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बीएड सेमेस्टर-2 चतुर्थ (A) प्रश्नपत्र - पर्यावरणीय शिक्षा

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :180
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2759
आईएसबीएन :0

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बीएड सेमेस्टर-2 चतुर्थ (A) प्रश्नपत्र - पर्यावरणीय शिक्षा - सरल प्रश्नोत्तर

प्रश्न- मूल्य शिक्षा की अवधारणा को स्पष्ट करते हुए, मूल्य शिक्षा में एक शिक्षक की भूमिका वर्णन का कीजिए।

उत्तर-

मूल्य शिक्षा की अवधारणात्मक संरचना

आजकल कई देशों में 'मूल्य शिक्षा' प्रदान करने पर बहुत बल दिया जा रहा है। यह कार्यक्रम शैक्षिक कार्यक्रमों के माध्यम से विद्यार्थियों में मूल्यों को विकसित करने का प्रयास करता है।

मूल्य शिक्षा की भूमिका

जॉन स्टीफेन्सन ने अपनी पुस्तक 'Values in Education' (1998) में विद्यार्थियों में मूल्य शिक्षा प्रदान करने की निम्नांकित भूमिकाएँ बतायी हैं-

मूल्य शिक्षा विद्यार्थियों को प्रोत्साहित कर सकें ताकि-

(1) वे व्यक्तिगत मूल्यों को विकसित कर सकें और दूसरों के प्रति उपयुक्त ख्याल रख सकें।

(2) वे अपने अनुभवों पर विचार कर सकें, उनके अर्थ और प्रतिमान को समझ सकें।

(3) वे आत्म-सम्मान रख सकें और सभी लोगों द्वारा समान रूप से मान्य मूल्यों, जैसे ईमानदारी, सच्चाई, आदि के प्रति आदर भाव रख सकें।

(4) वे सामाजिक रूप से जिम्मेदारी के निर्णय ले सकें और न्यायोचित निर्णय प्रदान कर सकें तथा कार्य कर सकें।

मूल्य शिक्षा की अवधारणा - हमारे विचार से मूल्य शिक्षा निम्नांकित प्रकार की होती हैं-

(1) यह सार्वभौमिक मूल्यों से प्रेरित होती है, यह आदर्शवादी शिक्षा होती है।

(2) यह मूल्यों में आस्था रखने वाले शिक्षकों या प्रौढ़ों द्वारा प्रदान की जाती हैै।

(3) यह औपचारिक और अनौपचारिक शिक्षा की विधियों से प्रदान की जाती है।

(4) यह धर्मनिरपेक्षता, सांस्कृतिक और सामाजिक एकता, सह-अस्तित्व, शान्ति, प्रेम, पारस्परिक आदान-प्रदान और सहयोग पर बल देती है।

(5) यह शिक्षा धन कमाने के लक्ष्य को लेकर नहीं दी जाती है, अपितु यह मानव निर्माण करने के विचार से प्रदान की जाती है।

(6) यह परम्परागत, आधुनिक और भविष्य में आवश्यक मूल्यों के न्यायपूर्ण या उचित सम्मिश्रण से प्रदान की जाती है ताकि यह मानव को अधिमानव बना सके, उसे एक नैतिक, आध्यात्मिक, आशावादी, उत्तरदायी, विश्वसनीय, सिद्धान्तवादी नागरिक ही नहीं, विश्व नागरिक बना सकें।

(7) आजकल सभी देशों में सही प्रकार के विकास को प्राप्त करने के लिए मूल्य शिक्षा को महत्त्वपूर्ण माना जा रहा है। इस दृष्टिकोण से मूल्य शिक्षा को निम्नांकित उद्देश्य रखने होते हैं-

(i) सामाजिक विकास
(ii) आर्थिक विकास
(iii) सांस्कृतिक विकास
(iv) नैतिक विकास
(v) राजनीतिक विकास
(vi) पर्यावरण सम्बन्धी विकास

मूल्य शिक्षा में एक शिक्षक की भूमिका - मूल्य शिक्षा देते हुए एक शिक्षक का रोल तीन प्रकार का स्वरूप धारण करता है-

(1) शिक्षक एक वयस्क है, उसे विद्यार्थियों के व्यवहार को प्रभावित करना है, जो विद्यार्थियों की प्रकृति से सम्बन्धित है।

(2) शिक्षक भारत की सांस्कृतिक परम्पराओं और विविधता में एकता का प्रतिनिधित्व करने वाला व्यक्ति है।

(3) शिक्षक अपनी कक्षा में सिखाने व सीखने की सभी प्रक्रियाओं और अन्तः क्रियाओं का नेता है।

मूल्य शिक्षा प्रदान करते समय शिक्षक के लिए आवश्यक व्यवहार

(1) विद्यार्थियों के साथ प्रेम, प्रोत्साहन देने का व्यवहार करें।

(2) प्रत्येक विद्यार्थी की ओर शिक्षक देखे, मुस्कराए।

(3) विद्यार्थियों से पूछे कि वे क्या पढ़ना चाहते हैं? सीखना चाहते हैं?

(4) विद्यार्थियों को प्रश्न पूछने को प्रोत्साहित करे और उनको ध्यान से सुने।

(5) सभी विद्यार्थियों के साथ समान व शिष्ट व्यवहार करे।

(6) किसी भी विद्यार्थी को ताना न मारे, कठोर शब्द न बोले, निराशापूर्ण दृष्टि से न देखे।

(7) सही प्रश्न, उत्तर या अन्य व्यवहार करने पर विद्यार्थी/ विद्यार्थियों को उचित स्वीकृति पूर्ण प्रोत्साहन प्रदान करे।.

मूल्य विकसित करने के सामान्य उपागम - मूल्य विकसित करने के सामान्य उपागम निम्नलिखित हैं-

(1) मूल्यों पर आधारित व्यवहारों को आनन्द, हास्य, प्रसन्नता के साथ प्रदान करना। इससे बालक सीखते हैं। 

(2) जो सन्देश शिक्षक विद्यार्थियों को पहुँचाना चाहते हैं, वह बार-बार और लगातार दिया जाना चाहिए।

(3) सही व्यवहार करने पर विद्यार्थियों को पुरस्कृत करने में विद्यार्थी वह वांछित मूल्य ग्रहण कर लेता है। वातावरण द्वारा प्रोत्साहित करने पर ही मूल्यों को ग्रहण किया जाता है।

(4) विद्यार्थी जटिल शब्दों, विचारों, संप्रत्ययों को नहीं समझ सकते हैं, उन्हें सरल व सुगम शब्दों में इच्छित मूल्य प्रदान करना चाहिए।

 

प्रश्न- राष्ट्रीय पर्यावरण चेतना (जागरुकता) अभियान पर टिप्पणी लिखिए।

उत्तर-

राष्ट्रीय पर्यावरणीय चेतना अभियान

पर्यावरण का मानव जीवन से गहरा और अटूट सम्बन्ध है और इसीलिए एक अच्छे जीवन के लिए जो मुख्य आवश्यकताएँ अपेक्षित हैं, वहाँ पर्यावरण के मुख्य घटक भी हैं। प्रकृति ने वायु, जल, भूमि, प्रकाश, आकाश, पेड़-पौधे और वनस्पति सभी विशुद्ध रूप से हमें उपलब्ध कराये हैं और उनका वितरण भी सभी को समान रूप से बिना भेदभाव के किया है। पर जब-जब भी मानव ने इस प्राकृतिक सन्तुलन को छेड़ा है तब-तब ही पर्यावरण बिगड़ा है और वही चिन्ता का विषय बन गया है।

पर्यावरण विकृति से अनेक समस्याएँ उठ खड़ी हुई हैं। वायु प्रदूषण, जल प्रदूषण, भूमि प्रदूषण, ध्वनि प्रदूषण, पेड़-पौधे और वनस्पति की कमी, खनिजों का प्रायः समाप्त होना, ईंधन का अभाव, भोजन और भूसा की कमी, बाढ़ और सूखा आदि इनमें मुख्य हैं।

यदि हम पर्यावरण असन्तुलन के मुख्य कारणों को खोजें तो मूल में हमें चार बातें अत्यन्त प्रभावी रूप से दिखती हैं-

(1) निरन्तर बढ़ती जनसंख्या से प्राकृतिक संसाधनों का अधिक दोहन।

(2) औद्योगिक क्रान्ति के कारण उद्योगों से निकलने वाले धुएँ और अपशिष्टों का अनियंत्रित निकास।

(3) प्राकृतिक नियमों की अवहेलना और अपेक्षा

(4) पर्यावरण असन्तुलन के कारणों से जानकारी रखते हुए भी जनमानस का उनसे अलगाव।

बढ़ती जनसंख्या को नियन्त्रित करने हेतु राज्य सरकार ने 'परिवार कल्याण कार्यक्रम' चला रखे हैं। विभिन्न उद्योगों से जन-साधारण को कम-से-कम हानि पहुँचे इस हेतु राज्य ने 'राज्य प्रदूषण नियन्त्रण मण्डल का गठन किया हुआ है, जिसके विशेषज्ञ चिमनियों से निकलने वाले धुएँ और कारखानों से निकलने वाले पानी का नियमित मानीटरिंग करके उद्योग मालिकों को निर्देशित करते रहते हैं। पर इनसे भी महत्त्वपूर्ण बात आम आदमी की पर्यावरण के प्रति उदासीनता है जिससे न तो वह प्रकृति के अनुरूप चलता है और न ही अन्य कारणों को समाप्त अथवा कम करने की बात सोचता है।

अतः केन्द्रीय पर्यावरण विभाग ने 'राष्ट्रीय पर्यावरणीय चेतना अभियान के अन्तर्गत एक बहुत ही ठोस और देशव्यापी कार्यक्रम बनाया और जिसे सर्वप्रथम 1986 में 'पर्यावरण शिक्षा केन्द्र, अहमदाबाद' के द्वारा सम्पन्न कराया गया। भूतपूर्व प्रधानमन्त्री स्व. श्रीमती इन्दिरा गाँधी के जन्म दिवस 19 नवम्बर से 18 दिसम्बर तक चलाये गये इस पहले कार्यक्रम की अवधि एक माह थी, जिसे पर्यावरण माह नाम दिया गया। अब निरन्तर यह चेतना का कार्यक्रम 'पर्यावरण माह' इसी अवधि में अब प्रतिवर्ष पूरे देश में चलाया जाता है।

सन् 1986 से अब तक चलाये गये कार्यक्रमों की प्रतिवर्ष एक निश्चित विषय-वस्तु रही है, जिसमें आज पूरे देश के हजारों बच्चे, वयस्क और बड़ी आयु के लोग बहुत ही दिलचस्पी से भाग लेते हैं। इसमें-

(1) पद यात्राएँ
(2) रैलियाँ
(3) जनसभाएँ
(4) प्रदर्शनियाँ
(5) लोक-नृत्य
(6) नुक्कड़ नाटक
(7) स्कूली बच्चों के लिए निबन्ध/वाद-विवाद/चित्रकला/पोस्टर प्रतियोगिताएँ
(8) सेमीनार
(9) कार्यशालाएँ
(10) प्रशिक्षण कार्यक्रम
(11) पर्यावरणीय सामग्री निर्माण, आदि कार्य आयोजित किये जाते हैं।

पिछले वर्षों की समेकित जानकारियाँ निम्न सारणी में प्रस्तुत की गई हैं।

सारणी
राष्ट्रीय पर्यावरण जन चेतना अभियान (NEAC)

2759_130

यह कार्यक्रम पर्यावरण शिक्षा क्षेत्र में कार्यरत 28 निर्धारित संसाधन एजेन्सियों के मार्फत चलाये जाते है। प्रदेसों को निश्चित एजेन्सी के साथ पूर्व में ही सम्बध्द कर दिया जाता है।

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