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बीएड सेमेस्टर-2 हिन्दी शिक्षण

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :180
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2760
आईएसबीएन :0

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बीएड सेमेस्टर-2 हिन्दी शिक्षण - सरल प्रश्नोत्तर

प्रश्न- मानव जीवन में मातृभाषा का महत्व प्रतिपादित कीजिए।

उत्तर-

मातृभाषा - भाषा शब्द की संरचना 'भाष' धातु से हुई है। भाष का अर्थ है- व्यक्त करना, काशित करना, प्रकट करना। अर्थ इस धातु से निर्मित 'भाषा' शब्द का अर्थ हुआ 'वह' माध्यम, जिसके द्वारा कुछ व्यक्त किया जाए। इस प्रकार भाषा शब्द का व्युत्पत्तिपरक अर्थ है, "मनुष्य मनुष्य के च विचार-विनिमय का माध्यमा' भाषा सामान्य व्यवहार के माध्यम के साथ विविध ज्ञान-विज्ञान के नार्जन का माध्यम है। हिन्दी साहित्य सृजन का माध्यम हिन्दी भाषा है। हिन्दी भाषा के अभाव में हिन्दी साहित्य की कल्पना भी असम्भव है। जिस प्रकार हिन्दी भाषा समाज के भाव आदान-प्रदान को षा हिन्दी कहते हैं। इसी प्रकार उनके विविध ज्ञानार्जन का माध्यम भी हिन्दी भाषा है। इसी प्रकार भी भाषाओं के माध्यम से 'नसे सम्बन्धित भाषा-भाषी समाज विविध क्षेत्रों में उन्नति करता है।

भारत शताब्दियों तक विदेशी शासन में साँस लेता रहा है। अँग्रेजी शासन का प्रभाव आज भी स्पष्ट रूप में दिखाई देता है। शिक्षा और विविध कार्यक्षेत्रों में अँग्रेजी का प्रभाव आज भी दिखाई देता। यह हमारी भ्रमित मानसिकता है कि ज्ञान-विज्ञान की शिक्षा अँग्रेजी माध्यम से ही सम्भव है। उतनी गति से किसी भी विदेशी भाषा को माध्यम बनाकर वही सीख सकता है। प्रत्येक व्यक्ति का चिन्तन- मनन और विचार सर्वप्रथम अपनी भाषा के माध्यम से होता है। उसके पश्चात् अन्य भाषा में अनुदित कर अभिव्यक्ति का अवसर मिलता है।

अपनी भाषा को माध्यम बनाकर की जाने वाली अभिव्यक्ति सुस्पष्ट और मौलिक होती है। इसमें जहाँ भाषा का अपना संरचनात्मक रूप होता है, वहीं विषय भाव और सन्दर्भ के मौलिक रूप का प्रभावी रंग होता है। ऐसी मौलिकता शिक्षा और जीवन के गतिशील पथ पर अपनी पहचान छोड़ती है।

मातृभाषा यौगिता शब्द है। यह मातृ तथा भाषा इन दो शब्दों के योग से बना है। इस प्रकार मातृभाषा का व्युत्पत्तिपरक अर्थ हुआ, वह भाषा, जिसका सम्बन्ध माँ से है। इस प्रकार हम मातृभाषा से कह सकते हैं, जिसे एक शिशु अपनी माँ से सीखता है। इस प्रकार मनुष्य को भाषा का पहला ज्ञान अपनी माँ से होता है। समाज में अनेक भाषिक समुदाय होते हैं। परिवार भी इसी प्रकार का एक भाषिक समुदाय है। हर भाषिक समुदाय के सदस्य एक से वाचिक संकेतों की प्रणाली को प्रयोग में लाते हैं। वे उचित अवसरों पर समुचित भाषिक ध्वनियों का प्रयोग करते हैं। परिवार में शिशु इन्हें प्रारम्भ के वर्षों में सीख लेता है।

यह भी निर्विवाद सत्य है कि मातृभाषा में भावाभिव्यक्ति सरल और अधिक प्रभावी होती है। मातृभाषा के उत्तम ज्ञान के पश्चात् किसी भी अन्य भाषा का शिक्षण सरल होता है। आधुनिक हिन्दी साहि[य के जनक भारतेन्दु हरिश्चन्द्र ने हिन्दी को मातृभाषा के रूप में याद करते हुए इसे 'निजभाषा' की संज्ञा दी है-

"निज भाषा 'न्नति अहै, सब 'न्नति को मूल।
बिन निज भाषा ज्ञान के मिटे न हिय को सूल ॥'

परिवार में माँ शिशु की 'पस्थिति में कोई ध्वनि करती हैं जोकि बच्चे की एकाक्षर ध्वनि से मिलती है। यथा, माँ ने कहा 'बबुआ। जब ये ध्वनियाँ शिशु के कान में पड़ती हैं तब उसकी 'वृत्ति' सक्रिय हो जाती है और वह उससे अधिकतम मिलती-जुलती अपनी एकाक्षर ध्वनि 'ब' का उच्चारण करता है। तब यह कहा जाता है कि शिशु अनुकरण से सीख रहा है।

मानव जीवन की प्रगति में उत्कर्ष में, ज्ञानार्जन में मातृभाषा की विशेष भूमिका होती है। जितनी सरलता, सहजता, सुबोधता से मनुष्य अपनी मातृभाषा के माध्यम से ज्ञानार्जन कर सकता है, उतना अन्य किसी भाषा के माध्यम से नहीं। इतना ही नहीं किसी भी समाज की राष्ट्र की अस्मिता के आत्मगौरव का प्रतीक मातृभाषा ही होती है। वह उसके सांस्कृतिक ऐतिहासिक धरोहर की संरक्षिका होती है। इस प्रकार मानव जीवन के सम्यक विकास में मातृभाषा की महत्वपूर्ण भूमिका होती है।

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