बी काम - एम काम >> बीकाम सेमेस्टर-4 उद्यमिता के मूल तत्व बीकाम सेमेस्टर-4 उद्यमिता के मूल तत्वसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीकाम सेमेस्टर-4 उद्यमिता के मूल तत्व - सरल प्रश्नोत्तर
स्मरण रखने योग्य महत्वपूर्ण तथ्य
उद्यमिता की प्रवृत्तियों एवं गुणों का विकास करने हेतु उद्यमिता विकास कार्यक्रम की सार्थकता को सभी ने स्वीकार किया है।
उद्यमिता विकास कार्यक्रम मानवीय संसाधन विकास का एक महत्वपूर्ण यन्त्र है।
उद्यमी विकास की आवश्यकता एवं अपरिहार्यता के प्रति जागरूकता में वृद्धि हुई तथा उद्यमी विकास पर बल दिया जाने लगा।
उद्यमिता का मूल लक्ष्य है मानव में उत्पादन का स्रोत पैदा करना, उनका उपयोग करना तथा विकास के अगले क्रम में उसका समन्वय करना।
विशेष उद्यमियों की निम्नलिखित प्रकार से मदद करने के योग्य होना चाहिए-
उनमें उद्यमीय गुण / अभिप्रेरणा को विकास एवं मजबूती देना।
आधारभूत प्रबन्धकीय कौशल को प्राप्त करना।
परियोजनाओं को व्यवस्थित तरीके से व्यक्त करना।
परियोजनाओं / उत्पादों का चयन।
लघु उद्योगों / व्यवसायों से सम्बन्धित वातावरण विश्लेषण।
उद्यमिता विकास कार्यक्रम दिन-प्रतिदिन के क्रियाकलापों में उद्यमी व्यवहार को जगाने तथा पुनः प्रेरित करने की प्रक्रिया है।
उद्यमिता विकास कार्यक्रम क्रियाकलापों द्वारा स्वयं के उद्यमों की विकास की प्रक्रिया है।
उद्यमिता विकास कार्यक्रम के उद्देश्य के साथ ही इसके पाठ्यक्रम का चयन किया जाता है।
उद्यमिता प्रशिक्षण कार्यक्रम का अंतिम उद्देश्य व्यक्ति को प्रशिक्षण कार्यक्रम समाप्त होने पश्चात अपना उद्यम प्रारम्भ करने के लिए तैयार करना है।
1960 में उद्यमिता प्रशिक्षण के साथ भारत सरकार के स्वरोजगार हेतु प्रेरित एवं प्रशिक्षित किया जाता रहा है।
सरकार यह प्रयास करती है कि इन कार्यक्रमों के माध्यम से प्रशिक्षित उद्यमी स्थानीय संसाधनों का उपयोग करते हुए क्षेत्र विशेष में ही अपने उद्यम की स्थापना करें।
उद्यमिता विकास संस्थान द्वारा देश के विभिन्न राज्यों में उद्यमिता विकास कार्यक्रम अदि विभिन्न विभागों के सहयोग से आयोजित किए जाते हैं।
उद्यमिता के मूल तत्व / 53 उद्यमिता विकास कार्यक्रम कई प्रकार की समस्याओं से पीड़ित है। इसकी कुछ मुख्य समस्याएँ निम्नलिखित हैं-
प्रशिक्षु को अपना उद्यम प्रारम्भ करने हेतु प्रेरणा प्रदान करने में प्रशिक्षक अभिप्रेरणा लक्ष्य तक न हो पाना।
उद्यमिता विकास संगठन द्वारा उद्यमिता विकास कार्यक्रम चलाने में अपने वचनों को पूरा नहीं कर पाता।
भारत में उद्यमिता विकास कार्यक्रम के महत्वपूर्ण संस्थान निम्नवत् हैं-
लघु उद्योग विकास संगठन
लघु उद्योग सेवा संस्थान
राष्ट्रीय उद्यमिता एवं लघु व्यवसाय विकास संस्थान आदि हैं।
विकासशील देशों में उद्यमिता को समृद्धि का एक महत्वपूर्ण आधार कहा जाता है, वहीं विकसित देशों में यह सृजनात्मक चिन्तन, सामाजिक नवप्रवर्तन एवं 'साहसिक समाज' के विकास की एक महत्वपूर्ण पद्धति है।
जिन संस्थानों को उद्यमिता विकास प्रशिक्षण हेतु आमन्त्रित किया गया वे सफल नहीं रहे तथा उन्हें लोभ के बजाय हानि अधिक पहुँची।
लघु उद्योग सेवा संगठन ( SIDO) लघु उद्योगों की प्रगति के लिए एक नोडल एजेन्सी के रूप में कार्य करता है।
SIDO को लघु उद्योगों के विकास आयुक्त के रूप में भी जाना जाता है।
लघु उद्योग विकास संगठन उद्योगों एवं उद्यमियों को आवश्यक एवं नवीन जानकारी देने हेतु 'लघु उद्योग समाचार' नामक मासिक पत्रिका का भी प्रकाशन करता है।
लघु उद्योग सेवा संस्थान (SISI) के प्रमुख कार्य निम्नलिखित हैं-
वित्तीय व प्रबन्धकीय सलाह प्रदान करना।
उद्यमिता प्रोत्साहन हेतु प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित करना।
राष्ट्रीय उद्यमिता एवं लघु व्यवसाय विकास संस्थान (NISBD) की स्थापना के उद्देश्य निम्नलिखित हैं-
राष्ट्रीय स्तर पर शीर्ष संगठन के रूप में कार्य करना।
उद्यमिता विकास में संस्थानों एवं संगठनों के मध्य समन्वय स्थापित करना।
बेरोज़गार नवयुवकों को स्वतः रोजगार के लिए प्रेरित करने का कार्य करना।
NISBD के कार्य निम्नलिखित हैं-
प्रेरकों, प्रशिक्षणार्थियों एवं लघु उद्यमियों के लिए पाठ्यक्रम चलाना।
लघु उद्यमियों एवं लक्ष्य समूहों के लिए सम्मेलन, विचारगोष्ठी एवं सेमिनार आयोजित करना।
राष्ट्रीय स्तर पर उद्यमिता विकास एवं प्रोत्साहन के लिए 1972 में बैंक ऑफ इण्डिया द्वारा प्रायोजित युवा उद्यमियों का राष्ट्रीय संगठन (NAYE) ने कार्य प्रारम्भ किया।
भारतीय उद्यमिता विकास संस्थान, अहमदाबाद की स्थापना एक स्वायत संस्था के रूप में वर्ष 1983 में हुई।
राष्ट्रीय उद्यमिता विकास बोर्ड देश में उद्यमिता विकास के लिए एक शीर्ष निकाय है।
भारतीय राज्य व्यापार नीति लिमिटेड' की स्थापना 1956 में की गई।
राष्ट्रीय उत्पादकता परिषद की स्थापना केन्द्र सरकार द्वारा फरवरी 1958 को एक स्वायत्तशासी संस्था के रूप में की गई।
स्थानीय उत्पादकता परिषद राष्ट्रीय उत्पादकता परिषद के मार्गदर्शन में कार्य करती है।
राष्ट्रीय उद्यमिता विकास संस्थान की स्थापना 1960 में हैदाराबाद में की गई।
प्रत्येक राज्य में लघु उद्यमियों द्वारा अपने संघ स्थापित किए गए हैं।
केन्द्रीय सरकार ने 1955 में एन. एस. आई. सी. की स्थापना नई दिल्ली में की।
1954 में अखिल भारतीय लघु उद्योग बोर्ड की स्थापना की गई।
खादी एवं ग्रामोद्योग आयोग की स्थापना 1953 में मुम्बई में की गई।
कम्पनी अधिनियम, 1956 के अधीन राज्य वित्तीय निगमों की स्थापना करने का प्रावधान किया गया था। किन्तु अभी तक मात्र 18 राज्य वित्त निगम स्थापित हो पाए हैं।
लघु उद्योगों के विकास व नियंत्रण का कार्य संविधान द्वारा राज्यों को सौंपा गया है।
भारत सरकार द्वारा भारतीय मानक संस्थान की स्थापना 6 जनवरी, 1947 में की गई।
भारत में वर्तमान समय में 36 राष्ट्रीय अनुसंधान प्रयोगशालाएँ एवं संस्थान लघु उद्योगों को सेवाएँ प्रदान कर रहे हैं।
औद्योगिक नीति 1977 के द्वारा लघु एवं कुटीर उद्योगों के नियमन एवं विकास के लिए जिला स्तर पर एक सरकारी संस्था 'जिला उद्योग केन्द्र की स्थापना किए जाने का प्रावधान किया गया था।
जिला उद्योग केन्द्र जिला स्तर की केन्द्रीय संस्था होती है।
जिला उद्योग केन्द्र का मुख्य अधिकारी महाप्रबन्धक होता है।
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