बी एड - एम एड >> बीएड सेमेस्टर-2 वाणिज्य शिक्षण बीएड सेमेस्टर-2 वाणिज्य शिक्षणसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीएड सेमेस्टर-2 वाणिज्य शिक्षण - सरल प्रश्नोत्तर
प्रश्न- विषयों के सहसम्बन्ध से क्या आशय है?
उत्तर-
(Meaning of Correlation of Subjects)
सामान्यतया सहसम्बन्ध का शाब्दिक अर्थ पारस्परिक सम्बन्ध से होता है। शैक्षिक दृष्टि से सहसम्बन्ध का अर्थ विभिन्न विषयों में पारस्परिक सम्बन्ध स्थापित करके पढ़ाने से है। विषयों के पारस्परिक सम्बन्ध को शिक्षा में समन्वय या सहसम्बन्ध कहते हैं।
बरनार्ड के विचारानुसार- "सहसम्बन्ध विद्यालय के विभिन्न विषयों को यथासम्भव एक-दूसरे से सम्बन्धित करने का प्रयास करता है।
डमविल के विचारानुसार- “एक विषय को दूसरे विषय के अधीन करने के सिद्धान्त को सहसम्बन्ध के नाम से वर्णित किया जाता है ।"
सह-सम्बन्ध का अर्थ है - परस्पर सम्बन्ध स्थापित करना।सह-सम्बन्ध को दूसरे शब्दों में समन्वय भी कहा जा सकता है। कोई भी विषय अपने आप में पूर्ण नहीं है। एक विषय को दूसरे विषय के साथ जोड़ने से छात्र पढ़ने एवम् याद करने में अधिक रुचि लेते हैं।
गृह विज्ञान शिक्षण में सह-सम्बन्ध का महत्त्व
(1) सह-सम्बन्ध सीखने की क्रिया, अधिगम क्रिया को अधिक सुविधाजनक एवम् प्रभावशाली बनाता है।
(2) यह विद्यार्थियों को स्पष्ट रूप से अभिव्यक्त करने की संवेदनशीलता प्रदान करता है।
(3) सह-सम्बन्ध से विद्यार्थियों में सृजनात्मक भावना का विकास होता है।
(4) सह-सम्बन्ध से विद्यार्थियों का चहुमुखी विकास होता है।
(5) यह दो विषयों को अधिक नजदीक लाता है।
(6) सह-सम्बन्ध से समय एवं ऊर्जा की बचत होती है क्योंकि एक ही सामग्री को बार-बार नहीं दोहराया जाता।
(7) सह-सम्बन्ध से ज्ञान को एक यूनिट की भाँति प्रदान किया जाता है।
(8) इसमें विद्यार्थियों के आत्म-विश्वास में वृद्धि होती है।
(9) सह-सम्बन्ध से तथ्यों तथा विचारों का दिमाग पर लाभकारी एवम् वास्तविक प्रभाव पड़ता है। इस प्रकार याददाश्त में बढ़ोत्तरी होती है।
विषयों के सहसम्बन्ध के उद्देश्य
(Aims of Correlation of the Subjects)
वाणिज्य का विभिन्न विद्यालय विषयों से सहसम्बन्ध स्थापित करने के उद्देश्य निम्नलिखित हैं-
(1) पाठ को रुचिपूर्ण, आकर्षक एवं प्रभावपूर्ण बनाने के लिए।
(2) विद्यार्थियों का मानसिक विकास करने हेतु।
(3) छात्रों को वाणिज्य विषय के साथ अन्य विषयों का भी ज्ञान देने के लिए।
(4) छात्रों को ज्ञान के विभिन्न रूपों से परिचित करना।
(5) श्रम, शक्ति एवं समय की बचत कराना।
(6) विद्यार्थियों हेतु पाठ्यक्रम के भार को घटाना !
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