बी एड - एम एड >> बीएड सेमेस्टर-2 तृतीय प्रश्नपत्र - शिक्षा के तकनीकी परिप्रेक्ष्य बीएड सेमेस्टर-2 तृतीय प्रश्नपत्र - शिक्षा के तकनीकी परिप्रेक्ष्यसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीएड सेमेस्टर-2 तृतीय प्रश्नपत्र - शिक्षा के तकनीकी परिप्रेक्ष्य - सरल प्रश्नोत्तर
प्रश्न- कम्प्यूटर सहायक अनुदेशन की सीमाएँ बताइए।
उत्तर-
कम्प्यूटर सहाय अनुदेशन की सीमाएँ
(Limitations of Computer Assisted Instruction)
1. इस प्रणाली में टेलिटाइप पर उत्तरों को टाइप करना होता है या स्क्रीन पर, पैन से सही उत्तर को स्पर्श करना होता है। ध्वनि अथवा लेखन के आधार पर न तो छात्रों को अनुक्रिया का अवसर ही प्राप्त होता है और न ही कम्प्यूटर के द्वारा, इस आधार पर छात्रों की अनुक्रियाओं को विश्लेषित करने की क्षमता है।
2. शिक्षा में छात्रों की संवेगात्मक एवं कार्यात्मक शक्तियों का विकास महत्त्वपूर्ण स्थान रखता है परन्तु इस प्रणाली के द्वारा, छात्रों का केवल, ज्ञानात्मक स्तर पर विकास सम्भव है। इस प्रकार कक्षा में छात्र व अध्यात्मक की अन्तःक्रिया के आधार पर तथा परम्परागत विधि के द्वारा ही छात्रों का संवेगात्मक विकास किया जा सकता है। कम्प्यूटर इस सम्बन्ध में कोई योगदान नहीं देता है।
3. छात्रों की अनेक शैक्षिक व मनोवैज्ञानिक समस्याएँ केवल कम्प्यूटर के द्वारा ही हल नहीं की जा सकतीं। इसके लिए अध्यापक व निर्देशन विभाग की सीमायें नितान्त आवश्यक होती हैं।
4. भाषा सम्बन्धी योग्यताओं का विकास प्रत्येक छात्र के लिए आवश्यक है परन्तु कम्प्यूटर के द्वारा, समस्त भाषा सम्बन्धी योग्यताओं का विकास असम्भव है। तर्क के अनुसार तथा अपेक्षित शैली के अनुसार, प्रस्तुतीकरण करने की क्षमता का विकास, संक्षिप्त वाक्यों व व्याख्याओं को विस्तार के साथ अभिव्यक्त करने जैसी योग्यताओं का विकास, कक्षा में, अध्यापक द्वारा ही किया जा सकता है।
5. इस प्रणाली में, परम्परागत प्रणाली की अपेक्षा, छात्रों को अधिक थकान होती है क्योंकि इस विधि में छात्रों से अधिक लगन व सक्रियता की अपेक्षा होती है। यद्यपि परम्परागत व्याख्यान प्रणाली की अपेक्षा, इस प्रणाली द्वारा, छात्र कम समय में सीखते हैं परन्तु इसके उपरान्त भी, प्रयोगों व शोधों से स्पष्ट है कि इसमें कम समय में ही छात्र थक जाते हैं तथा लगभग 64% छात्र इस प्रणाली द्वारा प्राप्त किए जा रहे अनुदेशनों व अधिगम को बीच में ही छोड़ देना चाहते हैं।
6. इस प्रणाली में कुछ क्षणों के लिए भी यदि छात्र अपना ध्यान केन्द्रित नहीं कर पाते तो उन्हें सम्बन्धित सूचनाओं का अधिगम नहीं हो पाता। परन्तु यह सम्भव नहीं है कि प्रत्येक छात्र, पूरे समय अधिगम कर सके। मनुष्य और मशीन की कार्य-प्रणाली में, विशेषकर गति की दृष्टि से अन्तर होता है।
7. इस अनुदेशन का प्रयोग महंगा होने के कारण चयनित सेवाओं व उच्च संस्थानों में ही किया जाता है। शिक्षा के क्षेत्र में इस प्रणाली का प्रयोग केवल समृद्ध देश ही कर सके हैं। हमारे देश में भी इसकी सम्भावनाओं पर कार्य किया जा रहा है परन्तु भारत में इसका प्रयोग करने से पूर्व, पश्चिमी देशों में उसके उपयोग व सीमाओं के अध्ययन के आधार पर निर्णय करना आवश्यक है जिससे इस प्रणाली पर होने वाले व्यवहार तथा इसके उपयोगों में सम्बन्ध स्थापित किया जा सके।
8. भारत में, इसके प्रयोग से पूर्व, इसकी समस्त योजना तैयार करना, अध्यापकों का इसके लिए प्रशिक्षित करना, कक्षागृहों में संशोधन करना, सम्बन्धित शोधकार्यों को पूर्ण करना व इन यन्त्रों को व्यापक स्तर पर उपलब्ध कराना भी एक जटिल कार्य है।
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