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बी एड - एम एड >> बीएड सेमेस्टर-2 चतुर्थ (A) प्रश्नपत्र - पर्यावरणीय शिक्षा बीएड सेमेस्टर-2 चतुर्थ (A) प्रश्नपत्र - पर्यावरणीय शिक्षासरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीएड सेमेस्टर-2 चतुर्थ (A) प्रश्नपत्र - पर्यावरणीय शिक्षा - सरल प्रश्नोत्तर
प्रश्न- पर्यावरण दिवस पर टिप्पणी लिखिए।
उत्तर-
जब विज्ञान की प्रगति के साथ विश्व में अनेक विकसित देशों ने सुख-सुविधाओं के उपकरणों को लोगों को उपलब्ध कराने प्रारम्भ किये तथा साथ ही जब लोगों की बढ़ती माँग के अनुरूप औद्योगिक क्षेत्र में क्रान्ति आई तो पर्यावरण प्रदूषण की समस्या उठ खड़ी हुई। लॉस ऐन्जिल्स तथा लंदन की स्मोग दुर्घटनाएँ विश्व आश्चर्य थीं और स्थानीय तौर पर स्वच्छता के मानदण्डों की गिरावट ने सभी देशों को चिन्तित कर दिया था। अविकसित तथा विकासशील देशों की समस्या कुछ इससे भी अधिक भयावह और चौंकाने वाली थीं।
अतः बड़े राष्ट्रों की पहल पर राष्ट्र संघ द्वारा जून, 1972 में स्टॉकहोम (स्वीडन) में 'मानव पर्यावरण' पर अन्तर्राष्ट्रीय स्तर की कान्फ्रेन्स आयोजित हुई। इसमें 113 देशों ने भागीदारी की। भारत की ओर से तत्कालीन प्रधानमंत्री स्व. श्रीमती इन्दिरा गाँधी ने अपने देश का प्रतिनिधित्व किया था।
5 जून से 16 जून, 1972 तक की अवधि में पर्यावरण के विविध क्षेत्रों में पर विस्तृत चर्चा। कुछ देशों की बढ़ती जनसंख्या, ठीक से उपयोग न होने के कारण अनेक प्राकृतिक संसाधनों के भण्डरों की होती कमी, जल तथा वायु प्रदूषण, अम्लीय वर्षा, औद्योगीकरण के फलस्वरूप संस्थानों (उद्योगों) से निकलने वाले अपशिष्टों के निपटाने की समस्या, कार्बन-डाई-ऑक्साइड की निरन्तर वृद्धि से भूमण्डल पर बढ़ता ताप, ओजोन पर्त के नष्ट होने की सम्भावना से त्वचा कैन्सर का भय आदि अनेक चिन्तनीय प्रकरण रहें।
यहाँ पर सर्वसम्मति से 26 कार्यक्रम भी अनुमोदित हुआ जिसे इस कान्फ्रेन्स में महा-अधिकार पत्र (Magna Carta) का नाम दिया गया। इसी के आधार पर आगे देशों से अपेक्षायें, अलग- अलग विषयों पर क्षेत्रीय स्तर के सम्मेलन तथा पर्यावरणीय शिक्षा एवं जागरूकता की पहली आवश्यकता पर सम्भावित कार्यक्रमों की रूपरेखा तैयार की गई।
यह एक ऐतिहासिक अन्तर्राष्ट्रीय स्तर का सम्मेलन था जिसमें सभी स्तर के देशों की चिन्ताओं के प्रति चिन्तन था, अतः इसे सभी क्षेत्रों से प्रशंसाएँ और मान्यताएँ मिलीं। स्वयं आयोजक तथा भाग लेने वाले देश इस कान्फ्रेन्स में विचारे गये प्रकरण और उन पर आगे की अपेक्षित कार्यवाही से अत्यन्त सन्तुष्ट थे।
यहीं पर सर्वसम्पति से यह घोषणा की गई कि 5 जून को प्रति वर्ष पूरे विश्व में 'विश्व पर्यावरण दिवस' के नाम से मनाया जाये। तभी से इस दिवस को नियमित रूप से प्रति वर्ष गरिमा और भावना से मनाते हैं। इस आयोजन का सबसे बड़ा लाभ यह है कि जन-साधारण में मानसिक और व्यावहारिक परिवर्तन आता है और वे प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप में किसी-न-किसी प्रकार विश्व चिन्ता में भागीदार बनते हैं और उनके स्तर पर की गई अपेक्षाओं के प्रति अपने आप को उत्तरदायी समझते हैं।
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