बी ए - एम ए >> बीए बीएससी सेमेस्टर-4 शारीरिक शिक्षा बीए बीएससी सेमेस्टर-4 शारीरिक शिक्षासरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए बीएससी सेमेस्टर-4 शारीरिक शिक्षा - सरल प्रश्नोत्तर
प्रश्न- प्रतिबल से आप क्या समझते हैं? हन्स सेलये की सामान्य अनुकूलन सिन्ड्रोम अवधारणा क्या है?
अथवा
प्रतिबल/तनाव का स्वरूप क्या है? प्रतिबल प्रबंधन में सामाजिक समर्थन की भूमिका पर प्रकाश डालिये।
सम्बन्धित लघु उत्तरीय प्रश्न
1. प्रतिबल / तनाव का स्वरूप क्या है?
2. प्रतिबल आत्मनिष्ठ होती है। स्पष्ट कीजिए।
3. प्रतिबल से आप क्या समझते हैं? प्रतिबल प्रबन्धन में सामाजिक सहारे की क्या भूमिका है?
4. सामान्य अनुकूलन सिन्ड्रोम के बारे में लिखिये।
उत्तर-
(Meaning and Definition of Stress)
तनाव या प्रतिबल किसी परिस्थिति अथवा घटना का मूल्यांकन करने के पश्चात् उसके प्रति की गयी एक विशेष अनुक्रिया होती है जिसमें व्यक्ति अपने मानसिक और दैहिक कार्यों को विघटित होते हुए पाता है। यह एक ऐसी बहुआयामी प्रक्रिया है, जोकि हम लोगों में वैसी घटनाओं के प्रति अनुक्रिया के रूप में विघटित होती है जो हमारे दैहिक तथा मनोवैज्ञानिक कार्यों को विघटित करता है या विघटित करने की धमकी देता है। प्रतिबल का सम्बन्ध नकारात्मक एवं सकारात्मक दोनों घटनाओं से होता है। तनाव को परिभाषित करते हुए A. Baum (1990) ने कहा है -
"यह एक नकारात्मक संवेगात्मक अनुभव है जो पूर्वानुमानिक जैविक रासायनिक, दैहिक, संज्ञानात्मक एवं व्यावहारिक परिवर्तनों के साथ संलग्न होता है जोकि या तो तनावपूर्ण घटनाओं को परिवर्तित करने की ओर होते हैं या इसके प्रभावों के साथ सामंजस्य स्थापित करने की ओर होते हैं।"
मनोवैज्ञानिकों ने प्रतिबल को स्पष्ट करने के लिए व्यक्ति एवं उसके परिवेश के सम्बन्ध पर जोर दिया है। उनके अनुसार प्रतिबल एक व्यक्ति के इस आंकलन की प्रक्रिया का परिणाम है कि क्या उसके पास वातावरण की माँगों को पूरा करने के लिए पर्याप्त साधन हैं। यदि वह यह मूल्यांकन करता है कि उसके पास वातावरण सम्बन्धी मांगों को पूरा करने के लिए पर्याप्त संसाधनों का अभाव है तो वह तनावग्रस्त हो जाता है। इसी तनाव की स्थिति को मनोवैज्ञानिकों ने प्रतिबल कहा है। चूंकि व्यक्ति परिस्थितियों का आंकलन स्वयं अपने उपलब्ध साधनों के आधार पर करता है अतः यह कहा जा सकता है कि प्रतिबल आत्मनिष्ठ होता है।
हन्स सेलये (Hans Selye 1974, 1976) के प्रतिबल सम्बन्धी अनुसन्धान - हन्स सेलये के अनुसार तनाव साधारण रूप से शरीर की टूट-फूट है जो उस पर की जाने वाली माँगों के कारण होती है। अनेक वातावरणीय घटनाओं या उत्तेजकों का शरीर का तनाव के सम्बन्ध में प्रत्युत्तर समान प्रकार से होता है। सेलये ने विभिन्न समस्याओं से ग्रस्त व्यक्तियों का अध्ययन किया। ये लोग विभिन्न समस्याओं जैसे निकट सम्बन्धी की मृत्यु, धन की हानि, धोखाधड़ी के लिए गिरफ्तारी आदि की आशंका से ग्रस्त थे। अपने अध्ययनों के दौरान उसने पाया कि समस्या चाहे जो हो, तनाव के लक्षण समान दिखाई दिये, जैसे - भूख न लगना, मांसपेशियों में कमजोरी आ जाना या संसार से अरुचि बढ़ जाना आदि।
अपने इन अध्ययनों के आधार पर हन्स सेलये ने सामान्य अनुकूलन सिन्ड्रोम की अवधारणा प्रस्तुत की। यह अवधारणा उन तत्वों की व्याख्या करती है जो तनाव की स्थिति में शरीर के ऊपर प्रभावी होते हैं। सामान्य अनुकूलन सिन्ड्रोम (G.A.S) के तीन चरण होते हैं-
1. अलार्म या संकट घंटी, (Alarm),
2. प्रतिरोध (Resistance),
3. थकावट या निःशेषण (Exhaustion)।
सबसे पहले अलार्म की स्थिति में शरीर एक धक्के की अस्थायी दशा में प्रवेश करता है। इस समय तनाव का प्रतिरोध नार्मल से नीचे होता है। शरीर तनाव की उपस्थिति का पता लगा लेता है और उसे निष्कासित करने का प्रयास करता है। उसकी मांसपेशियों की गति में कमी आ जाती है. शरीर का तापमान कम हो जाता है और रक्तचाप गिर जाता है। इसके बाद प्रतिक्षेप होता है जिसे विपरीत धक्का (Countershock) कहते हैं। इसमें तनाव का प्रतिरोध आरम्भ हो जाता है। इस समय ऐड्रीनल कॉर्टेक्स लम्बा हो जाता है और हार्मोन्स का छूटना बढ़ जाता है। अलार्म का चरण छोटा हो जाता है। कुछ ही देर में व्यक्ति प्रतिरोध के चरण पर पहुँच जाता है। इस चरण पर तनाव का प्रतिरोध तनाव से पूर्ण प्रयास के साथ लड़ाई करने के लिए बढ़ जाता है। प्रतिरोध स्तर पर शरीर में तनाव हॉरमोन की बाढ़ आ जाती है। रक्तचाप, हृदयगति, तापमान और श्वाँस लेने, सब में तेजी आ जाती है। यदि तनाव को सामना करने के भरपूर प्रयास असफल हो जाते हैं और वह तनाव में रहते है। तो व्यक्ति तीसरे चरण, थकावट या निःशेषण तक पहुँच जाता है। इस चरण में शरीर की क्षति की सम्भावना बढ़ जाती है। व्यक्ति थकावट के कारण गिर सकता है और उसके बीमार होने की सम्भावना बढ़ जाती है। इस प्रक्रिया को निम्नलिखित उदाहरण के द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है-
एक विद्यार्थी की परीक्षाएँ नजदीक हैं। वह जानता है कि उसने पढ़ाई बहुत कम की है। यह विचार अलार्म की प्रक्रिया आरम्भ कर देता है। वह प्रतिरोध की प्रक्रिया में अपनी सारी शक्ति पढाई में लगा देता है। वह दिन-रात पढ़ता है, सोता भी नहीं है, किन्तु प्रतिरोध लम्बे समय तक नहीं चल सकता है और अन्ततः थकान की स्थिति में वह गिर पड़ता है।
हंस सेलये के अनुसार सभी प्रकार के तनाव बुरे नहीं होते। इसलिए वह तनाव के सकारात्मक लक्षणों की व्याख्या करने के लिए यूस्ट्रेस (Eustress) की अवधारणा प्रस्तुत करता है। वह यह नहीं कहता है कि हमें जीवन के तनावपूर्ण अनुभवों से दूर रहना चाहिये। बल्कि वह इस बात पर बल देता है कि हमें अपने शरीर के ऊपर कम से कम तोड़फोड़ होने देना चाहिये।
प्रतिबल प्रबन्धन में सामाजिक सहारे की भूमिका (Role of Social Support in Stress Management) - अच्छे सामाजिक सम्बन्ध व्यक्ति के जीवन में संवेगात्मक संतोष प्रदान करने वाले होते हैं। अनुसंधानों ने अब यह भी स्पष्ट कर दिया है कि वह तनाव के प्रभावों को भी कम कर देते हैं और व्यक्ति को तनावों से निपटने में सहायता पहुँचाते हैं। व्यक्ति जब तनावपूर्ण स्थितियों से गुजर रहे होते हैं तो वे दूसरों की ओर सहायता के लिए देखने लगते हैं। अनुसंधानों से ज्ञात हुआ है कि सामाजिक सहायता की प्रतिबल प्रबन्धन में महत्वपूर्ण भूमिका है। वे व्यक्ति जिन्हें उच्च स्तर की सामाजिक सहायता प्राप्त होती है वे कम तनाव का अनुभव करते हैं। जब वे तनावपूर्ण स्थिति में होते हैं तो सामाजिक सहायता से तनाव का प्रबन्धन सफलतापूर्वक कर लेते हैं। मनोवैज्ञानिकों के अनुसार सामाजिक सहायता निम्नलिखित रूपों में हो सकती है-
1. मूल्यांकन सहायता - इस प्रकार की सहायता के अन्तर्गत तनावग्रस्त व्यक्ति का मित्र या कोई सम्बन्धी घटना का मूल्यांकन करके घटना के तनावपूर्ण पक्षों को दूर करने में सहायता करता है।
2. वास्तविक सहायता - इस श्रेणी के अन्तर्गत वस्तुओं, सेवाओं या वित्तीय सहयोग सम्बन्धी सहायता आती है।
3. सूचना सहायता - इस श्रेणी की सहायता में परिवार के सदस्य या मित्रगण तनाव से निपटने के लिए उचित सलाह देते हैं।
4. संवेगात्मक सहायता - तनाव की स्थिति में प्रायः व्यक्ति संवेगों का अनुभव करते हैं। वे अवसाद, खिन्नता या आत्मप्रतिष्ठा की कमी का अनुभव करते हैं। ऐसी स्थिति में उसे यह एहसास कराकर कि वह एक महत्वपूर्ण व्यक्ति है, संवेगात्मक सहायता की जाती है।
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