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बीए बीएससी सेमेस्टर-4 शारीरिक शिक्षा

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :160
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2751
आईएसबीएन :0

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बीए बीएससी सेमेस्टर-4 शारीरिक शिक्षा - सरल प्रश्नोत्तर

प्रश्न- वृद्धि एवं विकास के प्रमुख सिद्धान्तों का वर्णन कीजिए तथा वृद्धि एवं विकास को प्रभावित करने वाले कारक कौन-कौन से हैं?

उत्तर-

विकास एक सतत् प्रक्रिया है जो जन्म से मृत्यु तक निरंतर चलती रहती है जब कि वृद्धि असतत् प्रक्रिया है जो जन्म से निश्चित आयु तक चलती है परन्तु प्रौढ़ा अवस्था तक वृद्धि और विकास की प्रक्रिया एक साथ चलती है। इस सम्बन्ध में गैरिसन एवं अन्य ने लिखा है, "जब बालक विकास की एक अवस्था से दूसरी अवस्था में प्रवेश करता है तब हम उसमें कुछ परिवर्तन देखते हैं। अध्ययनों ने यह सिद्ध कर दिया है कि ये परिवर्तन निश्चित सिद्धान्तों के अनुसार होते हैं। इन्हीं को विकास का सिद्धान्त कहा जाता है।" वृद्धि एवं विकास के प्रमुख सिद्धान्त निम्न हैं-

1. सतत् विकास का सिद्धान्त - बालक की एक निश्चित आयु तक वृद्धि व विकास एक साथ चलते हैं उत्तर बाल्याकाल में इनकी गति कुछ मन्द पड़ जाती है तथा किशोरावस्था से पुनः इसमें तेजी आ जाती है। जैसे ही बालक किशोरावस्था को पार करता है उसकी वृद्धि की गति अत्यन्त धीमी हो जाती या रुक जाती है परन्तु विकास सतत् रूप से आजीवन होता रहता है।

2. विकास की गति में विविधता का सिद्धान्त - वृद्धि तथा विकास सभी बालकों में एक समान नहीं होता है इसमें विविधता पायी जाती है। कुछ बालक लम्बाई (ऊंचाई) में ज्यादा बढ़ जाते हैं, तो कुछ उसी आयु वर्ग के बालक कम बढ़ पाते हैं। अतः यह सिद्धान्त कहता है कि जो बालक जन्म के समय लम्बा होता है वह सामान्यतः बड़ा होने पर भी लम्बा ही होता है।

3. वैयक्तिक विभिन्नता का सिद्धान्त - विभिन्न अध्ययनों से यह स्पष्ट हो चुका है कि बालकों में वैक्तिक विभिन्नता पायी जाती है, जिसके फलस्वरूप बालक के शारीरिक बनावट, रंग, मानसिक योग्यता, बौद्धिक विकास आदि में अन्तर पाया जाता है। यद्यपि सभी बच्चों के लिए पर्यावरण. एक समान होता है परन्तु बच्चे स्वयं अपने ढंग से अपनी गति से विकास करते है, इनमें से कुछ बच्चे सामान्य गति से तो कुछ बच्चे तेज गति से विकास करते हैं। इस सम्बन्ध में हरलॉक महोदय ने लिखा कि, "सभी बच्चें सामान्य आयु पर विकास के समान बिन्दु पर नहीं पहुँच पाते हैं।

4. विकासात्मक क्रम का सिद्धान्त - इस सिद्धान्त के अनुसार, बालक का विकास एक व्यवस्थित एवं निश्चित क्रम के अनुसार होता है। बालक बैठना, चलना, बोलना एवं भाषा-ज्ञान क्रमबद्ध देय से सीखता है।

5. परस्पर सम्बन्ध का सिद्धान्त - बालक के विकास से सम्बन्धित विविध पहलू एक दूसरे से सम्बन्धित होते हैं, जैसे- सामाजिक, मानसिक और संवेगात्मक विकास। इस सम्बन्ध में गैरिसन व अन्य ने लिखा है कि "शरीर सम्बन्धी दृष्टिकोण व्यक्ति के विभिन्न अंगों के विकास में सामंजस्य एवं परस्पर सम्बन्ध पर बल देता है।"

6. विकास के एक रूप ढाँचे का सिद्धान्त - इस सिद्धान्त के अनुसार, प्रत्येक जीव अपनी जाति व प्रजाति के अनुरूप ही विकास का ढाँचा अपनाता है। इस सम्बन्ध में हरलॉक महोदय का कथन है कि, "प्रत्येक जाति चाहे वह पशु/मानव ही हो, अपनी जाति के अनुरूप ही विकास का ढाँचा अपनाती है।"

7. सामान्य से विशिष्ट अनुक्रियाओं का सिद्धान्त - इस सिद्धान्त के अनुसार विकास की प्रक्रिया में बालक गति सम्बन्धी अथवा मानसिक विकास में पहले सामान्य अनुक्रिया करता है और बाद में विशिष्ट अनुक्रियाओं की ओर बढ़ता है। इस सम्बन्ध में हरलॉक का कथन है कि "मानसिक एवं शारीरिक अनुक्रियाओं में सामान्य क्रिया विशिष्ट क्रिया से सदैव पहले होती है।'

वृद्धि एवं विकास को प्रभावित करने वाले कारक

शारीरिक वृद्धि एवं विकास को वंशानुक्रम तथा बतावरण संयुक्त रूप से प्रभावित करते हैं।

शारीरिक वृद्धि एवं विकास को प्रभावित करने वाले कारक निम्न हैं-

1. गर्भाधान के समय वंशानुक्रम द्वारा ग्रहण की गयी पैत्रक विशेषताएँ एवं गुण।

2. गर्भकाल में माता की शारीरिक और मानसिक अवस्था।

3. माता द्वारा लिया जाने वाला पोषण।

4. माता द्वारा बच्चे को सामान्य अथवा असामान्य रूप से जन्म देना।

5. जन्म के समय माता का स्वास्थ्य एवं उसकी देखभाल।

6. जन्म के बाद माता तथा शिशु की देखभाल।
7. जन्म के पश्चात शिशु को प्राप्त होने वाला पोषण।
8. बालक में जन्म से किसी प्रकार का शारीरिक दोष।

9. शारीरिक, सामाजिक और सांस्कृतिक परिस्थितियाँ तथा वातावरण।

10. आत्माभिव्यक्ति और खेलकूद, व्यायाम तथा मनोरंजन।

11. बालक का सामाजिक तथा संवेगात्मक समायोजन।

12. पर्याप्त निद्रा व विश्राम।
13. चिकित्सा सुविधाएँ।
14. शुद्ध जल, वायु एवं प्रकाश।
15. रोग व चोटें।

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