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बीएड सेमेस्टर-2 वाणिज्य शिक्षण

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :160
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2762
आईएसबीएन :0

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बीएड सेमेस्टर-2 वाणिज्य शिक्षण - सरल प्रश्नोत्तर

प्रश्न- वाणिज्यशास्त्र का अन्य विषयों से सम्बन्ध बताइए।

अथवा
वाणिज्य का अर्थशास्त्र के साथ सहसम्बन्ध का वर्णन कीजिए।
अथवा
वाणिज्य का भूगोल के साथ क्या सम्बन्ध है?

उत्तर-

हाईस्कूल कक्षाओं में पढ़ाए जाने वाले वाणिज्यशास्त्र के चार प्रमुख उपविषय हैं-

(क) पुस्तपालन और लेखा-कार्य।
(ख) व्यापार पद्धति।
(ग) अधिकोषण तत्त्व या हिन्दी और अंग्रेजी संकेत लिपि तथा टाइप-राइटिंग
(घ) वाणिज्यिक अर्थशास्त्र

ऊपर लिखे हुए सभी उपविषय एक-दूसरे से सम्बन्धित हैं। हम यहाँ पर संक्षेप में इनकी विवेचना करेंगे।

(क) पुस्तपालन तथा लेखा कार्य और व्यापार पद्धति - पुस्तपालन में जो लेखा कार्य किया जाता है उसका घनिष्ठ सम्बन्ध व्यापार पद्धति से है। व्यापार पद्धति में देशी व्यापार, एकाकी व्यापार, साझेदारी व्यापार, मिश्रित पूँजी वाली कम्पनी द्वारा व्यापार तथा उत्पादन, संयुक्त साहस, बैंक, चेक, ह्रास आदि पढ़ाए जाते हैं। इन व्यापारों से सम्बन्धित लेखे जर्नल, खाताबही, रोकड़ पुस्तक आदि में किए जाते हैं, जो कि पुस्तपालन के अंग हैं। छात्र को व्यापार पद्धति में जिन तथ्यों की जानकारी होती है वह उनकी सहायता से पुस्तपालन में लेखा करना सीखता है। उदाहरण के लिए छात्र बैंक के कार्य व्यापार पद्धति में सीखते हैं। वह बैंक से सम्बन्धित लेन-देन पुस्तपालन में सीखता है। इस प्रकार उसके वाणिज्य सम्बन्धी ज्ञान में वृद्धि होती है। छात्र ह्रास सम्बन्धी लेखे पुस्तपालन में करने के पश्चात्, इससे सम्बन्धित ज्ञान व्यापार पद्धति में और पक्का कर लेता है। इस प्रकार दोनों उपविषयों में घनिष्ठ सम्बन्ध है।

(ख) पुस्तपालन और अधिकोषण तत्त्व - साख और साख पत्रों के विषय में छात्र बैंकिंग में पढ़ता है। उसे सिखाया जाता है कि साख क्या होती है। साख का निर्माण कैसे होता है आदि। इससे सम्बन्धित लेखे छात्र पुस्तपालन में सीखता है। इस प्रकार उसकी जानकारी बढ़ती है। छात्र विभिन्न बैंकों के विषय में भी जानकारी अधिकोषण तत्त्व में करते हैं। पुस्तपालन एक व्यापक विषय है। इसका सम्बन्ध प्रत्येक वाणिज्यिक विषय के ज्ञान से होता है।

(ग) पुस्तपालन और अर्थशास्त्र - पुस्तपालन और अर्थशास्त्र का गहरा सम्बन्ध है। अर्थशास्त्र के अन्तर्गत बालक धनोपार्जन सम्बन्धी क्रियाओं का अध्ययन करता है और पुस्तपालन में धनोपार्जन सम्बन्धी क्रियाओं का लेखा करता है।अर्थशास्त्र की अपेक्षा पुस्तपालन का क्षेत्र सीमित है।पुस्तपालन में सिद्धान्तों के निर्माण में पुस्तपालन के नियमों का पालन किया जाता है।अर्थशास्त्र का ज्ञान पुस्तपालन पढ़ने में सहायक होता है।

व्यापार पद्धति और बैंकिंग - दोनों उपविषयों का उद्देश्य छात्रों को देश की व्यापारिक और आर्थिक दशा से अवगत कराना है। व्यापार पद्धति में छात्र व्यापार से सम्बन्धित बातें पढ़ते हैं तो बैंकिंग में आर्थिक तथा व्यापार सम्बन्धी दोनों ही देश की आर्थिक दशा सुधारने के लिए व्यापार पद्धति और बैंकिंग दोनों का ही ज्ञान आवश्यक है। व्यापार पद्धति की जानकारी तथा बैंकिंग की जानकारी एक-दूसरे की पूरक हैं।

व्यापार पद्धति और अर्थशास्त्र - अर्थशास्त्र में आर्थिक क्रियाओं का अध्ययन करते हैं। व्यापार पद्धति में व्यापार द्वारा धन कमाने की क्रियाओं को सिखाया जाता है।अर्थशास्त्र के सिद्धान्तों की सहायता से अनेक व्यापार सम्बन्धी सिद्धान्तों का निर्माण हुआ है। इस प्रकार आर्थिक नियमों को समझने के लिए व्यापार पद्धति का ज्ञान अति आवश्यक है। व्यापारी की कुशलता, यदि वह उत्पादक भी है, श्रम की कार्य - कुशलता पर पर्याप्त सीमा तक निर्भर है। व्यापारी को श्रम की समस्याएँ, साख सम्बन्धी समस्याएँ आदि हल करनी पड़ती हैं। उसको इन सब बातों का ज्ञान अर्थशास्त्र के अध्ययन से ही सम्भव होता है।

बैंकिंग और अर्थशास्त्र - अर्थशास्त्र शिक्षण का मुख्य उद्देश्य राष्ट्र की आर्थिक उन्नति अर्थात् कृषि, उद्योग एवं व्यापार की उन्नति करना है। बैंकिंग का ज्ञान भी आर्थिक उन्नति में सहायक होता है।बैंकिंग उपविषय व्यावहारिक जीवन से सम्बन्ध रखता है। अर्थशास्त्र में भी हम दैनिक जीवन के कार्यों का अध्ययन करते हैं। साख तथा साख-पत्रों का निर्माण बैंकिंग का भी विषय है और अर्थशास्त्र का भी।इस प्रकार हम कह सकते हैं कि बैंकिंग और अर्थशास्त्र एक-दूसरे से सम्बन्धित हैं।

वाणिज्य का भूगोल के साथ सम्बन्ध
(Relation of Commerce with Geography)

वाणिज्य विषय का भूगोल से सहसम्बन्ध स्थापित हो सकता है। भूगोल पृथ्वी के प्राकृतिक वातावरण, प्राकृतिक सम्पदाएँ भूगर्भ में किस स्थान पर और किस मात्रा में विद्यमान हैं, आदि का समुचित ज्ञान कराता है। प्राकृतिक सम्पदा का उत्पादन एवं उपयोग किस प्रकार हो, किस राज्य को किस वस्तु की आवश्यकता है और उसकी पूर्ति कहाँ से और कैसे की जा सकती है, इसका ज्ञान वाणिज्य से प्राप्त होता है। वाणिज्य तथा भूगोल में कुछ पहलुओं जैसे पृथ्वी तल पर मानवकृत क्रियाकलाप, कृषि, उद्योग एवं जनसंख्या का वितरण आदि पर वाणिज्य एवं भूगोल दोनों ही विषयों में अध्ययन होता है। देश का आर्थिक विकास करने के लिए भूगोल का ज्ञान होना आवश्यक होता है। जेम्स फेयरग्रीव के अनुसार- " भूगोल वह विज्ञान है, जो स्थानीय दशाओं और स्थानीय सम्बन्धों का मानव पर प्रभाव की व्याख्या करता है।” वाणिज्य विषय मानव की आर्थिक क्रियाओं पर बल देता है। इस प्रकार स्पष्ट होता है कि वाणिज्य और भूगोल को परस्पर सम्बन्धित करके बढ़ाया जा सकता है ताकि छात्र वाणिज्य के साथ-साथ भूगोल को भी जान सकें।

 

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