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बीएड सेमेस्टर-2 हिन्दी शिक्षण

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :180
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2760
आईएसबीएन :0

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बीएड सेमेस्टर-2 हिन्दी शिक्षण - सरल प्रश्नोत्तर

प्रश्न- गद्य-शिक्षण के प्रकारों का संक्षिप्त विवरण दीजिए तथा उद्देश्यों पर प्रकाश डालिये। 

सम्बन्धित लघु उत्तरीय प्रश्न
1. गद्य-शिक्षण के प्रकारों का वर्णन कीजिए।

उत्तर-

साहित्य की अनेक विधाओं में गद्य का स्थान महत्त्वपूर्ण है। गद्य कवियों तथा लेखकों की कसौटी है और निबन्ध गद्य की कसौटी है। भाषा का विकास निबन्धों में ही सबसे अधिक सम्भव होता है। काव्य में अलंकार, रस, पिंगल आदि के रूपों में कवियों के लिए निर्देशन तत्त्व होते हैं परन्तु गद्य-रचना में लेखक स्वतन्त्र होता है। काव्य में भाषा सम्बन्धी मूल को ध्यान नहीं दिया जाता है क्योंकि भाव एवं लय की दृष्टि से व्याकरण पर कवि का ध्यान नहीं रहता है तथा गद्य के समान अपेक्षित भी नहीं है। गद्य लेखक को व्याकरण की त्रुटि के लिए क्षमा नहीं किया जाता है। व्याकरण की त्रुटि होने पर गद्य को दोषपूर्ण माना जाता है।

गद्य-साहित्य का क्षेत्र अधिक विशाल तथा व्यापक है। ज्ञानात्मक साहित्य कविता के माध्यम से सम्भव नहीं। हमारे सभी सामाजिक, राजनीतिक, सांस्कृतिक, शैक्षिक, राष्ट्रीय, व्यावसायिक तथा अन्तर्राष्ट्रीय कार्यकाल गद्य-साहित्य के माध्यम से ही सम्पन्न होते हैं।

आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने गद्य की परिभाषा दी है-"यदि पद्य कवियों या लेखकों की कसौटी है तो गद्य साहित्य की कसौटी है। भाषा की पूर्ण शक्ति का विकास निबन्धों में ही सबसे अधिक सम्भव होता है इसीलिए गद्य-शैली के विवेचक उदाहरणों के लिए निबन्ध ही चुना करते हैं। "

'गद्यं कवीनां निकषं वदन्ति' उक्ति इस बात का प्रमाण है कि भाषा का जितना परिष्कृत, प्रांजल और परिनिष्ठित रूप गद्य में मिलता है; उतना पद्य में नहीं। कविता में व्याकरण का उल्लंघन पाया जाता है पर गद्यकार को तो भाषा की शुद्धता, स्वच्छता और उसके व्याकरण-सम्मत रूप का सदा ध्यान रखना पड़ता है। अतः भाषा के शुद्ध, परिनिष्ठित रूप का ज्ञान गद्य-साहित्य के अध्ययन से ही सम्भव है।

कविता में हमारा ध्यान साहित्यिक सौन्दर्य तत्त्वों की ओर अधिक रहता है, अतः शिक्षण में भाषिक तत्त्वों की उपेक्षा स्वाभाविक है. पर गद्य-शिक्षण में भाषिक तत्त्वों का ज्ञान प्रदान करने का विशेष अवसर मिलता है। भाषिक तत्त्वों (शब्द भण्डार की वृद्धि, शब्दों के शुद्ध उच्चारण, अर्थ अनुच्छेद रचना, प्रयोग एवं रचना, मुहावरे, लोकोक्तियाँ, वाक्य-रचना आदि) के ज्ञान एवं भाषिक कौशलों के अभ्यास की दृष्टि से गद्य-शिक्षण की उपयोगिता सर्वमान्य है।

गद्य-साहित्य के प्रकार - गद्य-साहित्य का स्वरूप अधिक व्यापक तथा विशाल है। इसको मुख्य रूप से तीन श्रेणियों में विभाजित किया जा सकता है-

1. सूचनात्मक गद्य-साहित्य,
2. वर्णनात्मक गद्य-साहित्य,
3. भावात्मक गद्य-साहित्य |

इन तीनों को भी अनेक उपश्रेणियों में विभाजित किया जा सकता है। कथाएँ - ऐतिहासिक, पौराणिक, शिक्षात्मक, काल्पनिक, जीवनी, चरित्र और आत्मकथाएँ भी इसी में आती हैं। वर्णन यात्राओं और प्राकृतिक दृश्यों का सजीव चित्रण। वैज्ञानिक आविष्कार तथा खोज - सम्बन्धी लेख, कला के छात्र को विज्ञान के सत्यों के निकट ले जाता है। विभिन्न देशों के रहन-सहन, रीति-रिवाजों, सभा समाज के व्यवहार करने की रीतियों, निबन्ध - साहित्य में भूगोल, नागरिकशास्त्र, इतिहास, अर्थशास्त्र आदि विषयों की विवेचना से छात्रों को सामान्य ज्ञान की जानकारी प्राप्त होती है। नाटक संवाद से अभिनय कला का विकास होता है। ग्रन्थ व्यक्ति, समाज तथा घटनाओं पर लिखी गई हैं। तर्क-संगत आलोचनाएँ तथा समालोचनाएँ तार्किक क्षमताओं का विकास करती हैं। आधुनिक युग में कवितायें भी गद्य के रूप में लिखी जाने लगी हैं। इस प्रकार गद्य, पद्य का स्थान भी ले रही है। अतः गद्य तथा पद्य में अन्तर समझ लेना भी आवश्यक है।

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