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बीकाम सेमेस्टर-4 पर्यटन एवं यात्रा प्रबन्ध

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :180
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2755
आईएसबीएन :0

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बीकाम सेमेस्टर-4 पर्यटन एवं यात्रा प्रबन्ध - सरल प्रश्नोत्तर

प्रश्न- भारत में पर्यटन के ऐतिहासिक परिदृश्य पर प्रकाश डालिये।

अथवा
प्रारम्भिक काल में पर्यटन की विवेचना कीजिये।
अथवा
औपनिवेशिक और आधुनिक काल में पर्यटन का परिचय दीजिये।

 

उत्तर-

भारत में पर्यटन का ऐतिहासिक परिदृश्य

पर्यटन के विकास को ऐतिहासिक परिदृश्य के माध्यम से देखा जा सकता है। इसमें प्रारम्भ से लेकर वर्तमान समय तक अनेक परिवर्तन पाए जाते हैं।

(1) प्रारम्भिक काल में पर्यटन - प्रारंभिक काल से ही लोग भोजन, व्यापार, धार्मिक उद्देश्यों एवं शिक्षा हेतु एक स्थान से दूसरे स्थान तक भ्रमण करते रहे हैं पर ये यात्राएँ अनेक कारणों से नजदीक के स्थानों तक सीमित रहीं। तब सड़कें कम थीं, भोजन उपलब्ध नहीं था। सड़कें असुरक्षित थीं और यहाँ तक कि स्थानों के साथ-साथ मार्गों की जानकारी भी नहीं थी। कभी-कभी शाही सौजन्य मिलने से यात्रा करना आसान हो जाता था। ऐसी यात्रा का एक अच्छा उदाहरण मौर्यकाल के 262 बी०सी० में देखा जा सकता है। राजा अशोक से राजकीय सहयोग मिलने पर व्यक्ति दूरवर्ती स्थानों जैसे पाटलीपुत्र (पटना), लुंबिनी, कपिलवस्तु, सारनाथ और गया की यात्रा कर सके। इन सभी स्थानों पर स्मारक एवं विश्राम गृह बनाए गए थे जिनमें यात्री आराम कर सकते थे। हर्षवर्धन भी बौद्ध धर्मानुयायी था। उन्होंने यात्रियों हेतु अनेक धर्मशालाएँ बनवाईं और यात्रियों के लिए अनेक मठ भी निर्मित किए गए। यह दर्शाता है कि यात्रा सुविधाओं में कैसे सुधार किए गए और यात्रा करना आसान हो गया।

भारत में यात्रा करने वाला पहला विदेशी समूह शायद फारसी था। फारस से भारत की यात्रा करने वाले काफिलों के अनेक प्रमाण हैं। अनेक यात्रियों ने यूनान से फ़ारस अथवा मैसोपोटामिया के रास्ते भारत में प्रवेश किया। यूनान में वर्णन मिलता है कि भारत में रथों के लिए अच्छे मार्ग थे और घोड़े, हाथी एवं ऊँट यातायात के सामान्य साधन थे। फारस और भारत के बीच व्यापार, वाणिज्य और सांस्कृतिक आदान-प्रदान का वर्णन भी मिलता है। 633 ईस्वी में एक चीनी बौद्ध ह्वेनसांग भारत आया था और उसे अपनी यात्रा कठिन एवं खतरनाक लगी। उसका उद्देश्य प्राचीन बौद्ध ग्रन्थों को एकत्रा करना एवं उनका अनुवाद करना था।

भीतरी प्रदेशों से लाए गए सामान शहरों और बाजारों में पहुँचते थे। यात्रियों को रात्रिकालीन ठहरने के स्थानों में ठहराया जाता था। उन्हें सराय के नाम से जाना जाता था और शहर के द्वार के पास निर्मित सरायों में यात्रियों को सभी सेवाएँ दी जाती थीं। मनोरंजन एवं नाच गाने के बड़े कमरे होते थे। जुआ खेलने का लाइसेंस दिया जाता था जो राज्य के लिए आय का जरिया होता था। मुगलों के शासन काल में शासकों ने बहुत अधिक यात्राएँ कीं और सड़कों एवं अन्य सुविधाओं के विकास पर ज़ोर दिया। आज भी हमें मील के पत्थरों, सरायों और सड़कों के जाल के अवशेष मिलते हैं जो इस विशाल देश के सभी मार्गों को सुगम बनाते हैं।

(2) औपनिवेशिक काल में पर्यटन - वर्ष 1498 में वास्को-डी-गामा केरल के पश्चिमी घाट पर कालीकट पहुँचा और भारत व यूरोप के बीच व्यापार व वाणिज्य का रास्ता तैयार किया। इसके बाद डच और ब्रिटिश भी पहुँचे। भारतीय शासकों के मध्य आंतरिक कलह के कारण विदेशी व्यापारियों को धीरे-धीरे अपने राजनीतिक प्रभाव को स्थापित करने के अवसर प्राप्त हुए। इनमें से ब्रिटिश सफल सिद्ध हुए और उन्होंने धीरे-धीरे भारतीय शासकों से शक्तियों को हथिया लिया। समय के साथ उनका प्रभाव बढ़ा और उन्होंने सम्पूर्ण देश पर कब्जा कर लिया। तब उन्होंने भारत में रेलवे का जाल बिछाया जो एक स्थान से दूसरे स्थान में यात्रा करने का सबसे बड़ा साधन बन गया।

(3) आधुनिक काल में पर्यटन - भारतीय रेल घरेलू यात्रियों के लिए यातायात के क्षेत्र में सबसे बड़ी सुविधा रही है। पहली रेल वर्ष 1853 में वाणिज्य के उद्देश्य से बंबई (मुंबई) से थाणे के बीच प्रारम्भ हुई थी। भारत में रेलों के विस्तार ने आरामदायक यात्रा की संभावना को बढ़ाया। देश में हवाई यात्रा शुरू होने से शीघ्र ही अन्तर्राष्ट्रीय पर्यटकों की संख्या भी बढ़ी। पहली हवाई यात्रा 18 फरवरी, 1911 में प्रारम्भ हुईं। इसे इलाहाबाद से 10 मिलोमीटर दूर नैनी जंक्शन तक शुरू किया गया। लेकिन वास्तविक शुरुआत 15 अक्तूबर, 1932 से हुई। इस दिन जेआरडी टाटा ने एकल इंजन के हवाई जहाज से करांची से मुंबई तक की उड़ान भरी। उन्हें भारत में नागरिक विमानन का जनक माना जाता है और वे एयर इंडिया के संस्थापक थे। ये दोनों काल परिवहन की दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण हैं। सड़कें व जलयान प्राचीन समय से परिचालन में थे। परिवहन प्रणाली के सभी स्वरूपों ने पर्यटन उद्योग को अधिकतम सहयोग दिया।

(4) स्वतंत्रता के पश्चात पर्यटन - भारत में अनेक प्रकार की भौतिक एवं जलवायु के कारण पर्यटक स्थलों की एक लम्बी सूची है। भारत सांस्कृतिक, धार्मिक, नैतिकता, सुंदर दृश्यों, इतिहास एवं अन्य अनेक दृष्टियों से विविधता में एकता वाला देश है। आज भारत ने देश में पर्यटन की वृद्धि व विकास के लिए बहुत बड़ा ढाँचा खड़ा किया है।

स्वतंत्र भारत में परिवहन सुविधाओं में सुधार से पर्यटन उद्योग को बहुत बढ़ावा मिला है। होटल एवं आतिथ्य सुविधाओं ने पर्यटकों को बहुत आराम दिया है। चार महानगरों, दिल्ली, कोलकाता, चेन्नई एवं मुंबई को जोड़ने वाली स्वर्णिम चतुर्भुजीय सड़कों से पर्यटन में और वृद्धि होगी। उत्तरी-दक्षिण कोरिडोर उत्तर में श्रीनगर से दक्षिण में कन्याकुमारी को जबकि पश्चिम-पूर्व कोरिडोर पश्चिम में पोरबंदर एवं पूर्व में सिलचर को जोड़ते हैं। स्वर्णिम त्रिकोणीय कोरिडोर उत्तर के तीन शहरों - दिल्ली, आगरा व जयुपर को जोड़ता है। यह त्रिकोणीय मार्ग अन्तर्राष्ट्रीय पर्यटकों के साथ-साथ देशी पर्यटकों के लिए भी बहुत महत्वपूर्ण है। इसी तरह स्वर्णिम चतुर्भुजीय कोरिडोर देश के पूर्वी भाग के पुरी, कोणार्क व भुवनेश्वर को जोड़ता है। भारत में पर्यटन को चिकित्सा क्षेत्र से भी जबरदस्त उछाल मिला है क्योंकि बहुत बड़ी संख्या में लोग भारत में बेहतर एवं कम कीमत की चिकित्सा सुविधा पाने के लिए आते हैं। यह हमारी प्राचीन चिकित्सा पद्धति, जैसे आयुर्वेद एवं पंचतत्व पद्धति की चिकित्सा के कारण भी है जिससे बहुत से पर्यटक भारत की ओर आकर्षित होते हैं।

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