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बीएड सेमेस्टर-2 सामाजिक विज्ञान शिक्षण

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :160
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2765
आईएसबीएन :0

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बीएड सेमेस्टर-2 सामाजिक विज्ञान शिक्षण - सरल प्रश्नोत्तर

प्रश्न- विद्यालय स्तर पर सामाजिक विज्ञान/सामाजिक अध्ययन की आवश्यकता पर प्रकाश डालिए।

अथवा
सामाजिक अध्ययन शिक्षण को विद्यालय पाठ्यक्रम में सम्मिलित करने सम्बन्धी क्या-क्या तर्क हैं ? विवेचनात्मक अध्ययन कीजिए।

उत्तर -

विद्यालय पाठ्यक्रम में सामाजिक विज्ञान/सामाजिक अध्ययन की आवश्यकता

(Need of Social Science/Social Studies in School Curriculum)

सामाजिक विज्ञान/सामाजिक अध्ययन की आवश्यकता भारत में हुई सामाजिक परिवर्तन के कारण हुई। जिस प्रकार देश स्वतंत्र हुआ उस समय इसके समक्ष विभिन्न समस्याएं आयीं, जिनका समाधान राष्ट्र की प्रगति एवं उन्नति के लिए अति आवश्यक था। सामाजिक अध्ययन वह अध्ययन है जिसके द्वारा छात्रों को सामाजिक एवं प्राकृतिक वातावरण का ज्ञान और उनमें अन्तर्निहित ज्ञान कराकर उन्हें वह शुभ कुशलता प्रदान की जाती है, जिससे वे अपने व्यावहारिक जीवन की समस्याओं को सुलझा सकते हैं। इसी उद्देश्य की पूर्ति के लिये सामाजिक विज्ञान का शिक्षा के पाठ्यक्रम में समावेश किया गया है।

वर्तमान में विद्यालय पाठ्यक्रम में सामाजिक अध्ययन के प्रस्तुतिकरण का नवीन रूप विकसित हो रहा है। यह अध्ययन की संकीर्ण सीमा से ऊपर उठ गया है जिससे इसका क्षेत्र और भी बढ़ गया है। इसके नवीन प्रस्तुतिकरण सम्बन्धी तथ्यों को निम्न प्रकार से प्रस्तुत किया जा सकता है :

(1) सामाजिक तथा भौतिक वातावरण का अध्ययन (To Study about Social and Physical Environment) - सामाजिक अध्ययन के क्षेत्र में सामाजिक वातावरण को भी प्रमुखता दी जाती है। इसके अन्तर्गत समाज के प्रत्येक पक्ष का अध्ययन किया जाता है। मानव समाज के रहते हुए भिन्न-भिन्न प्रकार की क्रियाएं करता है तथा भौतिक वातावरण का उस पर बराबर प्रभाव पड़ता है। इस प्रकार अर्थशास्त्र, नागरिकशास्त्र, राजनीतिशास्त्र, समाजशास्त्र, भूगोल आदि के अध्ययन-विषय भी इसके क्षेत्र का एक भाग है।

(2) नागरिकता का विकास सम्बन्धी अध्ययन (To Study about the Development of Citizenship) - सामाजिक अध्ययन के क्षेत्र में सम्मिलित विषय-बहुत छात्रों में नागरिक गुणों का विकास करती है। उनमें अपने कर्तव्यों के प्रति जागरूकता, अधिकारों की पहचान, आपसी सहिष्णुता, भाई-चारा, सहानुभूति, क्षमाशीलता, अनुशासन तथा सहनशीलता जैसे महान गुणों का समावेश होता है। इसके अतिरिक्त उनमें ऐसी शक्तियां, प्रवृत्तियां तथा क्षमताएं भी आत्मसात करने की क्षमता आती है, जो उन्हें एक आदर्श नागरिक के रूप में परिवर्तित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।

(3) प्रशासनिक प्रबन्ध का अध्ययन (To Study for the Administrative Management) - समयानुसार विकास के साथ-साथ मानव ने विभिन्न सामाजिक संस्थाओं का भी निर्माण किया है जैसे - राज्य, सरकार, संयुक्त राष्ट्र संघ एवं अनेक अन्य समुदाय। आदि इन संस्थाओं के निर्माण के पुश्पमूल, कार्य-प्रणाली तथा वर्तमान स्थिति आदि का अध्ययन इस विषय के अन्तर्गत आता है। अतः की दृष्टि से भविष्य के एक सुदृढ़ मार्गदर्शन प्रबन्ध का सूत्रपात होता है। इस अध्ययन का मूल उद्देश्य - विद्यार्थियों में मानव-निर्मित संस्थाओं एवं उनकी सामाजिक संरचना एवं नियमन को तथा अनुशासनात्मक व्यवस्था को प्रतिपादित करना है। समय के साथ-साथ इन संस्थाओं की सत्ता में वृद्धि होती जाती है तथा ये विद्यार्थियों में सामाजिक बोध को अधिक प्रभावित करती है।

(4) विविध सामाजिक समस्याओं का अध्ययन (To Study about the Various Social Problems) - अत्यंत वर्तमान की अनिवार्यता और वर्तमान भविष्य के लिए मार्गदर्शक है। पुस्तकों में घटी सामाजिक घटनाएं आने वाले समय पर अपना प्रभाव अवश्य छोड़ती हैं। इनका अध्ययन मानव को विश्लेषणात्मक चेतना प्रदान करता है जिससे अतित और वर्तमान की घटनाएं तथा सामाजिक समस्याओं का समाधान स्थापित करने में मदद मिलती है। इसी कारण अतित की घटनाओं का अध्ययन भी इसका महत्त्वपूर्ण अंग है।

(5) प्राकृतिक सम्पदा के विकास का अध्ययन (To Study about the Development of Natural Resource) - प्रकृति केवल प्राकृतिक सम्पदा तक ही सीमित नहीं, अपितु मानव के शिक्षक के रूप में भी देखी जाती है। देखने में यह विषय सामाजिक लगता है परन्तु दोनों का पारस्परिक सम्बन्ध बहुत गहरा है। प्रकृति की संरचना, मानव समाज के विकास में इसकी भूमिका, प्राकृतिक सम्पदा, महत्व तथा इसकी रक्षा, पर्यावरण एवं सन्तुलन आदि विषय सामाजिक हैं।

  1. सामाजिक अध्ययन/सामाजिक विज्ञान के अन्तर्गत विषयों (इतिहास, भूगोल, नागरिकशास्त्र, समाजशास्त्र, अर्थशास्त्र) के शिक्षण को विद्यालय में आवश्यकता है।

  2. सामाजिक अध्ययन का सर्वप्रथम प्रयोग अमेरिकी संयुक्त राज्य अमेरिका में किया गया। प्रारम्भ में 'सामाजिक अध्ययन' नाम विषयों को समूह के लिए दिया गया जिसमें इतिहास, नागरिकशास्त्र, अर्थशास्त्र आदि थे। नामकरण सन् 1892 में किया गया और बाद में इस समूह में समाजशास्त्र को भी जोड़ गया परन्तु 'सामाजिक अध्ययन' के रूप को सरकारों और से सन् 1916 तक मान्यता प्राप्त नहीं हुई। सन् 1916 ई० में अमेरिका में अले र स्टडिज समिति ने सामाजिक अध्ययन एशोसिएशन आफ द रिसर्चियल एजुकेशन एलेक्सेण्डर के प्रतीवेदन के आधार पर सामाजिक अध्ययन को एक पूर्ण विषय के रूप में अध्ययन करने की सिफारिश की। सन् 1921 ई० में इस विषय के सम्बन्ध में विस्तृत अध्ययन करने के लिए अमेरिका में 'राष्ट्रीय परिषद्' (National Council) का निर्माण किया गया। इस परिषद् ने विभिन्न विषयों के समन्वित रूप को समस्याओं का गहन अध्ययन किया। सन् 1934 में सोशल स्टडीज पर एक कमीशन की नियुक्ति की गई। इस कमीशन ने इसके स्वरूप के विकास के लिए कार्य किया। इसके उपरांत हज़ारों स्कूलों में अनुसंधान कार्य किये गये। जिनके फलस्वरूप सामाजिक एकीकृत स्वरूप का विकास हुआ और इसके एक स्वतंत्र विषय के रूप में स्वीकारा गया।

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