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बीएड सेमेस्टर-2 चतुर्थ (A) प्रश्नपत्र - पर्यावरणीय शिक्षा

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :180
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2759
आईएसबीएन :0

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बीएड सेमेस्टर-2 चतुर्थ (A) प्रश्नपत्र - पर्यावरणीय शिक्षा - सरल प्रश्नोत्तर

प्रश्न- पर्यावरणीय शिक्षा में विभिन्न मूल्यांकन तकनीकों का वर्णन कीजिए।

उत्तर-

मूल्यांकन की प्रक्रिया ज्ञानात्मक, भावात्मक तथा क्रियात्मक उद्देश्यों की प्राप्ति के सम्बन्ध में प्रदत्तों का संकलन करती है। परम्परागत परीक्षाओं के ज्ञानात्मक उद्देश्यों का ही मापन किया जाता है। मूल्यांकन की प्रक्रिया का क्षेत्र अधिक व्यापक होता है। इसमें अनेक प्रकार की प्रविधियाँ (तकनीक) प्रयुक्त की जाती हैं-

1. ज्ञानात्मक उद्देश्यों के लिए मौखिक, लिखित, निबन्धात्मक तथा वस्तुनिष्ठ परीक्षाएँ तथा प्रयोगात्मक परीक्षाएँ प्रयोग में लाई जाती हैं। निरीक्षण विधि का भी प्रयोग करते हैं।

2. भावात्मक उद्देश्यों के निमित्त अभिरुचि परीक्षा, अभिवृत्ति सूची, रेटिंग स्केल तथा मूल्यों की परीक्षा आदि प्रयुक्त किए जाते हैं। निबन्धात्मक परीक्षाएँ भी आंशिक रूप से प्रयुक्त की जा सकती हैं। निरीक्षण विधि को भी प्रयोग में लाया जाता है।

3. क्रियात्मक उद्देश्यों के लिए प्रयोगात्मक परीक्षा अधिक उपयोगी मानी जाती है। इसमें छात्रों को कुछ क्रियाएँ करनी पड़ती हैं तथा उनके कौशल का मूल्यांकन किया जाता है।

पर्यावरणीय शिक्षा में मूल्यांकन प्रविधियों का वर्गीकरण - विद्यालयों में प्रयुक्त की जाने वाली सभी मूल्यांकन प्रविधियों को प्रमुख रूप से दो वर्गों में विभाजित किया जाता है-

1. परिमाणात्मक प्रविधि - मूल्यांकन में इस प्रकार की प्रविधियाँ अधिक उपयोगी विश्वसनीय या वैध होती हैं। यह तीन प्रकार की होती हैं। 

(i) मौखिक परीक्षा इस परीक्षा में मौखिक प्रश्न, वाद-विवाद प्रतियोगिता तथा नाटक आदि को प्रयुक्त किया जाता है।

(ii) लिखित परीक्षा - इस परीक्षा में प्रश्न लिखित रूप से पूछे जाते हैं। छात्रों को इनका उत्तर लिखित रूप से देना होता है। यह परीक्षाएँ निबन्धात्मक जिसमें दीर्घ उत्तर लिखना होता है जिससे छात्रों की कल्पना, अभिव्यक्ति क्षमता, स्मृति, लेखन कला, समीक्षा, मूल्यांकन समालोचना विश्लेषण, तुलना इत्यादि का ज्ञान होता है। इस परीक्षा में कुछ प्रश्न लघु उत्तरीय भी होते हैं। दूसरी परीक्षा वस्तुनिष्ठ होती है। इसके उत्तरगत बहुविकल्पीय, मिलान चिह्न, रिक्त स्थान की पूर्ति इत्यादि प्रकार के प्रश्न होते हैं।

(iii) प्रयोगात्मक परीक्षाएँ - इस प्रकार की परीक्षाओं में कोई निर्धारित कार्य को पूरा करना होता है। विज्ञान, भूगोल, गृह विज्ञान, कला, क्राफ्ट इत्यादि विषयों में इन्हें प्रयुक्त किया जाता है।

2. गुणात्मक प्रविधि - पर्यावरणीय शिक्षा के मूल्यांकन हेतु विद्यालय में गुणात्मक परीक्षाओं का उपयोग आन्तरिक मूल्यांकन के लिए किया जाता है। यह सामान्यतः पाँच प्रकार की होती हैं-

(i) संचयी आलेख - विद्यालयों में प्रत्येक छात्र के सम्बन्ध में सूचनाओं को क्रमबद्ध रूप से प्रस्तुत किया जाता है। इसमें शैक्षिक प्रगति, मासिक परीक्षाफल, उपस्थिति तथा अन्य विद्यालयीय क्रियाओं का आलेख संकलित किया जाता है। छात्र की प्रगति तथा कमियों को जानने के लिए यह अत्यन्त उपयोगी अभिलेख होता है।

(ii) एनेकडोटल (Anecdotal) - आलेख इसमें बालकों के व्यवहार से सम्बन्धित महत्वपूर्ण घटनाक्रमों तथा कार्यों को लिपिबद्ध किया जाता है। निरीक्षण करने वाला छात्रों की रुचियों तथा झुकावों को उत्पन्न करने वाले घटकों का भी उल्लेख करता है ।

(iii) निरीक्षण - इस विधि का प्रयोग विशेष रूप से छोटे बालकों के मूल्यांकन के लिये किया जाता है। इसका प्रयोग उनकी योग्यता तथा व्यवहारों के सम्बन्ध में किया जाता है।

(iv) जाँच सूची - लिखित तथा मौखिक परीक्षाएँ छात्रों के ज्ञानात्मक पक्ष की परीक्षा करती है और प्रयोगात्मक परीक्षाएँ कौशल तथा क्रियात्मक पक्ष की जाँच करती हैं। जाँच सूची का प्रयोग अभिरुचियों, अभिवृत्तियों तथा भावात्मक पक्ष के लिए किया जाता है। इसमें कुछ कथन दिये जाते हैं। इन कथनों के सम्बन्ध में छात्रों को हाँ अथवा नहीं में उत्तर देना होता है। 

(v) रेटिंग स्केल - इस परीक्षा में कुछ कथन दिए जाते हैं उनका तीन, पाँच या सात बिन्दुओं तक सापेक्ष निर्णय करना होता है। इसका प्रयोग उच्च कक्षाओं के छात्रों के लिए ही किया जा सकता है क्योंकि निर्णय लेने की शक्ति छोटी आयु के छात्रों में नहीं होती है। शिक्षक भी प्रत्येक छात्र के मूल्यांकन एवं मापन हेतु इसका प्रयोग करता है, परन्तु शिक्षक को छात्र से भली- भाँति परिचित होना चाहिए।

पर्यावरणीय शिक्षा में मूल्यांकन आयाम

शिक्षक की प्रक्रिया के सम्पादन की व्यवस्था के लिए शिक्षाविदों ने साधारणतः तीन तथ्यों एवं सोपानों का उल्लेख किया हैं। पाठ्यवस्तु के मापन के लिए निष्पत्ति परीक्षणों का प्रयोग करते हैं।

बी. एस. ब्लूम ने - परीक्षा सुधार के लिए जो प्रयास किया उसमें वह परीक्षा के सुधार तक ही सीमित नहीं रहे, अपितु सम्पूर्ण शिक्षा की प्रक्रिया के सुधार के लिए नए आयाम का विकास किया जिसे मूल्यांकन आयाम कहते हैं। इसके अन्तर्गत उन्होंने कुछ सुझाव दिए तथा त्रिपदी प्रक्रिया बताया जिसमें उन्होंने तीन सोपान दिए- 

1. शिक्षा के उद्देश्य
2. सीखने के अनुभव
3. व्यवहार परिवर्तन

यह सोपान व्यावहारिक हैं। शिक्षण के सम्पादन में इन सोपानों का अनुसरण किया जाता है तथा प्रशिक्षण में पाठ योजना का निर्माण इन्हीं सोपानों में किया जाता है। इससे पूर्व हरबर्ट की पंचपदी उपागम का प्रयोग करते थे जिसमें पाठ्यवस्तु के प्रस्तुतीकरण पर विशेष महत्व दिया जाता था, जबकि मूल्यांकन उपागम में उद्देश्यों की प्राप्ति का प्रयास किया जाता है। शिक्षण एवं परीक्षण की व्यवस्था का उद्देश्य केन्द्रित होता है। शिक्षण एवं परीक्षण में समन्वय स्थापित किया जाता है।

इस आयाम के अन्तर्गत छात्रों की परिस्थितियों का ही मापन नहीं किया जाता, अपितु शिक्षण की सम्पूर्ण प्रक्रिया का मूल्यांकन किया जाता है। क्योंकि छात्रों की असफलता के लिए 'सीखने के अनुभव' उत्तरदायी होते हैं। उनमें सुधार भी किया जाता है। इस उपागम के द्वारा शिक्षण, परीक्षण एवं उद्देश्यों में सुधार एवं परिवर्तन के लिए दिशा मिलती है जिससे शिक्षा तात्कालिक आवश्यकताओं की पूर्ति कर सके।

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