बी काम - एम काम >> बीकाम सेमेस्टर-4 उद्यमिता के मूल तत्व बीकाम सेमेस्टर-4 उद्यमिता के मूल तत्वसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीकाम सेमेस्टर-4 उद्यमिता के मूल तत्व - सरल प्रश्नोत्तर
स्मरण रखने योग्य महत्वपूर्ण तथ्य
अनुषंगी इकाई उद्योग, ग्रामीण उद्योग, कुटीर उद्योग, लघु सेवा उद्योग आदि की स्थापना हेतु वैधानिक औपचारिकताएँ न्यूनतम होती हैं।
स्वामित्व के आधार पर व्यावसायिक इकाई की स्थापना के स्वरूप निम्नलिखित हैं-
साझेदारी
कम्पनी संगठन
सहकारी संगठन
हिन्दू अविभाजित परिवार
एकल स्वामित्व में व्यवसायी पूँजी, ऋण, जोखिम के लिए स्वतः दायी होता है तथा वही सभी लाभों को प्राप्त करता है।
एकाकी व्यापार व्यावसायिक संगठन का सबसे प्रारम्भिक रूप है। यह प्राचीन सभ्याताओं जैसे मिस्र, ग्रीक, रोम में भी प्रचलित था।
एकल स्वामित्व की दशा में व्यवसाय व स्वामी में अन्तर नहीं होता है।
सहकारी संगठन उद्यमियों का एक ऐच्छिक संघ है।
हिन्दू अविभाजित परिवार का व्यवसाय पुराने एवं पारम्परिक परिवारों के व्यवसाय एवं उद्योग जो एक ही परिवार के सदस्यों द्वारा संचालित हो, द्वारा होता है।
कम्पनी का निर्माण विधान द्वारा होता है। इसे अविच्छिन उत्तराधिकार प्राप्त होते हैं।
साझेदारी संलेख फर्म का अत्यन्त महत्वपूर्ण प्रलेख होता है।
कम्पनी निर्माण का सर्वाधिक महत्वपूर्ण प्रलेख पार्षद सीमानियम है कम्पनी के पार्षद सीमा नियम में निम्नलिखित वाक्य होते हैं-
कम्पनी का पंजीयत कार्यालय वाक्य
कम्पनी का उद्देश्य वाक्य
कम्पनी के सदस्यों का दयित्व वाक्य
कम्पनी का पूँजी वाक्य
कम्पनी का संघ वाक्य
पार्षद अन्तर्नियमों में कम्पनी के आन्तरिक कार्य संचालन सम्बन्धी नियम एवं उप-नियम दिए रहते हैं।
लघु एवं वृहत् दोनों प्रकार के उद्योगों की स्थापना हेतु संस्था को अनेक सरकारी कार्यालयों में पंजीकरण कराना आवश्यक होता है-
साझेदारी संस्था के लिए रजिस्ट्रार आफ फर्म में पंजीकरण।
कम्पनी के लिए रजिस्ट्रार ऑफ कम्पनी में पंजीकरण।
लघु उद्योग लगाने के लिए जिला उद्योग केन्द्र में पंजीकरण।
खादी ग्रामोद्योग लगाने के लिए खादी एवं ग्रामोद्योग में पंजीकरण।
राजकीय एवं केन्द्रीय स्तर पर अनुदान लेने के लिए जिला उद्योग केन्द्र में पंजीकरण।
वस्तु एवं सेवाकर में पंजीयन।
ट्रेडमार्क पर अधिकार बनाए रखने के लिए ट्रेडमार्क रजिस्ट्रार ऑफिस में पंजीकरण।
सहकारी समिति एक ही उद्योग हेतु पंजीयत होती है।
पंजीयन कराने पर औद्योगिक सहकारी समिति विभागीय सहायता की पात्र बन जाती है।
व्यापारिक सन्नियम वे अधिनियम हैं जो उद्यम, व्यापारिक या वाणिज्यिक गतिविधियों को नियमित व नियत्रित करते हैं।
उद्यमीय को कर प्रक्रिया, कर ढाँचे, कर की दरों, रियायतों एवं छूटों की नवीनतम जानकारी होना आवश्यक होता है।
औद्योगिक लाइसेंसिग नीति के अन्तर्गत उपक्रमों की स्थापना की अनुमति लाइसेंस के आधार पर दी जाती है।
औद्योगिक लाइसेंस में उद्योग की स्थापना, उत्पादन क्षमता, उत्पादित की जाने वाली वस्तु आदि का विवरण रहता है।
औद्योगिक ( विकास एवं नियमन) अधिनियम 1951 तथा उसमें समय-समय पर किए गए परिवर्तनों के फलस्वरूप सरकार की औद्योगिक लाइसेंस देने की नीति बनायी जाती है।
वित्त प्राप्त करने के लिए उद्यमी को निम्न कार्य करने पड़ते हैं-
- बैंकिंग संस्था के माध्यम से की जाने वाली जाँच सर्वेक्षण में आवश्यक सहायता देना।
- ऋण स्वीकृत किए जाने पर जिला उद्योग केन्द्र मार्जिन मनी।
- ऋण या अन्य योजना के अन्तर्गत मार्जिन मनी ऋण के लिए आवेदन देना।
- उद्योग चुनाव के बाद वित्तीय संस्था / बैंक का चुनाव।
- चुने हुए उद्योग की प्रोजेक्ट रिपोर्ट बनाना।
- सम्बन्धित संस्था का निर्धारित आवेदन प्रपत्र प्राप्त करना।
- प्राधिकृत समिति के माध्यम से अनुश्रवण करने की स्वीकृति प्राप्त करना।
- जिस संस्था से ऋण प्राप्त करना चाहते हैं, उसको आवेदन-पत्र प्रस्तुत करना।
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