बी काम - एम काम >> बीकाम सेमेस्टर-4 आयकर विधि एवं लेखे बीकाम सेमेस्टर-4 आयकर विधि एवं लेखेसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीकाम सेमेस्टर-4 आयकर विधि एवं लेखे - सरल प्रश्नोत्तर
स्मरण रखने योग्य महत्वपूर्ण तथ्य
पूँजी से आशय धन के उस भाग से है जो अतिरिक्त धन के उत्पादन के लिए प्रयोग में लाया जाता है।
एक निर्धारित अवधि में आयगत प्राप्तियाँ उसी अवधि के आयगत व्ययों से जितनी अधिक होती है, वही आधिक्य उस अवधि की आय मानी जाती है।
आधिक्य को शुद्ध लाभ भी कहा जाता है।
व्यावसायिक आय प्राप्त करने के लिए जो व्यय किये जाते हैं, उन्हें 'आयगत व्यय' कहते हैं।
पूँजीगत व्यय से आशय ऐसे व्ययों से है जो स्थायी सम्पत्तियों को खरीदने, उनमें वृद्धि करने तथा उनकी कार्यक्षमता में वृद्धि करने के सम्बन्ध में किये जाते हैं।
पूँजीगत व्यय स्थायी स्वभाव के होते हैं तथा इन व्ययों की उपयोगिता दीर्घकालीन होती है। पूँजीगत व्यय अनावर्तक स्वभाव के होते हैं अर्थात् ये व्यय बार-बार लगातार नहीं किये जाते हैं।
पूँजीगत व्यय के उदाहरण हैं - मशीनरी का क्रय, भवन का क्रय, व्यापार चिह्न (Trade Marke) लागत, पट्टा-सम्पत्ति/भवन की लागत, ख्याति का मूल्य, स्वायत्त सम्पत्ति (Freehold Property) की लागत आदि।
आयगत व्यय अल्पकालीन प्रवृत्ति के होते हैं। इन व्ययों को बार-बार निरंतर किया जाता
आयगत व्यय का उद्देश्य स्थायी सम्पत्तियों की कार्यक्षमता को बनाये रखना होता है, उन्हें बढ़ाना नहीं होता है।
आयगत व्यय व्यवसाय की लाभ उपार्जन शक्ति को बनाये रखते हैं, इसमें वृद्धि नहीं करते हैं।
आयगत व्यय के उदाहरण हैं - मजदूरी एवं वेतन, विद्युत व्यय, किराया, ऋणों पर ब्याज, मरम्मत व्यय, बीमा प्रीमियम, स्थायी सम्पत्तियों पर ह्रास, डाक एवं तार व्यय आदि।
पूँजीगत एवं आयगत व्ययों में अन्तर न करने पर लाभ-हानि खाता एवं आर्थिक चिट्ठा व्यवसाय का सत्य एवं उचित चित्र प्रस्तुत नहीं करता है।
ऐसे व्यय जो आयगत प्रकृति के हैं, परन्तु इसकी उपयोगिता व्यवसाय द्वारा अनेक वर्षों तक प्राप्त की जाती है, तो इन व्ययों को 'स्थगित आयगत व्यय' कहा जाता है।
स्थगित आयगत व्ययों के उदाहरण हैं - अंशों के निर्गमन के व्यय, ऋणपत्रों के निर्गमन के व्यय, प्रारम्भिक व्यय, विज्ञापन पर किया गया अत्यधिक व्यय जिसका लाभ कई वर्षों तक उठाया जायेगा, अंशों एवं ऋणपत्रों के निर्गमन पर कटौती की राशि आदि।
स्थायी सम्पत्तियों अथवा पूँजी सम्पत्तियों को बेचने से जो आय प्राप्त होती है, उसे पूँजीगत- प्राप्ति कहा जाता है। दीर्घकालीन ऋणों को भी पूँजीगत प्राप्ति कहा जाता है। व्यवसायिक माल अथवा चालू पूँजी (Work Capital) पर प्राप्त आय को 'आयगत प्राप्ति' कहा जाता है।
ऐसे लाभ जो सामान्य व्यवसाय से सम्बन्धित नहीं होते हैं और विशेष परिस्थितियों में प्राप्त किये जाते हैं, उन्हें पूँजीगत लाभ कहते हैं।
बिक्री (Sales) में से माल की लागत (Cost of goods sold) को घटाने के बाद जो लाभ आता है, उसे 'आयगत लाभ' कहते हैं।
ऐसी हानियाँ जिनेका सम्बन्ध व्यापार के सामान्य कार्य से न हो, उन्हें 'पूँजीगत हानि' कहा जाता है।
व्यापार के सामान्य कार्य के सम्बन्ध में होने वाली हानियों को आयगत हानि कहते हैं।
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