बी एड - एम एड >> बीएड सेमेस्टर-2 तृतीय प्रश्नपत्र - शिक्षा के तकनीकी परिप्रेक्ष्य बीएड सेमेस्टर-2 तृतीय प्रश्नपत्र - शिक्षा के तकनीकी परिप्रेक्ष्यसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीएड सेमेस्टर-2 तृतीय प्रश्नपत्र - शिक्षा के तकनीकी परिप्रेक्ष्य - सरल प्रश्नोत्तर
प्रश्न- कम्प्यूटर सहाय अनुदेशन प्रणाली से आप क्या समझते हैं?
उत्तर-
कम्प्यूटर - सहाय अनुदेशन
(Computer Assisted Instruction)
विभिन्न शिक्षण यन्त्रों एवं कम्प्यूटर जैसे विकसित यन्त्रों ने विकास के क्षेत्र में अपना योगदान देकर आश्चर्यजनक परिणाम सामने रखे हैं। मुख्य रूप से प्रौद्योगिकी अथवा तकनीकी के विकास ने इस दिशा में अपना प्रमुख योगदान दिया है। विश्व के समस्त क्षेत्रों को तकनीकी ने प्रभावित किया है। शिक्षा के क्षेत्र में भी, शैक्षिक तकनीकी जैसे महत्त्वपूर्ण विषय का आगमन हो चुका है, प्रयोग एवं उपयोग के आधार पर शैक्षिक तकनीकी को व्यवहार तकनीकी, अनुदेशन तकनीकी व शिक्षण तकनीकी में बाँटा गया है। जिस तकनीकी के अन्तर्गत, शिक्षण में प्रयुक्त मशीनों का उपयोग किया जाता है, उसे हार्डवेयर तकनीकी कहा जाता है। इसमें कम्प्यूटर का प्रयोग किया जाता है। कम्प्यूटर आधुनिक तकनीकी का सबसे महत्त्वपूर्ण आविष्कार है। इस यन्त्र का प्रयोग जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में किया जा सकता है। विशेषकर पश्चिमी देशों में कम्प्यूटर द्वारा, दैनिक जीवन में अनेक परिवर्तन हुए हैं, इसका उपयोग व्यापार, यातायात, संचार, उत्पादन, सम्प्रेषण सुरक्षा, सेना, शासन प्रणाली एवं शोध के अतिरिक्त शिक्षा प्रणाली को प्रभावी बनाने के लिए किया जा रहा है।
शिक्षा के क्षेत्र में डेटा, बैंक्स, सूचना संचयन, शैक्षिक सेवाओं के नियोजन व प्रशासन, समय तालिका के प्रस्तुतीकरण उपयोजन, छात्रों के अभिलेख तैयार करने, परीक्षाफल बनाने, अनुसन्धानों में प्रदत्तों की व्यवस्था एवं विश्लेषण करने तथा अभिक्रमों को प्रस्तुत व नियन्त्रित करने में, कम्प्यूटर प्रणाली का प्रयोग प्रारम्भ हो चुका है। इस प्रकार शिक्षा में, शिक्षण, शोध एवं परीक्षा प्रणाली को कम्प्यूटर ने प्रभावित किया है। विशेषकर स्वत: अनुदेशन अथवा व्यक्तिनिष्ठ अनुदेशन के क्षेत्र में, कम्प्यूटर द्वारा अनुदेशन पर आधारित प्रणाली उपयोगी सिद्ध हुई है।
कम्प्यूटर सह अनुदेशन की प्रक्रिया में अधिगमकर्त्ता या छात्र, अभिक्रम अथवा पाठ्यवस्तु, कम्प्यूटर तथा पूर्व-निर्धारित उद्देश्य होना आवश्यक है। कम्प्यूटर स्व:- संचालित होता है तथा इसमें प्रेषित पाठ्यवस्तु अथवा अधिक्रम, अनुदेशों पर आधारित होते हैं। कम्प्यूटर में प्रेषित किए गए, अनुदेश, पूर्व निर्धारित होते हैं तथा इन नियन्त्रित अनुदेशों के आधार पर ही अधिगमकर्त्ता को सीखने का अवसर प्राप्त होता है. इसमें छात्रों को अपने उत्तरों की भी निरन्तर जानकारी प्राप्त होती रहती है, जिससे उन्हें निरन्तर पृष्ठ-पोषण या पुनर्बलन प्राप्त होता है। नियन्त्रित अनुदेशनों के द्वारा छात्रों को जो भी ज्ञान प्राप्त होता है वह उनकी पूर्ण जानकारी के आधार पर प्राप्त होता है। इस प्रक्रिया में, अध्यापक का स्थान गौण होता है। कम्प्यूटर के द्वारा ही, यह ज्ञात कर लिया जाता है कि छात्र का स्तर क्या है और उसे इससे आगे कौन-सा ज्ञान प्रदान करना चाहिए ? एक विशिष्ट उद्देश्य के आधार पर छात्रों, की पूर्ण योग्यताओं एवं अभिक्रम के आधार पर कम्प्यूटर द्वारा छात्रों को नियन्त्रित अनुदेशनों से अधिगम कराया जाता है। कम्प्यूटर की इस प्रक्रिया में हार्डवेयर, कम्प्यूटर सोफ्टवेयर * तथा अधिगम व्यवस्था जैसे तीनों ही पक्ष सम्मिलित होते हैं क्योंकि अनुदेशन, मनोवैज्ञानिक सिद्धान्तों पर आधारित होता है, अनुदेशनों का प्रस्तुतीकरण, भौतिकी या अभियन्त्रण के सिद्धान्तों के आधार पर यन्त्र के द्वारा किया जाता है तथा अधिगम की समस्त परिस्थितियों, अधिगम स्वरूपों और अधिगम के लिए आवश्यक प्रेरकों का इस यन्त्र में समावेश किया जाता है।
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