बी एड - एम एड >> बीएड सेमेस्टर-2 सामाजिक विज्ञान शिक्षण बीएड सेमेस्टर-2 सामाजिक विज्ञान शिक्षणसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीएड सेमेस्टर-2 सामाजिक विज्ञान शिक्षण - सरल प्रश्नोत्तर
अध्याय 1 - सामाजिक विज्ञान के अन्तर्गत कुछ विषयों को सम्मिलित करने का औचित्य
(Rationale of including certain Subjects Under Social Science)
प्रश्न- सामाजिक विज्ञान के अन्तर्गत कुछ निश्चित विषयों को सम्मिलित करने की कार्यप्रणालता पर अपने विचार व्यक्त कीजिए।
उत्तर -
सामाजिक विज्ञान के अन्तर्गत कुछ विषयों को सम्मिलित करने की तर्कसंगतता
मानव एक सामाजिक प्राणी है, जो समाज में रहकर अपना विकास करता है। वह समाज में मानवीय समस्याओं का अध्ययन सामाजिक विज्ञान के अन्तर्गत किया जाता है। आमतौर में मानवीय समस्याओं को विभिन्न विषयों - अर्थशास्त्र, भूगोल एवं इतिहास के अन्तर्गत अध्ययन कराया जाता था। एवं व्यक्ति को मानवीय समस्याओं की समस्या, गहराई एवं उसके महत्व से परिचित कराया जाता था। इस तरह अर्थशास्त्र, भूगोल एवं इतिहास में जो प्रत्यक्ष रूप से मानवीय व्यवहार एवं समस्याओं को अलग-अलग स्पष्ट करते हैं एवं सामाजिक विज्ञान उनको एक रूप करते हैं क्योंकि व्यक्ति एवं समाज एक-दूसरे से अलग नहीं हो सकते। इसलिये मानवीय समस्याओं की स्पष्टता के लिये विषयों को एकीकृत रूप में प्रस्तुत करना मानवीय अनुभव बन गई है। प्रौद्योगिकी एवं विज्ञान ने आज विश्व को प्रभावित किया है। अब विश्व की सीमाओं को मिटा दिया है। आज विश्व के देशों के मध्य दूरी कम हो गई है। विज्ञान द्वारा संचार की व्यवस्था, संस्कृति एवं सामाजिक परिवर्तन दूसरे देश की समस्याएं संस्कृति एवं सामाजिक परिवर्तन को प्रभावित करते हैं। इसके परिणामस्वरूप आज समाज में मानवीय सम्बन्धों में जटिलता आ गई है। विज्ञान और प्रौद्योगिकी सम्बन्धों के एकांगी स्पष्टिकरण बाधा बनें हैं उद्देश्य की पूर्ति कर सकते हैं। इसलिये मानवीय समस्याओं के एकांगी स्पष्टिकरण पिछड़े दिनों के उद्देश्यों की पूर्ति कर सकते हैं। मानवीय सम्बन्धों के स्पष्टिकरण के लिये विद्यालयों में विविध प्रकार के व्यावसायिक शिक्षाओं की आवश्यकता अनुभव नहीं की गई थी। विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी ने अब विश्व के कोने-कोने को प्रभावित कर दिया है। आज विश्व के देशों के मध्य दूरी कम हो गई है। इससे राज्य, संस्कृति एवं सामाजिक परिवर्तन दूसरे देश की समस्याएं, संस्कृति एवं सामाजिक परिवर्तन को प्रभावित करते हैं। इसके परिणामस्वरूप आज समाज में मानवीय सम्बन्धों में जटिलता आ गई है। जिस कारण व्यक्ति के आत्म एवं स्वभाव में परिवर्तन आ गये हैं। इसके साथ ही मानवीय सम्बन्धों में जटिलता आ गई है। वर्तमान में विद्यालयों में पढ़ाये जाने वाले जटिल मानव सम्बन्धों के विषयों की किसी विशेष शाखा की आशा नहीं की जा सकती। इसलिये विद्यालयों में पढ़ाये जाने वाले सामाजिक समस्याओं के अध्ययन हेतु किसी विशेष प्रयोगिक सिद्धि की रही है। भूगोल, अर्थशास्त्र जैसे तत्वों के विषय में उचित रूप से ज्ञान नहीं कराता है एवं न ही मानव आचरण तथा अन्तःक्रिया की दशाओं का। वर्तमान विश्व नागरिकता की तैयारी के रूप में विद्यालयों में नागरिकशास्त्र की भूमिका अत्यंत सीमित है। नागरिकशास्त्र केवल स्थानीय मामलों के व्यवहार में संलग्न है। यह स्पष्ट नहीं करता कि सामाजिक समूह किस तरह क्रिया करते हैं या वे जीवन नागरिक अनुभवों में योगदान करते हैं। इस तरह अध्ययन में व्यक्ति के अनुभवों से सम्बन्धित क्रियाओं की अध्ययन करता है। यह मनुष्य के क्रियात्मक अनुभवों के आधार पर आर्थिक, सामाजिक सम्बन्ध स्थापित करने की सूझ उत्पन्न नहीं करता है तथा न ही व्यक्ति के आर्थिक दृष्टिकोण को विस्तृत करता है।
डॉ. रामस्वरूप व्यास के अनुसार - “वर्तमान समय में विविध तथा जटिल मानवीय सम्बन्धों के विषय में ज्ञान देने वाले विभिन्न विषयों में इतिहास, भूगोल एवं अर्थशास्त्र विषय को अलग-अलग ज्ञान से छात्रों को अवगत कराया जाता है, जो कि शिक्षा हेतु पूर्णत: एकांगी तथा अनुपयुक्त उपाय है। वह विषय उन पर कोई प्रकाश नहीं डालता है अथवा सामाजिक दशाओं एवं समस्याओं के लिये सूत्र प्रदान नहीं करता है अथवा वस्तुओं की विविधत स्थिति में सुधार के लिये सूझ उत्पन्न नहीं करता है, उनकी शिक्षार्थी साक्षरता प्राप्त होगी।”
इसलिए वर्तमान समय में इन विषयों के समन्वित विशिष्टिकरण के स्थान पर एकीकृत विषय के अध्ययन की आवश्यकता है ताकि मानवीय क्रियाओं एवं व्यवहारों को उनके सामाजिक समूहों से सम्बन्ध के रूप अध्ययन किया जा सके एवं मानवीय सम्बन्ध में नवीन तथ्यों की खोज की जा सके। इस लिये सामाजिक अध्ययन/विज्ञान विषय पूर्णत: उपयुक्त है।
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