(iv) पारदर्शदर्शी (Epidiascope) - यह नवीनतम प्रोजेक्टर है। इसमें छोटे-छोटे चित्रों, मानचित्रों, पोस्टरों, पुस्तक के पृष्ठों आदि को कक्ष में अंधकार करके बड़े कर के दिखाया जाता है। इस उपकरण ने नागरिकशास्त्र, इतिहास, भूगोल आदि विषयों को सरलतापूर्वक पढ़ाने में अपना महत्वपूर्ण स्थान बना लिया है।
(v) ओवर हेड प्रोजेक्टर (Over Head Projector) - इसका प्रयोग सेमिनार, सिम्पोजियम एवं क्लास आदि में व्यापक रूप से देखा जा सकता है एवं अब इसका शिक्षण में भी इसका प्रयोग किया जाने लगा है। इसके माध्यम से छात्रों को किसी भी प्रकार की विषय-वस्तु आसानी से समझायी जा सकती है।
(vi) चलचित्र (Cinema) - चलचित्र श्रव्य-दृश्य उपकरणों में महत्वपूर्ण स्थान रखता है। सामाजिक अध्ययन शिक्षण के लिये यह एक महत्वपूर्ण साधन है। इसके प्रयोग से किसानों की फसलें, ग्रामीण समस्याएँ, भारत की फसलें, खनिज पदार्थ, विकास योजनाएँ, भारत के उद्योग, भारतीय रहन-सहन के तौर आदि बहुत से विषयों को शिक्षण प्रदान किया जा सकता है।
(vii) टेलीविजन (Television) - वर्तमान में शिक्षा के क्षेत्र में टेलीविजन सर्वाधिक महत्वपूर्ण दृश्यक उपकरण है। इसमें रेडियो एवं चलचित्र दोनों के गुणों का समावेश है। टेलीविजन द्वारा विद्यार्थी अपने देखने तथा सुनने की दोनों इन्द्रियों का प्रयोग करने के कारण किसी भी तथ्य को शीघ्रता से सीख लेते हैं। यह उपकरण योग्यतम शिक्षकों को देश की शिक्षण-संस्थाओं तक पहुँचाता है और शिक्षा के स्तर को ऊँचा उठाने में सहायक होता है।
(viii) वीडियो (Video) - यह श्रव्य-दृश्य उपकरणों के अन्तर्गत उपयोगी उपकरण है। शिक्षा के क्षेत्र में यह उपकरण एक आदर्श के रूप में उपयुक्त स्थान प्राप्त कर चुका है। इसके माध्यम से विद्यार्थी घर पर ही रहकर दृश्यक कैसेटों के आधार पर शिक्षा ग्रहण कर सकते हैं। इसमें किसी घटना, भाषण या पाठ को बार-बार रुककर चलाया जा सकता है। राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद (NCERT), केंद्रीय शैक्षिक फिल्म निर्माण संस्था, विश्वविद्यालय अनुदान आयोग तथा इन्दिरा गाँधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय द्वारा विभिन्न शिक्षण विषयों पर वीडियो कैसेट तैयार कराये गये हैं जिन्हें अध्ययन-केंद्रों द्वारा उपयोग में लाया जा रहा है।
(ix) कम्प्यूटर (Computer) - कम्प्यूटर का प्रयोग सभी क्षेत्रों में हो रहा है। यह व्यक्तिगत शिक्षण एवं समूह शिक्षण दोनों के लिये उपयोगी है। इसके उपयोग से शिक्षार्थी में विभिन्न योग्यताएं रखने वाले छात्र अपनी गति से जानकारियाँ करते हुए आगे बढ़ते हैं। कम्प्यूटर के व्यापक उपयोग, महत्त्व एवं उपयोगिता के कारण वर्तमान समय को 'कम्प्यूटर युग' कहा जाने लगा है।
श्रव्य-दृश्य सामग्रियों का महत्त्व
(Importance of Audio-Visual Aids)
सामाजिक विज्ञान शिक्षण में श्रव्य-दृश्य सामग्रियों/उपकरणों का निम्नलिखित महत्त्व है -
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श्रव्य-दृश्य उपकरणों के प्रयोग से बालकों की दृश्य एवं श्रव्य इन्द्रियाँ प्रशिक्षित होती हैं। अतः यह शिक्षण प्रक्रिया का मनोवैज्ञानिक आधार है।
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कठिन एवं नीरस पाठों के शिक्षण में आने वाली नीरसता श्रव्य-दृश्य उपकरणों के प्रयोग से दूर की जा सकती है।
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इनके प्रयोग से सामाजिक विज्ञान शिक्षण आकर्षक एवं रोचक हो जाता है।
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छात्रों का ध्यान आकर्षित करने तथा विषय के प्रति रुचि उत्पन्न करने में श्रव्य-दृश्य उपकरण बड़ी भूमिका निभाते हैं।
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इन साधनों की सहायता से छात्र जो ज्ञान प्राप्त करते हैं वह स्थायी होता है।
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ये साधन सामाजिक विज्ञान शिक्षण में भाषागत दोषों एवं भ्रम के निवारण में विशेष सहयोग प्रदान करते हैं।
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श्रव्य-दृश्य साधन से छात्रों को कार्य करके सीखने के अवसर प्रदान किये जाते हैं।
श्रव्य-दृश्य साधनों के महत्त्व का उल्लेख करते हुए विट्टिच एवं शुलर ने लिखा है, “श्रव्य-दृश्य विधियाँ और वस्तुएँ प्रभावशाली सीखने, प्रवृत्त छात्र रुचि, उत्साह तथा विद्यालय में सफलता के लिए अति लाभदायक आधार हैं।”
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