बी काम - एम काम >> बीकाम सेमेस्टर-4 पर्यटन एवं यात्रा प्रबन्ध बीकाम सेमेस्टर-4 पर्यटन एवं यात्रा प्रबन्धसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीकाम सेमेस्टर-4 पर्यटन एवं यात्रा प्रबन्ध - सरल प्रश्नोत्तर
प्रश्न- अतीत में शैक्षणिक संस्थान पर्यटन के विकास में किस प्रकार सहायता करते थे?
उत्तर-
(Educational Tourism in the Past)
प्राचीन काल में नालंदा शिक्षा के लिए एक प्रसिद्ध स्थान था। दुनिया के सबसे प्राचीन विश्वविद्यालय के खंडहर बोधगया शहर से 62 किमी० की दूरी पर और वर्तमान बिहार में पटना से 90 किमी दक्षिण में स्थित है। 7वीं शताब्दी में चीन के ह्वेनसांग बौद्ध धर्म का अध्ययन करने आए थे और नालन्दा में रुके थे। उन्होंने नालंदा में उत्कृष्ट शैक्षणिक व्यवस्था और मठ की जिंदगी की शुद्धता के बारे में विस्तृत वर्णन किया। उन्होंने प्राचीन समय के इस अनूठे विश्वविद्यालय के माहौल और वास्तुकला दोनों का, दुनिया के पहले आवासीय अंतर्राष्ट्रीय विश्वविद्यालय के रूप में विधिवत वर्णन किया।
(1) तक्षशिला - रावलपिंडी के उत्तर-पश्चिम में 30 किलोमीटर दूर ग्रांड ट्रंक रोड पर स्थित है। यह एशिया में सबसे महत्वपूर्ण पुरातात्विक स्थलों में से एक है। सिल्क रोड की शाखा पर रणनीतिक रूप से स्थित यह शहर पश्चिम की ओर चीन से जुड़ता है और यह आर्थिक और सांस्कृतिक दोनों रूपों से विकसित था। तक्षशिला पहली और 5वीं शताब्दी ई० के बीच अपने शीर्ष पर था। बौद्ध स्मारकों को पूरी तक्षशिला घाटी में खड़ा किया गया था जो एक धार्मिक गढ़ के रूप में परिवर्तित हो गया था और मध्य एशिया तथा चीन के तीर्थयात्रियों के लिए तीर्थस्थल था। इस शहर का बड़ा आकर्षण महान स्तूप है जो पाकिस्तान भर में सबसे बड़ा और सबसे प्रभावशाली है जो भीर माउंड के पूर्व में 2 किमी० की दूरी पर स्थित है। तक्षशिला दुनिया में सबसे पहला शिक्षा-केन्द्र माना जाता था।
(2) विक्रमशिला - पाल वंश के दौरान भारत में बौद्ध ज्ञान के दो अत्यंत महत्वपूर्ण केन्द्रों में से एक था। विक्रमशिला को राजा धर्मपाल (783 ई०पू० से 820 ई०पू०) ने नालंदा में विद्वता की गुणवत्ता को बढ़ाने के लिए स्थापित किया था। पाल काल में प्राचीन बंगाल एवं मगध में अनेक मठ बने हैं। विक्रमशिला सबसे बड़ा बौद्ध विश्वविद्यालय था जिसमें सौ से अधिक अध्यापक और एक हज़ार से अधिक छात्र पढ़ते थे। इस विश्वविद्यालय से अनेक विद्वान निकले जिन्हें बौद्ध ज्ञान, संस्कृति और धर्म के प्रचार हेतु प्रायः विदेशों में आमंत्रित किया जाता था। इनमें से सबसे अधिक विख्यात और प्रकांड अतिशा दिपंकर थे, जिन्होंने तिब्बत बौद्ध की सभा-पद्धति की स्थापना की थी। यहाँ दर्शन, व्याकरण, तत्व मीमांसा और भारतीय तर्कशास्त्र जैसे विषय पढ़ाए जाते थे लेकिन सबसे महत्वपूर्ण विषय तंत्रवाद पढ़ाया जाता था।
(3) देवबंद - देश के प्राचीन शहरों में से एक है। दारूल उलूम देवबंद भारत में इस्लाम का एक स्कूल है जहाँ से देवबंदी इस्लाम आन्दोलन आरम्भ हुआ था। यह उत्तर प्रदेश के सहारनपुर जिले के एक शहर देवबन्द में स्थित है। इसे इस्लाम के प्रख्यात विद्वान मौलाना मोहम्मद कासिम ननोत्वी द्वारा वर्ष 1866 में स्थापित किया गया था। इस संस्थान को भारत के साथ-साथ भारतीय उपमहाद्वीप के अन्य भागों में सर्वाधिक सम्मान प्राप्त है। विदेशों से भी बहुत से विद्वान देवबंद में कुरान के साथ-साथ हदीस का अध्ययन करने आते थे। देवबंद में दारूल उलूम के अलावा अनेक शैक्षिक संस्थान जैसे दारूल उलूम वक्फ, मदरसा असगरिया, जामिया इमाम अनवर, जामिया तिब्बतिया यूनानी भेषज महाविद्यालय, इंटर कॉलेज, तहसील, स्कूल, इस्लामिया उच्चतर माध्यमिक स्कूल, संस्कृत महाविद्यालय, पब्लिक स्कूल इत्यादि स्थित हैं।
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