बी एड - एम एड >> बीएड सेमेस्टर-2 वाणिज्य शिक्षण बीएड सेमेस्टर-2 वाणिज्य शिक्षणसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीएड सेमेस्टर-2 वाणिज्य शिक्षण - सरल प्रश्नोत्तर
अध्याय 1 - वाणिज्य : अर्थ एवं प्रकृति
(Commerce - Meaning and Nature)
प्रश्न- वाणिज्य एवं वाणिज्य शिक्षा से आप क्या समझते हैं? परिभाषित कीजिए।
'अथवा
वाणिज्य शिक्षा को परिभाषित कीजिए।
उत्तर-
वाणिज्य का अर्थ - वाणिज्य अथवा अंग्रेजी के 'बिजनेस' शब्द का जन्म 'व्यस्त' एवं "बिजी' शब्द से हुआ है। कुछ लोग वाणिज्य का '1 अर्थ केवल आर्थिक ढाँचे से लगाते हैं। उनके अनुसार-वाणिज्य मानवीय जरूरतों को पूरा करने का उत्तर-दायित्व निभाने वाली एक प्रणाली है। उनके अनुसार-वे सभी व्यक्ति जो प्राथमिक जरूरतों की सन्तुष्टि करने में सहायता करते हैं जैसे-डॉक्टर, वकील, नर्स, शिक्षक आदि सभी वाणिज्य में सम्मिलित हैं लेकिन वाणिज्य शिक्षा सभी प्रकार के व्यवसायों के लिए लोगों को तैयार नहीं करती। उदाहरण के लिए डॉक्टर के कार्य को वाणिज्य शिक्षा में सम्मिलित नहीं किया जा सकता।
वाणिज्य का अर्थ समय-समय पर बदलता रहता है। कुछ प्रमुख परिभाषाएँ इस प्रकार हैं-
वाणिज्य के अन्तर्गत वे सभी क्रियाएँ शामिल हैं जिनका सम्बन्ध वस्तुओं के वितरण से लेकर उपभोक्ताओं तक पहुंचाना है।
जेम्स स्टेफेन्सन के अनुसार- "वाणिज्य से तात्पर्य उन समस्त साधनों के योग से है जिनके द्वारा वस्तुओं के विनिमय में व्यक्तियों (व्यापार), स्थान (यातायात एवं बीमा) तथा समय (भण्डार गृह) की बाधाओं को दूर करने में संलग्न है।"
सैने ए. हार्ट के शब्दों में - “वाणिज्य आर्थिक ढाँचे का वह पहलू है जो व्यवसाय एवं औद्योगिक उत्पादन के प्रबन्ध एवं वितरण से सम्बन्धित रहता है। इस प्रकार यह सम्पूर्ण आर्थिक ढाँचे का समन्वयकारी तत्त्व है।"
एकलीन थॉमस के अनुसार- "वस्तुओं के क्रय-विक्रय, वस्तुओं के विनिमय और निर्मित माल के वितरण को वाणिज्य कहते हैं।"
अतः हम कह सकते हैं कि वाणिज्य एक व्यापक अर्थ वाला शब्द है जिसमें वे सभी क्रियाएँ शामिल की जाती हैं जिनका सम्बन्ध वस्तुओं को उपभोक्ताओं तक न्यूनतम असुविधा के द्वारा पहुँचाया जाता है।
वाणिज्य के अन्तर्गत व्यापार एवं व्यापार से सम्बन्धित क्रियाएँ जैसे- यातायात, बैंकिंग, बीमा, संदेशवाहन, वित्तीय संस्थाएँ, क्रय-विक्रय कला, उत्पादन केन्द्र, मण्डियाँ, डाकघर, भण्डार गृह तथा विज्ञापन आदि सम्मिलित हैं।
वाणिज्य शिक्षा का अर्थ - वाणिज्य शिक्षा की परिभाषा समाज, राष्ट्र एवं विश्व की आर्थिक क्रियाओं एवं दशाओं के अनुसार-समय-समय पर परिवर्तित होती हैं। सबसे पहले 1904 में चिसमेन ए. हरिक ने वाणिज्य शिक्षा को इस प्रकार परिभाषित किया
"वाणिज्य शिक्षा शिक्षण का वह रूप है जो प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से व्यापारी को उनके कार्यों हेतु तैयार करता है।"
लेकिन उपरलिखित परिभाषा वाणिज्य शिक्षा के संकीर्ण रूप को प्रदर्शित करती है क्योंकि इसमें केवल व्यापारियों को ही शामिल किया गया है जबकि अन्य प्रकार की सेवाओं को इस परिभाषा में कोई स्थान नहीं दिया गया है। अतः यह परिभाषा मान्य नहीं हो सकती है।
एस. लॉन ने 1922 में वाणिज्य शिक्षा को इस प्रकार परिभाषित किया है-
"वह शिक्षा जो व्यापारी के पास है और जो उसको अधिक उपयुक्त व्यापारी बनाती है, उसके लिए वाणिज्य शिक्षा है, चाहे वह विद्यालय की चहारदिवारी में प्राप्त की गई अथवा नहीं।"
इस परिभाषा के अनुसार- वाणिज्य शिक्षा को मात्र स्कूल के भीतर ही प्राप्त नहीं किया जा सकता बल्कि विद्यालय से बाहर जो कार्य प्रशिक्षण व्यक्ति प्राप्त करता है वह भी वाणिज्य शिक्षा कही जाती है। लोन ने यह स्पष्ट नहीं किया कि विद्यालय में वाणिज्य शिक्षा में किस प्रकार का प्रशिक्षण छात्रों को प्रदान किया जाना चाहिए।
लोमेक्स (1928) के शब्दों में - “वाणिज्य शिक्षा मुख्य रूप से आर्थिक शिक्षा कार्यक्रम है जो धन उपलब्ध संचित और उसको व्यय करने से सम्बन्धित है।"
संयुक्त राज्य अमेरिका की वाणिज्य शिक्षकों की राष्ट्रीय समिति ने वाणिज्य शिक्षा को इस प्रकार परिभाषित किया है-
"वाणिज्य शिक्षा, शिक्षा प्रक्रिया का वह पक्ष है जो एक ओर व्यापारिक धन्धों की व्यावसायिक तैयारी से सम्बन्धित है और दूसरी ओर वाणिज्य सम्बन्धी सूचनाओं से सम्बन्धित है जो प्रत्येक नागरिक एवं उपभोक्ता के लिए आर्थिक और वाणिज्यिक वातावरण को ठीक प्रकार से समझने हेतु महत्त्वपूर्ण हैं।"
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