बी ए - एम ए >> बीए बीएससी सेमेस्टर-4 शारीरिक शिक्षा बीए बीएससी सेमेस्टर-4 शारीरिक शिक्षासरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए बीएससी सेमेस्टर-4 शारीरिक शिक्षा - सरल प्रश्नोत्तर
अध्याय - 2
वृद्धि और विकास के विभिन्न चरणों की सामान्य विशेषताएँ
(General Characteristics of Various Stages of Growth and Development)
प्रश्न- वृद्धि एवं विकास से आप क्या समझते हैं? वृद्धि एवं विकास की प्रमुख विशेषताएँ लिखिए और वृद्धि एवं विकास में परिवर्तनों के प्रकारों का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
वृद्धि (वर्धन) का अर्थ
व्यक्ति के शरीर के आकार, लम्बाई तथा वजन में होने वाले परिवर्तन को वृद्धि कहते हैं। वृद्धि का शाब्दिक अर्थ बढ़ने की प्रक्रिया अर्थात शरीर के अंगों के बढ़ने से है।
दास के अनुसार - "प्राणी में होने वाले ऐसे जैविक परिवर्तन को वृद्धि कहते हैं जिनका निरीक्षण किया जा सकता है तथा जिसको मात्रात्मक रूप में मापा जा सकता है।"
सॉरेन्सन के अनुसार - "वृद्धि से आशय शरीर तथा शारीरिक अंगों में भार तथा आकार की दृष्टि से वृद्धि होना है, ऐसी वृद्धि जिसको मापन सम्भव हो।"
विकास का अर्थ
विकास शब्द को जब मानव विकास के सन्दर्भ में प्रयोग किया जाता है तब इसका अर्थ काफी व्यापक हो जाता है। इस शब्द से एक ओर प्राणी के ऐसे परिवर्तनों का बोध होता है जिनका मात्रात्मक मापन सम्भव है तथा दूसरी ओर ऐसे परिवर्तनों का बोध होता है जिनका मात्रात्मक मापन सम्भव नहीं, होता है।
स्किनर के अनुसार - "विकास एक सतत् एवं क्रमिक प्रक्रिया है।"
रेबर के अनुसार - "किसी प्राणी के पूर्ण जीवन विस्तार में होने वाले परिवर्तनों के क्रम को विकास कहते हैं।"
पीयरी लण्डन के अनुसार - "विकास का तात्पर्य गर्भधारण से लेकर मृत्यु तक जीवन के पूर्ण अनुक्रम से है।" इस प्रकार गर्भधारण से लेकर मृत्यु तक व्यक्ति में होने वाले विभिन्न परिवर्तनों की गणना विकास के अन्तर्गत की जाती है। विकास के अन्तर्गत शारीरिक विकास, मानसिक विकास, सामाजिक विकास, नैतिक और चारित्रिक विकास का अध्ययन किया जाता है।
वृद्धि की विशेषताएँ
वृद्धि की प्रमुख विशेषताएँ निम्न हैं-
1. वृद्धि शरीर एवं उसके अंगों में आकार, भार एवं उनकी कार्यक्षमता में होने वाली वृद्धि है।
2. वृद्धि मानव शरीर की परिपक्वता तक अर्थात 18 से 19 वर्ष की आयु तक होती रहती है।
3. वृद्धि पर आनुवांशिकता का प्रभाव पड़ता है।
4. वृद्धि पर वातावरण का प्रभाव देखा जा सकता है।
5. वृद्धि से ऐसे परिवर्तनों का बोध होता है जिनका मात्रात्मक मापन सम्भव होता है।
6. वर्धन का स्वरूप मूलतः संरचनात्मक होता है।
7. वर्धन एक असतत् प्रक्रिया है।
विकास की विशेषताएँ
विकास की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-
1. विकास एक सतत् चलने वाली प्रक्रिया है।
2. विकास पर आनुवांशिकता तथा वातावरण का प्रभाव पड़ता है।
3. विकास एक क्रमिक प्रक्रिया है इसमें होने वाले परिवर्तन क्रमबद्ध एवं परस्पर एक-दूसरे से सम्बन्धित होते हैं।
4. विकास मात्रात्मक तथा गुणात्मक दोनों प्रकार का हो सकता है जिसका मापन भी किया जा सकता है।
5. विकास के कुछ पक्ष प्रत्यक्ष तथा कुछ अनुभव किये जाते हैं।
वृद्धि एवं विकास में परिवर्तनों के प्रकार
हरलॉक महोदय ने वृद्धि एवं विकास की प्रक्रिया में होने वाले परिवर्तनों को चार प्रकारों में बाँटा है-
1. आकार में परिवर्तन - जन्म के समय बालक की औसत ऊँचाई महज 19 या 20 इंच तथा भार लगभग 7 से 8 पौंड होता है। महज 3 माह में बालक की औसत ऊँचाई 55 सेमी तथा वजन लगभग 4.5 कि.ग्रा. हो जाता है। 19 वर्ष की आयु तक बालक की ऊँचाई औसत 151.7 सेमी. तथा भार लगभग 48.1 किलोग्राम हो जाता है। बालक के आकार में होने वाले इस परिवर्तन को स्पष्टतः देखा जा सकता है।
2. अनुपात में परिवर्तन - बालक के विभिन्न अंगों में एक ही अनुपात में परिवर्तन होता है। बालक 15-16 वर्ष की आयु तक लम्बाई तथा भार में लगभग प्रौढ़ के बराबर हो जाता है।
3. पुराने चिन्हों का लोप - जैसे-जैसे बालक बड़ा होता जाता है वैसे-वैसे बालक में पुराने शारीरिक चिन्हों का लोप होता जाता है, जैसे- दूध के दाँतों का गिर जाना।
4. नये चिन्हों का उदय - जैसे ही बालक किशोरावस्था में प्रवेश करता है। उसमें कुछ नये शारीरिक चिन्हों का उदय होने लगता है जैसे-यौनांगों का विकास, दाढ़ी मूछ का आना आदि।
यदि बालक के शारीरिक वृद्धि व विकास का बारीकी से अवलोकन किया जाये तो निम्न तथ्य सामने आते हैं-
1. पहले दो या तीन वर्षों में शारीरिक वृद्धि और विकास की गति बहुत तीव्र होती है।
2. इसके पश्चात् के वर्षों में किशोरावस्था के शुरूआत तक यह गति मन्द पड़ जाती है।
3. किशोरावस्था के पहले तीन वर्षों में शैशवावस्था की तरह गति देखने को मिलती है।
4. बाद में वर्षों में परिपक्वता ग्रहण करने तक वृद्धि और विकास की गति में पुनः गिरावट आने लगती है।
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