बी एड - एम एड >> बीएड सेमेस्टर-2 हिन्दी शिक्षण बीएड सेमेस्टर-2 हिन्दी शिक्षणसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीएड सेमेस्टर-2 हिन्दी शिक्षण - सरल प्रश्नोत्तर
अध्याय 8 - हिन्दी गद्य शिक्षण, पद्य शिक्षण, नाटक शिक्षण, कहानी शिक्षण के उद्देश्य एवं उनकी विधियाँ
प्रश्न- गद्य शिक्षण की प्रक्रिया समझाइये और सोपानों का विश्लेषणात्मक अध्ययन कीजिए।
अथवा
गद्य शिक्षण के प्रमुख सोपानों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर-
गद्य-शिक्षण की प्रक्रिया (सोपान) - गद्य-शिक्षण की पाठ-योजना में शिक्षक को गद्य-शिक्षण के उन्हीं सामान्य उद्देश्यों का उल्लेख करना होता है जिनका सम्बन्ध प्रस्तुत गद्यांश से होता है। इसके पश्चात् गद्यांश शिक्षण के विशिष्ट उद्देश्यों को व्यावहारिक रूप में लिखा जाता है जिसमें मानदण्ड परीक्षा द्वारा उनकी प्राप्ति का आकलन किया जा सके-
(अ) पूर्व ज्ञान - छात्रों के उस पूर्व ज्ञान या सन्दर्भ का उल्लेख किया जाता है जिसे आधार बनाकर प्रस्तुत पाठ की प्रस्तावना की जाती है। शिक्षक पूर्व ज्ञान के आकलन के लिए प्रश्न पूछता है। छात्रों के उत्तरों की सहायता से शिक्षण की प्रस्तावना करता हैं।
(ब) सहायक सामग्री - छोटी कक्षाओं में सहायक सामग्री के द्वारा प्रस्तावना का आरम्भ किया जा सकता है, जैसे-यदि शिक्षण को विद्यार्थियों को जवाहरलाल नेहरू का पाठ पढ़ाना है तो उन्हें जवाहरलाल नेहरू का चित्र दिखाकर प्रश्न पूछे जा सकते हैं।
(स) लेखक से सम्बन्धित कथन - इसके द्वारा शिक्षक लेखक के जीवन से सम्बन्धित किसी महत्त्वपूर्ण घटना का उल्लेख करता है तथा फिर कहता है, "आज हम उन्हीं के द्वारा लिखे पाठ को पढ़ेंगे। इसका प्रयोग केवल बड़ी कक्षाओं में ही किया जा सकता है।
(द) प्रश्नोत्तर - प्रश्नोत्तर के द्वारा प्रश्न-पाठ की ओर ध्यान केन्द्रित करने के लिए किये गये पूर्व ज्ञान पर आधारित प्रश्न पूछे जाते हैं।
(1) प्रस्तुतीकरण - गद्य- पाठ प्राय- बड़े होते हैं इसलिए पाठों के भावों की समानता की दृष्टि से दो या दो से अधिक भागों में विभाजित करना चाहिए। प्रस्तुतीकरण में विद्यार्थियों के सामने प्रकरण प्रस्तुत किया जाता है। उद्देश्य कथन के समाप्त होने के बाद विद्यार्थियों का ध्यान नवीन पाठ पर केन्द्रित हो जाता है। इसलिए अब शिक्षक का कार्य ज्ञान का प्रस्तुतीकरण करना हो जाता है। परन्तु समस्या यह है कि नवीन पाठ को किस प्रकार प्रस्तुत किया जाये? इस प्रसंग में विद्वानों के विभिन्न मत निम्न प्रकार हैं-
1. शिक्षक के आदर्श पाठ के माध्यम से,
2. शिक्षकों के अर्थ द्वारा, तथा
3. मौन वाचन द्वारा।
(2) उद्देश्य कथन - प्रस्तावना के अन्त में ही विद्यार्थियों को पाठ के उद्देश्य का आभास प्राप्त हो जाता है लेकिन फिर भी शिक्षक को नवीन पाठ के उद्देश्य का स्पष्टीकरण करना चाहिए। उद्देश्य का स्पष्टीकरण हो जाने से विद्यार्थी उत्साहित होते हैं तथा उसे प्राप्त करने के लिए सजग हो जाते हैं परन्तु उद्देश्य कथन अधिक बड़ा नहीं होना चाहिए।
(3) आदर्श वाचन- शिक्षक को आदर्श वाचन की ओर मुख्य रूप से ध्यान देना चाहिए तथा उसे पाठ का वाचन प्रभावशाली तरीके से करना चाहिए।
आदर्श वाचन करते समय शिक्षक को निम्नलिखित बातों की ओर ध्यान देना चाहिए-
1. वाचन करते समय विराम आदि चिन्हों का ध्यान विशेष रूप से रखना चाहिए तथा भावों के अनुसार- ही ध्वनि का उतार-चढ़ाव होना चाहिए।
2. जिस समय शिक्षक वाचन कर रहा हो, उस समय विद्यार्थी पुस्तक खोलकर न देखे बल्कि पुस्तक को बन्द करके शिक्षक की ओर देखे, ऐसा करने पर विद्यार्थी शिक्षक की मुख की आकृति द्वारा भाव समझ सकेंगे और उच्चारण तथा पढ़ने की गति की ओर उनका ध्यान रहेगा, अनुकरण वाचन के लिए भी तैयार हो सकेंगे।
3. वाचन करते समय पाठ्य सामग्री के भावों के अनुसार-, मुख की आकृति बनायी जाये, हाव-भाव भी संगत होने चाहिए।
4. वाचन करते समय शिक्षक को अपने खड़े होने के ढंग तथा पुस्तक को पकड़ने के ढंग आदि का भी ध्यान रखना चाहिए। झुककर या टेढ़े खड़े होने के स्थान पर सीधे खड़ा होना चाहिए तथा बायें हाथ में पुस्तक लेकर दायें हाथ को स्वतन्त्र संचालन के लिए छोड़ दिया जाये।
5. वाचन करते समय परिस्थिति तथा आवश्यकता के अनुसार-, सीमित मात्रा में अंगों को संचालन दिया जाये।
6. वाचन करते समय शिक्षक को अपना चित्त प्रसन्न रखना चाहिए। मुख पर नीरसता न होकर मृदु मुस्कान रहनी चाहिए।
(4) मौन पाठ - प्रस्तुतीकरण के पश्चात् मौन पाठन कराया जा सकता है जिससे बालकों को इसी समय से पठन क्षमता के लिए प्रशिक्षित किया जा सके। कुछ अत्यधिक कठिन पाठों में उसे सरल बनाने की दृष्टि से व्यक्त पठन भी हो सकता है तब सामान्य रूप में मौन पठन से पाठ प्रारम्भ करना उपयुक्त होगा। (5) शिक्षक द्वारा आदर्श पाठ- सस्वर पाठ की विशेषताओं का उल्लेख पहले किया जा चुका है। उन सभी बातों का ध्यान रखते हुए शिक्षक आदर्श पाठ प्रस्तुत करेगा। प्रभावन्वित की दृष्टि से इस आदर्श पाठ का विशेष महत्त्व है।
(6) अनुकरण पाठ - विद्यार्थी सस्वर करेंगे, तीन-चार विद्यार्थियों को यह अवसर दिया जा सकता है। शिक्षक का आदर्श पाठ उनके लिए पथ-प्रदर्शन का काम करता है। छात्र शिक्षक का अनुकरण करने का प्रयास करेंगे।
गद्य पाठ प्राय- दो अन्वितियों में पढ़ाया जाता है। प्रथम अन्विति पढ़ा लेने पर, द्वितीय अन्विति भी इसी प्रकार अर्थात् मौन पाठ, भाषा कार्य, व्याख्या एवं स्पष्टीकरण, आदर्श पाठ, अनुकरण पाठ के सोपानों द्वारा पढ़ा ली जायेगी फिर निम्नलिखित सोपानों का प्रयोग किया जायेगा।
(7) श्याम पट्ट लेख - पाठ विकास के साथ-साथ बतलाये गये शब्द, अर्थ प्रयोग विशिष्ट तथ्य या विचार आदि का उल्लेख श्याम-पट्ट पर किया जाता है। छात्र उन्हें अपनी कॉपी में लिख लेते हैं।
(8) पुनरावृत्ति अथवा अनुमूल्यन - पाठ शिक्षणोपरांत सम्पूर्ण पाठ पर आधारित कुछ प्रश्नों द्वारा बालकों के वस्तु बोध एवं अर्जित भाषा ज्ञान के परीक्षण के लिए प्रश्न पूछे जाते हैं। यह पाठ विकास के समय पूछे गये प्रश्नों से भिन्न होते हैं। वस्तुनिष्ठ एवं संक्षिप्त उत्तर- वाले प्रश्न अधिक उपयोगी होते हैं। समीक्षात्मक एवं बालकों की कल्पना प्रवणता की आद्रिक्त करने वाले प्रश्न भी अवश्य पूछने चाहिए।
(9) गृहकार्य - प्रस्तुत पाठ सम्बन्धी कार्य जैसे शब्द - रचना, प्रयोग, भावाभिव्यक्ति, सारांश आदि घर से पूरा कर लेने के लिए छात्रों को दिया जाना इसका मुख्य उद्देश्य होता है।
(10) बोध प्रश्न - केन्द्रीय भाव ग्रहण सम्बन्धी दो-तीन प्रश्न पर्याप्त हैं। इससे छात्रों की योग्यता, ग्रहणशीलता, प्रस्तुत पाठ सम्बन्धी कठिनाइयों को शिक्षक समझ लेता है।
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