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बीएड सेमेस्टर-2 वाणिज्य शिक्षण

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :160
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2762
आईएसबीएन :0

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बीएड सेमेस्टर-2 वाणिज्य शिक्षण - सरल प्रश्नोत्तर

प्रश्न-. शिक्षण में प्रश्नोत्तर विधि के गुणों एवं दोषों का वर्णन कीजिए।

उत्तर-

प्रश्नोत्तर विधि - वाणिज्य शिक्षण में प्रश्नोत्तर विधि बहुत महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है।अध्यापक छात्रों के पूर्वज्ञान का परीक्षण लेने, उनकी बोधता का पता लगाने के लिए छात्रों से पाठ के विकास के लिए व पाठ की पुनरावृत्ति के लिए भी प्रश्न पूछता है।प्रश्न पूछना व छात्रों से पूछे प्रश्नों का उत्तर- लेना एक कला है। छात्रों से प्रश्न पूछने से उनकी बोध शक्ति व चिन्तन शक्ति का विकास होता है। छात्र जागरूक व क्रियाशील बना रहता है। प्रश्नों के द्वारा अध्यापकों को छात्रों की व्यक्तिगत समस्याओं का पता चलता है और अध्यापक उनको दूर करने का प्रयास करता है।अतः अध्यापक को चाहिए कि वह स्पष्ट, सरल व उपयुक्त प्रश्न छात्रों से पूछे। हां या ना वाले प्रश्न नहीं पूछने चाहिए।

प्रश्नोत्तर विधि के लाभ

(i) छात्र द्वारा सक्रिय भूमिका - इस विधि में छात्रों को हमेशा चेतनशील व सक्रिय रहना पड़ता है। अध्यापक किसी भी छात्र से उत्तर- देने के लिए कह सकता है। अतः वें अध्यापक की बात को ध्यानपूर्वक व रुचिपूर्वक सुनते हैं।

(ii) स्वाध्ययन में सहायक - प्रश्नोत्तर विधि से छात्रों को स्वाध्ययन की आदत मिलती है। छात्रों को कक्षा में पूछे हुए प्रश्नों का सही उत्तर- देना पड़ता है अतः वे स्वाध्ययन में रुचि लेते हैं।

(iii) मानसिक शक्तियों का विकास - प्रश्नोत्तर विधि के द्वारा छात्रों में मननशक्ति, कल्पना-शक्ति, तर्क शक्ति आदि विकसित होती है।

(iv) सभी छात्रों द्वारा भाग लेना - इस विधि में सभी छात्र सक्रिय रूप से भाग ले सकते हैं। अध्यापक बारी-बारी से सभी छात्रों से प्रश्न पूछ कर उन्हें उत्तर- देने का अवसर प्रदान कर सकता है। अत. छात्रों को भी इस विधि के द्वारा बोलने का अवसर मिलता है।

प्रश्नोत्तर विधि की सीमाएँ व अवगुण

(i) सीमित उपयोगिता - यह विधि सभी कक्षाओं तथा सभी प्रकरणों को पढ़ाने के लिए उपयोगी नहीं है। यह केवल उच्च कक्षाओं में ही अच्छी तरह से लागू हो सकती है।

(ii) ज्यादा समय - ज्यादा समय इस विधि द्वारा पढ़ाने से ज्यादा समय लगता है क्योंकि अच्छे प्रश्नों के निर्माण करने तथा छात्रों से उनके उत्तर- लेने में काफी समय लग जाता है और पाठ्यक्रम को समय पर पूरा नहीं किया जा सकता !

(iii) इस विधि को प्रशिक्षित अध्यापक ही भली-भाँति अपना सकता है ! हमारे देश में प्रशिक्षित अध्यापकों की कमी होने की वजह से यह सभी विद्यालयों में लागू नहीं हो सकती।

(iv) नीरस व अरुचिकर वातावरण - कई बार अध्यापक अस्पष्ट व कठिन प्रश्न पूछ लेता है जिसे छात्र समझने व उत्तर- देने में असमर्थ होते हैं तथा कक्षा का वातावरण नीरस व अरुचिपूर्ण बन जाता है।

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