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बीएड सेमेस्टर-2 चतुर्थ (A) प्रश्नपत्र - पर्यावरणीय शिक्षा

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :180
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2759
आईएसबीएन :0

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बीएड सेमेस्टर-2 चतुर्थ (A) प्रश्नपत्र - पर्यावरणीय शिक्षा - सरल प्रश्नोत्तर

प्रश्न- समुदाय का क्या अर्थ है? समुदाय के अनौपचारिक शैक्षिक कार्यों का वर्णन करते हुए बतायें कि समुदाय को शिक्षा का प्रभावशाली साधन कैसे बनाया जा सकता है? विवेचना कीजिए।

उत्तर-

समुदाय अनोंपचारिक शिक्षा का एक महत्त्वपूर्ण साधन है। इसके शैक्षिक कार्यों पर विचार करने से पूर्व यह जानना आवश्यक है कि समुदाय से हमारा क्या अभिप्राय है।

समुदाय का अर्थ - समुदाय के लिए अंग्रेजी में Community शब्द का प्रयोग होता है। यह शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है-

(1) Com, (2) Munis Com. का अर्थ है - एक साथ और Munis अर्थ है - सेवा करना। इस प्रकार इन दोनों शब्दों से मिलकर बने Community शब्द का अर्थ हुआ एक साथ सेवा करना। दूसरे शब्दों में, समुदाय का अर्थ व्यक्तियों के एक ऐसे समूह से लिया जाता है जिसके सदस्यों में परस्पर सेवा भावना होती है तथा जो हर स्थिति में एक-दूसरे के साथ सहयोग करने के लिए तैयार रहते हैं। समुदाय के सभी सदस्य एक निश्चित भौगोलिक क्षेत्र में रहते हुए सामान्य जीवन व्यतीत करते हैं ।

समुदाय की कुछ परिभाषाएँ - समुदाय की कुछ मुख्य परिभाषाएँ इस प्रकार हैं-

(1) ऑगबर्न तथा निमकाफ के अनुसार - "किसी सीमित क्षेत्र के अंतर्गत सामाजिक जीवन के संपूर्ण संगठन को समुदाय समझा जा सकता है।" 

(2) ब्राउनेल के अनुसार - "समुदाय से मेरा अभिप्राय उस समूह से है जिसमें अनेक प्रकार के व्यक्ति विभिन्न क्षमताओं तथा योग्यताओ से युक्त होकर पड़ोसियों की भाँति मिलकर साथ रहते हैं। यह प्राथमिक समूह है जिसमें जीवन के अनेक कार्य परस्पर सहयोग से किए जाते हैं।" 

शिक्षा के अनौपचारिक साधन के रूप में समुदाय के कार्य

समुदाय बच्चे की शिक्षा को औपचारिक व अनौपचारिक दोनों रूपों में प्रभावित करता है। जहाँ तक इसके औपचारिक कार्यों का संबंध है उन्हें निम्न शीर्षकों के अंतर्गत देखा जा सकता है-

1. विद्यालय खोलना - औपचारिक शिक्षा की मुख्य संस्था है विद्यालय और इन विद्यालयों को खोलने का कार्य समुदाय ही करता है। हम जानते हैं कि प्रत्येक समुदाय की अपनी एक संस्कृति होती है जिसे वह सुरक्षित आगे आने वाली पीढ़ी तक पहुँचाना चाहता है और उसका विकास करना चाहता है। इसी उद्देश्य से वह शिक्षा संस्थाएँ खोलता है जो बच्चे की शिक्षा में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

2. शिक्षा के स्वरूप का निर्धारण - विद्यालयों में दी जाने वाली शिक्षा का स्वरूप या संरचना कैसी हो, यह निश्चित करने का कार्य भी समुदाय करता है। समुदाय ही यह निर्धारित करता है कि शिक्षा का स्वरूप 10+2+2 हो या 10+2+3 या कुछ और। इस समय भारत में 10+2+3 के रूप में शिक्षा संरचना की गई है।

3. शिक्षा के उद्देश्यों का निर्धारण - शिक्षा एक उद्देश्यपूर्ण प्रक्रिया है। जब तक हम औपचारिक शिक्षा के कोई उद्देश्य निर्धारित नहीं करते तब तक उससे समय व श्रम की बर्बादी के अतिरिक्त कोई भी लाभ नहीं होगा। औपचारिक शिक्षा के लिए उद्देश्यों के निर्धारण का कार्य भी समुदाय ही करता है। समुदाय यह देखता है कि उसकी सामाजिक, राजनैतिक तथा आर्थिक आवश्यकताएँ व समस्याएँ क्या हैं? इसके मुख्य आदर्श कौन से हैं और फिर इन सबके आधार पर वह शैक्षिक उद्देश्य निर्धारित करता है । उदाहरण के लिए आज भारत की कुछ मुख्य आवश्यकताएँ हैं- प्रजातंत्र को सफल बनाना, गरीबी व बेरोजगारी को दूर करना, लोगों को अंध-विश्वासों व पुरानी रूढ़ियों के घेरे से बाहर निकालना आदि। इनको पूरा करने के लिए यहाँ प्रजातांत्रिक नागरिकता का विकास करना, आर्थिक विकास एवं आधुनिकीकरण जैसे शैक्षिक उद्देश्य निर्धारित किए गए हैं।

4. पाठ्यक्रम का निर्धारण - समुदाय केवल शैक्षिक उद्देश्य ही निश्चित नहीं करता उन्हें प्राप्त करने के लिए पाठ्यक्रम की रूपरेखा भी प्रस्तुत करता है। उदाहरण के लिए भारत में आर्थिक विकास के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए पाठ्यक्रम से कार्य अनुभव (Work experience) समाजोपयोगी उत्पादक कार्य जैसे विषयों को सम्मिलित किया जा रहा है तथा माध्यमिक एवं उच्च शिक्षा को व्यावसायिक बनाया जा रहा है।

5. सार्वभौमिक शिक्षा - समुदाय शिक्षा के महत्त्व को समझते हुए अपने नागरिकों के लिए सार्वभौमिक शिक्षा की व्यवस्था करता है। भारत के संविधान में भी स्पष्ट निर्देश है कि राज्य अपने 7 से 14 वर्ष तक की आयु वर्ग के सभी बच्चों के लिए निःशुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा की व्यवस्था करेगा। इस लक्ष्य की प्राप्ति के लिए निरंतर प्रयास किए जा रहे हैं।

6. प्रौढ़ शिक्षा की व्यवस्था - समुदाय की प्रगति उसमें रहने वालों की प्रगति पर निर्भर करती है। व्यक्तियों की प्रगति में शिक्षा महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है। इसलिए समुदाय केवल बच्चों की शिक्षा की ही व्यवस्था नहीं करता वरन् उन सभी प्रौढ़ों की शिक्षा का भी प्रबन्ध करता है जो पहले किन्हीं कारणों से शिक्षा सुविधाओं से वंचित रह गए थे। भारत में राष्ट्रीय साक्षरता अभियान इसी उद्देश्य से चलाए जा रहे हैं।

7. शिक्षा के लिए धन की व्यवस्था - विद्यालय खोलने तथा अन्य शैक्षिक कार्यों के लिए धन की आवश्यकता होती है और धन जुटाने का यह कार्य भी समुदाय ही करता है।

समुदाय के अनौपचारिक शैक्षिक कार्य

समुदाय के अनौपचारिक शैक्षिक प्रभाव भी कम महत्त्वपूर्ण नहीं हैं। यह अप्रत्यक्ष रूप से बच्चे के व्यक्तित्व के निम्न पक्षों को प्रभावित करता है-

1. शारीरिक विकास - बच्चे का शारीरिक विकास अच्छे व स्वस्थ पर्यावरण, समुदाय में उपलब्ध चिकित्सा, उचित व्यायाम तथा खेलों आदि की सुविधाओं पर निर्भर करता है। समुदाय सफाई की विशेष व्यवस्था करता है जिससे उसमें रहने वालों को अच्छा परिवेश मिल सके। वह उनके लिए पीने के लिए स्वच्छ जल तथा अन्य खाद्य पदार्थों की व्यवस्था भी करता है। समुदाय में अनेक स्वास्थ्य केन्द्र व चिकित्सालय होते हैं जो नागरिकों के स्वास्थ्य की देखरेख करते हैं। इसके अतिरिक्त समुदाय में अनेक पार्क, खेल के मैदान तथा स्टेडियम आदि होते हैं जो बच्चों के शारीरिक विकास को महत्त्वपूर्ण ढंग से प्रभावित करते हैं।

2. मानसिक विकास - समुदाय द्वारा खोले गए विद्यालय तो बच्चे का मानसिक विकास करते ही हैं, अप्रत्यक्ष रूप से समुदाय भी इसे प्रभवित करता है। समुदाय पुस्तकालय खोलता है। ज्ञान विज्ञान के विभिन्न क्षेत्रों से सम्बद्ध पुस्तकें प्रकाशित करता है। समाचार-पत्र तथा पत्रिकाएँ निकालता है जिससे लोगों का मानसिक विकास होता है।

3. सामाजिक विकास - सामाजिक विकास साथ-साथ रहने से होता है। समुदाय में विभिन्न धर्मों, जातियों के लोग मिलकर एक साथ रहते हैं, सुख-दुख में एक-दूसरे के साथ सहयोग करते हैं, एक-दूसरे की भावनाओं का सम्मान करते हैं। इससे बच्चे का सामाजिक विकास करने में मदद मिलती है। समाज में समय-समय पर कई मेले लगते हैं, सामाजिक, धार्मिक व राष्ट्रीय पर्व मनाए जाते हैं, जुलूस आदि निकाले जाते हैं। इन सबसे बच्चों में सामाजिक गुणों का विकास बड़ी आसानी से हो जाता है।

4. नैतिक विकास - समुदाय का वातावरण बच्चे के चारित्रिक पक्ष को भी प्रभावित करता है। यदि समुदाय का वातावरण अच्छा है तथा उसमें रहने वाले लोग सच्चाई, ईमानदारी तथा भ्रातृत्व जैसे मूल्यों में विश्वास करते हैं तो बच्चे पर इसका अच्छा प्रभाव पड़ेगा और उसके चरित्र का उत्थान होगा। इसक विपरीत यदि समुदाय में नैतिक मूल्यों में गिरावट हो रही है तो बच्चों का नैतिक पतन होगा।

5. सांस्कृतिक विकास - बच्चे का सांसकृतिक विकास भी समुदाय से प्रभावित होता है। प्रत्येक समुदाय की अपनी एक विशेष संस्कृति होती है। जिसकी छाप उसके सदस्यों के जीवन पर देखने को मिलती है। समुदाय में रहकर बच्चा उसकी भाषा, रहन-सहन व खान-पान के विशेष ढंग तथा रीति-रिवाजों व मूल्यों को अनजाने ही ग्रहण कर लेता है। समुदाय में मनाए जाने वाले विभिन्न पर्व भी बच्चों को प्रभावित करते हैं। इन सबसे बच्चों का सांस्कृतिक विकास करने में मदद मिलती है।

6. राजनैतिक प्रभाव - बच्चा राजनैतिक प्रभावों को भी समुदाय से ग्रहण करता है। प्रत्येक समुदाय किसी न किसी राजनैतिक व्यवस्था में विश्वास करता है और अपने नागरिकों को उसी के अनुरूप अच्छे नागरिक के रूप में तैयार करना चाहता है। यह कार्य तो वह विद्यालयों के माध्यम से . करता ही है इसके अतिरिक्त समुदाय में विभिन्न राजनेताओं के विचारों को उनके भाषणों के माध्यम से सुनकर उसकी अपनी राजनैतिक सोच विकसित हो जाती है। वह विभिन्न राजनैतिक व्यवस्थाओं तथा उनके गुण-दोषों से अवगत हो जाता है।

7. व्यावसायिक प्रभाव - समुदाय में रहने वाले लोग अलग-अलग व्यवसायों से जुड़े रहते हैं उनसे मिलकर व उनके साथ रहकर बच्चे को अपने लिए किसी विशेष व्यवसाय का चुनाव करने में मदद मिलती है। भारतीय अर्थव्यवस्था के कृषि प्रधान होने के कारण अधिकतर लोग इसी कार्य से जुड़े रहे। अब समुदाय में विभिन्न उद्योगों का विकास हो जाने से कार्यों का दायरा विस्तृत हो गया है। अतः नई पीढ़ी खेती को छोड़कर अन्य व्यवसायों के साथ जुड़ने लगी है। इस प्रकार समुदाय का व्यावसायिक प्रभाव भी बच्चों पर पड़ता है।

स्पष्ट है कि समुदाय एक महत्त्वपूर्ण शैक्षिक साधन है। इसका महत्त्व इस दृष्टि से भी बढ़ जाता है कि यह औपचारिक व अनौपचारिक दोनों रूपो में बच्चों को प्रभावित करता है।

समुदाय को शिक्षा का प्रभावशाली साधन बनाने के लिए सुझाव

समुदाय के उपर्युक्त शैक्षिक कार्यों को देखकर स्पष्ट है कि इसके शैक्षिक प्रभावों से इनकार नहीं किया जा सकता, लेकिन उल्लेखनीय है कि समुदाय का दूषित वातावरण बच्चों को बिगाड़ने का कार्य ही करता है बनाने का नहीं। कई समुदाय अपने राजनैतिक व सांस्कृतिक आदर्शों को बच्चों पर थोपते हैं, इससे बच्चे में स्वतंत्र व आलोचनात्मक दृष्टिकोण का विकास नहीं हो पाता । दमन के कारण बच्चे का स्वाभाविक विकास रुक जाता है और उसकी सोच संकुचित हो जाती है जिसके कई घातक परिणाम सामने आते हैं। अतः यह आवश्यक है कि अपने शैक्षिक दायित्वों का अच्छी प्रकार से निर्वाह करने के लिए समुदाय निम्नलिखित बातों पर विशेष ध्यान दे-

1. अच्छे वातावरण का निर्माण - कोई भी बालक जन्म से अच्छा या बुरा नहीं होता उसका वातावरण ही उसे अच्छा या बुरा बनाता है। अतः समुदाय को बुराइयों को दूर करके अपने. वातावरण को अच्छा बनाने का प्रयास करना चाहिए। समुदाय का अच्छा वातावरण बच्चे में अच्छे . सामाजिक एवं नैतिक मूल्यों का विकास करने में सहायक सिद्ध होगा ।

2. आदर्श प्रस्तुत करना - बच्चों में बड़ों का अनुकरण करने की प्रवृत्ति होती है। अतः समुदाय के सदस्यों को उसके समक्ष अच्छे व्यवहार तथा अच्छे सामाजिक व नैतिक मूल्यों का आदर्श प्रस्तुत करना चाहिए जिससे वे स्वयं को उन्हीं के अनुरूप ढाल सकें। चंद्रशेखर, भगत सिंह, महात्मा गांधी, सुभाष चंद्र बोस तथा पंडित नेहरु जैसे महापुरुषों का जीवन बच्चों के लिए आज भी प्रेरणा का स्रोत है। इसी प्रकार सेवा, सत्य, त्याग, ईमानदारी तथा सहनशीलता जैसे अच्छे गुणों का आदर्श भी बच्चे के समक्ष रखा जाना चाहिए।

3. व्यापक दृष्टिकोण का विकास करना - समुदाय का अर्थ ही व्यक्तियों के एक ऐसे समूह से लिया जाता है जिसके सदस्यों में परस्पर सेवा भावना हो। इस सेवाभाव के लिए दृष्टिकोण का व्यापक होना आवश्यक है। आज हम देखते हैं कि समुदाय के सदस्यों का दृष्टिकोण संकुचित होता जा रहा है। वहाँ जातीयता, प्रांतीयता तथा सांप्रदायिकता का विष इस प्रकार फैला हुआ है कि बच्चे भी उसके प्रभाव से मुक्त नहीं रह पाते। सांप्रदायिक झगड़े व हिंसा हमारे जीवन का अंग बन चुके हैं। अतः समुदाय को चाहिए कि वह अपने दृष्टिकोण को व्यापक बनाए । स्वयं को जाति, प्रांत या संप्रदाय विशेष के हितों तक सीमित न रखे तभी बच्चे का दृष्टिकोण भी व्यापक बन सकेगा।

4. स्वतंत्र चिंतन की योग्यता का विकास - समुदाय को चाहिए कि वह अपने सदस्यों को अपनी अच्छी व बुरी सभी बातों को अपनाने के लिए बाध्य न करे। वह बच्चे को स्वतंत्र रूप से विकास करने दे तथा उनमें ऐसी क्षमता का विकास करे कि वह स्वयं यह सोच सके कि क्या उचित है क्या अनुचित तथा इसी आधार पर यह निर्णय करे कि उसे क्या करना चाहिए। समुदाय अपने सदस्यों में समालोचनात्मक क्षमताओं का विकास करे जिससे वे अपनी संस्कृति की समीक्षा करे और उसमें से केवल अच्छी बातों को ही ग्रहण करे।

5. अन्य साधनों के साथ सहयोग - यदि समुदाय अन्य शैक्षिक साधनों जैसे- परिवार, विद्यालय एवं राज्य के साथ सहयोग करे तो इसका शैक्षिक महत्त्व बहुत बढ़ जायेगा। समुदाय पास अनेक भौगोलिक, ऐतिहासिक एवं प्रशासनिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण स्थान होते हैं। यदि विद्यालय इनका प्रयोग करे तो उसके द्वारा दी जाने वाली शिक्षा अधिक सार्थक हो सकती है। समुदाय विद्यालय को ऐसी सुविधाएँ प्रदान कर सकती है जिनसे छात्र विद्यालय में प्राप्त सैद्धान्तिक ज्ञान को व्यावहारिक रूप में प्रयोग कर सकते हैं। समुदाय विद्यालय को अपनी शिक्षा को अधिक उपयोगी बनाने के लिए रचनात्मक सुझाव भी दे सकता है।

6. राज्य का सहयोग - राज्य का सहयोग भी समुदाय की शिक्षा को प्रभाशाली साधन बनाने में मदद कर सकता है। राज्य को चाहिए कि वह समुदाय को विद्यालय खोलने एवं उन्हें चलाने के लिए पर्याप्त आर्थिक सहायता दे। उसके द्वारा खोले गए विद्यालयों का समय-समय पर निरीक्षण करे एवं उनके शैक्षिक स्तर में सुधार लाने के लिए सुझाव दे । राज्य को रेडियो, दूरदर्शन तथा चलते-फिरते पुस्तकालयों आदि के माध्यम से भी समुदाय के शैक्षिक कार्यों में सहयोग करना चाहिए ।

7. सामुदायकि विद्यालय खोलना - सामुदायिक विद्यालय समुदाय द्वारा खोले जाने वाले वे विद्यालय हैं जिन्हें समुदाय के लोगों के द्वारा ही चलाया जाता है और जिनका उद्देश्य समुदाय का अधिक हित करना होता है। यदि समुदाय इस प्रकार के विद्यालय खोलता है तो विद्यालय व समुदाय एक-दूसरे के निकट संपर्क में आएंगे, दोनों में परस्पर आदान-प्रदान के अधिक अवसर उपलब्ध हो सकेंगे तथा समुदाय का शैक्षिक महत्त्व और अधिक बढ़ सकेगा।

 

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