बी एड - एम एड >> बीएड सेमेस्टर-2 हिन्दी शिक्षण बीएड सेमेस्टर-2 हिन्दी शिक्षणसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीएड सेमेस्टर-2 हिन्दी शिक्षण - सरल प्रश्नोत्तर
प्रश्न- राजभाषा से आप क्या समझते हैं? राजभाषा हिन्दी की संवैधानिक स्थिति पर प्रकाश डालिए।
अथवा
राजभाषा हिन्दी की संवैधानिक स्थिति पर प्रकाश डालिए।
अथवा
राजभाषा से आप क्या समझते हैं? स्वतन्त्रता के पश्चात् राजभाषा हिन्दी के स्वरूप और उसकी संवैधानिक स्थिति पर प्रकाश डालिए।
उत्तर-
राजभाषा की अवधारणा
'राजभाषा का सामान्य अर्थ है राजकाज चलाने की भाषा अर्थात् भाषा का वह रूप जिसके द्वारा जकीय कार्य चलाने में सुविधा हो। शब्द की दृष्टि से राजभाषा शब्द बहुत पुराना नहीं है। पहले 'राष्ट्रभाषा' का प्रयोग चलता था, अब राष्ट्रभाषा और राजभाषा में भेद किया जाता है। राष्ट्रभाषा वह भाषा है जिसका प्रयोग संपूर्ण राष्ट्र में हो। देखा जाय तो यह 'स्टेट लैंग्वेज' का अनुवाद है। 'स्टेट लैंग्वेज' का प्रयोग सर्वप्रथम राजाओं द्वारा किया गया था। संविधान में स्वीकृति के बाद इसका प्रयोग आरम्भ हुआ। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि वह भाषा जो किसी राज्य में केन्द्रीय या प्रादेशिक सरकार के द्वारा पत्रव्यवहार तथा सरकारी कामकाज चलाने के लिए प्रयोग में आती है राजभाषा कहलाती है। राजभाषा संपर्क भाषा का एक रूप है उसका औपचारिक रूप है। हिन्दी भारत की राजभाषा है, जिसका उल्लेख संविधान में किया गया है। राजभाषा की भूमिका में हिन्दी केन्द्र सरकार के कार्यालयों की भाषा है, राज्यों में विधानमंडलों और संसद को अभिलेखों के स्तर पर जोड़ने वाली भाषा है, देश के कानून की भाषा है, और उच्च न्यायालयों तथा उच्चतम न्यायालय को अभिलेखों के स्तर पर जोड़ने वाली भाषा है। इसलिए यह आवश्यक है कि संघ शासन के इन तीनों अंगों से जुड़े हुए व्यक्ति इस भाषा से परिचित हों और इस भाषा के माध्यम से यथासंभव काम करें। इसके लिए व्यक्तियों को प्रशिक्षण आदि दिये जाते हैं।
राजकाज चलाने के लिए किसी-न-किसी भाषा की आवश्यकता पड़ती है। अपने समय में संस्कृत, पालि, महाराष्ट्री, प्राकृत अथवा अपभ्रंश राजभाषा रही हैं। प्रमाणों से विदित होता है कि 11वीं से 12वीं शताब्दी ईस्वी के दौरान राजस्थान में हिन्दी मिश्रित संस्कृत का प्रयोग होता था। मुसलमान -- बादशाहों के शासनकाल में मुहम्मद गौरी से लेकर अकबर के समय तक हिन्दी शासन-कार्य का माध्यम थी। अकबर के गृहमंत्री राजा टोडरमल के आदेश से सरकारी कागजात फारसी में लिखे जाने लगे। एक फारसीदान मुंशी वर्ग के तीन सौ वर्ष तक फारसी को शासन-कार्य का माध्यम बनाए रखा। मैकाले ने आकर अंग्रेजों को प्रतिष्ठित किया। तब से उच्च स्तर पर अंग्रेजी और निम्न स्तर पर देशी भाषाएं प्रयुक्त होती रहीं। हिन्दी प्रदेश में उर्दू प्रतिष्ठित रही, यद्यपि राजस्थान और मध्य प्रदेश के देशी राज्यों में हिन्दी माध्यम से सारा कामकाज होता रहा। राष्ट्रीय चेतना के विकास के साथ स्वभाषा को राजपद दिलाने की मांग उठी। भारतेन्दु हरिश्चंद्र, महर्षि दयानंद सरस्वती, केशवचंद्र सेन, लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक, महामना मदनमोहन मालवीय, महात्मा गाँधी, राजर्षि पुरुषोत्तम दास टंडन और बहुत से अन्य नेताओं और जनसाधारण ने अनुभव किया कि हमारे देश का राजकाज हमारी ही भाषा में होना चाहिए और वह भाषा हिन्दी ही होनी चाहिए - हिन्दी सभी आर्य भाषाओं की सुहोदरी है, यह सबसे बड़े क्षेत्र के लोगों की (42 प्रतिशत से ऊपर लोगों की) भाषा थी।
यह अधिकतर लोगों की दूसरी या तीसरी भाषा है। हिन्दी संस्कृत की उत्तराधिकारिणी है और सभी भारतीय भाषाओं की अपेक्षा सरल है। इन विशेषताओं के कारण स्वतंत्रता प्राप्ति से पहले ही हिन्दी को भारत की सामान्य या सम्पर्क भाषा के रूप में स्वीकार किया गया।
स्वतंत्रता के बाद राज्यसत्ता जनता के हाथों में आई। लोकतांत्रिक व्यवस्था में यह आवश्यक हो गया कि देश का राजकाज लोक भाषा में हो। अतः राजभाषा के रूप में हिन्दी को एकमत से स्वीकार किया गया। 14 सितम्बर, 1949 ई. को भारत के प्राविधान हिन्दी को मान्यता प्रदान की गई। तब से राजकार्यों में इसके प्रयोग का विकासक्रम आरम्भ होता है।
स्वतन्त्रता के पश्चात् राजभाषा हिन्दी के स्वरूप और उसकी सांविधानिक स्थिति - संविधान की धारा 120 के अनुसार- संसद का कार्य हिन्दी में या अंग्रेजी में किया जाता है। परन्तु यथास्थिति लोकसभा का अध्यक्ष या राज्यसभा का सभापति किसी सदस्य को उसके मातृभाषा में सदन को संबोधित करने की अनुमति दे सकता है। संसद विधि द्वारा अन्यथा न करे तो 15 वर्ष की अवधि के पश्चात् "या अंग्रेजी में शब्दों का लोप किया जा सकेगा।
धारा 210 - के अन्तर्गत राज्यों के विधान मण्डलों का कार्य अपने राज्य या राजभाषाओं में या हिन्दी में या अंग्रेजी में किया जा सकता है। परन्तु, यथास्थिति विधान सभा का अध्यक्ष. या विधान परिषद् का सभापति किसी सदस्य को उसकी मातृभाषा में सदन को सम्बोधित करने की अनुमति दे सकता है। राज्य का विधान मंडल विधि द्वारा अन्यथा उपलब्ध न करें तो 15 वर्ष की अवधि के पश्चात् "या अंग्रेजी में" शब्दों का लोप किया जा सकेगा।
धारा 343 - संघ की राजभाषा हिन्दी और लिपि देवनागरी होगी और अंकों का रूप भारतीय अंकों का अन्तर्राष्ट्रीय रूप होगा। शासकीय प्रयोजनों के लिए अंग्रेजी भाषा का प्रयोग 15 वर्ष की अवधि तक किया जाता रहेगा। परन्तु राष्ट्रपति इस अवधि के दौरान किन्हीं शासकीय प्रयोजनों के लिए अंग्रेजी के साथ हिन्दी भाषा का प्रयोग अधिकृत कर सकेगा। इसी धारा के अन्तर्गत कहा गया है कि संसद उक्त 15 वर्ष की अवधि के पश्चात् विधि द्वारा अंग्रेजी भाषा का या देवनागरी अंकों का प्रयोग किन्हीं प्रयोजनों के लिए उपबन्ध कर सकेगी।
धारा 344 - इस संविधान के प्रारम्भ में 5 वर्ष की समाप्ति पर राष्ट्रपति एक आयोग गठित करेगा जो निश्चित की जाने वाली एक प्रक्रिया के अनुसार- राष्ट्रपति को सिफारिश करेगा कि किन शासकीय प्रयोजनों के लिए हिन्दी का प्रयोग अधिकाधिक किया जा सकता है, अंग्रेजी भाषा के प्रयोग अधिकाधिक किया जा सकता है, अंग्रेजी भाषा के प्रयोग पर क्या निर्बन्ध हो सकते हैं. न्यायालयों में प्रयुक्त होने वाली किसी भाषा की क्या स्वरूप चलता रहे, किन प्रयोजनों के लिए अंकों का रूप क्या हो और संघ की राजभाषा अथवा संघ और किसी राज्य के बीच की भाषा अथवा एक राज्य और दूसरे राज्यों के बीच पत्र आदि की भाषा के बारे में क्या सुझाव हो। इसी प्रकार का आयोग संविधान के प्रारम्भ में 10 वर्ष की समाप्ति पर गठित किया जाएगा। यह प्रावधान भी किया गया कि वे आयोग भारत की औद्योगिक, सांस्कृतिक और वैज्ञानिक उन्नति का और लोक सेवाओं के सम्बन्ध में अहिंदी-भाषी क्षेत्रों के न्यायसंगत दावों और हितों का पूरा-पूरा ध्यान रखेंगे। आयोग की सिफारिशों पर संसद की एक समिति अपनी राय राष्ट्रपति को देगी। इसके पश्चात् राष्ट्रपति उस सम्पूर्ण रिपोर्ट के या उसके किसी भाग के अनुसार- राष्ट्रपति उस सम्पूर्ण रिपोर्ट के या उसके किसी भाग के अनुसार- निर्देश जारी कर सकेगा।
धारा 345 - किसी राज्य का विधान मण्डल, विधि द्वारा, उस राज्य में प्रयुक्त होने वाली या किन्हीं अन्य भाषाओं को या हिन्दी को शासकीय प्रयोजनों के लिए स्वीकार कर सकेगा। यदि किसी . राज्य का विधानमण्डल ऐसा नहीं कर पाएगा तो अंग्रेजी भाषा का प्रयोग यथावत किया जाता रहेगा। धारा 346 - संघ द्वारा प्राधिकृत भाषा एक राज्य और दूसरे राज्य के बीच में तथा किसी राज्य और संघ की सरकार के बीच पत्र आदि की राजभाषा होगी। यदि कोई राज्य परस्पर हिन्दी भाषा को स्वीकार करेंगे तो उस भाषा का प्रयोग किया जा सकेगा।
धारा 347 - यदि किसी राज्य की जनसंख्या का पर्याप्त भाग यह चाहता हो कि उसके द्वारा बोली जाने वाली भाषा को उस राज्य में (दूसरी भाषा के रूप में) मान्यता दी जाए और इस निमित्त से मांग की जाए, तो राष्ट्रपति यह निर्देश दे सकेगा कि ऐसी भाषा को भी उस राज्य में सर्वत्र या उसके किसी भाग में ऐसे प्रयोजन के लिए जो वह विनिर्दिष्ट करें, शासकीय मान्यता दी जाए।
धारा 348 - जब तक संसद विधि द्वारा उपबन्ध न करें तब तक उच्चतम न्यायालय और प्रत्येक उच्च न्यालाय से सब तरह की कार्यवाही अंग्रेजी भाषा में होगी। संसद के प्रत्येक सदन या राज्य के विधानमण्डल के किसी सदन में विधेयकों, अधिनियमों, प्रस्तावों, आदेशों, नियमों, नियोगों और उपविधियों एवं राष्ट्रपति अथवा किसी राज्य के राज्यपाल द्वारा प्रख्यापित अध्यादेशों के प्राधिकृत पाठ अंग्रेजी भाषा में होंगे। किसी राज्य का राज्यपाल, राष्ट्रपति की पूर्व सहमति से उस उच्च न्यायालय की कार्यवायी के लिए हिन्दी भाषा या उस राज्य में मान्य भाषा का प्रयोग प्राधिकृत कर सकेगा, परन्तु उस उच्च न्यायालय द्वारा दिये गये निर्णय, डिक्री या आदेश पर इस खण्ड की कोई बात लागू नहीं होगी। यह प्रावधान भी किया गया है कि इस खण्ड की किन्हीं बातों के लिए यदि अंग्रेजी से भिन्न किसी भाषा को प्राधिकृत किया गया हो तो अंग्रेजी भाषा में उसका अनुवाद प्राधिकृत पाठ समझा जाएगा।
धारा 349 - राजभाषा से सम्बन्धित संसद यदि कोई विधेयक या संशोधन पुनः स्थापित या प्रस्तावित करना चाहे तो राष्ट्रपति की पूर्व मंजूरी लेनी पड़ेगी और राष्ट्रपति आयोग की सिफारिशों पर उन सिफारिशों की गठित रिपोर्ट पर विचार करने के पश्चात् ही अपनी मंजूरी देगा, अन्यथा नहीं।
धारा 350 - प्रत्येक व्यक्ति किसी शिकायत को दूर करने के लिए संघ या राज्य के किसी अधिकारी या प्राधिकारी को यथास्थिति संघ में या राज्य में प्रयोग होने वाली किसी भाषा में अभ्यावेदन देने का हकदार होगा। अल्पसंख्यक बच्चों की प्राथमिक शिक्षा उनकी मातृभाषा में दिये जाने की पर्याप्त सुविधा सुनिश्चित की जायेगी, भाषायी अल्पसंख्यक वर्गों के लिए राष्ट्रपति एक विशेष अधिकारी को नियुक्त करेगा जो उन वर्गों के सभी विषयों से सम्बन्धित रक्षा के उपाय करेगा और अपनी रिपोर्ट समय-समय पर राज्यपाल और राष्ट्रपति को देगा जिस पर संसद विचार करेगी।
धारा 351 - के अन्तर्गत यह निर्देश दिया गया कि संघ का यह कर्त्तव्य होगा कि यहाँ हिन्दी भाषा का प्रसार बढ़ाए और उसका विकास करे ताकि वह भारत की सामाजिक संस्कृति के सभी तत्वों की अभिव्यक्ति का माध्यम बन सके और उसकी प्रकृति में हस्तक्षेप किये बिना हिन्दुस्तानी के और आठवीं अनुसूची में विनिर्दिष्ट भारत की अन्य भाषाओं में प्रयुक्त रूप, शैली और पदों को आत्मसात करते हुए और जहाँ आवश्यक या वांछनीय हो वहाँ उसके शब्द भण्डार के लिए मुख्यतः संस्कृत से और गौणताः अन्य भाषाओं से शब्द ग्रहण करते हुए उसकी समृद्धि सुनिश्चित करें।
आठवीं अनुसूची में 15 भाषाएं गिना दी गई हैं- असमिया उड़िया, उर्दू, कन्नड़ कश्मीरी, गुजराती, तमिल, तेलुगू, पंजाबी, बंगला, मराठी, मलयालम, संस्कृत, सिंधी और हिन्दी।
26 जनवरी, 1950 को संविधान लागू हो गया और उसमें यह व्यवस्था कर दी गई कि हिन्दी को 1965 तक राजभाषा के पद पर आसीन कर दिया जाएगा। इसके बाद राष्ट्रपति, राजभाषा आयोग, संसद और सरकार (विशेषतया गृह मंत्रालय के राजभाषा विभाग) ने आदेश सुझाव, अधिनियम, अनुदेश और नियम निर्धारित किये जिनके द्वारा राजभाषा हिन्दी के प्रयोग को सुनिश्चित किया जाएगा।
निष्कर्षत - हम कह सकते हैं कि हिन्दी को राजभाषा के रूप में स्थापित करने का सशक्त प्रयास स्वाधीनता प्राप्ति के बाद हुआ और अनेक सांविधानिक प्रावधानों के द्वारा इसे सरकारी कामकाज की भाषा बनाने का यत्न आरंभ हुआ
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