बी एड - एम एड >> बीएड सेमेस्टर-2 वाणिज्य शिक्षण बीएड सेमेस्टर-2 वाणिज्य शिक्षणसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीएड सेमेस्टर-2 वाणिज्य शिक्षण - सरल प्रश्नोत्तर
प्रश्न- वाणिज्य शिक्षा की प्रकृति एवं क्षेत्र की विवेचना कीजिए।
अथवा
वाणिज्य की प्रकृति क्या है?
अथवा
वाणिज्य का क्षेत्र क्या है?
उत्तर-
वाणिज्य शिक्षा की प्रकृति - वाणिज्य एवं वाणिज्य शिक्षा की अनेक परिभाषाओं का विश्लेषण करने पर हम वाणिज्य शिक्षा के विषय में निम्नलिखित निष्कर्ष निकालते हैं-
(i) वाणिज्य शिक्षा, अध्ययन का एक ऐसा विषय है जो मनुष्यों को व्यावसायिक एवं आर्थिक क्रियाओं का ज्ञान देती हैं।
(ii) वाणिज्य शिक्षा विद्यालयों में या विद्यालयों से बाहर दिया जाने वाला कार्य प्रशिक्षण है।
(iii) वाणिज्य शिक्षा के अन्तर्गत ऐसी पाठ्य वस्तु शामिल की जाती है जिसके अध्ययन के परिणामस्वरूप मनुष्य समाज में आर्थिक व व्यावसायिक रूप से समायोजित हो सकता है।
(iv) वाणिज्य शिक्षा के अन्तर्गत मानवीय सम्बन्धों एवं मनुष्य से जुड़े हुए क्रिया-कलापों का अध्ययन किया जाता है।
(v) इसके द्वारा मनुष्यों को अनेक व्यवसायों हेतु तैयार किया जाता है और उनमें व्यावसायिक कुशलताओं का विकास किया जाता है।
(vi) वाणिज्य शिक्षा के अन्तर्गत धन संग्रह करना और उसका समुचित उपयोग करना सिखाया जाता है।
(vii) वाणिज्य शिक्षा के द्वारा सुयोग्य नागरिक तैयार किये जा सकते हैं जो देश के विकास के साथ-साथ अन्तर्राष्ट्रीय सद्भावना एवं विकास में सहायक हो सकते हैं।
(viii) वाणिज्य शिक्षा एक ऐसी शिक्षा है जो उपभोक्ताओं और उत्पादकों के मध्य कड़ी के लिए मनुष्यों को तैयार करती है।
वाणिज्य शिक्षा का क्षेत्र - किसी विषय के क्षेत्र से तात्पर्य अध्ययन का घेरा होता है। इसमें विषय की व्यापकता, विविधता तथा अनुभव रखने की सीमा उस विषय के अध्ययन से होने वाले लाभों एवं उपयोगिताओं का अध्ययन किया जाता है।
वाणिज्य का क्षेत्र निम्नवत् समझा जा सकता है-
(1) व्यापार (Trade) - सामान्य रूप से व्यापार से आशय वस्तुओं के क्रय-विक्रय से लगाया जाता है। क्रय-विक्रय का उद्देश्य पारस्परिक लाभ कमाना होता है। एक क्रेता किसी वस्तु को उसी अवस्था में खरीदता है जबकि उसे उस वस्तु के विक्रय से लाभ हो। व्यापार का आशय क्रेता व विक्रेता दोनों के पारस्परिक लाभ हेतु वस्तुओं के विनिमय से है। व्यापार के अन्तर्गत वस्तुओं व सेवाओं को प्रत्यक्ष रूप से ग्राहकों को बेचा जाता है। व्यापार के अन्तर्गत उपभोक्ताओं को वस्तुओं का विक्रय प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप से होता है।
वाणिज्य शिक्षा का प्रमुख क्षेत्र व्यापार है जिसमें व्यापार सम्बन्धी नियमों, सिद्धान्तों एवं कार्य - व्यवहारों का अध्ययन होता है।
(2) व्यापार में सहायक क्रियाएँ (Auxiliaries to Trade) - वाणिज्य में व्यापार के साथ-साथ व्यापार में सहायक क्रियाएँ भी सम्मिलित की जाती हैं। वस्तुओं के वितरण में आने वाली वैयक्तिक समस्या व्यापार द्वारा हल की जाती है और अन्य समस्याएँ, जैसे- समय, स्थान, जोखिम "आदि को व्यापार में सहायक क्रियाओं द्वारा दूर किया जाता है। व्यापार में सहायक क्रियाओं में परिवहन, बैंक, बीमा, गोदाम, संचार आदि सम्मिलित हैं। विज्ञापन एजेन्सियों, अनुसन्धान एजेन्सियों आदि से भी वस्तुओं का वितरण कार्य सुविधाजनक बनाने में मदद मिल रही है। अब इन्हें भी व्यापार में सहायक क्रियाओं में सम्मिलित किया जाने लगा है। व्यापार में सहायक क्रियाएँ अत्यन्त महत्वपूर्ण होती हैं और इन्हें व्यवसाय का जीवन-रक्त कहना समीचीन होगा।
व्यापार की सहायक क्रियाओं में निम्नलिखित शामिल हैं-
(1) यातायात (Transport) - यातायात में वस्तुओं व यात्रियों को एक स्थान से दूसरे स्थान को लाने व ले जाने की क्रियाओं का अध्ययन होता है। यातायात हेतु मार्ग का चुनाव, वाहनों की अनुसूची बनाना, कागजात उपलब्ध कराना, आदि भी यातायात के कार्यों में आते हैं।
(2) बैंकिंग एवं वित्त (Banking and Financial) - व्यापारिक विकास में अच्छी बैंकिंग व्यवस्था महत्वपूर्ण योगदान देती है। बैंकें धनराशि जमा करने, धनराशि, निकालने, ऋण देने, धन का अन्तरण करने सम्बन्धी सेवाएँ देकर व्यापारिक एवं औद्योगिक उन्नति में सहयोग देती हैं।
(3) बीमा (Insurance) - बीमा व्यक्ति एवं व्यापार को दुर्घटना से होने वाली क्षति की प्रतिपूर्ति करने का कार्य करता है। बीमा से बीमित माल, दुकान, गोदाम, व्यक्ति आदि की क्षति पूर्ति होती है।
अर्थशास्त्र को वाणिज्य शिक्षा के क्षेत्र में शामिल किया जाता है क्योंकि वाणिज्य में धन कमाने हेतु की जाने वाली आर्थिक क्रियाओं का अध्ययन होता है। प्राकृतिक सम्पदाओं का उत्पादन व उपभोग, वस्तुओं की आवश्यकता पूर्ति आदि की जानकारी अर्थशास्त्र में मिलती है।
वाणिज्य शिक्षा की विषय-वस्तु - आज हम विज्ञान एवं तकनीकी युग में बैठे हैं। सम्पूर्ण जगत में औद्योगिक क्रान्ति आई है और मनुष्यों की आवश्यकताएँ भी हर रोज बढ़ती जा रही हैं। वाणिज्य हमारे आर्थिक एवं व्यावसायिक क्रियाओं का अध्ययन करता है। इस प्रकार वाणिज्य शिक्षा का क्षेत्र बहुत व्यापक है। वाणिज्य शिक्षा की प्रमुख विषय-वस्तु को हम दो वर्गों में विभाजित कर सकते हैं-
(क) व्यापार - व्यापार का सम्बन्ध माल के क्रय विक्रय से है। व्यापारियों का कार्य उत्पादकों एवं उपभोक्ताओं के मध्य सम्पर्क स्थापित करना होता है। इनमें दुकानदार, विक्रेता, आढ़ती आदि सम्मिलित हैं। व्यापार भी दो तरह का हो सकता है-
(i) देशी व्यापार - यह वह व्यापार है जो किसी राष्ट्र की सीमाओं से भीतर अनेक शहरों के मध्य या उसी शहर में अनेक लोगों के मध्य हो सकता है। देशी व्यापार थोक व फुटकर दोनों प्रकार का हो सकता है।
(ii) विदेशी व्यापार - यह वह व्यापार है जो एक राष्ट्र दूसरे देश के साथ करता है। इसमें वस्तुओं को क्रय करने वाले व विक्रय करने वाले पृथक्-पृथक् राष्ट्र के लोग होते हैं। यह व्यापार आयात व निर्यात दो प्रकार का होता है।
(ख) व्यापार के सहायक - व्यापार को चलाने के लिए विविध प्रकार के तत्त्वों की मदद ली जाती है जिन्हें व्यापार के सहायक कहा जाता है। इसके बगैर व्यापार सफलतापूर्वक नहीं चल सकता। व्यापार के प्रमुख सहायकों में परिवहन का बहुत महत्त्व है। परिवहन तीनों मार्गों द्वारा किया जाता है और तैयार माल को उपभोक्ताओं तक पहुँचाया जाता है। परिवहन के अतिरिक्त संदेशवाहन जैसे- टेलीफोन, डाकखाने, तार आदि व्यापार में सहायक हैं। बीमा भी माल को विभिन्न खतरों से बचाने में सहायक है। आजकल सभी कार्य खतरों से भरे हैं इसलिए व्यापार में बीमा का भी महत्त्वपूर्ण स्थान है। इनके अतिरिक्त बैंकिंग एवं वित्त भण्डारगृह, विज्ञापन आदि ऐसे व्यापार के सहायक हैं जिनका पठन वाणिज्य शिक्षा के अन्तर्गत किया जाता है-
वाणिज्य-विज्ञान एवं कला दोनों - “विज्ञान ज्ञान का क्रमबद्ध अध्ययन है जो कि कार्य के कारण तथा परिणामों के पारस्परिक सम्बन्ध को बताता है।"
इसके नियम व सिद्धान्त सार्वजनिक होते हैं। यह कारण एवं परिणाम के सम्बन्धों का विश्लेषण करता है। इसमें पूर्वानुमान की शक्ति होती है।
वाणिज्य को भी विज्ञान की संज्ञा दी जाती है क्योंकि यह ज्ञान का क्रमबद्ध व व्यवस्थित भण्डार है। इसमें इसके अपने नियम व सिद्धान्त दोनों होते हैं। यह कारण एवं परिणाम के सम्बन्धों का विश्लेषण भी करता है। अतः वाणिज्य एक विज्ञान है।
वाणिज्य कला के रूप में
प्रो. जे. एम. कीन्स के अनुसार- "कला एक दिये हुए उद्देश्य के लिए नियमों की प्रणाली है।”
प्रो. कोसा से अनुसार- "विज्ञान केवल व्याख्या करता है जबकि कला साध्यों की प्राप्ति के लिए विचारों का प्रतिपादन करती है।"
कला तथ्यों का वर्णन नहीं करती परन्तु लक्ष्यों को प्राप्त करने का तरीका बताती है। कला की साधना करने में विशेष चतुराई, अनुभव और आत्मसंयम की जरूरत होती है।
वाणिज्य एक कला भी है क्योंकि यह व्यावसायिक सफलता का पहलू बताता है। बहुत से व्यावसायिक संगठनों व प्रबन्धों हेतु आजकल प्रशिक्षण दिया जाता है। अतः हम कह सकते हैं कि वाणिज्य कला एवं विज्ञान दोनों है।
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