बी ए - एम ए >> बीए बीएससी सेमेस्टर-4 शारीरिक शिक्षा बीए बीएससी सेमेस्टर-4 शारीरिक शिक्षासरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए बीएससी सेमेस्टर-4 शारीरिक शिक्षा - सरल प्रश्नोत्तर
प्रश्न- प्रेरणा को परिभाषित कीजिए। प्रेरणा के विभिन्न प्रकारों को बताइए।
उत्तर-
प्रेरणा की परिभाषा
क्रैच एवं क्रचफील्ड ने लिखा है- “प्रेरणा का प्रश्न, 'क्यों' का प्रश्न है ?" हम खाना क्यों खाते हैं, प्रेम क्यों करते हैं, धन क्यों चाहते हैं, काम क्यों करते हैं? इस प्रकार के सभी प्रश्नों का सम्बन्ध 'प्रेरणा' से है।
हम 'प्रेरणा' शब्द के मनोवैज्ञानिक अर्थ को अधिक स्पष्ट करने के लिए कुछ परिभाषाएँ दे रहे हैं, यथा-
(1) गुड - "प्रेरणा, कार्य को आरम्भ करने, जारी रखने और नियमित करने की प्रक्रिया है।"
(2) ब्लेयर, जोन्स व सिम्पसन - "प्रेरणा एक प्रक्रिया है, जिसमें सीखने वाले की आन्तरिक शक्तियाँ या आवश्यकताएँ उसके वातावरण में विभिन्न लक्ष्यों की ओर निर्देशित होती हैं।"
(3) वुडवर्थ - "अभिप्रेरणा शक्तियों की दशा का वह समूह है जो किसी निश्चित उद्देश्यों की पूर्ति के लिए निश्चित व्यवहार को स्पष्ट करती है।"
(4) ऐवरिल - "प्रेरणा का अर्थ है- सजीव प्रयास। यह कल्पना को क्रियाशील बनाती है, यह मानसिक शक्ति के गुप्त और अज्ञात स्रोतों को जाग्रत और प्रयुक्त करती है, यह हृदय को स्पंदित करती है, यह निश्चय, अभिलाषा और अभिप्राय को पूर्णतया मुक्त करती है, यह बालक में कार्य करने, सफल होने और विजय पाने की इच्छा को प्रोत्साहित करती है।"
(5) लावेल - "अभिप्रेरणा एक मनोवैज्ञानिक या आन्तरिक प्रेरणा है जो किसी आवश्यकता की उपस्थिति में उत्पन्न होती है। यह ऐसी क्रिया की ओर गतिशील होती है जो उस आवश्यकता को संतुष्ट करेगी।"
(6) ब्लेयर, जोन्स एवं सिम्पसन - "प्रेरणा एक प्रक्रिया है जिसमें सीखने वाले की आन्तरिक शक्तियाँ या आवश्यकताएँ उसके वातावरण में विभिन्न लक्ष्यों की ओर निर्देशित होती है।"
(7) यंग - "प्रेरणा, व्यवहार को जाग्रत करके क्रिया के विकास का पोषण करने तथा उसकी विधियों को नियमित करने की प्रक्रिया है।"
प्रेरणा के विभिन्न प्रकार
किसी गतिविधि को सीखने के लिए उत्प्रेरित बल को प्रेरणा कहते हैं। यह बल अन्तर्मन से निकली हुई तीव्र उत्कंठा हो सकता है या किसी गतिविधि के प्रति प्रेरित किया गया जबरन बाहरी बल या आकर्षण हो सकता है। अतः हम कह सकते हैं कि प्रेरणा के प्रमुख स्रोत प्राकृतिक या अप्राकृतिक हो सकते हैं तथा इन स्रोतो के आधार पर प्रेरणा को दो प्रमुख वर्गों में विभाजित किया जा सकता है-
1. प्राकृतिक प्रेरणा या आन्तरिक प्रेरणा- यह प्रेरणा प्रत्यक्ष रूप से व्यक्ति की प्राकृतिक इच्छाओं, आवश्यकताओं और प्रवृत्तियों के साथ सम्बन्धित होती है। अतिरिक्त रूप से प्रेरित व्यक्ति किसी कार्य को इसलिए करता है क्योंकि उस काम को करने में उसे हार्दिक प्रसन्नता प्राप्त होती है। जब कोई छात्र गणित की किसी भी समस्या को हल करने में आनन्द प्राप्त करता है या किसी कविता के पाठ के माध्यम से प्रसन्नता प्राप्त करता है तब वह आन्तरिक रूप से प्रेरित होता है। इस प्रकार की स्थितियों में प्रसन्नता का स्रोत क्रियाओं में निहित होता है। विद्यार्थी "स्वतः सुखाय' की भावना से गणित की समस्या हल करता है या कविता का अध्ययन करता है। सीखने में इस प्रकार की प्रेरणा का वास्तविक महत्व होता है क्योंकि इससे स्वाभाविक रुचि उत्पन्न होती है जो अन्त तक बनी रहती है।
सामान्य तौर पर आन्तरिक प्रेरणा का अर्थ प्राकृतिक व प्रदत्त प्रेरणा है। यह अन्दर की तीव्र उत्कंठा है, एक अंतर्मन की प्यास है या प्रदत्त शौक है जिससे मजबूर होकर एथलीट गतिविधि प्रारम्भ करता है तथा बरकरार रखता है। इस तरह की कार्यवाही में एथलीट उस गतिविधि में खुद व्यस्त रखता है। एथलीट आन्तरिक रूप से प्रेरित तब माना जाता है जब वह किसी गतिविधि से शुद्ध आनन्द व सन्तोष प्राप्त करता है। जब एथलीट अन्तः प्रेरणा पाते हैं तो वे उस कार्य को पूर्ण रूप से साधने की कोशिश में हुनरमन्द व दक्ष हो जाते हैं। ऐसे लोग प्रतिस्पर्धा का आनन्द एक्शन व जोशपूर्ण ढंग से लेते है। अपनी योग्यता के चरण तक कौशल सीखते हैं तथा उसी समय फायदा भी उठाते है।
यदि कोई एथलीट महसूस करता है कि वह आन्तरिक रूप से प्रेरित है तो शायद वह अपने व्यवहार को पूरी तरह नियंत्रित कर रहा है। उसे अपने गतिविधि से ही सन्तोष प्राप्त हो रहा है क्योंकि अपने कार्यों पर व्यक्तिगत काबू रखने की जरूरत उसे महसूस हो रही होती है। शारीरिक शिक्षा शास्त्रियों को एथलीटों को ऐसा एहसास करवाना चाहिए कि जब वे स्वयं अभ्यास या प्रशिक्षित कर रहे हों तब वे दूसरे किसी प्रोत्साहन के बिना अपनी कोशिश जारी रख सकेंगे।
2. अप्राकृतिक प्रेरणा या बाहरी प्रेरणा - इस प्रकार की प्रेरणा में आनन्द कार्य में निहित नहीं होता है। इसमें व्यक्ति मानसिक प्रसन्नता प्राप्त करने के लिए काम नहीं करता बल्कि कोई लक्ष्य प्राप्त करने के लिए कार्य करता है। अच्छे स्तर को पाने या मान-सम्मान के लिए कार्य करना, कोई शिल्प सीखना, प्रशंसा प्राप्ति के लिए कार्य करना, पुरस्कार एवं दण्ड आदि सभी इसी वर्ग की अभिप्रेरणा के अन्तर्गत आते हैं।
जब एथलीट बाहरी खिंचाव, आकर्षण, बल या पुरस्कार आदि के कारण कोई गतिविधि शुरू करता है या बरकरार रखता है तो उसे बाह्य प्रेरणा कहते हैं। जब एथलीट यह सोचकर प्रदर्शन करता है कि कुछ अन्य उद्देश्य या पुरस्कार मिलेंगे तो वह बाहरी तरीके से प्रेरित होता है। जब प्रेरणा बाहरी तत्वों जैसे- पुरस्कार, ईनाम, सामाजिक सम्मान, रुतबा, नौकरी आदि से नियमित हो तो उसे बाहरी या अप्राकृतिक प्रेरणा कहते है।
यह मानना भी सही होगा कि जब बच्चा बचपन में खेल से स्थानान्तरित होकर अधिक औपचारिक, सख्त या योजना बद्ध खेल की तरफ बढ़ता है तो वह बाहरी बलों के नियंत्रण में आ जाता है अर्थात् उसके लिए अप्राकृतिक रूप से प्रेरित होने से बचना असम्भव हो जाता है। बाहरी पुरस्कार का कार्य क्षेत्र व प्रभाव इतना व्यापक होता है कि बालक उससे प्रेरित होता है।
अप्राकृतिक प्रेरणा की तुलना में आन्तरिक या प्राकृतिक प्रेरणा स्वाभाविक उत्साह और प्रेरणा का साधन है। इसलिए सीखने-सिखाने की प्रक्रिया में इसके अच्छे परिणाम निकलते है। अतः जहाँ तक सम्भव हो सके, आन्तरिक अभिप्रेरक का ही प्रयोग करना चाहिए।
परन्तु जहाँ आन्तरिक - अभिप्रेरक सम्भव न हो, बाहरी प्रेरणा का प्रयोग किया जाना चाहिए। अतः सीखने की स्थिति तथा कार्य की प्रकृति के अनुसार अध्यापक को उचित प्रकार की प्रेरणा का प्रयोग करना चाहिए जिससे विद्यार्थी सीखने की क्रियाओं में पर्याप्त रूचि ले सकें।
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