बी एड - एम एड >> बीएड सेमेस्टर-2 हिन्दी शिक्षण बीएड सेमेस्टर-2 हिन्दी शिक्षणसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीएड सेमेस्टर-2 हिन्दी शिक्षण - सरल प्रश्नोत्तर
प्रश्न- भाषा शिक्षण में उच्चारणाभ्यास की उपयोगिता को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
भाषा शिक्षण में उच्चारण का विशेष महत्त्व होता है। उच्चारण की अशुद्धता से अर्थ का अनर्थ हो जाता है। उच्चारण दोष के कारण एक शिक्षक 'कक्षा' को 'कच्छा' कहे और फिर उसकी विशेषता जैसे- 'कक्षा' / 'कच्छा' खुला हवादार हो दो दरवाजे हों पर्याप्त खिड़कियाँ हों इत्यादि बताए तो कल्पना करें कि कक्षा की स्थिति क्या होगी? अत- भाषा शिक्षण में शुद्ध उच्चारण अत्यन्त आवश्यक है।
शुद्ध उच्चारण के लिए उच्चारणाभ्यास की आवश्यकता होती है। शुद्ध आक्षरिक उच्चारण ही भाषा ज्ञान का प्रथम चरण है। भाषा का प्रारम्भिक ज्ञान मौखिक ही होता है इसलिए उसके उच्चारण पर विशेष महत्त्व दिया जाता है। वर्गों के उच्चारण में दाँत, ओष्ठ, जिह्वा, तालू, कंठ एवं गले का विशेष महत्त्वपूर्ण उपयोग होता है। अतः इनका सही प्रयोग तथा उसका अभ्यास ही उच्चारण की शुद्धता प्रदान करता है।
उच्चारणाभ्यास से भाषा का सही-सही बोलना, समझना तथा लिखना आता है। शिक्षक के लिए तो यह अत्यन्त ही आवश्यक है। शुद्ध उच्चारण से शिक्षक को शिक्षण कार्य में तो सफलता एवं सुगमता कितनी ही है साथ ही उसके व्यक्तित्त्व की पहचान भी बनती है। उच्चारणाभ्यास के अभाव में छात्रों में उत्पन्न अशुद्धि बनी रहती है। इसे दूर करने के लिए शुद्ध उच्चारण के अभ्यास की आवश्यकता रहती है। अन्यथा वह छात्र सदैव अशुद्ध बोलता, पत्र लिखता रहता है। उच्चारणाभ्यास से शिक्षण तथा छात्र को स्वरों के उद्गम स्थान का ज्ञान होता है तथा अभ्यास के द्वारा उन स्वरों को अपने नियम उद्गम स्थानों से उच्चारित होने पर ही वास्तविक ध्वनि उच्चारित होती है जो भाषा के अर्थ के अनुसार- आवश्यक एवं अपरिहार्य भी होती है।
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