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बीएड सेमेस्टर-2 हिन्दी शिक्षण

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :180
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2760
आईएसबीएन :0

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बीएड सेमेस्टर-2 हिन्दी शिक्षण - सरल प्रश्नोत्तर

प्रश्न- राजभाषा की अवधारणा स्पष्ट कीजिए।

उत्तर- 

राजभाषा - राजभाषा से कहते हैं जो किसी राज्य के सरकारी कामकाजों का माध्यम बनत है। इस भाषा में केन्द्रीय अथवा प्रान्तीय सरकारें पत्र व्यवहार करती हैं। सरकारी सूचनाएँ तथा आंदे‍ इसी भाषा में प्रकाशित होते हैं। स्वतन्त्र भारत में नये संविधान की रचना तथा भारत के गणराज्य बन जाने पर भारतीय संविधान के लागू होने से पूर्व 'राष्ट्रभाषा' शब्द का प्रयोग उसी अर्थ में होता है। इस में ही प्रशासनिक और न्यायिक इकाइयों की गतिविधियाँ प्रचलित होती हैं। सामान्यतः स्वतन्त्र देश क राष्ट्रभाषा ही वहाँ की राष्ट्रभाषा होती है। भारतीय संविधान में हिन्दी को गणराज्य के रूप में घोषित किया गया है। परन्तु साथ ही साथ कुछ व्यावहारिक कठिनाइयों के कारण अंग्रेजी को सहभाषा के रू में प्रतिष्ठित किया गया है। अब हर स्तर पर प्रयास हो रहे हैं कि हिन्दी शीघ्र विकल्प रहित राष्ट्रभाष बनकर देश को अँग्रेजी की दासता से मुक्त कराये।

संविधान में 14 सितम्बर, 1949 को राजभाषा सम्बन्धी प्रस्तावना को पारित किया गय नागरी लिपि में लिखी जाने वाली हिन्दी को राजभाषा घोषित कर दिया गया और संविधान की 35 धारा में हिन्दी के विकास के लिए भारत सरकार के कर्त्तव्यों को निर्देशित किया गया।

राजभाषा आयोग का गठन 1955 में हुआ था इसके अध्यक्ष बाला साहेब खेर थे। इसके सदस्य सुनीति कुमार चटर्जी, नेनेजी सुब्बाराव, मौलीचन्द्र, मगनभाई देसाई आदि विद्वान थे। इसमें कुल 18 सदस्य थे। इस आयोग के सचिव श्री गोपाल वर्वे जी थे।

भारतीय संविधान में भारत की चौदह महत्वपूर्ण भाषाओं को स्थान दिया गया है। इनका सम्बन्ध भारत के विभिन्न प्रान्तों से है। जैसे- बंगाल की बंगला भाषा, आसाम की असमी भाषा, महाराष्ट्र की मराठी भाषा, तमिलनाडु की तमिल भाषा, पंजाब की पंजाबी भाषा आदि इन विभिन्न प्रान्तों का कार्य उसकी भाषा में होता है। पर लोकप्रियता तथा व्यवहार की सर्वाधिक संख्या को दृष्टि में रखकर संविधान सम्मत विभिन्न प्रान्तीय भाषाओं में हिन्दी को राजभाषा के उपयुक्त समझा गया। प्रशासन की भाषा राजभाषा कहलाती है। राज्यभाषा का सामान्य अर्थ है- राजकाज चलाने वाली भाषा है अर्थात् भाषा का वह रूप जिसके द्वारा राजकीय कार्य चलाने की सुविधा हो। राजभाषा से राजा (शासक) की भाषा अथवा राज्य की भाषा दोनों अर्थ लिये जा सकते हैं। केन्द्र की राजभाषा को संघ भाषा भी कहा जाता है। प्रशासन तथा न्याय की भाषा होने के कारण सरकारी दृष्टि से राजभाषा का बहुत महत्व होता है। राजभाषा का प्रयोग प्रमुख चार क्षेत्रों में होता है- शासन, विधान, न्याय पालिका एवं विधान पालिका।

स्वतन्त्र भारत में नये संविधान की रचना तथा भारत के गणराज्य बन जाने पर भारतीय संविधान के लागू होने से पूर्व 'राष्ट्रभाषा' शब्द का प्रयोग 'सी अर्थ में होता था। जिस अर्थ में आज 'राजभाषा' शब्द का प्रयोग होता है। अर्थात् संविधान में स्वीकृति के बाद इसका प्रयोग आरम्भ हुआ। हिन्दी के प्राथमिक स्वरूप का विकास उत्तर- अपभ्रंश कालीन युग से ग्यारहवीं शताब्दी से हुआ। प्राचीन काल के सिक्कों पर मिलता है। इस सम्पर्क भाषा का और अधिक विकास तब हुआ जब 13वीं शताब्दी में अला'द्दीन तुगलक के कारण उत्तर- भारत के लोग बड़ी संख्या में दक्षिण में गये। स समय मुस्लिम परिवारों के अतिरिक्त शेष सभी व्यापारी एवं श्रमिक घर बाहर सभी जगह खड़ी बोली का प्रयोग करते थे। सिकन्दर लोदी के शासनकाल में भी राज्य का हिसाब-किताब हिन्दी में होता था। शेरशाह सूरी के सिक्कों में नागरी तथा फारसी दोनों का 'ल्लेख मिलता है। जिला स्तर पर आज प्रशासनिक भाषा को जो ढाँचा है, 'सकी बहुत कुछ देन मुगलकाल की है। औरंगजेब के शासनकाल तक तो हिन्दी की विविध शैलियाँ प्रयुक्त होने लगीं। मराठा शासन में हिन्दी का प्रयोग व्यापक रूप से मिलता है। राजस्थान की पूरी रियासतों में तो पूरा पत्राचार हिन्दी में होता था। हिन्दी क्षेत्र से इधर देशी राज्यों में भी हिन्दी को प्रश्रय था। बीसवीं शताब्दी के मध्य से जब भारत विदेशी साम्राज्य के बन्धन से मुक्त होकर स्वायत्त लोकतंत्र के रूप में प्रतिष्ठित हुआ। तब संवैधानिक दृष्टि से राष्ट्रभाषा पृथक रूप से परिभाषित की गयी।

इतना ही नहीं यह विभिन्न प्रान्तों के मध्य सम्पर्क के लिए उपयुक्त भाषा है। फलतः 4 सितम्बर 1949 को इसे भारतीय संविधान में राजभाषा का स्थान दिया गया। जब तक देश का काम देश की भाषा में नहीं होगा, जनता से सम्बन्ध होना असम्भव है। राजभाषा हिन्दी की समस्याएँ निश्चित रूप से ऐसी नहीं है जिनको सुलझाना कठिन हो। लक्ष्य तक पहुँचने के लिए योग्य संसाधन आवश्यक हैं।

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