बी एड - एम एड >> बीएड सेमेस्टर-2 चतुर्थ (A) प्रश्नपत्र - पर्यावरणीय शिक्षा बीएड सेमेस्टर-2 चतुर्थ (A) प्रश्नपत्र - पर्यावरणीय शिक्षासरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीएड सेमेस्टर-2 चतुर्थ (A) प्रश्नपत्र - पर्यावरणीय शिक्षा - सरल प्रश्नोत्तर
प्रश्न- पर्यावरण के अर्थ एवं परिभाषा का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
पर्यावरण शब्द का अर्थ है - 'परि + आवरण' अर्थात् हमारे चारों ओर फैला हुआ आवरण । प्राचीन काल में पंच तत्त्वों- आकाश, पृथ्वी, वायु, जल और अग्नि के महत्व को स्वीकार किया गया था। ये ही पर्यावरण के प्राथमिक घटक हैं और जीवन का मुख्य आधार भी इन्हें ही माना जाता है। पर्यावरण क्षेत्र केवल प्राकृतिक पर्यावरण का क्षेत्र मात्र नहीं है, पर्यावरण को भारतीय दृष्टिकोण से समझने की आवश्यकता है। पर्यावरण हमारी शास्त्रीय परम्परा से सम्बद्ध रहा है मानव पर्यावरण में उत्पन्न होता है और पर्यावरण में जीता है एवं इसी में लीन हो जाता है। उसे चुनौती देना भी उपयुक्त नहीं, क्योंकि पर्यावरण बहुआयामी है। शास्त्रीय नियम धर्मो रक्षति रक्षितः जब हम धर्म की रक्षा करते हैं, तो धर्म हमारी रक्षा करता है। इसका तात्पर्य यह है कि हम पर्यावरण की रक्षा करेंगे, तो पर्यावरण हमारी रक्षा करेगा। यदि मानव विभिन्न स्तरों पर पर्यावरण को सामान्य बनाये रखता तथा आपस में सामंजस्य न टूटने पाता, तो पर्यावरण विकृति होने की त्रासदी इतनी नहीं रहती, जितनी आज है। पर्यावरण में सामजस्य बिगड़ने पर तो उसका दुष्प्रभाव मानव एवं जीव-जन्तुओं पर पड़ेगा ही। शास्त्रीय परम्परा पर्यावरण प्रदूषित करने का निमित्त मानव को ही मानती है। मनुष्य मात्र का परम कर्त्तव्य बनता है कि सुखद स्वास्थ्य के लिए पर्यावरण शुद्ध बनाये रखने हेतु प्रयत्नशील रहे, क्योंकि प्रदूषण रहित पर्यावरण से ही मनुष्य को पोषण और जीवन प्राप्त होता है।
अनेक पर्यावरणविदों ने पर्यावरण को परिभाषित किया है-
ए. जी. टेन्सले के अनुसार - "प्रभावकारी दशाओं का वह सम्पूर्ण योग जिसमें जीव रहते हैं, पर्यावरण कहलाता है।”
एच. फिटिंग के शब्दों में - "जीवों के पारिस्थितिक कारकों का योग पर्यावरण है।"
विश्वकोष के अनुसार - "पर्यावरण के अन्तर्गत उन सभी दशाओं, संगठन एवं प्रभावों को सम्मिलित किया जा सकता है, जो किसी जीव अथवा प्रजाति के उद्भव, विकास एवं मृत्यु को प्रभावित करते हैं।"
आर. एम. मेकाइवर के अनुसार - "भू-पृष्ठ तथा उसकी समस्त प्राकृतिक दशाएँ - प्राकृतिक संसाधन तथा प्राकृतिक शक्तियाँ जो पृथ्वी पर विद्यमान होकर मानव जीवन को प्रभावित करती हैं पर्यावरण के अन्तर्गत आती हैं। "
उक्त परिभाषाओं के आधार पर हम कह सकते हैं कि पर्यावरण किसी एक तत्त्व का नाम न होकर अनेक तन्त्रों का सम्मिलित रूप है, जो सम्पूर्ण जीव जगत को नियन्त्रित करते हैं तथा एक दूसरे से आन्तरिक रूप से सम्बन्धित हैं। इनका प्रभाव एकाकी न होकर सामूहिक रूप से होता है।
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