लोगों की राय

बी एड - एम एड >> बीएड सेमेस्टर-2 चतुर्थ (A) प्रश्नपत्र - पर्यावरणीय शिक्षा

बीएड सेमेस्टर-2 चतुर्थ (A) प्रश्नपत्र - पर्यावरणीय शिक्षा

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :180
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2759
आईएसबीएन :0

Like this Hindi book 0

5 पाठक हैं

बीएड सेमेस्टर-2 चतुर्थ (A) प्रश्नपत्र - पर्यावरणीय शिक्षा - सरल प्रश्नोत्तर

प्रश्न- पौधों तथा जीवों के विलुप्ति के कारकों का वर्णन कीजिए।

उत्तर-

पौधों तथा जीवों के विलुप्ति के कारक
(Factors Responsible for Extinction of Flora and Fauna)

विश्व पर्यावरण समस्याओं से जैव-विविधता और इसी से जुड़ी प्रजातियों के विलुप्त होने की समस्या आज गम्भीर रूप से विद्यमान है। जैव विविधता का ह्रास बहुत तेजी से हो रहा है। आकड़ों के अनुसार प्रतिवर्ष लगभग 1 लाख 70 हजार वर्ग किमी. वन क्षेत्र कम हो रहा है। वर्तमान में जैव विविधत पर प्रमुख रूप से ध्यान न दिए जाने के कारण विभिन्न प्रजातियों का विलुप्तिकरण, वायु, जल तथा भूमि प्रदूषण और पारिस्थितिक तन्त्र में प्रतिकूल परिवर्तन हुए हैं। जैव विविधता / पौधों तथा जीवों के विलुप्ति के निम्नलिखित कारक हैं।

1. वन्य जीवों का अनाधिकृत शिकार (Poaching of Wild Life) - विकास के साथ-साथ शिकार के तरीकों में तकनीकि परिवर्तन से वृद्धि हुई है। इन विधियों से वन्य जीवों का शिकार कम समय में अधिक हो गया है। लेकिन अभी तक उनके सम्बन्ध में पर्याप्त जानकारी उपलब्ध नहीं है। इसके चलते कशेरूकी लगभग एक तिहाई जातियाँ अनाधिकृत शिकार के कारण संकटान हो जाते हैं। हाल ही में संकटापन्न जातियों के व्यापार तथा शिकार पर रोक लगा दी गयी है। इसके अलावा विदेशी नीति के प्रवेश से कभी-कभी ये विदेशी जातियाँ नयी जलवायु में अत्यधिक वृद्धि करती हैं जिससे वहाँ की स्थानीय जातियाँ नष्ट होने लगती हैं। विदेशी जातियाँ अपने साथ बीमारियाँ भी लाती हैं जो कभी-कभी घातक सिद्ध होती है। इसी प्रकार दुनियां में शेरों की आबादी घट रही है। वहीं अब हाथियों और गैड़ों के दुश्मन बढ़ते जा रहे हैं। चोर शिकारी इनके पीछे पड़ गये हैं। इसके संरक्षण की चिन्ता भी लोगों को सता रही है। जो प्रजातियाँ खतरे में हैं उनके बचाव के लिए पर्यावरणविद् आगे आने लगे हैं। ऐसे एक बड़े आपरेशन को 21st सेन्चुरी कहते हैं जो शेरों की सुरक्षा करने के लिए एकजुट हुई टास्क फोर्स, ग्लोबल टाइगर पेटरोल और लन्दन जू नामक तीन ब्रिटिश संस्थाओं का एक समूह है। भारतीय शेरों की रक्षा के लिए हाल ही में ब्रिटेन के पर्यावरण विभाग ने 5000 पाउन्ड का अंशदान दिया था। टास्क फोर्स की सू- फिशर बताती है कि संसार में शेरों की संख्या घटकर 3000 रह गयी है जिनमें से तीन प्रजातियां तो बिल्कुल लुप्त हो चुकी हैं। साइबेरियन शेरों पर सबसे अधिक संकट मंडरा रहा है।

इसी प्रकार हाथी का शिकार उसके दाँतों के लिए किया जाता है जिससे उनकी संख्या में तेजी से कमी आयी है। 1970 में 10,30,000 अफ्रीकी हाथी पृथ्वी पर थे अवैध शिकार के कारण यह संख्या घटकर वर्तमान में 6,00,000 रह गयी है। पिछले वर्ष CITES के अन्तर्गत वन्य जीवन कानून बना जिसके द्वारा 25,000 से अधिक पशुओं, पक्षियों और पौधों की प्रजातियों पर व्यापार को प्रतिबन्धित. या नियंत्रित किया गया।

2. वासस्थान का क्षय (Habitat Destruction) - बड़ी मात्रा में औद्योगीकरण और आर्थिक प्रतिक्रिया जैसे मत्स्य आखेट, जंगलों की निरन्तर कटाई, निर्माण उद्योग बांधों का निर्माण, सड़कों, कस्बों, नहरों आदि के कारण जंगलों की कटाई तेजी से की जा रही है। जिससे जंगली जीवों के प्राकृतिक आवास नष्ट हो रहे हैं। IUCN, UNEP ने 1986 में बताया कि उष्ण कटिबन्धीय एशिया में 60% जीव आवास नष्ट हो चुके हैं जिसमें मुख्यतः बांग्लादेश 90%, हांगकांग 95%, श्रीलंका 85%, वियतनाम 80% और भारत 80% जीव आवास नष्ट हो चुके हैं।

आवास के नष्ट होने के कारण पर्यावरण प्रदूषण भी हुआ है। इसके सामान्य कारण पेस्टीसाइड, औद्योगिक रसायन और अवशिष्ट जो फैक्ट्रियों और आटोमोबाइल में निकलता है। इन प्रदूषित पदार्थों के परिणामस्वरूप अम्लीय वर्षा होती है और वहाँ की जलवायु पर्यावरण भी बदल रही है। ऐसा अनुमान है कि किसी जाति का 50% आवासीय पर्यावरण नष्ट हो जाए तो 70% वह जाति स्वतः ही नष्ट हो जायेगी।

3. मानव-वन्य जीव संघर्ष (Man Wild Life Conflict) - मनुष्य की सभ्यता के विकास के साथ वन्य जीवन का दोहन के स्थान पर शोषण प्रारम्भ हुआ । यही मानव तथा वन्य जीवन के संघर्ष का पहलू है। वनों की अवैध कटाई एवं वन संसाधन.. वर्तमान युग की प्रमुख पर्यावरणीय समस्याओं को जन्म दे रहा है। जन जातियाँ अपने परिवेश में सुखी तथा समृद्ध थीं किन्तु विविध कारणों से उनके आवास स्थान ही समाप्त हो रहे हैं जिससे उनकी सभ्यता और संस्कृति नष्ट हो रही है। विवाद का विषय है कि उन्हें वर्तमान शिक्षा-संस्कृति से जोड़ा जाए अथवा उनके परिवेश में उनकी संस्कृति में सुरक्षित संरक्षित रखा जाए।

वैज्ञानिकों के अनुसार यदि विशेष प्रयास नहीं किए गए तो अगले 50 वर्षों में पौधों और जीव-जन्तुओं की 10 लाख और प्रजातियां विलुप्त हो जायेंगी।

4. वातावरणीय प्रदूषण (Environmental Rollution) - प्रदूषण से तात्पर्य वातावरण में होने वाले उन अवांछनीय परिवर्तनों से है जो मानव तथा अनमें क्रिया-कलापों के लिए हानिकारक होते हैं। प्रदूषण अनेक प्रकार से होता है जैसे मृदा में संश्लेषित एवं सूक्ष्मजीवों द्वारा नष्ट न किए जा सकने वाले रसायनों का मिलना, हानिकारक विकिरणों का उत्सर्जन, जल स्रोतों में अपशिष्ट जल का प्रवाह, समुद्र में तेल का फैलना, ईंधन चालित वाहनों द्वारा उत्सर्जित हानिकारक गैसों का वायुमण्डल में विलय आदि ऐसे कारक हैं जो पारिस्थितिक तन्त्र के सामान्य व स्वस्थ जीवन को प्रभावित करते हैं। पर्यावरण को प्रदूषित हो जाने पर कुछ अधिक संवेदी व दुर्बल जातियां नष्ट हो जाते हैं। इनके नष्ट होने से पारिस्थितिक सन्तुलन बिगड़ जाता है। विषैले पदार्थों की उपस्थित से अनेक जातियों के जीव नष्ट हो जाते हैं। पानी में स्थित कार्बनिक पदार्थ में सूक्ष्म जीव तेजी से वृद्धि करते हैं जिससे आक्सीजन की माँग बढ़ जाते है और जल में आक्सीजन की कमी हो जाति है। आक्सीजन के अभाव में जलीय जन्तु मरने लगते है।

इस प्रकार प्रदूषण भी जन्तुओं की कई प्रजातियों के संकटग्रस्त या विलुप्त होने का एक प्रमुख कारण है।

5. विदेशी प्रजातियों का आगमन ( Introduction of Foreign Species) - किसी पारिस्थितिक क्षेत्र में एक विदेशी जातित के आ जाने से वहाँ की सामुदायिक देशी प्रजातियां की नयी आयी प्रजाति के बीच संसाधनों के उपयोग को लेकर प्रतिस्पर्धा बढ़ती है जिसके परिणामस्वरूप पर्यायवरणीय कारकों में भी परिवर्तन आता है। यदि नयी आयी प्रजाति उस पर्यावरण में शीघ्रता से अनुकूलन स्थापित कर लेती है और उपस्थित संसाधनों का दोहन करने लगती है तो देशी प्रजातियों के लिए संकट उत्पन्न हो जाता है जिसके परिणामस्वरूप मूल जैवविविधता का ह्रास होता है जैसे- जलकुम्भी जिन्हें विदेशों से भारत लाया गया था, उन दुविधापूर्ण पौधे बन गये हैं। ये बहते हुए पानी में उठाकर पानी के बहाव को रोक देते हैं, भूमि को जलाक्रान्त कर देते हैं तथा वाष्पोत्सर्जन द्वारा होने वाली जल की क्षति में 120 -150% तक की वृद्धि करते हैं।

6. अतिशोषण (Over Exploitation) - आहार, मनोरंजन या किसी अन्य लाभ के लिए जन्तुओं की कुछ विशिष्ट जातियों का शिकार करके उन्हें नष्ट करना अतिशोषण कहलाता है | उत्तरी अमेरिका में पाये जाने वाले ऊन देने वाले जानवर, घोड़े, ऊंट के विलुप्तिकरण का एक प्रमुख कारण पाषाण काल में उनका अत्यधिक शिकार करना था। इसी तरह हाथी, बाघ, शेर, सर्प, मगरमच्छ, व्हेल तथा कछुओं की कुछ प्रजातियों के विलुप्तिकरण का प्रमुख कारण इनके बहुमूल्य भागों की तस्करी है। 

औषधीय तथा आर्थिक रूप से महत्वपूर्ण वनस्पतियों के विलुप्तिकरण का प्रमुख कारण इनका अतिशोषण रहा है।

7. प्राकृतिक आपदायें (Natural Calamities) - बाढ़, सूखा, जंगलों की आग, भूकम्प, ज्वालामुखी, महामारी आदि प्राकृतिक आपदाओं के कारण भी होने वाली जैव विविधता उत्पन्न हुई है एवं इनका प्रमुख कारण इनका अतिशोषण भी है।

8. जलवायु परिवर्तन (Climate Change) - वायुमण्डल में ग्रीन हाउस प्रभाव उत्पन्न करने वाली गैसों की मात्रा में वृद्धि होने के कारण तापमान में वृद्धि हो रही है जिसके परिणामस्वरूप विभिन्न प्रदेशों में वर्षा एवं वनस्पतियों एवं जीव-जन्तुओं के आस्तित्व का संकट उत्पन्न हो जायेगा। अनुमान है भूमण्डल के तापन के कारण कटिबन्धी क्षेत्र का विस्तार होगा जबकि उष्ण कटिबन्धी तथा शीतोष्ण प्रदेश क्रमशः उत्तर व दक्षिण की ओर प्रतिस्थापित हो जाएंगे।

9. औद्योगीकरण (Industrialisation) - 19वीं शताब्दी में यूरोप में आई औद्योगिक क्रान्ति के बाद से विश्व के सभी देशों में औद्योगीकरण की होड़ सी लग गयी। बड़ी संख्या में उद्योगों की प्रतिस्थापना के कारण वनोन्मूलन व प्रदूषण की समस्या भी उत्पन्न हुई । उद्योगों तथा वाहनों द्वारा वायु में उत्सर्जित CO, वायुमण्डल में ग्रीन हाउस प्रभाव पैदा करती है जिससे तापमान में वृद्धि होती है। इस प्रकार औद्योगीकरण से पर्यावरण का सन्तुलन प्रभावित होता है जो जैवविविधता के ह्रास (जीव जन्तुओं तथा पौधों की विलुप्ति) के रूप में परिलक्षित होता है।

10. अशिक्षा एवं सामाजिक नीरसता (Illiteracy and Social Neglegence) - भारत समेत विश्व भर के नागरिकों में जैवविविधता के महत्व एवं उसके संरक्षण के प्रति ज्ञान का अभाव है। यहाँ के समाज की मानसिकता एक लम्बे समय से ही उपभोगवादी रही है जौ कि प्राकृतिक संसाधनों के अनियोजित दोहन के लिए उत्तरदायी है अनावश्यक वनोन्मूलन तथा झूम खेती के कारण जन्तुओं के आवास नष्ट हो जाते है जिससे पौधों तथा जीवों के ऊपर संकट आ जाता है।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book