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बी एड - एम एड >> बीएड सेमेस्टर-2 चतुर्थ (A) प्रश्नपत्र - पर्यावरणीय शिक्षा बीएड सेमेस्टर-2 चतुर्थ (A) प्रश्नपत्र - पर्यावरणीय शिक्षासरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीएड सेमेस्टर-2 चतुर्थ (A) प्रश्नपत्र - पर्यावरणीय शिक्षा - सरल प्रश्नोत्तर
प्रश्न- पाठ्यक्रम सहगामी क्रियाओं के आयोजन में कठिनाइयों का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
पाठ्यक्रम सहगामी क्रियाओं के आयोजन में निम्नलिखित बाधाएँ आती हैं-
1. विद्यालयों के प्रबन्धक और प्रधानाचार्य की मनोवृत्ति - विद्यालयों के प्रधानाचार्य और प्रबन्धक आज भी पाठ्यक्रम सहगामी क्रियाओं को पाठ्यान्तर क्रिया ही समझते हैं। उनका दृष्टिकोण विषयों के शिक्षण को प्रभावपूर्ण बनाने और किसी प्रकार परीक्षाफल अच्छा करने तक ही सीमित रहता है। जब तक प्रधानाचार्य के दृष्टिकोण में परिवर्तन नहीं होगा और वे इसे शिक्षण का आवश्यक अंग नहीं मानेंगे, तब तक इन क्रियाओं की समुचित व्यवस्था असम्भव है।
2. क्रीड़ा - क्षेत्र और उपयुक्त स्थान का अभाव - अधिकतर विद्यालयों के पास क्रीड़ा- क्षेत्र ही नहीं हैं और जब शिक्षण के लिए ही पर्याप्त कमरे नहीं है, तो पाठ्यक्रम सहगामी क्रियाओं के लिए कमरे कैसे मिल सकते हैं। इसका फल यह होता है कि इन क्रियाओं का आयोजन स्थानाभाव के कारण असम्भव हो जाता है। छात्र शुल्क तो अवश्य देते हैं किन्तु सुविधाओं से वंचित रह जाते हैं। सरकार क्रीड़ा क्षेत्र खरीदने के लिए अनुदान दे रही है। विद्यालयों को इसका सदुपयोग करना चाहिए।
3. क्रीड़ा सम्बन्धी उपकरणों का अभाव - इन मामलों में हमारे अधिकांश विद्यालयों की दशा बड़ी दयनीय है। अधिकांश प्रधानाचार्य क्रीड़ा कोष को अपनी निजी सम्पत्ति समझते हैं और उसका बड़ा दुरुपयोग हो रहा है। अब तो सरकार उपकरणों के लिए अनुदान भी दे रही है। किन्तु यदि छात्रों के द्वारा प्राप्त धन ही उचित रूप में व्यय किया जाये तो उससे पाठ्यक्रम सहगामी क्रियाओं के लिए पर्याप्त सुविधाएँ प्रदान की जा सकती हैं।
4. छात्रों में प्रेरणा का अभाव - शिक्षक छात्रों में इन क्रियाओं के प्रति उचित प्रेरणा का निर्माण नहीं करते। फल यह होता है कि थोड़े से छात्र तो सीमित सुविधाओं के अन्तर्गत दौड़-धूप कर लेते हैं। शेष को इनसे कोई मतलब नहीं रहता । यदि छात्रों को उचित प्रेरणा मिले तो अवश्य ही खेल का मैदान भरा दिखाई देगा।
5. अनेक प्रकार की क्रियाओं का होना - अधिकांश विद्यालयों में बॉलीबॉल, फुटबॉल अथवा अन्य प्रकार एक या दो प्रकार के खेलों का आयोजन होता है। जो छात्र इन खेलों में रुचि नहीं लेते, उन्हें दूसरे कार्य के लिए अवसर ही नहीं है। अतः यदि अनेक प्रकार की क्रियाओं का आयोजन नहीं होगा तो छात्रों को अपनी क्षमता और रुचि के अनुसार क्रिया चुनने का अवसर कैसे मिल सकेगा?
6. कुशल संचालकों का अभाव - कुशल संचालक ही किसी व्यवस्था के सुसंचालन की धुरी है। हमारे विद्यालयों में इस प्रकार के संचालकों का अभाव है जो कार्य को जीवन समझते हैं। जो हैं, उनमें अधिकांश कर्तव्य - निर्वाह भर करते हैं। यदि पाठ्यक्रम सहगामी क्रियाएँ उसमें रुचि रखने वालों को दी जायें तो कोई कारण नहीं है कि सभी छात्र भाग न लें, धन की व्यवस्था ठीक न हो और आयोजन अपने उद्देश्य को प्राप्त न कर सके।
7. समय तालिका में पाठ्यक्रम सहगामी क्रियाओं का महत्त्व नहीं - विद्यालय की समय तालिका में इन क्रियाओं को कोई महत्त्व नहीं दिया जाता। यदि इनके लिए कोई घण्टा निर्धारित भी किया गया तो विज्ञान, अंग्रेजी या गणित के अध्यापक अपने विषय को हौवा बनाकर उस घण्टे में शिक्षण-कार्य करते हैं। यह मनोवृत्ति बड़ी दोषपूर्ण है। समय तालिका में जबतक इन क्रियाओं को उचित महत्त्व नहीं दिया जाता, सफलता संदिग्ध ही रहेगी।
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