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बीए बीएससी सेमेस्टर-4 शारीरिक शिक्षा

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :160
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2751
आईएसबीएन :0

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बीए बीएससी सेमेस्टर-4 शारीरिक शिक्षा - सरल प्रश्नोत्तर

प्रश्न- वृद्धि और विकास की विभिन्न अवस्थाओं का वर्णन कीजिए तथा इन अवस्थाओं की विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।

उत्तर-

बालक के विकास के सम्बन्ध में मनोवैज्ञानिकों ने भिन्न-भिन्न मत व्यक्त किये हैं तथा इन्होंने बालक के विकास को भिन्न-भिन्न अवस्थाओं में बाँटा है, जो निम्न हैं-

1. गर्भावस्था 9 माह 9 या 10 दिन
 2. शैशवावस्था जन्म से 5 या 6 वर्ष तक
3. बाल्यावस्था 5 या 6 वर्ष से 12 वर्ष तक
4. किशोरावस्था 12 या 13 वर्ष से 18 या 19 वर्ष तक
5. प्रौढ़ावस्था 18 या 19 वर्ष से 60 या 65 वर्ष तक
6. वृद्धावस्था 60 या 65 वर्ष से मृत्यु तक

बालक के विकास की उपरोक्त अवस्थाओं में कुछ अवस्थाएँ ही शैक्षिक दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं जो निम्न हैं-

1. शैश्वावस्था - शैशवावस्था को जीवन की आधारशिला कहा जाता है जिस पर बालक अपने भावी जीवन का भव्य निर्माण करता है, इसलिए यह मानव विकास की सबसे महत्वपूर्ण अवस्था है। फ्रायड का मानना था कि व्यक्ति अपने भावी जीवन में जो कुछ बनना होता है, उसका निर्धारण चार-पाँच वर्ष की आयु तक हो जाता है।

शैशवावस्था में शिशु शारीरिक तथा मानसिक दृष्टि से परिपक्व नहीं होता वह दूसरों पर निर्भर रहता है। उसका व्यवहार उसकी मूलप्रवृत्तियों पर आधारित होता है। वह अपनी आवश्यकताओं की अविलम्ब पूर्ति चाहता है। इस अवस्था में बालक उन क्रियाओं को करना पसन्द करता है जिससे उसे अविलम्ब आनन्द की अनुभूति होती है।

शैशवावस्था की प्रमुख विशेषताएँ

शैशवावस्था की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-

1. जन्म के उपरान्त तीन वर्ष तक बालक का शारीरिक विकास अति तीव्र गति से होता है।

2. इस अवस्था में बालक की मानसिक शक्तियों का विकास होता है। 6 वर्ष तक उसका मानसिक विकास सुदृढ़ हो जाता है।

3. इस अवस्था में शिशु में अनुकरण करने की प्रवृत्ति अधिक होती है।

4. इस अवस्था में बालक में जिज्ञासा का जन्म होता है वह आस-पास के वातावरण को समझने के लिए प्रश्न करने लगता है।

5. शिशु में जिज्ञासा व अनुकरण की प्रबलता होने से अधिगम भी तीव्र गति से होता है।

6. ऐसा माना जाता है कि बालक प्रारम्भिक 6 वर्षों में अगले 12 वर्षों से दो गुना सीख लेता है।

7. 3 से 6 वर्ष के बालक में काल्पनिक सजीवता अधिक पायी जाती है।
8. इस अवस्था में बालक प्रायः दूसरों पर निर्भर रहता है।
9. शिशु में प्रेम की आकांक्षा प्रबल होती है।

10. मनोवैज्ञानिकों का मत है कि शिशुकाल में काम प्रवृत्ति अधिक होती है।

11. शैशवावस्था में बालक मूल प्रवृत्ति आधारित व्यवहार करता है।

2. बाल्यावस्था - बाल्यावस्था के अर्थ को स्पष्ट करते हुए एस.ए. कोर्टिस ने लिखा है कि "बाल्यावस्था औसत 5 से 12 वर्ष तक की आयु है जिसके अन्तर्गत स्थायी दाँत प्रकट होते हैं; बालक पढ़ना, लिखना और स्वयं की देख-रेख करना सीखता है और व्यक्तित्व में स्पष्ट परिवर्तन घटित होते. हैं।" मनोवैज्ञानिकों ने बाल्यावस्था को 6 से 12 वर्ष तक की आयु को माना है इन्होंने इसे दो भागों में बाँटा है। पूर्व बाल्यावस्था और उत्तर बाल्यावस्था उत्तर बाल्यावस्था के विषय में हरलॉक महोदय ने लिखा है कि "उत्तर बाल्यावस्था 6 वर्ष की आयु से लेकर यौवन आरम्भ होने तक 11 एवं 12 वर्षों के मध्य विस्तृत होती है।

बाल्यावस्था की प्रमुख विशेषताएँ

बाल्यावस्था की विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-

1. बाल्यावस्था में बालक का शारीरिक विकास मन्द होने लगता है तथा उसके विकास में दृढ़ता आने लगती है।

2. बाल्यावस्था में बालक में तर्क, चिन्तन, विचार-विमर्श, तथा समस्या समाधान की योग्यता का विकास होता है।

3. इस अवस्था में बालक परिस्थितियों के अनुसार अपनी रुचियों में परिवर्तन कर लेते हैं।

4. इस अवस्था में बालक में जिज्ञासा का स्तर बढ़ जाता है।

5. इस अवस्था में बालक सामूहिक खेलों में रुचि प्रदर्शित करने लगता है। वह नियमित खेलने जाने लगता है।

6. इस अवस्था का बालक चित्र, खिलौनों, सिक्कों, डाक टिकटों आदि को संकलित करना प्रारम्भ कर देता है।

7. इस अवस्था के बालक व बालिकाओं में नैतिक मूल्यों का विकास होने लगता है।

8. इस अवस्था में बालक में सामाजिक गुणों का विकास होने लगता है। बालक सहयोग, सद्भावना, सहनशीलता आदि सामाजिक गुणों को स्वयं आत्मसात् करने लगता है।

9. इस अवस्था में बालक व बालिकाएँ रचनात्मक कार्यों को करना पसन्द करते हैं।

3. किशोरावस्था - किशोरावस्था बालक की वह अवस्था होती है जिसमें वह बाल्यावस्था में प्रौढ़ावस्था की ओर अग्रसर होता है। किशोरावस्था के अर्थ को मनोवैज्ञानिकों ने स्पष्ट करने का प्रयत्न किया है, जिनके विचार निम्नलिखित हैं-

स्टेनले हाल के अनुसार - "किशोरावस्था बल और तनाव तूफान और संघर्ष का काल है।" शिक्षा शब्दकोश ने किशोरावस्था को कुछ इस प्रकार परिभाषित किया है।

"किशोरावस्था यौवनावस्था से परिपक्वता के मध्य घटित होने वाली और मोटे तौर पर 13 से 14 वर्ष की आयु से आरम्भिक 20 वर्षों तक विस्तृत होने वाली मानव विकास की एक अवधि है।"

ब्लेयर जोन्स एवं सिम्पसन के अनुसार - "किशोरावस्था प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में वह बिन्दु है, जो बाल्यावस्था के अन्त में प्रारम्भ होता है और प्रौढ़ावस्था के आरम्भ में समाप्त होता है।"

किशोरावस्था की प्रमुख विशेषताएँ

किशोरावस्था की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-

1. किशोरावस्था में बालक व बालिकाओं में पुरुषत्व व नारीत्व सम्बन्धी बदलाव परिलक्षित होने लगते हैं।

2. किशोरावस्था में बालक तथा बालिकाओं में आत्म-सम्मान का भाव अधिक जागृत हो जाता है।

3. किशोरावस्था में बालक व बालिकाओं में स्वतंत्रता की भावना जागृत हो जाती है।
4. किशोरावस्था में लिए गये निर्णय अपरिपक्व तथा अस्थिर होते हैं।
5. इस अवस्था में किशोर तथा किशोरियों के कामांगों में परिपक्वता आ जाती है।
6. किशोरावस्था में घनिष्ठ मित्रता की प्रवृत्ति बढ़ जाती है।
7. किशोर व किशोरियों में अहम की भावना पायी जाती हैं।

8. किशोर व किशोरियों की स्वतंत्रता एवं उन्मुक्तता पर प्रतिबन्ध लगाया जाता है तो वह विद्रोह पर अमादा हो जाते हैं।

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