बी एड - एम एड >> बीएड सेमेस्टर-2 वाणिज्य शिक्षण बीएड सेमेस्टर-2 वाणिज्य शिक्षणसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीएड सेमेस्टर-2 वाणिज्य शिक्षण - सरल प्रश्नोत्तर
प्रश्न- वाणिज्य शिक्षण में सह-सम्बन्ध के क्या उद्देश्य हैं? वर्णन कीजिए।
अथवा
वाणिज्य अन्य विषयों से सहसम्बन्ध स्थापित करने की क्या आवश्यकता है?
उत्तर-
वाणिज्य शिक्षण में सह-सम्बन्ध के निम्नलिखित उद्देश्य हैं-
सह-सम्बन्ध की आवश्यकता
समस्त ज्ञान अखण्ड है।उसको अलग-अलग भागों में वर्गीकृत नहीं किया जा सकता, परन्तु पठन-पाठन की सुविधा के लिए मानव ने उसका वर्गीकरण कर लिया है और प्रत्येक वर्ग को एक विषय - कहा है, परन्तु विषय ज्ञान का विभाजन नहीं है वरन् ज्ञान अध्ययन के दृष्टिकोण का अन्तर मात्र है। फिर भी विषय का अपना एक उद्देश्य तथा एक विशिष्ट दृष्टिकोण होता है। उसके उच्च आदर्श होते हैं, जिनको प्राप्त करने के लिए वह प्रयत्नशील रहता है तथा उसकी एक श्रेष्ठ परम्परा है, जिसका वह आदर करता है। अतः किसी विषय को पढ़ाने में ज्ञान के अतिरिक्त जब तक छात्र इन बातों को ग्रहण नहीं करता, तब तक उस विषय का शिक्षण अपूर्ण रहता है।
बालक का मस्तिष्क अलग-अलग विभागों का मिश्रण नहीं है, वरन् अविभाज्यं इकाई है। सम्पूर्ण विषयों की सामग्री उसी एक मस्तिष्क द्वारा ग्रहण की जाती है। अतः मस्तिष्क भिन्न-भिन्न अनुभवों का पारस्परिक सम्बन्ध, तुलना तथा मिश्रण आदि करके उन्हें ग्रहण करता है। अनुभव करने के साथ ही यह सम्बन्धीकरण क्रिया प्रारम्भ हो जाती है और जो भी ज्ञान हमारे मस्तिष्क में संचित होता है, वह इन्हीं सम्बन्धों का ज्ञान है। हमारा मस्तिष्क कुछ ऐसे तत्त्वों से निर्मित है, जो बिना इस सम्बन्ध स्थापना के रह ही नहीं सकते। अतः मानव मस्तिष्क स्वभावतः एक विषय के अनुभवों का दूसरे विषय के अनुभवों के साथ सम्बन्ध स्थापित करने में लगा रहता है। इस प्रकार ज्ञान की अखण्डता, मस्तिष्क की अविभाज्यता एवं सम्बन्धीकरण क्रिया को देखने से स्पष्ट हो जाता है कि एक विषय का दूसरे विषयों से सम्बन्ध स्थापित करना आवश्यक है। गुयाउ के शब्दों में, “घटनाओं तथा विचारों का मानस पटल पर स्थायी और उपयोगी प्रभाव तभी पड़ता है, जब मस्तिष्क उन्हें अन्य आगन्तुक घटनाओं एवं विचारों के साथ व्यवस्थित एवं सम्बद्ध करता है।" यदि शिक्षक स्वयं इन सम्बन्धों का ध्यान रखे तो छात्रों को विषय के समझने में बड़ी सहजता और सरलता हो जाती है
(i) पाठ्यक्रम के भार को कम करना - सह-सम्बन्ध का उद्देश्य पाठ्यक्रम के भार को कम करना है। छात्र को अनेक विषय पढ़ाए जाते हैं। छात्र स्वयं उनमें सम्बन्ध स्थापित नहीं कर पाता है।
अतः पाठ्यक्रम उसे भारस्वरूप प्रतीत होता है। अनेक विषयों का शिक्षण समन्वित शिक्षा के अभाव में बहुत कठिन है। यदि विभिन्न विषयों में सम्बन्ध स्थापित कराके पढ़ाया जाए तो पाठ्यक्रम सहज एवं सुगम हो जाएगा। अतएव वाणिज्यशास्त्र का शिक्षण दूसरे विषयों के साथ समन्वय करके किया जाना चाहिए।
(ii) ज्ञान की एकता का परिचय - समस्त ज्ञान अखण्ड है। उसे पृथक्-पृथक् भागों में विभाजित नहीं किया जा सकता है। विभिन्न विषय ज्ञान के विभिन्न अंग हैं। ज्ञान परस्पर सम्बन्धित है। ज्ञान-राशि में अनेकत्व में एकता और एकता में अनेकता का सिद्धान्त छिपा हुआ है। अतः विभिन्न विषयों और उपविषयों का परस्पर सम्बन्ध स्थापित करना जरूरी है। ऐसा सह-सम्बन्ध द्वारा ही सम्भव है। इस सिद्धान्त को ध्यान में रखते हुए वाणिज्यशास्त्र का शिक्षण, दूसरे विषयों के शिक्षण से अलग न रखकर उनमें सह-सम्बन्ध स्थापित करके करना चाहिए।
(iii) रुचि जाग्रत करना - समन्वय द्वारा पाठ में रुचि जाग्रत की जाती है। वाणिज्यशास्त्र का अध्यापक तथ्यों को रोचक बनाने के लिए यथास्थान अपने विषय का अन्य विषयों से सम्बन्ध स्थापित करता है। ऐसा करने से छात्रों में पाठ के प्रति रुचि जाग्रत होती है। वे उसे अन्त तक बनाए रखने में समर्थ होते हैं। उनका ध्यान निरन्तर पाठ की ओर केन्द्रित रहता है। इस प्रकार अध्यापक के द्वारा विषय का सजीव चित्र खींचना सम्भव होता है। इस प्रकार सम्बन्ध स्थापित करने से छात्र अपनी रुचियों के अनुसार-शिक्षा प्राप्त करता है। यह ज्ञान उसके लिए स्थायी होता है। वाणिज्यशास्त्र एक नीरस विषय है।अध्यापक को छात्रों में इस विषय के अध्ययन के लिए रुचि जाग्रत करना चाहिए। अतः सह सम्बन्ध द्वारा शिक्षक छात्रों में रुचि उत्पन्न कर सकता है।
(iv) समय की बचत करना - इस पद्धति के द्वारा अध्यापक और छात्र अपने समय की बचत कर सकते हैं। वाणिज्यशास्त्र में कुछ प्रसंग एक से होते हैं; जैसे- बैंक, विनिमय-पत्र, चेक आदि।यदि एक उपविषय का शिक्षण करते समय उससे सम्बन्धित दूसरे विषय का भी वर्णन कर दिया जाए तो अध्यापक का बहुत समय बच जाता है। इस प्रकार शिक्षण को अलग-अलग उसी प्रसंग को नहीं पढ़ाना * होगा। विभिन्न विषयों के अध्यापक भी इसमें सहयोग कर सकते हैं। यदि अन्य विषयों के कुछ प्रसंग एक से हों तो उनको पहले से ही विचार-विमर्श करके पढ़ाना चाहिए।
(v) व्यावहारिक ज्ञान प्रदान करना - वाणिज्यशास्त्र व्यावहारिक विषय है। अतः छात्रों को केवल सैद्धान्तिक ज्ञान देना पर्याप्त नहीं है। सह-सम्बन्ध के द्वारा छात्रों को व्यावहारिक ज्ञान दिया जा सकता है। वाणिज्यशास्त्र का शिक्षण करते समय इसका वास्तविक जीवन के विभिन्न अंगों से सम्बन्ध स्थापित करना चाहिए। इस प्रकार बालक का अनुभव बढ़ेगा और वह उसको अपने वास्तविक जीवन में उपयोग कर सकेगा। ड्यूवी के अनुसार-शिक्षा को जीवन की ठोस परिस्थितियों से सम्बन्धित करना चाहिए। इस प्रकार वाणिज्यशास्त्र शिक्षण का जीवन की व्यावहारिक स्थितियों से सम्बन्धित होना उपयोगी होगा।
(vi) संकीर्ण विशेषीकरण से बचाना - प्रायः देखा जाता है कि प्रत्येक विषय का अध्यापक अपने विषय को महत्त्वपूर्ण बतलाता है। यह इसलिए होता है कि उसे अपने परीक्षाफल के प्रतिशत की चिन्ता होती है, परन्तु ऐसा करना छात्रों के लिए हानिकर होता है।वे यह नहीं सोच पाते हैं कि किस विषय को प्रधानता दें और किसे न दें। इसी कारण उन्हें विचारों की सम्बद्धता तथा ज्ञान की एकता का ज्ञान नहीं हो पाता है। सह-सम्बन्ध के द्वारा यह दोष दूर हो जाता है। इसमें सभी विषय प्रधान रहते हैं। वास्तव में सभी विषय उपयोगी हैं और अपना महत्त्व रखते हैं। अतः वाणिज्यशास्त्र शिक्षण में हमेशा दूसरे विषय से सह - सम्बन्ध स्थापित करते रहना चाहिए।
(vii) मानवीय सम्बन्धों की जानकारी देना - सह-सम्बन्ध छात्रों को मानवीय सम्बन्धों के समझने में भी सहायता प्रदान करता है। वाणिज्यशास्त्र को अन्य सामाजिक विज्ञानों से सम्बन्धित करना चाहिए। यह अकेला मानवीय सम्बन्धों को स्पष्ट नहीं कर सकता है। वाणिज्यशास्त्र को अन्य सामाजिक विज्ञानों से सम्बन्धित करना चाहिए। यह अकेला मानवीय सम्बन्धों को स्पष्ट नहीं कर सकता है।
वाणिज्यशास्त्र में अर्थशास्त्र विषय भी पढ़ाया जाता है और इस विषय में आर्थिक क्रियाओं का अध्ययन किया जाता है। वाणिज्यशास्त्र में व्यापार द्वारा धन कमाने की क्रियाओं का अध्ययन किया जाता है। अतः सह सम्बन्ध द्वारा शिक्षक इन विभिन्न सम्बंधों को भली प्रकार समझ सकता है। इससे बालक की सभ्यता और संस्कृति के विकास में सहायता मिलती है।
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