बी एड - एम एड >> बीएड सेमेस्टर-2 वाणिज्य शिक्षण बीएड सेमेस्टर-2 वाणिज्य शिक्षणसरल प्रश्नोत्तर समूह
|
5 पाठक हैं |
बीएड सेमेस्टर-2 वाणिज्य शिक्षण - सरल प्रश्नोत्तर
प्रश्न- वाणिज्य शिक्षण में पाठ योजना का अर्थ एवं महत्त्व बताइए।
उत्तर-
योजना जीवन में प्रत्येक पहलू में आवश्यक है। अपितु बिना योजना के किया हुआ काम धन, समय तथा शक्ति को व्यर्थ गंवाता है। बिना योजना के शिक्षण भी कभी सफल नहीं हो सकता।एक बहुत सफल तथा अनुभवी अध्यापक भी यदि बिना योजना के कक्षा में प्रवेश करता है तो वह अपने उद्देश्य में सफल नहीं होगा और अपना बहुत-सा समय व्यर्थ की बातों में गंवा देगा। एल. बी. सैण्डस के अनुसार- 'उव्वास्तव में कार्य की योजना ही पाठ योजना है। इसके अन्तर्गत अध्यापक का दर्शन, ज्ञान, उसकी अपने विद्यार्थियों के सम्बन्ध में जानकारी, शैक्षिक उद्देश्य की प्राप्ति, उसका दृष्टिकोण, उसका विषय-वस्तु सम्बन्धी ज्ञान तथा प्रभावपूर्ण विधियों के प्रयोग सम्बन्धी उसकी योग्यता बातें भी आ जाती हैं।"
बौसिंग महोदय के अनुसार- 'व्पाठ योजना उस विवरण का नाम है जिनमें यह स्पष्ट किया जाता है कि किसी पाठ से क्या उपलब्धियाँ प्राप्त करनी हैं और उन्हें किन साधनों द्वारा कक्षाओं की क्रियाओं के फलस्वरूप प्राप्त करना है।"
लैंडन के अनुसार- व्हम पाठ्य-सूत्र को कागज पर स्पष्ट रूप से अंकित की जाने वाली पाठ क़ी रूपरेखा कहकर परिभाषित कर सकते हैं जिसमें पाठ के सबसे महत्त्वपूर्ण तथ्य होते हैं, चाहे उनका सम्बन्ध विषय - सम्बन्धी हो या विधि से।"
पाठ-योजना का महत्त्व
प्रकरण के आरम्भ में हमने पाठ योजना के महत्त्व तथा उपयोगिता के बारे में संक्षिप्त विवरण प्रकरण को आरम्भ करने के संदर्भ में किया था। अब इस महत्त्व का विस्तार में चर्चा करेंगे।
पाठ को पढ़ाने से पहले इसकी योजना बनानी बड़ी आवश्यक है। पाठ-योजना बनाने के निम्नलिखित लाभ हैं-
(i) शिक्षा के उद्देश्यों की प्राप्ति सम्भव - पाठ योजना में पढ़ाए जाने वाले पाठ के उद्देश्य निश्चित किए जाते हैं और इन उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए पाठ्यक्रम तथा शिक्षण विधियों को भी निश्चित किया जाता है। परिणामस्वरूप शिक्षण बड़े नियोजित ढंग से चलता है।
(ii) पाठ का क्रमबद्ध विकास - क्योंकि अध्यापक पहले से ही योजना बनाकर लाता है। इसलिए पाठ क्रमबद्ध ढंग से विकसित होता है और अनावश्यक बातों पर समय का अपव्यय नहीं होता।
(iii) शिक्षक तथा शिक्षार्थियों के कार्य का निर्धारण पाठ योजना बनाते समय अध्यापक इस बात का भी निर्धारण कर लेता है कि उसे कौन-कौन सी क्रियाएँ करनी हैं और छात्रों को कौन-कौन-सी? इसके परिणामस्वरूप कक्षा में दोनों पक्ष क्रियाशील रहते हैं।
(iv) आत्मविश्वास का विकास - पाठ योजना बनाते समय अध्यापक पाठ्य सामग्री का स्पष्ट ज्ञान प्राप्त कर लेता है।वह पहले से ही उन विधियों पर विचार कर लेता है जो पाठ को विद्यार्थियों के समक्ष भी स्पष्ट बना दें। पाठ को रुचिकर बनाने के लिए उसे कौन-कौन सी साज-सज्जा को लेकर कक्षा में प्रवेश करना है, इस बात का निर्णय भी वह पहले से ही करेगा। इन सब बातों से उसमें बड़ा आत्मविश्वास विकसित होता है। यदि कक्षा में आत्मविश्वास के साथ वह अध्यापन करवा रहा हो तो कक्षा में जीवन रहता है।
(v) अध्यापक का मार्गदर्शन प्रदान करना - पाठ योजना अध्यापक का ठीक मार्गदर्शन करती है। इसके कारण अध्यापक जिस विषय को पढ़ा रहा होता है उसमें सीमाएँ बाँध लेता है।
(vi) आवश्यक सामग्री की तैयारी - पाठ योजना बना समय अध्यापक इस बात पर भी विचार करेगा कि पाठ को पढ़ाने के लिए उसे किस प्रकार की सहायक सामग्री का प्रयोग करना चाहिए। किस तथ्य को किस विधि या युक्ति से स्पष्ट करना होगा। ऐसा होने पर वह सहायक सामग्री को पहले से ही जुटा लेगा।
(vii) पाठ विद्यार्थियों की रुचि, आयु, अवस्था तथा आदतों के अनुसार - यदि पाठ-योजना का सोच-समझकर निर्माण किया गया है तो उसमें विद्यार्थियों की पाठ में रुचि बढ़ेगी और अध्यापक विद्यार्थियों की आयु, अवस्था तथा आदतों का ध्यान रखेगा। इससे पाठ प्रभावशाली बन जाएगा।
(viii) सह-सम्बन्ध - क्योंकि पाठ योजना द्वारा पाठ्यक्रम योजनाबद्ध ढंग से पूरा किया जाता है। इसलिए भिन्न-भिन्न पाठों को एक-दूसरे से सम्बन्ध बना रहेगा तथा पाठ्यक्रम में निरन्तरता बनी रहेगी।
(ix) व्यक्तिगत शंकाओं का समाधान सम्भव - पाठ योजना बनाने से अध्यापक को पाठ की पूरी तैयारी हो जाती है। उसके मस्तिष्क में पाठ की पूरी रूप-रेखा होती है। इसलिए वह बच्चों की शंकाओं का समाधान कर सकता है।
(x) समय और शक्ति का सदुपयोग - पाठ-योजना बना लेने से समय और शक्ति का सदुपयोग होता है। अध्यापक कक्षा में एक तार्किक क्रम से आगे बढ़ता है।
(xi) मूल्यांकन सम्भव - पाठ योजना बनाने से अध्यापक शिक्षण के प्रभाव का मूल्यांकन भी कर सकता है। मूल्यांकन के उपरान्त अध्यापक अपनी शिक्षण विधियों में सुधार करते हैं।
(xii) शिक्षण विधियों का चयन - शिक्षण के उद्देश्य निश्चित करने के पश्चात् अध्यापक को उचित शिक्षण विधियों के चयन की आवश्यकता होती है। कई नई-पुरानी शिक्षण विधियाँ प्रचलित हैं, जैसे- पाठ्य पुस्तक विधि, भाषण विधि, वाद-विवाद विधि, समस्या विधि, प्रोजेक्ट विधि आदि। कौन - सी शिक्षण विधि पाठ्य विषय को पढ़ाने के अनुकूल होगी, इस बात का निर्णय पहले से लेना होगा।यह निर्णय लेते समय अध्यापक को विद्यार्थियों की योग्यताओं एवं क्षमताओं का भी ध्यान रखना होता है और चुनी हुई शिक्षण विधि की कार्य-प्रक्रिया का भी ध्यान रखना होता है। इसलिए आवश्यक है कि शिक्षण - विधि की कार्य-प्रक्रिया को लिख लिया जाए ताकि उसके सुनिश्चित संचालन में अध्यापक को किसी प्रकार की कठिनाई का सामना न करना पड़े। अतः 'व्पाठ योजना' शिक्षण विधि की प्रक्रिया के सु-संचालन में सहायक सिद्ध होती है।
(xiii) पाठ्यक्रम को समय पर समाप्त करने में सहायक - अध्यापक को निश्चित समय में निर्धारित पाठ्यक्रम समाप्त करना होता है। इसके लिए आवश्यक है कि समूचे पाठ्यक्रम को मासिक तथा त्रैमासिक इकाइयों में बांट दिया जाए और फिर प्रत्येक इकाई को दैनिक पाठ योजना में विभाजित कर दिया जाए। इस प्रकार पाठ्यक्रम सन्तुलित रूप से समाप्ति की ओर अग्रसर होगा। पाठ-योजना में अध्यापक को पता लगता रहता है कि कितना पाठ्यक्रम समाप्त हो गया है और कितना शेष रह गया है। पाठ-योजनाओं के अभाव में अध्यापक एक ही पाठ को दो-दो, तीन-तीन बार पढ़ाने की भूल कर बैठता है। इस प्रकार पाठ योजना अध्यापक को समय पर पाठ्यक्रम समाप्त करने में सहायक सिद्ध होती है।
उपर्युक्त विवेचन से स्पष्ट है कि शिक्षण कार्य में पाठ योजना का महत्त्वपूर्ण स्थान है। अनुभवी अध्यापक भी किसी न किसी रूप में पाठ योजना बनाते हैं। वे भले ही विस्तृत पाठ योजना न बनाएं, परन्तु वे संक्षिप्त रूप से पाठ योजना अवश्य बना लेते हैं।
|