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बी एड - एम एड >> बीएड सेमेस्टर-2 चतुर्थ (A) प्रश्नपत्र - पर्यावरणीय शिक्षा बीएड सेमेस्टर-2 चतुर्थ (A) प्रश्नपत्र - पर्यावरणीय शिक्षासरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीएड सेमेस्टर-2 चतुर्थ (A) प्रश्नपत्र - पर्यावरणीय शिक्षा - सरल प्रश्नोत्तर
प्रश्न- विद्यालयों में पर्यावरणीय अनुस्थापन कार्यक्रम की संक्षिप्त विवेचना कीजिए।
उत्तर-
1972 में स्वीडन में संयुक्त राष्ट्र द्वारा 'मानव पर्यावरण' पर आयोजित अन्तर्राष्ट्रीय कान्फ्रेन्स में विश्व के अनेक राष्ट्रों के बीच पर्यावरण के विभिन्न पहलुओं पर विशद् चर्चा हुई। पर्यावरणीय असन्तुलन और पर्यावरण विकृति से विश्व को बचाने हेतु कई सुझाव प्रस्तुत हुए और स्वीकार भी किये गये। इसके बाद विविध आयामों पर अनेक क्षेत्रीय स्तर की कान्फ्रेन्स आयोजित हुई। इस बात पर सदैव बल दिया गया है कि पर्यावरणीय संकट से बचाने के लिए 'पर्यावरण शिक्षा' का स्तर हर स्तर पर चलाया जाये। साथ ही पर्यावरण विकृति के कारणों से सभी को परिचित कराया जाये।
विद्यालयों में पर्यावरण अनुस्थापन कार्यक्रम इसी क्रम में भारत सरकार द्वारा स्कूली बच्चों के लिए चलाये जाने वाला एक प्रोग्राम है जिसके अन्तर्गत विद्यालयों में एक ऐसा वातावरण तैयार करना है जिससे बच्चे अपने दायित्वों को समझें और पर्यावरणीय समस्याओं से भी अवगत हो जायें । निःसन्देह बच्चों पर ही तो देशों का भविष्य निर्भर है।
इस योजना में कुल मिलाकर ग्यारह (11) कार्यक्रम हैं-
(1) विद्यालयों में नर्सरी कार्य (वाटिकाओं का निर्माण)।
(2) पाठ्य पुस्तकों का पर्यावरणीय सामग्री के समावेश के साथ रिवीजन।
(3) अध्यापकों का प्रशिक्षण (प्रत्येक विद्यालय से एक अध्यापक)।
(4) ऐतिहासिक एवं पुरातत्व महत्त्व के स्मारकों को गोद लेना।
(5) विद्यार्थियों का प्रकृति भ्रमण।
(6) गाँवों का पर्यावरणीय अध्ययन।
(7) शहरों का पर्यावरणीय अध्ययन।
(8) विभिन्न पर्यावरणीय विकृतियों का अध्ययन।
( 9 ) सेमीनारों का आयोजन।
(10) पाठ्यक्रम निर्माण हेतु कार्यगोष्ठयाँ एवं
( 11 ) पर्यावरणीय सामग्री का निर्माण।
इस योजना के एक प्रोजेक्ट में सामान्यतया दो जिले सम्मिलित किये जाते हैं, और उन दोनों जिलों के समस्त प्राइमरी एवं उच्च प्राइमरी विद्यालयों के विद्यार्थियों को इस योजना के कार्यक्रमों में रखा जाता है। पूरी योजना व्यावहारिक पक्ष पर आधारित है।
भारत सरकार द्वारा ऐसे प्रोजेक्ट्स राज्य सरकार के शिक्षा विभाग को दिये जाते हैं और इन पर होने वाला समस्त व्यय भारत सरकार द्वारा ही वहन किया जाता है।
निःसन्देह इस प्रकार की योजना से छोटी आयु से ही पर्यावरण के प्रति विद्यार्थियों में विचार दृढ़ होते हैं, जिससे भविष्य में वे और ऊँचे स्तर के कार्य सम्पन्न कर सकें। निश्चय ही यह एक अच्छा प्रयास है।
पिछले सात वर्षों से चली आ रही योजना का जब 1992 में मूल्यांकन किया गया तो मूल्यांकन समिति ने अपने प्रतिवेदन में इस कार्यक्रम की उपलब्धि के बारे में बहुत उत्साहवर्द्धक रिपोर्ट नहीं दी। विशेषतः व्यावहारिक रूप से विद्यालयों में किये जाने वाले नर्सरी कार्य को वह गति नहीं मिल पाई जितनी विभाग को अपेक्षा थी। अतः उन्होंने कई कठोर कदम उठाये-
(1) कार्यक्रम के अन्तर्गत प्रस्तावित अधिकारी व अन्य कर्मचारियों के स्टाफ के वेतन आदि का भुगतान राज्य सरकार के जिम्मे ही कर दिया;
(2) विभिन्न स्वीकृति कार्यों को जिनमें पाठ्यक्रम का निर्माण, सेमीनारों का आयोजन, कार्यशालाओं तथा अध्यापकों के प्रशिक्षण आदि सम्मिलित हैं, शिक्षा विभाग के जिले स्तर पर के कार्यक्रम अधिकारियों को सौंप दिया।
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