बी एड - एम एड >> बीएड सेमेस्टर-2 चतुर्थ (A) प्रश्नपत्र - पर्यावरणीय शिक्षा बीएड सेमेस्टर-2 चतुर्थ (A) प्रश्नपत्र - पर्यावरणीय शिक्षासरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीएड सेमेस्टर-2 चतुर्थ (A) प्रश्नपत्र - पर्यावरणीय शिक्षा - सरल प्रश्नोत्तर
प्रश्न-. भारत में पर्यावरणीय शिक्षा का क्या स्वरूप है?
उत्तर-
(Nature of Environmental Education in India)
मनुष्य जिस सामाजिक, आर्थिक धार्मिक सांस्कृतिक, राजनैतिक एवं प्राकृतिक परिस्थितियों में रहता है, वह सब उसका पर्यावरण होता है। लेकिन पर्यावरणीय शिक्षा केवल उसके प्राकृतिक पर्यावरण तक की जानकारी तक ही सीमित होती है, यह बात दूसरी है कि इसके अन्तर्गत उसके प्राकृतिक पर्यावरण के सामाजिक, सांस्कृतिक, धार्मिक, राजनीतिक और आर्थिक पर्यावरण पर पड़ने वाले प्रभावों का अध्ययन किया जाता है।
विगत 5 शताब्दियों में मानव सभ्यता का विकास अत्यन्त तीव्र गति से हुआ है और तदनुकूल "उसकी भौतिक आवश्यकताओं में भी तीव्र गति से वृद्धि हुई वैज्ञानिक आविष्कारों ने उसकी भौतिक आवश्यकताओं में और अधिक वृद्धि की है। मनुष्य इन आवश्यकताओं की पूर्ति करने के लिए प्राकृतिक साधनों का विदोहन कर रहा है। इसी कारण सम्पूर्ण संसार में इस बात की चिन्ता उत्पन्न हो गयी है कि कहीं ये प्राकृतिक साधन समाप्त न हो जाएं और आगे आने वाली पीढ़ी इससे वंचित न रह जाए। अतः इसके संरक्षण के लिए पूर्ण प्रयत्न किए जा रहे हैं। दूसरी ओर औद्योगीकरण के कारण वायु प्रदूषण और जल प्रदूषण हो रहा है। तेल से चलने वाले वाहनों को कारण वायु प्रदूषित हो रही है व ध्वनि प्रदूषण हो रहा है। इसके साथ ही तीव्र गति से बढ़ती हुई जनसंख्या के कारण गन्दगी फैल रही है और इससे भी वायु एवं जल दोनों प्रदूषित हो रहे हैं। आज भी प्रदूषण की रोकथाम के निरन्तर प्रयत्न किए जा रहे हैं। इन प्रयत्नों में एक प्रयत्न पर्यावरणीय शिक्षा है। इसे निम्न प्रकार परिभाषित किया गया है।
अमरीका पर्यावरणीय अधिनियम, 1970 के अनुसार - “पर्यावरणीय शिक्षा वह शैक्षिक प्रक्रिया है जो मानव को उसके प्राकृतिक एवं मानव निर्मित वातावरण के सम्बन्धों का ज्ञान कराती है। इसमें जनसंख्या प्रदूषण संसाधनों का विनियोग, संरक्षण, यातायात, तकनीकी और नगरीय तथा ग्रामीण नियोजन का मनुष्य के सम्पूर्ण पर्यावरण से सम्बन्ध निहित है।"
यह भी सम्भव है कि अमरीकी पर्यावरण शिक्षा के लिए उपयुक्त हो, लेकिन हमारे देश में पर्यावरणीय शिक्षा जिस रूप में प्रदान की जा रही है इसके लिए यह उपयुक्त नहीं है। प्राकृतिक पर्यावरण और उसे दूषित होने से बचाने के उपायों का ज्ञान, इस शिक्षा के उद्देश्य और पाठ्यक्रम की दृष्टि से इसे निम्नलिखित रूप से परिभाषित करना चाहिए-
“पर्यावरणीय शिक्षा वह शिक्षा है, जिसके द्वारा बच्चों, युवकों और प्रौढ़ों को प्राकृतिक संसाधनों के दोहन और प्रकृति प्रदूषण के कारणों और उनके दुष्परिणामों से परिचित कराया जाता है और साथ ही उन्हें प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण और प्रकृति प्रदूषण की रोकथाम की विधियाँ भी बतायी जाती हैं।"
यहाँ पर यह बात स्पष्ट रूप से समझ लेनी चाहिए कि प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण का अर्थ उनके प्रयोग को समाप्त करने से है, जिससे उनका लाभ अधिक से अधिक समय तक अधिक से अधिक व्यक्तियों को प्राप्त हो सके तथा प्रकृति प्रदूषण का आशय प्राकृतिक कारणों द्वारा होने वाले प्रदूषण एवं मनुष्य के द्वारा किए जाने वाले प्रदूषण दोनों से है। प्रदूषण किसी भी कारण से हो, उसे समाप्त करना आवश्यक है।
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