बी काम - एम काम >> बीकाम सेमेस्टर-4 आयकर विधि एवं लेखे बीकाम सेमेस्टर-4 आयकर विधि एवं लेखेसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीकाम सेमेस्टर-4 आयकर विधि एवं लेखे - सरल प्रश्नोत्तर
अध्याय 3 - पूँजीगत एवं आयगत
(Capital and Revenue)
पूँजी का आशय धन के उस भाग से है जो अतिरिक्त धन के उत्पादन के लिए प्रयोग में लाया जाता है। छोटे या बड़े सभी प्रकार के व्यापारों को जिस धन से आरम्भ किया जाता है, वही उस व्यापार की पूँजी कहलाती है। इस राशि में से कुछ भाग को माल को क्रय करने में लगाया जाता है जबकि शेष राशि से व्यापार की सम्पत्तियों (जैसे- मशीनरी, भवन, यंत्र, फर्नीचर आदि) को क्रय किया जाता है। व्यावसायिक आय को प्राप्त करने के लिए जो व्यय किये जाते हैं उन्हें 'आयगत व्यय' और व्यवसाय की कार्यक्षमता में वृद्धि करने में जो व्यय किये जाते हैं, उन्हें पूँजीगत व्यय कहते हैं।
पूँजीगत व्यय से आशय ऐसे व्ययों से है जो स्थायी सम्पत्तियों को क्रय करने में या उनमें किसी भी प्रकार की वृद्धि करने या उनकी कार्यक्षमता में वृद्धि करने के लिए किये जाते हैं। जबकि आयगत व्यय से आशय उन व्ययों से है जो व्यवसायी की स्थायी सम्पत्तियों की कार्यक्षमता बनाये रखने तथा व्यावसायिक माल के क्रय तथा उसके रूप परिवर्तन करने के सम्बन्ध में किये जाते हैं। पूँजीगत एवं आयगत व्ययों में अन्तर ज्ञात करना लेखांकन के उद्देश्य हेतु अत्यन्त आवश्यक है क्योंकि पूँजीगत व्ययों एवं आयगत व्ययों में अंतर न किये जाने की दशा में लाभ-हानि खाते द्वारा प्रकट किया हुआ लाभ या हानि तथा चिट्ठे द्वारा प्रदर्शित स्थिति विवरण सत्य नहीं होगा।
व्यवसाय में कुछ व्यय इस प्रकार के भी होते हैं, जो कि आयगत हैं परन्तु इनकी उपयोगिता व्यवसाय द्वारा अनेक वर्षों तक प्राप्त की जाती है, इस प्रकार के व्ययों को 'स्थगित आयगत व्यय' कहा जाता है। व्यवसाय की पूँजी सम्पत्ति बेचने से प्राप्त आय को पूँजीगत प्राप्ति कहा जाता है, जबकि व्यवसायी द्वारा व्यवसाय के माल को बेचने से जो आय प्राप्त होती है उसे आयगत प्राप्ति कहा जाता है।
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