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बीए बीएससी सेमेस्टर-4 शारीरिक शिक्षा

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :160
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2751
आईएसबीएन :0

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बीए बीएससी सेमेस्टर-4 शारीरिक शिक्षा - सरल प्रश्नोत्तर

प्रश्न- तनाव के कारण एवं स्रोतों का उल्लेख कीजिये। तनाव के परिणाम पर विस्तार से प्रकाश डालिये।

सम्बन्धित लघु उत्तरीय प्रश्न
1. प्रतिबल के कारणों का विस्तार से वर्णन कीजिये।
2. उपागम परिहार द्वन्द्व क्या है? स्पष्ट कीजिये।
3. उपागम परिहार द्वन्द्व का विस्तृत वर्णन कीजिये।
4. अन्तर्द्वन्द्व के विभिन्न प्रकार बताइये।
5. प्रतिबल के परिणामों का स्वास्थ्य पर क्या प्रभाव पड़ता है? संक्षेप में लिखिये।

अथवा
प्रतिबल के क्या परिणाम होते हैं?
6. पर्यावरणीय असन्तुलन का तनाव से सम्बन्ध पर एक टिप्पणी लिखिये।
7. प्रतिबल के स्रोतों का उल्लेख कीजिये।
8. प्रतिबल के रूप में कुण्ठा को स्पष्ट कीजिये।

उत्तर-

तनाव के कारण
(Causes of Stress)

हमारे जीवन की अनेक छोटी-बड़ी समस्यायें हमारे जीवन में तनाव उत्पन्न कर देती हैं। ये घटनायें प्रायः युद्ध, दुर्घटना, तलाक, कार्यभार की अधिकता, सम्बन्धियों से खराब सम्बन्ध, दरिद्रता आदि होती हैं। इन्हें हम अध्ययन के दृष्टिकोण से निम्नलिखित भागों में बांट सकते हैं-

1. अत्यधिक कार्यभार (Overload) - कभी-कभी व्यावसायिक क्षेत्र का कार्यभार व्यक्ति की क्षमता से अधिक हो जाता है तो वह तनाव का अनुभव करने लगता है। वर्तमान समय में अत्यधिक भार पड़ने के सम्बन्ध में जो शब्द प्रयोग किये जा रहे हैं वह झुलस जाना (Burn out) है। झुलस जाना एक निराश एवं असहाय होने का भाव है जो बिना थमे हुए कार्य सम्बन्धी तनाव से उत्पन्न होता है। यह घटना उन लोगों के साथ घटती है जिनसे कड़ी मेहनत की आशा की जाती है। शिक्षकों, अफसरों, निजी उद्योगों में कार्य करने वाले मैनेजरों इत्यादि में यह समस्या अधिक पाई जाती है।

2. द्वन्द्व (Conflicts) - उत्तेजक हमारे ऊपर न केवल अत्यधिक भार डालने वाले हो सकते हैं बल्कि द्वन्द्व के स्रोत भी हो सकते हैं । द्वन्द्व प्रायः उस समय होते हैं जब हमें दो या उनसे अधिक परस्पर विरोधी उत्तेजक मिलते हैं। द्वन्द्व मुख्यतः तीन होते हैं-

(i) पहुँच-पहुँच द्वन्द्व (Approach approach Conflict) - ये द्वन्द्व तब होते हैं जब एक व्यक्ति को बराबर आकर्षण रखने वाले दो उत्तेजकों या अवसरों में एक का चुनाव करना होता है। जैसे किसी व्यक्ति के समक्ष दो प्रसिद्ध ब्राण्ड की कार खरीदने के सन्दर्भ में द्वन्द्व हो। यह द्वन्द्व तीनों प्रकार के द्वन्द्वों में सबसे कम तनाव उत्पन्न करने वाला होता है क्योंकि दोनों विकल्प सकारात्मक निर्णय की ओर ले जाने वाले होते हैं।

(ii) परिहार परिहार द्वन्द्व (Avoidance avoidance Conflict) - ये द्वन्द्व तब होते हैं जब व्यक्ति के समक्ष उपस्थित दोनों उत्तेजक अनाकर्षक होते हैं और वह उन दोनों से बचना चाहता है परन्तु उसके लिए दोनों में से एक का चुनाव करना आवश्यक हो जाता है। जैसे किसी विद्यार्थी की अनुपस्थिति बहुत कम है और वह परीक्षा में बैठने से रोका जा सकता है परन्तु तेज वर्षा के कारण विद्यालय नहीं जाना चाहता है। ये द्वन्द्व पहुँच पहुँच द्वन्द्व की अपेक्षा अधिक तनाव उत्पन्न करने वाले होते हैं।

(iii) पहुँच - परिहार द्वन्द्व (Approach-avoidance Conflict) - इस द्वन्द्व में केवल एक उत्तेजक होता है तथा उसके सकारात्मक तथा नकारात्मक दोनों पक्ष होते हैं और व्यक्तियों को एक उद्दीपक का चुनाव करना आवश्यक हो जाता है। जैसे किसी व्यक्ति को मक्खन अत्यन्त प्रिय है परन्तु उसके सेवन से कोलेस्ट्राल बढ़ जाने का खतरा होता है। उसे मक्खन खाने या न खाने में से एक विकल्प चुनना होता है। ये द्वन्द्व सर्वाधिक तनावपूर्ण होते हैं।

3. विफलता या कुण्ठा ( Frustration) - जब व्यक्ति अपनी इच्छानुसार उद्देश्य की प्राप्ति नहीं कर पाता है तो वह तनावग्रस्त हो जाता है। ऐसी स्थिति को कुण्ठा या विफलता कहते हैं। इसी प्रकार जब हम संसार में किसी वस्तु की प्राप्ति की इच्छा रखते हैं और वह हमें नहीं प्राप्त होती है तो हम कुण्ठा के कारण ही तनावग्रस्त हो जाते हैं। ये कुठाएं अनेक प्रकार की होती हैं जैसे - धन की कमी के कारण फ्रिज का न खरीद पाना, पदोन्नति का न होना, परीक्षा में अच्छे अंक न प्राप्त कर पाना, ट्रैफिक जाम में फंसना आदि। कभी-कभी विफलताएँ जीवन की बड़ी घटनाओं के सम्बन्ध में भी होती हैं जैसे- तलाक हो जाना या किसी गम्भीर रोग से पीडित होना आदि।

4. जीवन की घटनाएँ और प्रतिदिन के झगड़े (Life Events and Daily Hassels) - जीवन की महत्वपूर्ण घटनाएँ तनाव की मुख्य स्रोत हो सकती है। ये घटनाएँ रोगों से सम्बन्धित हो सकती हैं। व्यक्ति के जीवन की घटनाओं का तनाव पर प्रभाव जैसे - तूफान या भूचाल के प्रभाव हो सकते हैं या अनेक घटनाओं के समूह का प्रभाव हो सकता है। ये सभी तनावपूर्ण घटनाएँ नकारात्मक नहीं होतीं, इसमें से कुछ सकारात्मक भी होती हैं।

 

तनाव के स्रोत
(Sources of Stress)

तनाव के वातावरणीय स्रोत शहरी जीवन से अधिक जोड़े जाते हैं किन्तु यह अब केवल शहर केन्द्रित न होकर ग्रामीण जीवन से भी सम्बन्धित हैं। ये स्रोत निम्नलिखित हैं-

1. भीड़-भाड़ (Crowding) - भीड़-भाड़ मानवों पर किस प्रकार प्रभाव डालती है यह जनसंख्या के घनत्व (Population density) के द्वारा समझा जा सकता है। जनसंख्या घनत्व को परिभाषित करते हुए डेनियल स्टकोल्स ( Daniel Stkols) ने कहा है कि - "जनसंख्या घनत्व एक ऐसी भौतिक स्थिति है जिसमें एक बड़ी जनसंख्या एक सीमित स्थान में रहती है। भीड़-भाड़ एक मनोवैज्ञानिक दशा है जोकि एक व्यक्ति के अधिक घनत्व वाले वातावरण जिसमें कि वह बन्द है, के प्रत्यक्षीकरण से उभरती है। इस प्रकार घनत्व भीड-भाड़ के लिए आवश्यक है किन्तु यह स्वचलित रूप से भीड़-भाड़ में उपस्थित होने का एहसास उत्पन्न नहीं करता है।

2. प्रदूषण (Pollution) - प्रदूषण तनाव उत्पन्न करने वाला एक प्रमुख स्रोत है। यह सीधे स्वास्थ्य पर हानिकारक प्रभाव डालता है और साथ ही तनाव भी उत्पन्न करता है। वर्तमान समय में औद्योगिक विकास के कारण संसार में प्रदूषण की मात्रा में अप्रत्याशित वृद्धि हुई है। रसायनिक प्रदूषण एवं न्यूक्लियर संयंत्रों द्वारा फैलाया जा रहा प्रदूषण लोगों में असहाय होने का भाव उत्पन्न करता है क्योंकि लोग इस प्रकार के प्रदूषण को समाप्त कर पाने में अपने को असमर्थ पाते हैं। प्रदूषण तनाव का एक कारण है, किन्तु इसका स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव जहरीलेपन के कारण पड़ता है न कि तनाव का स्तर बढ़ने के कारण।

3. शोर (Noise) - शोर तनाव उत्पन्न करने वाला एक अन्य प्रमुख कारक है। यह एक प्रकार का प्रदूषण ही है क्योंकि यह एक अनचाहा, अनिष्टकारी उत्तेजक है जो व्यक्ति के वातावरण में जबरन घुस जाता है और स्वास्थ्य पर हानिकारक प्रभाव डालता है। जब व्यक्ति को यह लगता है कि वह शोर रोक पाने में असमर्थ है तो वह अधिक तनावग्रस्त हो जाता है। हमारे देश में प्रायः धर्म के नाम पर लाउडस्पीकर लगाकर भजन-कीर्तन या धार्मिक प्रवचन होते हैं जो आस-पास रहने वालों को जिन्हें अन्य कार्य करने होते हैं, परेशान करके तनावग्रस्त कर देते हैं।

4. शहरी दबाव (Urban Pressure) - भीड़-भाड़, प्रदूषण, शोर आदि आम तौर पर शहरी जीवन के अविभाज्य अंग हैं। ऐरिक ग्रेग (Eric Graig, 1993) ने शहरी दबाव का प्रयोग अनेक वातावरणीय स्ट्रेसर्स (Stressors) के सम्बन्ध में किया जो शहरी जीवन को प्रभावित करते हैं। काम पर जाने की परेशानियाँ तथा जुर्म का भय शहरी व्यक्तियों के अनुभवों में भीड़-भाड़ आदि के साथ तनाव का प्रमुख स्रोत बन गया है। जुर्म शहरी जीवन के लिए कोई नयी बात नहीं है परन्तु जुर्म का भय शहरी वातावरण का एक अभिन्न अंग बन गया है। अखबारों में जुर्म का समाचार पढकर लोग अपनी सुरक्षा को लेकर तनावग्रस्त हो जाते हैं।

5. जीविका एवं व्यवसाय (Occupation) - प्राय: यह देखा गया है कि उद्योग आदि में लगे हुए व्यापारी या उच्च पदस्थ अधिकारी जिन्हें प्रतिदिन महत्वपूर्ण निर्णय लेने होते हैं, अक्सर तनावग्रस्त रहते हैं। इसके साथ-साथ अनुसंधानों से ज्ञात हुआ है कि परिस्थितियों पर नियन्त्रण की कमी निर्णय लेने के बोझ की तुलना में अधिक तनावपूर्ण होती है। तनाव सम्बन्धी रोगों को आधार मान कर किये गये एक अध्ययन में यह पाया गया कि निर्माण कार्यरत कर्मचारी, सेक्रेटरी, प्रयोगशाला टेक्नीशियन, वेटर, फार्मकर्मी, पेण्टर आदि के कार्य सर्वाधिक तनावपूर्ण होते हैं, क्योंकि इन कार्यों में कार्य सम्बन्धी मांगें उच्च श्रेणी की तथा नियन्त्रण निम्न स्तर का होता है।

6. व्यक्तिगत सम्बन्ध (Personal Relations) - व्यक्तिगत सम्बन्ध भी तनाव के महत्त्वपूर्ण स्रोत हैं। प्रायः देखा गया है कि यदि वैवाहिक जीवन में प्रेम, सहयोग आदि की भावना न हो तो पारिवारिक जीवन तनावपूर्ण हो जाता है। उदाहरणार्थ, यदि पत्नी नौकरी करती है और पति गृहकार्य में सहयोग नहीं करता है तो स्थिति तनावपूर्ण हो जाती है। इस प्रकार व्यक्तिगत सम्बन्ध भी तनाव के महत्वपूर्ण स्रोत हैं।

तनाव के परिणाम
(Consequences of Stress)

तनाव यदि लम्बे समय तक बना रहे तो उसके परिणाम घातक होते हैं और मानव शरीर को अनेक प्रकार से प्रभावित करते है। तनाव के कारण उत्पन्न होने वाले सम्भावित रोग निम्नलिखित हैं-

1. सिरदर्द (Headaches) - यदि तनाव की स्थिति अधिक समय तक बनी रहे तो तनावग्रस्त व्यक्ति को सिरदर्द होने लगता है। तनाव सिरदर्द प्रायः सिर और गर्दन के क्षेत्र की मांसपेशियों में बढ़े हुए तनाव से सम्बन्धित होता है। तनाव के कारण उत्पन्न होने वाला एक अन्य सिरदर्द संवहनी (Vascular) सिरदर्द भी है।

2. संक्रामक रोग (Infectious Disease) - जुकाम आदि जैसे संक्रामक रोग भी तनावरहित लोगों की अपेक्षा तनावग्रस्त लोगों को अधिक होते हैं। अनेक अध्ययनों से यह ज्ञात हुआ है कि भोजन, अनिद्रा या सफेद कोषों की संख्या की तुलना में तनाव जुकाम लगने में अधिक महत्वपूर्ण योगदान देता है जुकाम के लिए जुकाम के वायरस का सामना आवश्यक है किन्तु वायरस का सामना यह पूर्वानुमान नहीं देता कि किस व्यक्ति को जुकाम होगा और किसको नहीं। तनाव पूर्वानुमान देने वाला एक महत्वपूर्ण घटक है।

3. हृदय संवहनी रोग (Cardio Vascular Disease ) - Rahe आदि मनोवैज्ञानिकों ने अपने अध्ययनों मे पाया कि जो व्यक्ति अकस्मात दिल के दौरे के कारण मर जाते हैं उन्होंने दौरा पड़ने के 6 माह पूर्व तनावपूर्ण घटनाओं का अनुभव किया था।

4. रक्तचाप (Blood Pressure) - यद्यपि उच्च रक्तचाप तनाव का ही परिणाम है फिर भी इन दोनों के मध्य कोई प्रत्यक्ष सम्बन्ध होने के प्रमाण नहीं मिलते हैं। अध्ययनों में पाया गया है कि शोर तनाव का एक कारण है जो अन्ततः रक्तचाप में वृद्धि करता है परन्तु शोर उद्दीपक हटा लेने पर रक्तचाप सामान्य हो जाता है। इसके विपरीत दीर्घकालिक शोर का प्रभाव रक्त चाप बढ़ाने में सहायक हो सकता है। (Talboth et Al, 1985)

5. खतरा उठाने वाला व्यवहार (Risky Behaviour) - तनाव दैहिक प्रत्युत्तरों पर तो प्रभाव डालकर रोग को तो प्रोत्साहित करता ही है साथ ही साथ स्वास्थ्यं व्यवहारों में भी परिवर्तन लाता है और अप्रत्यक्ष रूप से स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव डालता है। तनाव जोखिम भरे व्यवहार के साथ अन्तःक्रिया करके व्यक्तियों के हृदय रोग से पीड़ित होने के खतरों को बढ़ा सकता है। उदाहरणार्थ, तनाव की स्थिति में सिगरेट, मदिरा आदि का सेवन सम्बन्धित रोगों को बढ़ावा देता है।

6. मधुमेह (Diabetes ) - तनाव प्रत्यक्ष रूप से इंसुलिन निर्भर मधुमेह ( IDDM) के होने पर प्रतिरक्षा संस्थान में विघ्न डाल सकता है। IDDM के विकास में तनाव अनुकम्पी तंत्रिका तंत्र पर दूषित प्रभाव डालता है। तनाव डाइबिटीज मेटीलस प्रबन्धन पर सीधा प्रभाव रक्त ग्लूकोज (Blood glucose) की मात्रा बढ़ाकर डालता है एवं अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित व्यक्तियों के ग्लूकोज स्तर पर नियंत्रण करने में रुकावट डालता है।

7. दमा (Asthma) - तनाव दमा के प्रमुख कारकों में से एक है। यद्यपि दमा के लक्षण शारीरिक हैं किन्तु जो घटनायें दमा को उत्पन्न करती हैं वे संवेगात्मक हो सकती हैं। दमा तनावपूर्ण घटनाओं के तुरन्त बाद भी हो सकता है और कुछ देर बाद भी हो सकता है।

8. गठिया संधिशोथ (Rheuatoid Arthritis) - तनाव अर्थाइटिस को बहुत पीड़ादायक बना सकता है। यह पीड़ा की संवेदना को बढ़ाकर बीमारी का सामना करने के प्रयासों में कमी लाकर तथा जोड़ों में सूजन बढ़ाकर दर्द को बढ़ा देता है। (Jautra 1998)

9. अवसाद (Depression ) - R. C. Kessler (1997) ने अपने अनुसंधानों में पाया कि तनावपूर्ण जीवन की घटनाओं में अवसाद के लक्षणों का एक तत्व बनने की प्रवृत्ति होती है। इसके साथ ही साथ तनाव का सामना करने की योग्यता एवं सामना करने के साधन अधिक निकट से अवसाद को प्रभावित करते हैं। Wright (1997) के अनुसार तनाव अवसाद को बढ़ा सकते हैं किन्तु ज्ञानात्मक तथा दूसरे मनोवैज्ञानिक तत्व तनावी घटनाओं के साथ अन्तःक्रिया करके अवासाद के स्तरों को प्रभावित करते हैं।

10. चिन्ता विकार (Anxiety Disorders)- चिन्ता विकारों में अनेक प्रकार के भय और दुर्भीति ( Phobia) शामिल होते हैं जो व्यवहारों को परिहार कराने की ओर उन्मुख होते हैं। इन विकारों में प्रमुख रूप से बाह्य दुर्भीति (Agoraphobia), सामान्यीकृत चिंता विकार (Generalized Anxiety Disorders), मनोग्रस्त बाध्यकारी विकार (Obsessive Compulsive Disorders) तथा अभिघातज पश्चात् विकार (Post-traumatic Stress PTSD) आदि आते हैं।

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