बी एड - एम एड >> बीएड सेमेस्टर-2 हिन्दी शिक्षण बीएड सेमेस्टर-2 हिन्दी शिक्षणसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीएड सेमेस्टर-2 हिन्दी शिक्षण - सरल प्रश्नोत्तर
प्रश्न- गद्य पाठ-योजना निर्माण के सिद्धान्त बताइए।
उत्तर-
गद्य पाठ योजना निर्माण के सिद्धान्त
शिक्षण की सफलता के लिए छात्रों की रुचियों, योग्यताओं एवं वैयक्तिक विभिन्नता को ध्यान में रखकर योजना बनानी पड़ती है। किन्तु ऐसा करने में विषयगत विशिष्टताओं को ध्यान में रखना पड़ता है।
अतः निम्नलिखित सिद्धान्तों के आधार पर गद्य पाठ-योजना का निर्माण किया जाना चाहिए-
(1) बालकेन्द्रित योजना का सिद्धान्त - शिक्षा का केन्द्र बालक होता है अतः बालक को इस योग्य बनाना है कि वह भाषायी कौशलों पर अधिकार कर सके। प्रायः ऐसा देखा गया है कि भाषा का अध्यापक कक्षा में शिक्षण के दौरान स्व केन्द्रित होकर शिक्षण करता है जिससे उसी को आनन्द की अनुभूति होती है किन्तु छात्रों को जिसके लिए शिक्षण कर रहा है को तनिक भी आनन्द की प्राप्ति नहीं होती तथा उन्हें विषय का ज्ञान भी नहीं होता है।
(2) स्वतन्त्रता का सिद्धान्त - सीखने में बालक को स्वतन्त्रता होनी चाहिए क्योंकि स्वतन्त्र वातावरण स्वाभाविक रूप से सीखने में मदद करता है तथा बालक स्वतन्त्र वातावरण से सीखने को उत्सुक होता है। स्वतन्त्र वातावरण में बालक खुलकर अपने मनोभावों को प्रकट करता है अतः पाठ- योजना का निर्माण इस प्रकार किया जाना चाहिए जिससे बालक को स्वतन्त्र वातावरण का अनुभव हो।
(3) रुचि का सिद्धान्त - कुछ भी सीखने या सिखाने के लिए रुचि का होना आवश्यक है। बिना .रुचि उत्पन्न किए बालक को सिखाया जा सकता असम्भव है। अतः शिक्षक के इस मनोवैज्ञानिक तथ्य को ध्यान में रखकर ही पाठ-योजना का निर्माण करना चाहिए। यह एक मनोवैज्ञानिक सिद्धान्त है कि जिस विषय में छात्र की रुचि होती है वह उसकी ओर आकृष्ट होते हैं तथा जिसमें उनकी रुचि नहीं होती छात्र 'उससे दूर भागते हैं।
(4) क्रियाशीलता का सिद्धान्त - शिक्षण की प्रक्रिया में सीखने तथा सिखाने वाला- दोनों का सक्रिय होना आवश्यक है। यह सक्रियता उत्पन्न करने के लिए दोनों के बीच प्रश्नोत्तर का पर्याप्त आदान-प्रदान किया जाना चाहिए। अतः पाठ-योजना का निर्माण करते समय प्रश्नोत्तरों को सोच-समझकर तथा यथोचित मात्रा में सम्मिलित किया जाना चाहिए।
(5) अनुकरण का सिद्धान्त - भाषा शिक्षण के लिए पाठ-योजना का निर्माण कुछ इस तरह किया जाना चाहिए जिससे कि छात्रों को अनुकरण करके सीखने का अवसर प्राप्त हो सकें जैसे सस्वर वाचन के उपरान्त अनुकरण वाचन कराना। वर्णों का उच्चारण, शब्दों का वाक्यों में प्रयोग इत्यादि।
(6) अभ्यास का सिद्धान्त - भाषा एक कौशल है और इसका विकास अभ्यास पर निर्भर है। अभ्यास का क्रम टूट जाने पर कोई भी कौशल या विद्या पर से अधिकार धीरे-धीरे समाप्त होने लगता है। भाषा सीखने के लिए उसकी आदत डालना आवश्यक है। अत- पाठ-योजना का निर्माण करते समय इस बात का अवश्य ध्यान रखा जाना चाहिए कि उसमें अभ्यास कार्य कुछ-न-कुछ अवश्य हो। अभ्यास कार्य में प्रमुख रूप से शब्दार्थ, पर्यायवाची शब्द, विलोम शब्द, कहावतें, मुहावरे, कुछ संवाद प्रश्नोत्तर इत्यादि होते हैं जिनको पाठ-योजना में स्थान दिया जाना चाहिए।
इसके अतिरिक्त कुछ शिक्षण सूत्रों जैसे- ज्ञात से अज्ञात, मूर्त से अमूर्त, सरल से कठिन की ओर, पूर्ण से अंश की ओर, विशिष्ट से सामान्य की ओर, अनिश्चित से निश्चित की ओर, जहाँ जैसी आवश्यकता हो का पाठ-योजना निर्माण में अवश्य उपयोग किया जाना चाहिए।
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